भारत की नदियों को प्रदूषित कर रहा है चीन का परमाणु कचरा |


भारत के अधिकांश नदियों का जल संग्रहण क्षेत्र तिब्बत है जहां चीन लगातार परमाणु कचरा डाल रहा है जिससे न केवल भारत वासियों का जीवन संकट में पड़ सकता है, वहीं निकट भविष्य मे एशिया के देशो को भी ग्लोबल वार्मिंग का सामना करना पड़ सकता है। आज भोपाल में अटल बिहारी वाजपेयी अध्ययन एवं अनुसंधान केंद्र, हिंदी विश्वविद्यालय के सहायक निदेशक तथा नव नियुक्त ‘‘ द कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया‘‘ के पश्चिम क्षेत्र संयोजक, भारत- तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय महासचिव डाँ. शिवेन्द्र प्रसाद ने उक्त विचार व्यक्त किये |

डाँ. शिवेन्द्र प्रसाद ने कहा कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी भारत को चीन से सतर्क रहना होगा क्योकि उसने ब्रम्हपुत्र नद्य को संघाई की ओर मोड़ना शुरू कर दिया है जिससे भारत को जैव विविधता की दृष्टि से काफी गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 

उन्होंने कहा कि तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए भारत ही एकमात्र आशा का केंद्र है। जिसप्रकार लगातार मोदी सरकार विश्व मंच पर भारत की ध्वजपताका लहरा रही है उसी प्रकार तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए भारत को विश्व मंच पर आगे आना होगा।

आंकडे़ बताते है कि तिब्बत मे 1959 के बाद जन्मे 143 भिक्षु- भिक्षुणियों द्वारा आत्मदाह किया गया है जो तिब्बत के आजादी के संघर्ष का परिचायक है। चीन का यह दावा खोखला साबित होता है कि तिब्बत मे सबकुछ सामान्य है। 143 भिक्षु- भिक्षुणियों का तिब्बत के अंदर आत्मदाह किया जाना तिब्बत की वास्तविक स्थिति को परिलक्षित करता है। सच्चाई यह है कि चीन के साम्राज्यवादी शासन मे तिब्बत मे रह रहे तिब्बतीयों की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। मानवाधिकारों का उल्लंघन आम बात हो गई है। ऐसा लगता है कि मानवधिकारों से खिलवाड़ करना अब चीन की आदत बन गई है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल जब देश के गृहमंत्री व उप प्रधानमंत्री थे तो उन्होने तिब्बत की संप्रभुता के लिए लड़ाई लड़ी परन्तु चीन की कुटिलता तथा भारत की तात्कालीन अस्पष्ट विदेशनीति ने तिब्बत को चीन के चंगुल में जाने दिया । आज समय की मांग है कि विश्व भर मे शरणार्थियों के रूप में जीवन जी रहे है तिब्बतियों को उनके मूल घर में पुर्नवास किया जाए। चीन सहित विश्व मंच का नैतिक दायित्व है कि तिब्बत की संप्रभुता का सम्मान करे।

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