प्रधानमंत्री मोदी की नई कृषि नीति - प्रवीण गुगनानी



कृषि प्रधान देश भारत की वर्तमान में चल रही कृषि नीति एक दशक पूर्व निर्धारित की गई थी. स्वाभाविक ही है कि तीव्र गति से बढ़ते संचार, परिवहन, विज्ञान व संवेदनशील अर्थशास्त्र के इस नए दौर में भारतीय कृषि नीति की भी नये सिरे से पुनर्व्याख्या हो. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस ओर कदम बढाते हुए ही जिस नई कृषि बीमा नीति कि घोषणा की है वह भारतीय कृषि में व कृषकों के जीवन में युगांतरकारी परिवर्तन लाएगी यह विश्वास किया जाना चाहिय. भारत की 58% जनता प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. कृषि उत्पादों की औद्योगिक इकाइयों में लगभग 10% लोग रोजगार प्राप्त करतें हैं. कृषि उत्पादन व इनसे निर्मित उत्पादनों हेतु देश की यातायात व्यवस्था का एक बड़ा प्रतिशत उपयोग होता है. किन्तु इन तथ्यों के मध्य एक अप्रिय तथ्य यह भी विकसित हो रहा है कि प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, दूसरी ओर भूमि का वितरण अत्यन्त असंतुलित है. देश में आज भी किसानो के पास समस्त कृषि भूमि का 62 प्रतिशत है तथा 90 प्रतिशत किसानों के पास कुल कृषि भूमि का केवल 38 प्रतिशत है. 

जिस देश में लोकोक्ति प्रचलित थी कि -“उत्तम खेती मध्यम बान करत चाकरी कुकर निदान” अर्थात कृषि कार्य सर्वोत्तम है, बान अर्थात व्यापार को द्वितीय श्रेणी का रोजगार माध्यम तथा नौकरी करनें को कुत्ते की प्रवृत्ति माना गया था; उस देश में आज कृषि को अपनी वृत्ति, व्यवसाय या रोजगार माननें के प्रति घोर उदासीनता आ गई है. देश में आज कृषि के प्रति आकर्षण सतत घटता जा रहा है. भारत की पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों की विसंगति पूर्ण नीतियों के कारण कृषि का सकल घरेलु उत्पादन में योगदान 60% से घटकर 17% रह गया है. यह विसंगति इस तथ्य के आलोक में और अधिक गहरी हो जाती है कि कृषि पर देश 58% जनता की आजीविका निर्भर है.

सभी जानते हैं कि कृषि कार्य अति जोखिम भरा कार्य है जिसे जुआ भी कहा जाता है. मौसम पर कृषि की अति निर्भरता कृषकों को कृषि कार्य त्यागनें को मजबूर करती है. कृषि कार्य के अत्यधिक जोखिम भरे स्वभाव के कारण ही इस देश में पिछले वर्षों में कृषकों द्वारा आत्महत्या किये जानें की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि देखनें में आई है. इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जानें वाले कृषि कार्य की व कृषकों की अवहेलना हम सतत देखते रहें हैं. देश की पिछली पूर्ववर्ती सरकारों का कृषि विमुख स्वभाव ही रहा कि कृषि संदर्भ में प्रभावी व फलदायी नीतियों का निर्माण नहीं हो पाया. 

कृषि कार्य को जोखिम से बचानें का जो सबसे आकर्षक व प्रभावी उपाय कृषि बीमा है उसे पिछले दशकों में उपेक्षित रखा गया. कृषि बीमे का ढांचा कुछ इस प्रकार का था कि किसानों से अधिक बीमा कम्पनियां लाभ कमाती थी. आश्चर्य है कि पिछले दशकों में कृषि बीमा की प्रीमियम दर 15 से लेकर 57 % तक के उच्चतम स्तर पर टिकी रही हैं. साथ ही बीमे की शर्तों व नियमों का जाल इस प्रकार बुना जाता था कि कोई बिरला कृषक ही कृषि बीमे से मुआवजा प्राप्त कर पाता था. नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना में प्रीमियम की राशि को आश्चर्यजनक ढंग से घटाकर डेढ़ से ढाई प्रतिशत के निम्नतम स्तर पर ले आया है. बीमे के नियमों के जाल को भी आसान व सुलभ-सरल कर दिया गया है. 

