23 दिसंबर स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती बलिदान दिवस


स्वामी श्रद्धानंद , इस नाम का स्मरण होते ही मस्तिष्क में ऊँचा कद, चेहरे पर गंभीरता, वाणी में दृढ़ता लिए एक महामानव का नाम स्मरण हो जाता हैं जिन्हें जाति निर्माता कहूँ या फिर अमर शहीद कहूँ या फिर त्याग और तपस्या की मूर्ति कहूँ या मार्ग दर्शक कहूँ या फिर दलितौद्धारक कहूँ ! स्वामी जी का विशाल जीवन कदम कदम पर प्रेरणा दे हैं ! उन महामानव के जीवन के कई ऐसे मोती हैं जो जीवन की अविचल धारा में लुप्त से हो गये हैं ! पर हर बहुमूल्य मोती एक महाधन से कम नहीं हैं, उनकी प्रेरणा से न जाने कितनो के जीवन बदले हैं और न जाने कितनो के बदल सकते हैं ! 

स्वामी श्रधानंद को महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने कर-कमलों से गढ़ा व राष्ट्र-सेवा हेतु प्रेरित किया ! स्वामी श्रद्धानन्द आयु-भर राष्ट्र-सेवा, समाज-सुधार दलितोद्धार , वेद- प्रचार, पतिता-उद्धार, शुद्धिकरण, महिला- मंडन सरीखे पुनीत कार्यों में जुटे रहे। न थके, न रुके, बस आगे ही आगे बढ़ते गए ! स्वामी श्रद्धानन्द एक चमत्कारिक व्यक्तित्व के स्वामी थे ! उनके द्वारा किए गए अनेक कार्यों को देख-सुनकर प्रत्येक व्यक्ति का आचंभित होना स्वाभाविक है ! परन्तु अफ़सोस कितना अकृतज्ञ है यह हिन्दू समाज। जिस स्वामी श्रद्धानंद ने 20 लाख से अधिक लोगो को पुनः हिन्दू बनाया उसे अधिकांश लोग जानते तक नहीं है ! यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि जिस विराट व्यक्तित्व को यह सौभाग्य प्राप्त है की उसने जामा मस्जिद से वेद मन्त्रों का पाठ किया उसे हम नहीं जानते !

स्वामी श्रद्धानन्द का जन्म 22 फ़रवरी, 1856 ई. को पंजाब प्रान्त के जालंधर ज़िले में तलवान नामक ग्राम में हुआ था ! वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, और आर्य जाती की रक्षा के लिए, मरणासन्न अवस्था से उसे पुनः प्राणवान, गतिवान बनाने की लिए उसे सर्बोच्च शिखर पर पहुचने हेतु आर्य समाज ने सैकड़ों बलिदान दिए है उसमे प्रथम पंक्ति की प्रथम पुष्प स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती थे, इनके पिता जी का नाम नानकचंद था ! स्वामी श्रद्धानंद के बचपन का नाम मुंशीराम था | वे पढने में बहुत मेधावी, परन्तु बड़े ही उदंड स्वभाव के थे | पिता जी नानकचंद बरेली में पुलिस इंस्पेक्टर थे ! बालक के नास्तिक होने के कारण पिता जी बड़े ही असहज महसूस करते थे | सम्बत १९३६ में महर्षि दयानंद सरस्वती बरेली पधारे | पिता जी इनको उनके प्रवचन के लिए लेकर गए | उनके उपदेशो को सुनकर ये प्रभावित ही नहीं हुए बल्कि उनके प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो गया | उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा, जिससे नास्तिकता भी समाप्त हो गयी और उनके मन में पुनर्जन्म के प्रति जो अनास्था थी वह भी समाप्त हो गयी और आर्यसमाज के निकट आ गए ! पढाई पूर्ण करने के बाद उन्होंने वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला अध्यक्ष के रूप में अपना सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ किया | 

एक बार घूमते-घूमते हिमालय की कंदराओ में जा पहुचे | उन्हें प्यास लगी और पानी खोजते-खोजते एक गुफा दिखाई दी | कमंडल बाहर रखा था | स्वामी जी ने देखा कि एक महात्मा उसी गुफा में खड़ा तपस्या में लीन है | श्रद्धानंद जी उस महात्मा से निवेदन करने लगे कि आप बाहर आयें | भारत पर विपत्ति है, देश गुलाम है, गौ हत्या हो रही है, भारत माता की अस्मत लूटी जा रही है | आप जैसे महात्मा यदि कंदराओ में, अपने ब्यक्तिगत मोक्ष के लिए तपस्या करते रहेगे , तो देश का क्या होगा ? लेकिन उस महात्मा के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था | वे दुसरे दिन फिर उस संत से मिलने पहुचे और वही आग्रह दोहराने लगे महात्मा पर कोई असर नहीं होता देख उन्होंने कहा की यदि आप नहीं निकलेगे तो मै यही बैठता हूँ, स्वामी जी की बात सुनकर वो महात्मा मुस्कुराए और कहा की तुम्हारा नाम स्वामी श्रद्धानंद है तुम पंजाब के रहने वाले हो, तुम्हारी आत्मा महान तपस्वी है इसके बगल में एक और गुफा है उसमे आप भी खड़े हो जाओ बहुत ही शांति मिलेगी ! 

