भारत की आजादी और राजे रजवाड़े - भाग 1


3 जून १९४७ को आल इंडिया रेडिओ नै दिल्ली में हलचल बड़ी हुई थी क्यूंकि यहाँ शाम को वायसराय और गवर्नर और जनरल लार्ड माउंटबेटन आनेवाले थे और उनके साथ आनेवाले थे जवाहरलाल नेहरु, सिख नेता सरदार बलदेव सिंह और मुहम्मद अली जिन्ना !

इन तीनों को संबोधित करते हुए माउंटबेटन ने कहा कि :- “भारत की एकता को बचाए रख सकने वाले किसी समझौते तक पहुंचना नामुमकिन हो गया था ! इस बात का सवाल ही नहीं उठता कि एक इलाके की बहुसंख्यक आबादी को ऐसी सरकार के हवाले छोड़ दिया जाए जिसमे उनका दखल न हो ! इस हालात से बचने का एकमात्र रास्ता है ....... बंटवारा !”

माउंटबेटन के फैसले को सहर्ष स्वीकार कर नेहरु ने देशवासियों को रेडियो पर संबोधित करते हुए कहा कि :- “भारत विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए मुझे ख़ुशी नहीं हो रही परन्तु यही एकमात्र रास्ता था और दूरदृष्टि से देखा जाए तो भी यह सही कदम है !”

भारत का बटवारा जिसे माउंटबेटन प्लान भी कहा जाता है को नेहरु के द्वारा स्वीकारने के बाद और देशवासियों को सम्बोथित करने के अगले दिन एक नया मोड़ आया !

४ जून १९४७ को माउंटबेटन ने वर्तमान संसद भवन में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई जिसकी तैयारी में वह रात भर सो नहीं पाए क्यूंकि इस प्रेस कांफ्रेंस में दुनिया भर के ३०० पत्रकार आनेवाले थे और उनसे जवाब तलब करनेवाले थे ! इस प्रेस कांफ्रेंस में बोतले हुए माउंटबेटन ने कहा :- 

“में इस बात को गंभीरता से मानता हूँ कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर १९४७ में ठीक उसी तरह से होगा जैसा जून १९४८ में होना था ! ब्रिटेन १९४७ में भारत को सत्ता का हस्तांतरण कर देगा ! मैंने स्टीमर का टिकट 15 अगस्त १९४७ का लिया है अतः सत्ता के हस्तांतरण की तारीख वही होगी ! मात्र ७२ दिनों में बंटवारा भी होगा और आजादी भी दी जाएगी ! 

माउंटबेटन की घोषणा के बाद सबसे अहम् सवाल जो उपजे वह यह थे कि कितने देश आजाद होने जा रहे है २ या ५६५ ? बंटवारे से होनेवाली समस्याएँ जो उत्पन्न होने वाली थी कि साम्पदायिक हिंसा को कैसे रोका जाए व भारत के खूबसूरत चेहरे को बिगड़ने से कैसे रोका जाए ?

५६५ अलग अलग देशों की बात आखिर कैसे आई ?

दरअसल उस वक़्त भारत में सभी छोटे बड़े मिलकर ५६५ रजवाड़े थे ! इन रियासतों पर अंग्रेजों का परोक्ष शासन था ! इन राजाओं की अपनी स्वयं की फौज, स्वयं की पुलिस, स्वयं का क़ानून एवं स्वयं की करेंसी थी ! इन्होने ब्रिटेन की गुलामी स्वीकार कर ली थी ! जिसे पैरामाउंटसी कहते थे अब पैरामाउंटसी ख़त्म हो रही थी ! अब रियासतें स्वतंत्र थी ! इससे भारत को आजादी तो मिल रही थी पर देश बिखर रहा था ! इस बात का फायदा मुहम्मद अली जिन्ना उठाना चाहता था ! जिन्ना रियासतों को बगावत करने के लिए उकसा रहा था, जिससे हिन्दुस्तान हमेशा कमजोर राष्ट्र रहे !