अब तक जो बीमा योजना थी उससे कर्ज राशि बीमित होती थी, लेकिन अब सबसे कम प्रीमियम में फसल उत्पादन का बीमा होगा और फसल के बोने से लेकर फसल किसान के घर पहुंचनें तक होने वाली फसल पर आने वाली आपदा को बीमा के दायरे में लाया गया है. यदि मौसम की मार से किसान का खेत अनबोया रह जाता है तो भी उसे मुआवजे का हक होगा. पहली बार किसान को व्यक्तिगत आधार पर बीमा कवर मिलेगा. ओला, पानी, सूखा, कीट व्याधि, भूस्खलन, पानी भराव से फसल की क्षति में किसान को मुआवजा प्राप्त होगा. ओला, जलभराव और लैण्ड स्लाइड जैसी आपदाओं को स्थानीय आपदा माना जाएगा. पुरानी योजनाओं के अंतर्गत यदि किसान के खेत में जल भराव (पानी में डूब) हो जाता तो किसान को मिलने वाली दावा राशि इस पर निर्भर करती कि यूनिट आफ इंश्योरेंस (गांव या गांवों के समूह) में कुल नुक्सानी कितनी है. इस कारण कई बार नदी नाले के किनारे या निचले स्थल में स्थित खेतों में नुकसान के बावजूद किसानों को दावा राशि प्राप्त नहीं होती थी. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में इसे स्थानीय हानि मानकर केवल प्रभावित किसानों का सर्वे कर उन्हें मुआवजा प्रदान किया जाएगा.

नमो सरकार ने भारतीय कृषि को सचमुच राष्ट्र की रीढ़ की मान्यता देते हुए पशुपालन, आर्गेनिक कृषि, मछलीपालन, बागवानी, कृषि आधारित कुटीर उद्योग आदि कई क्षेत्रों को प्राथमिकता का क्षेत्र मानकर इनके अनुरूप कृषि नीति के निर्माण व क्रियान्वयन का कार्य प्रारम्भ कर दिया है. कृषि आधारित कुटीर उद्योग, जल सरंक्षण, मृदा सरंक्षण, मृदा परिक्षण के कार्यों को अत्यधिक सुलभ बनानें की योजना भी आकार ले चुकी है. मोदी सरकार कृषि प्रसंस्करण, आर्गेनिक कृषि उत्पादों के विक्रय, आर्गेनिक कीट निरोधक छिडकाव, परम्परागत देशी बीजों के सरंक्षण, कताई, हैंडलूम, खादी, विविध दैनिक वस्तुओं का कुटीर उद्योग में उत्पादन, बांस व बांस दस्तकारी, अन्य हस्तशिल्प, पर्यावरण रक्षा से जुड़े ‘ग्रीन’ उत्पाद, हर्बल दवाएं आदि के क्षेत्र में भी कृषकों की सहायता, प्रशिक्षण व मार्केटिंग की योजना प्रस्तुत कर चुकी है. ग्राम आधारित उद्योगों के माध्यम से शहरी आय स्तर को छूना इन योजनों का मूल लक्ष्य है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था नगरीय आधारित न होकर स्वनिर्भर हो, विविधता पूर्ण हो व उद्यमी के साथ साथ राष्ट्र को भी विकास मार्ग पर प्रशस्त करे यह इन योजनाओं का लक्ष्य है. आइये नए कृषि परिवर्तनों के प्रति संकल्प भी व्यक्त करें व प्रार्थना भी कि इस राष्ट्र का भूमि पुत्र अन्नपूर्णा का सच्चा साधक बन पाए.

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