मस्तानी को ही नहीं काशीबाई को भी जानिये



सदियों से भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भारत के वीर योद्धाओं के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जाती रही है इसी क्रम में जब भी इतिहास में मराठा वीर पेशवा बाजीराव का ज़िक्र होता है तो उनके जीवन के दुसरे महत्वपूर्ण पहलुओ को छोड़, हमेशा उनके और मस्तानी के प्रेम सम्बन्ध की ही चर्चा होती रही है ! आईये जानते है कि यदि बाजीराव की पत्नी काशीबाई के बारे में भी !

कौन थी काशीबाई ?

सदियों से जब भी बाजीराव का जिक्र होता है, तब मस्तानी का ही नाम सामने आता है ! मराठा वीर बाजीराव की पत्नी काशीबाई तो जैसे इतिहास के पन्नो में कहीं गुम हो गयी है ! शायद बहुत कम लोग ये जानते है कि काशीबाई बाजीराव की पत्नी है ! पर इन दिनों एक नयी फिल्म आई है बाजीराव मस्तानी जिसके कारण काशीबाई को लेकर लोगो की दिलचस्पी बढ़ रही है ! सभी लोग काशीबाई के बारे में जानने के लिये उत्सुक है !

काशीबाई का जन्म पुणे के चासकमान गाँव में चासकर परिवार में हुआ था ! वैसे तो घरवालो ने उनका नाम काशीबाई रखा पर प्यार से लोग उन्हें लाडोबाई के नाम से पुकारते थे ! काशीबाई का परिवार अमीर होने के साथ साथ मराठी संस्कारो से परिपूर्ण था, इसलिये उन्हें शिक्षा और पढाई में दिलचस्पी थी !

काशीबाई और बाजीराव पेशवा का विवाह 

काशीबाई और बाजीराव पेशवा का विवाह चासकर परिवार के लिये एक बड़ा त्यौहार था, जिसे उन्होंने बडी धूमधाम से मनाया ! काशीबाई के पिताजी ने शादी के लिये २५००० रुपये खर्च किये ! सन १७२० में काशीबाई के ससुर बालाजी विश्वनाथ पेशवा की मृत्यु हुयी तब छत्रपति शाहूजी राजे भोसले ने बाजीराव को मराठा साम्राज्य का पेशवा नियुक्त किया !

प्रतापी बाजीराव पेशवा ने अपने पूरे शासन के दौरान ४१ युद्ध जीते थे, इसलिये उन्हें पेशवा घराने के सबसे शक्तिशाली योद्धा के नाम से जाना गया ! इन ऐतिहासिक पलों की गवाह रही काशीबाई ! शादी के कुछ वर्षों के पश्चात इनके पुत्र नानासाहेब और रघुनाथराव का जन्म हुआ ! वर्ष १७३० में शनिवारवाडा की नीव रखी गयी और अथक परिश्रमो के दो साल बाद सन् १७३२ में ये ऐतिहासिक महल बनकर तैयार हुआ ! उस दिन के बाद ये महल ही काशीबाई का आशियाना बना और इस वास्तु से उनका एक अटूट रिश्ता जुड़ गया !

पराक्रमी बाजीराव पेशवा 

‘बुन्देलखण्ड’ की विजय बाजीराव की सर्वाधिक महान विजय में से मानी जाती है। मुहम्मद ख़ाँ वंगश बुन्देला नरेश छत्रसाल को पूर्णतया समाप्त करना चाहता था | किन्तु उसके प्रयत्नों पर बाजीराव प्रथम ने छत्रसाल का सहयोग कर 1728 ई. में पानी फेर दिया और साथ ही मुग़लों द्वारा छीने गये प्रदेशों को छत्रसाल को वापस दिलवाए । कृतज्ञ छत्रसाल ने पेशवा की शान में एक दरबार का आयोजन किया तथा काल्पी, सागर, झांसी और हद्यनगर पेशवा को निजी जागीर के रूप में भेंट किया।

