क्या है वैज्ञानिकों की दृष्टी में ईश्वर ?

आज जो मनुष्य धर्म, कर्मकांड, ईश्वर आदि विषयों में आस्था रखते है, वे प्राय: विज्ञान से वियुक्त है और जो भौतिक विज्ञान, यन्त्र, सिद्धांत, कला, निर्माण, प्रबंध व्यवस्था, तकनीकि आदि विशेषताओं से युक्त है उनके लिए प्रायः अध्यात्म सम्बन्धी विषय उपेक्षित से हो गए है ! यदि विज्ञान धर्म से युक्त नहीं है तो अंधा है और धर्म यदि विज्ञान से युक्त नहीं है तो अपंग है ! विदेशों की बात क्या करें अब तो प्रायः देश में भी इश्वर उपासना, स्वाध्याय, सत्संग, यज्ञ, जप, सात्विक भोजन, नियमित व्यायाम आदि से सम्बंधित विषय गौण हो गए है इसका कारण शिक्षा में से अध्यात्म विषय को हटा देना है !

वैदिक जीवन पद्धति में तो ईश्वर एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु है ! वही जीवन का उत्पादक, संचालक, रक्षक, प्रेरक है ऐसा माना गया है ! इसके बिना जीवन नितांत अपूर्ण है ! बिना ईश्वर में श्रद्धा, विश्वास के मनुष्य दुःख, पीड़ा, बंधन, भय, शोक, चिंताओं से घिरा रहता है ! अतः वैदिक धर्म में ईश्वर को जानकर, समझकर उसके प्रति विश्वास, श्रद्धा, प्रेम, निष्ठा बनाकर, उसके साथ सतत संपर्क बनाए रखने का निर्देश किया गया है ! इसकी कमी होने के कारण ही आज न केवल व्यक्तिगत अपितु सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक नैतिक जीवन स्तर गिर गया है !

पाश्चात्य वैज्ञानिकों में से अधिकाँश ईश्वर विश्वास व धार्मिक क्रियाकांडों के प्रति उपेक्षा भाव रखने लगे हैं ! अनेकों ने तो ईश्वर व धर्म का घोर खंडन किया है ! जिनके कुछ उदाहरण यहाँ लिख रहे है –

“इस विज्ञान के युग में ईश्वर की मृत्यु हो गयी है !” – नेशे 

“ईश्वर व धर्म समाज में स्थान पाने के योग्य नहीं है !” – बेकन 

“यदि सचमुच कहीं ईश्वर मौजूद है तो उसका अस्तित्व मिटा देना चाहिए !” – बुकनिन 

“आज धर्म का युग चला गया है और धर्म के स्थान पर विज्ञान ने जगह ले ली है !” – बर्थोले 

“धर्म एक अफीम के समान है जो व्यक्ति को बेहोश बना देती है !” – कार्ल मार्क्स 

पाश्चात्य प्रसिद्ध दार्शनिक वैज्ञानिकों ने ऐसी ही नास्तिकता सम्बन्धी मान्यताओं का विश्वभर में प्रचार-प्रसार किया है ! आजकल न केवल पाश्चात्य भौतिकता प्रधान देशों में अपितु भारत के शिक्षित वर्ग और बुद्धिजीवियों में भी यही मानसिकता बनती जा रही है कि वास्तव में ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं है, यह मात्र कल्पना है, उसकी उपासना, ध्यान, पूजा, स्तुति के लिए समय लगाना, धन लगाना, शक्ति लगाना व्यर्थ है ! इन काल्पनिक निराधार मान्यताओं में कुछ भी नहीं रखा है, जीवन बहुत छोटा है, समय बहुत कम है और काम बहुत अधिक है अतः कुछ करने – कराने की बात करनी चाहिए ! इन व्यर्थ की बातों में समय नष्ट नहीं करना चाहिए !