स्वामी जी ने कहा मै महर्षि दयानंद का शिष्य हूँ देश और धर्म की रक्षा हेतु ही मेरा जन्म हुआ है पीछे नहीं हट सकता उस सन्यासी ने कहा की मै भी तुम्हारी तरह हिन्दू समाज के लिए काम करता था, किन्तु फिर मुझे लगा कि यह समाज मरने के लिए ही पैदा हुआ है ! निराश होकर मै यह आनंद ले रहा हू तुम भी बगल की गुफा में खड़े हो जाओ ! महर्षि दयानंद ने तब उनसे कहा कि मेरे गुरु का आदेश है भारत की स्वतंत्रता भारत की सुरक्षा और धर्म की रक्षा के साथ विधर्मी हुए बंधुओ की घर वापसी हेतु प्रयास करो ! उस सन्यासी ने स्वामी जी को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम नौजवान हो और जिस देश का नौजवान खड़ा हो जाता है वह देश दौड़ने लगता है ! सच ही स्वामी जी ने हजारों देश भक्त नौजवानों को खड़ा कर दिया !

वे महान क्रन्तिकारी देश भक्त संत थे | उन्होंने वेदों के प्रचार और वैदिक साहित्य के लिए गुरुकुलो की स्थापना की, देश की आज़ादी हेतु हजारो क्रांतिकारियों की श्रृंखला खडी की ! वे देश की आज़ादी के अग्रणी नेता थे गाँधी जी को महात्मा की उपाधि देने वाले वही थे ! वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, और आर्य जाती की रक्षा के लिए, मरणासन्न अवस्था से उसे पुनः प्राणवान, गतिवान बनाकर उसे सर्बोच्च शिखर पर पहुचाने हेतु आर्य समाज ने सैकड़ों बलिदान दिए है, उसमे प्रथम पंक्ति के प्रथम पुष्प स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती थे | 

स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल प्रारंभ करके देश में पुनः वैदिक शिक्षा को प्रारंभ कर महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो को प्रचार-प्रसार व कार्यरूप में परिणित किया, वेद और आर्य ग्रंथो के आधार पर जिन सिद्धांतो का प्रतिपादन किया था उन सिद्धांतो को कार्य रूप में लाने का श्रेय स्वामी श्रद्धानंद जी को ही है, गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की व्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवको -पार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाती की उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य है जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए, उनका सर्बाधिक महानतम जो कार्य था, वह शुद्धि सभा का गठन जहाँ-जहाँ आर्य समाज था वहाँ-वहाँ शुद्धि सभा का गठन कराया और शुद्धि - आन्दोलन के द्वारा सोया हुआ भारत जागने लगा ! 

एक राष्ट्रवादी मुस्लिम का स्वामी श्रद्धानन्द से प्रेम

स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज के स्वभाव की मृदुलता, शालीनता और सोम्यता से प्रभावित होकर उनके अनेक प्रशंसक बन गए थे जिनमे न केवल हिन्दू थे अपितु ईसाई और मुसलमान दोनों थे ! ऐसे ही स्वामी जी एक भगत थे जिनका नाम था मौलाना आसफ अली बार एट लॉ ! आप दिल्ली के मशहूर वकील थे और क्रान्तिकारी अरुणा आसफ अली के पति थे ! आपने हिन्दुस्तान रिव्यु नामक अखबार में स्वामी जी की शहादत के पश्चात एक लेख लिखा था जिसमे आप लिखते हैं -

“१९१८ में दिल्ली में कांग्रेस के अधिवेशन में स्वामी जी को स्वागत कारिणी समिति का उपप्रधान चुना गया और मुझे सहकारी मंत्री चुन गया था ! मुझे स्वामी जी के साथ कार्य करने का बहुत अवसर मिला ! आपकी स्नेहमह उदारता, अपूर्व सज्जनता, नम्रता और निष्कपट मैत्री ने शीघ्र ही मुझे वशीभूत कर लिया ! उन की गुरुजन सुल्म सौम्यता और स्नेह और मेरी ओर से भक्ति और सम्मान के भावों ने हमारे बीच में एक ऐसा प्रगाड़ सम्बन्ध उत्पन्न कर दिया जो अनेक विषयों पर हम में तात्विक विरोध होने पर भी अंत तक बना रहा !”