भारत में खूनखराबा शुरू हो गया ! कोलकता में ही 5000 लोगों का क़त्ल कर दिया गया ! यह वारदातें तब से ही शुरू हो गयी जब भारत को आजादी मिली ही नहीं थी ! बड़े राजाओं को भारत की लोकशाही से डर लग रहा था ! वे अपने राज्य को आजाद देश बनाना चाह रहे थे ! 

राजाओं की सत्ता को भारत में शामिल करने हेतु इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सटेंशन (रियासतों के विलीनीकरण) का कार्य शुरू हुआ ! सभी राजा महाराजाओं को सबसे पहले इन्ही कागजातों पर हस्ताक्षर करने थे ! 

11 जून १९४७ को त्रावनकोर नामक राज्य ने स्वयं को आजाद संप्रभुता से संपन्न देश बनाने की घोषणा कर दी ! 12 जून को हेदराबाद ने विरोधी सुर उठाये और वहां के निजाम ने 15 अगस्त के बाद स्वयं को आजाद होने की घोषणा कर डाली ! हैदराबाद के अलग होने का मतलब था “सम्पूर्ण दक्षिण भारत का सम्बन्ध उत्तर भारत से टूट जाना “ ! 

बिगड़ते हालातों को देखते हुए रियासती मामलों के लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया गया ! उस मंत्रालय के मंत्री बने सरदार बल्लभ भाई पटेल एवं सेक्रेटरी बने वी.पी. मेनन ! 5 जुलाई १९४७ को पटेल ने आल इंडिया रेडिओ के माध्यम से इन राजाओं से संपर्क साधा और कहा :-

“यह संयोगमात्र है कि कुछ लोग रियासतों में रह रहे है और कुछ ब्रिटिश भारत में, परन्तु हमारा ख़ून एक है, हित एक है ! हमें टुकड़ों में कोई नहीं बाँट सकता, हमारे बीच कोई सरहद बाधा नहीं बन सकती ! अतः हम सब बैठकर क़ानून बनाए” !

परन्तु सियासतदार इसके लिए राजी होते हुए दिखाई नहीं दे रहे थे ! 15 अगस्त को 40 दिन शेष थे और अभी भी बड़ी रियासतें हिन्दुस्तान में शामिल होने को तैयार नहीं थी ! वैसे कई रियासतें भारत में शामिल होने को तैयार भी थी ! हैदराबाद के निजाम के तेवर जस के तस थे ! भोपाल के नवाब का बगावती रूख उन्हें पाकिस्तान की और खींच रहा था और पश्चिम में जूनागढ़ और जोधपुर ने भी नींद हराम कर रहीं थी ! जोधपुर तो वह रियासत थी जिसकी सीमा पाकिस्तान से लगती थी ! खैर २ अगस्त आते आते जोधपुर के तेवर बदल गए थे !

एक और तो देश आजाद होने जा रहा था वहीँ दूसरी और जोधपुर के साथ जैसलमेर और बीकानेर भी पाकिस्तान में जाएगा ऐसी अफवाहें गर्म थी ! लोग उहापोह की स्थिति में थे ! जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर की जनता चिंतित थीं कि उनके राजा महाराजा कहीं कोई गलत फैसला न ले बैठे !

जोधपुर महाराज हनुमंत सिंह को रास्ते पर लाना बड़ा मुश्किल बना हुआ था, जिन्ना और मुस्लिम लीग के दुसरे लोगों के साथ उनकी बैठक हुई ! इस बैठक में महाराज हनुमंत सिंह, जैसलमेर के युवराज महाराज कुमार गिरधर सिंह को अपने साथ ले गए क्यूंकि बीकानेर के महाराज उनके साथ जाने को तैयार नहीं हुए और अकेले जाने में उन्हें डर लग रहा था ! 