इसका परिणाम यह हुआ है कि वर्तमान पीढ़ी में नास्तिकता की मान्यता, आंधी के समान दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढती जा रही है ! यहाँ तक कि कुछ बुद्धिजीवियों ने तो ईश्वर को सिद्ध करनेवालों को लाखों रुपये का पुरष्कार देने की घोषणाएं भी कर दी है !

जो व्यक्ति यह मानता है कि में शरीर के अतिरिक्त कुछ नहीं ! जन्म से पहले मेरा कोई अस्तित्व नहीं था और मृत्यु के पश्चात भी नहीं रहेगा ! भूतों के योग से अकस्मात् मेरा शरीर बन गया है तथा मृत्यु के बाद मेरा अंत है ! संसार अकस्मात् बन गया है, संसार का बनाने वाला, संचालन करने वाला भी कोई ईश्वर नहीं है ! सब कुछ स्वाभाविक है !

जो मनुष्य अपने आप की शरीर से भिन्न आत्मा नहीं मानता है, ऐसे व्यक्ति के विचार शरीर से परे जा ही नहीं सकते, वह तो बस अपने शरीर को खिलाने, पिलाने, सजाने, संवारने और इसकी रक्षा में ही लगा रहेगा ! ऐसा व्यक्ति झूठ, छल, कपट, धोखा, विश्वासघात, अन्याय, शोषण आदि के माध्यम से भोग के साधनो का संग्रह करेगा और जब तक जियेगा भोग विलास में ही लगा रहेगा !

ऐसे व्यक्ति के लिए सदाचार, अहिंसा, परोपकार, त्याग आदि बातें कोई महत्त्व नहीं रखती है ! ऐसा व्यक्ति समय, शक्ति, धन से दूसरे की सहायता क्योँ करेगा ? किसके लिए करेगा ? उसे बदले में क्या मिलेगा त्याग करने में ? दूसरा मनुष्य भूखा-प्यासा-नंगा है तो उसे क्या ? क्योँ ऐसे झंझट में पडेगा ? वह सड़क पर गिरे व्यक्ति को क्योँ उठाएगा ? अंधे-लूले-लंगड़े को क्योँ रास्ता दिखाएगा ? भूखे-प्यासे को क्योँ खिलाएगा ? दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को वह क्योँ उठाकर चिकित्सालय पहुंचाएगा ? बिलकुल नहीं करेगा, जैसा की आज प्रायः देखते है !

आज के मानव समाज में ऐसी मान्यता वाले व्यक्तियों का जीवन प्रत्यक्ष देखने को मिलता है ! खाओ-पियो और मौज करो ! उनकी यह मान्यता बन गयी है कि यह जीवन “प्रथम और अंतिम है” ! न पीछे था न आगे होगा ! बस येन केन प्रकारेण जो कुछ भोगना है भोग लो, मृत्यु के पश्चात सब कुछ समाप्त हो जाएगा ! ऐसे व्यक्ति समाज, राष्ट्र, जाती, धर्म, संस्कृति के लिए कुछ भी नहीं करते है, क्यूंकि वे सोचते है कि ऐसा करने से मुझे क्या मिलेगा ?

शरीर को आत्मा मानने वालों के पास इसका उत्तर नहीं है, किन्तु शरीर से अलग नित्य आत्मा की सत्ता को मानने वाले और ईश्वर पर विश्वास करनेवाले कहते है कि मृत्यु मेरा अंत नहीं है, मेरे त्याग, बलिदान के बदले ईश्वर मुझे आंतरिक सुख-शान्ति प्रदान करेगा और मेरा अगला जन्म उच्च स्तर का होगा !

The Evidence of God in Expanding Universe नामक एक पुस्तक जिसका प्रकाशन जन ज्ञान प्रकाशन की और से हिंदी रूपांतरण प्रकाशित हुआ ! इस पुस्तक में बहुत से पाश्चात्य आस्तिक वैज्ञानिकों के विचार है जो ईश्वर की सत्ता में प्रबल विश्वास रखते है, तो बड़ा हर्ष अनुभव हुआ ! इस पुस्तक में से कुछ महत्वपूर्ण, वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण वाक्यों को संग्रहित किया गया है ! आज की नयी पीढ़ी के लिए जो प्रायः नास्तिकता की और अग्रसर हो रही है उसको रोकने हेतु यह कारगार है !