बाजीराव प्रथम ने आमेर के सवाई जयसिंह द्वितीय तथा छत्रसाल बुन्देला की मित्रता प्राप्त कर 29 मार्च, 1737 को दिल्ली पर धावा बोल दिया था। मात्र तीन दिन के दिल्ली प्रवास के दौरान उसके भय से मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह दिल्ली को छोड़ने के लिए तैयार हो गया था। इस प्रकार उत्तर भारत में मराठा शक्ति की सर्वोच्चता सिद्ध करने के प्रयास में बाजीराव प्रथम सफल रहा था।
मराठा संकट से मुक्त होने के लिए बादशाह ने बाजीराव प्रथम के घोर शत्रु दक्षिण के निज़ामुलमुल्क को सहायता के लिए दिल्ली बुला भेजा। भोपाल के निकट दोनों प्रतिद्वन्द्वियों की मुठभेड़ हुई। निज़ामुलमुल्क पराजित हुआ तथा उसे विवश होकर सन्धि करनी पड़ी। इस सन्धि के अनुसार उसने इन बातों की प्रतिज्ञा की-
· बाजीराव को सम्पूर्ण मालवा देना तथा नर्मदा एवं चम्बल नदी के बीच के प्रदेश पर पूर्ण प्रभुता प्रदान करना।
· बादशाह से इस समर्पण के लिए स्वीकृति प्राप्त करना।
· पेशवा का ख़र्च चलाने के लिए पचास लाख रुपयों की अदायगी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक प्रयत्न को काम में लाना।
उसने पुर्तग़ालियों से बसई और सालसिट प्रदेशों को छीनने में सफलता प्राप्त की थी। शिवाजी के बाद बाजीराव प्रथम ही दूसरा ऐसा मराठा सेनापति था, जिसने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया। 

बाजीराव का मध्यप्रदेश से सम्बन्ध -

बाजीराव को अपने कार्यकाल में अनेक मराठा सरदारों के विरोध का सामना करना पड़ा था। विशेषरूप से उन सरदारों का जो क्षत्रिय थे और ब्राह्मण पेशवा की शक्ति बढ़ने से ईर्ष्या करते थे। बाजीराव प्रथम ने पुश्तैनी मराठा सरदारों की शक्ति कम करने के लिए अपने समर्थकों में से नये सरदार नियुक्त किये थे और उन्हें मराठों द्वारा विजित नये क्षेत्रों का शासक नियुक्त किया था। इस प्रकार मराठा मण्डल की स्थापना हुई, जिसमें ग्वालियर के शिन्दे, बड़ौदा के गायकवाड़, इन्दौर के होल्कर और नागपुर के भोंसला शासक शामिल थे। इन सबके अधिकार में काफ़ी विस्तृत क्षेत्र था। इन लोगों ने बाजीराव प्रथम का समर्थन कर मराठा शक्ति के प्रसार में बहुत सहयोग दिया था। लेकिन इनके द्वारा जिस सामन्तवादी व्यवस्था का बीजारोपण हुआ, उसके फलस्वरूप अन्त में मराठों की शक्ति छिन्न-भिन्न हो गयी। यदि बाजीराव प्रथम कुछ समय और जीवित रहता, तो सम्भव था कि वह इसे रोकने के लिए कुछ उपाय करता। उसको बहुत अच्छी तरह मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जा सकता है। 

२८ अप्रैल १७४० में नर्मदा नदी के किनारे बसे रावेरखेडी गाँव में बाजीराव पेशवा का निधन हुआ ! उनके पश्चात् नानासाहेब मराठा के प्रधान बने ! मराठा साम्राज्य की उन्नति को काशीबाई ने बेहद नजदीक से देखा और कुछ सालो बाद वह भी इस संसार को छोड़ कर ब्रम्हलीन हो गयी !


आज जब बाजीराव पेशवा का नाम उनके शौर्य, साहस और उपलब्धियो को नजरअंदाज करके सिर्फ कुछ किस्सों से जोड़ा जाता है, जिनसे उनकी प्रतिमा मलिन होती है, यदि आज काशीबाई जिन्दा होती तो निश्चित ही यह सब देख कर दुखी होती और कहती कि “मैं काशीबाई बाजीराव पेशवा आप सभी से निवेदन करती हूँ कि इतिहास को सही ढंग से पेश करे और मराठा साम्राज्य की बुनियाद बुलंद करके भारत वर्ष में एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करे !”

इसे विडम्बना ही कह लीजिये कि जब हम बाजीराव और काशीबाई के सम्बन्ध में खोज करते है तो सिर्फ मस्तानी की ही तस्वीरे सामने आती है ! काशीबाई की तस्वीर उनके इतिहास की तरह ही नदारद मिलती है !

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