सन १९२२ में लेखक की मियावाली जेल में स्वामी जी से फिर भेंट हुई, जिनकी सजा के अब थोड़े ही दिन बाकी रह गए थे ! जैसे ही आपको मालूम हुआ की स्वामी जी वहाँ हैं -”मैं उनकी कोठरी की और बेतहाशा दौड़ पड़ा ! स्वामी जी ने दोनों बाहें फैला कर मेरा स्वागत किया और बड़े स्नेह से मुझे गले लगाकर अपने पास बैठा लिया ! ”

मियावाली जेल में भी स्वामी जी गीता, रामायण या दर्शन पर उपदेश देते थे ! कैदियों को जिस सत्संग का सुअवसर और कहीं न मिल सकता वह इस जेल में हाथ आता ! प्रेमियों की एक मण्डली रोज जमा हो जाती थी ! मौलाना आसफ अली ने बड़े शौक से गीता रहस्य माँग कर पढ़ा और जब कभी उन्हें कोई शंका होती तो स्वामी जी बड़े हर्ष से समाधान कर देते थे ! कभी राजनीति पर बात चल पड़ती, कभी दर्शन पर और कभी फारसी साहित्य पर ! स्वामी जी फारसी साहित्य के बड़े अच्छे मर्मज्ञ थे ! मौलाना रूम की मसनवी से आपको बहुत प्रेम था !

मौलाना आसफ अली का स्वास्थ्य उन दिनों कुछ अच्छा न था ! शरीर मैं रक्त की कमी थी ! चेहरा पीला पड़ गया था ! स्वामी जी को उनकी दशा देख कर चिंता हुई ! वाह! कितना सच्चा वात्सल्य भाव था ! खुद जेल में थे, सभी प्रकार के कष्ट सह रहे थे, पर मौलाना अली के यह दशा देखकर अपने उनके लिए एक दूसरी कोठरी चुन दी जिसमे धुप और प्रकाश स्वछंद रूप से मिल सकता था ! उनके आहार के सम्बन्ध में भी जेलर से सिफारिश कर दी, जो स्वामी जी का बहुत लिहाज़ करता था ! यह सद्व्यवहार था, यह सज्जनता थी जो परिचितों को भी उनका भक्त बना देती थी !

स्वामी जी की हत्या 

किन्तु देश का दुर्भाग्य तो देखिये कि देश में हो रहे दंगो के लिए एक जाँच कमेटी मोती लाल नेहरु की अध्यक्षता में बनाई गई थी , उस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह लिखा कि स्वामी श्रद्धानन्द के शुद्धि आन्दोलन के कारण देश में दंगे हुए ! इस ऊलजलूल आरोप से बेपरवाह स्वामी जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि जिस प्रकार मुसलमानों को यह अधिकार है कि वे गैर मुसलमानों को इस्लाम में आने की दावत दें, उसी प्रकार हिन्दुओं को भी अधिकार है कि वे अपने बिछड़े हुए भाईयों को वापस अपने घर में वापस ले आयें ! महात्मा गाँधी ने जोश में आकर सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी श्रद्धानंद के विरुद्ध लेख लिख डाला और मुसलमानों के रुख का समर्थन किया ! मुसलमानों को लगा कि उनकी हर जायज और नाजायज माँगों को महात्मा गाँधी का समर्थन प्राप्त हैं!) - सन्दर्भ गुरुकुल पत्रिका १९४० दिसम्बर

स्वामी श्रद्धानंद जी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के ८९ गावो के हिन्दू से हुए मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल कर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के द्वारा शुरू की परंपरा को पुनर्जीवित किया और समाज में यह विश्वास पैदा किया कि जो बिधर्मी हो गए है वे सभी वापस अपने हिन्दू धर्म में आ सकते है ! फलस्वरूप देश में हिन्दू धर्म में वापसी के वातावरण बनने से लहर सी आ गयी ! राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के एक लाख पच्चीस हज़ार मुस्लिम राजपूत यानी मलकाना राजपूतो की घर वापसी उन्हें भारी पड़ी,  और २३ दिसंबर १९२६ को एक धर्मांध मुस्लिम युवक अब्दुल रशीद ने उन्हें गोली मारकर हत्या कर दी ! वे अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा श्रोत बने हुए है, आइये उनके उद्देश्यो, उनके बिचारो पर चल कर उनको श्रद्धांजलि दें ! आइये बिछुड़े हुए बंधुओ की घर वापसी कर उनके लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करे, यही देश भक्ति, भारत भक्ति और यही हमारी राष्ट्र आराधना भी है हम इस यज्ञ में आहुति जरुर डालेगे तभी स्वामी श्रद्धानंद की आत्मा को शांति मिलेगी !

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