वैज्ञानिकों की दृष्टी में भारत –

प्रो फ्रेंक एलन (मानिटोबा वि. वि., कनाडा)

थर्मोडायनेमिक्स (उष्मा गतिकीय) नियमों से यह पता चलता है कि संसार ऐसी अवस्था को प्राप्त होता जा रहा है जबकि सभी पिंडों का एक जैसा अत्यंत कम तापमान रह जाएगा और उसमे शक्ति भी शेष नहीं रहेगी तब प्राणियों का जीवन धारण करना असंभव हो जाएगा ! अनंत काल में शक्ति समाप्ति की यह अवस्था कभी न कभी तो आएगी ही ! यह इतनी गर्मी देने वाला सूर्य और तारे, असंख्य जीव धारियों को अपनी गोद में लपेटे यह प्रथ्वी, इस बात के पक्के सबूत है कि सृष्टि का उद्भव किसी न किसी काल में, काल की किसी निश्चित अवधि में, घटित हुआ है और इसलिए इस विश्व का कोई न कोई रचियता होना चाहिए ! एक महान प्रथम कारण, एक शाश्वत, सर्वज्ञ और सर्व शक्तिमान स्त्रष्टा अवश्य होना चाहिए और यह सारा विश्व उसी की कारीगरी है !
कोई अनंत चेतन शक्ति ही यह समझ सकती है कि इस प्रकार का अणु जीवन का आधार बन सकता है ! उसी शक्ति ने इस अणु का निर्माण किया है और उसी ने इसे जीवन धारण के योग्य बनाया है ! उस शक्ति का नाम परमात्मा है !

लार्ड केल्विन (महान वैज्ञानिक)

“यदि तुम गंभीरता से विचार करो, तो विज्ञान तुम्हे ईश्वर में विश्वास करने को बाध्य कर देगा”

प्रो. डोनाल्ड हेनरी पोर्टर ( गणितज्ञ भौतिकीविद मैरियन कालेज )

“प्रकृति की चाहे किसी भी प्रक्रिया पर विचार किया जाए और सृजन के किसी भी प्रश्न का अध्ययन किया जाए, वैज्ञानिक के तौर पर मुझे संतोष तभी होता है जब उसमे परमात्मा को मुख्य स्थान देता हूँ ! जितने भी ऐसे सवाल है जिनका अभी तक जवाब नहीं दिया जा सकता, उन सबका ईश्वर ही एक जवाब है !”

प्रो. रोबर्ट हौर्टन कैमरोन (गणितज्ञ,मिनेसोटा वि.वि.)

परमात्मा की सत्ता में मेरा विश्वास भी परिक्षणात्मक प्रमाण पर आधारित है ! अब से बत्तीस साल पहले कार्नेल वि.वि. के एक शयन कक्ष में यह परिक्षण किया था और परमात्मा ने मुझे एक नया दृष्टिकोण, नए दिशानिर्देश और नए आनंद दिए ! उसके बाद से परमात्मा की सत्ता का प्रश्न मेरे लिए इतना महत्वपूर्ण हो उठा कि में अपना पद, अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा और इस पृथ्वी पर जो कुछ भी मेरा है, अक्षरशः उस सबको छोड़ने को तैयार हो जाऊँगा, किन्तु आस्तिक बनने से पहले की अपनी अवस्था में जाने को तैयार नहीं होऊंगा !

साभार : वैज्ञानिकों की दृष्टी में ईश्वर (The Evidence of God in Expending Universe)

और अंत में दुष्यंत कुमार -
खुदा नहीं न सही, आदमी का ख़्वाब सही,
इक हसीं नजारा तो है, नजर के लिए !
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