6 अगस्त १९४७ को 10 औरंगजेब रोड, नई दिल्ली पर जिन्ना से रियासतदार मिले और पुछा कि जो रियासतें पाकिस्तान से मिलेंगी उन्हें क्या मिलेगा ? जिन्ना ने जवाब दिया :-

में उन सभी रियासतों को भारत से ज्यादा सहूलियत देने को तैयार हूँ ! उसने सादे कागज़ पर अपने हस्ताक्षर कर राजा महाराजाओं को पाकिस्तान से मिलने के लिए जो भी उनकी शर्तें हों लिखने को कहा ! 

तब जोधपुर के महाराज ने कहा कि :- “हिन्दुस्तान के साथ हमारे मारवाड़ की रियासत से मिलने पर हमें इन कांग्रेसियों के साथ दिक्कत होगी ! अगर जोधपुर पाकिस्तान के साथ मिलता है तो हमारी कुछ मांगें होंगी जैसे, यदि जोधपुर पाकिस्तान के साथ मिल जाए तो कराची पोर्ट हमें इस्तेमाल करने दे ! सबसे अहम् बात तो यह है कि हमारे जोधपुर से आपके सिंध के हैदराबाद जानेवाली रेलवे लाइन पर हमारा अधिकार हो ! आजकल हमारे यहाँ अकाल जैसा पडा हुआ है कृपया आप राहत जल्द भेजें ! “

जिन्ना ने इस पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी एवं जैसलमेर के युवराज महाराजा गिरधर सिंह से पुछा :- “जोधपुर की तरह आपकी सीमा भी हमारी सीमा से लगती हैं तो क्या आप पकिस्तान में सम्मिलित होंगे ?

जिन्ना के इस सवाल पर युवराज ने कहा :-“ हम पाकिस्तान से जुड़ सकते है पर हमारी एक शर्त है ! जब भी हमारे राज्य में हिन्दू मुस्लिम झगडा होगा उस समय उस झगडे में आप हस्तक्षेप नहीं करेंगे “!

इस पर जिन्ना के राजनैतिक सालाह्कार मुहम्मद जफरउल्लाह ने कहा कि यह कैसा सवाल है ऐसी बातें सोचना ही मूर्खता है ! आखिर हिन्दू मुस्लिम क्योँ झगड़ेंगे ? हमारे सपनों के देश पाकिस्तान में लड़ाई झगड़ों की नौबत कभी नहीं आएगी और वर्तमान में जो झगडे आप देख रहे है यह कांग्रेस की देंन है ! पूर्व में भी महाराजा जोधपुर को नीचा दिखाने में कांग्रेस ने कोई कसर नही छोड़ी थी !

तब जिन्ना ने कहा :- “आगे जाकर भारत की केंद्र सरकार क्षीण होगी हमारी पाकिस्तानी सरकार मजबूत होगी ! मैंने कोरे कागज़ पर अपने हस्ताक्षर कर दिए है आप अपनी शर्तें इस पर लिख दीजिये !

मो. जफरउल्लाह महाराज जोधपुर से कहते है कि जिन्ना साहब को कल कराची जाना है अतः आप पाकिस्तान में शामिल होने के मसौदे पर आज ही हस्ताक्षर कर दीजिये ! इस पर महाराजा जोधपुर कहते है कि हमारा राज्य ३६ हजार वर्ग कि.मी. में फैला हुआ है, 50 से भी ज्यादा जागीरदार है और राजमाता भी है अतः मुझे उनसे सलाह लेनी होगी ! में आपका शुक्रगुजार हूँ जो आपने मेरे सामने यह प्रस्ताव रखा ! में जल्द सोचकर अपना फैसला आपको बताऊंगा ! इतना सुनते ही जिन्ना ने महाराजा जोधपुर के हाथ से अपने हस्ताक्षर किया कागज़ छीन लिया !

6 अगस्त १९४७ जोधपुर का ३६ हजार वर्ग कि.मी. पाकिस्तान के हाथ जानेवाला था ! सोचिये अगर ऐसा होता तो भारत का भूगोल कैसा होता ? जोधपुर को पाकिस्तान से मिलाने के लिए जिन्ना और महाराज हनुमंत सिंह की कई बैठकें हुई ! सरदार पटेल को जोधपुर के दीवान के जरिये हनुमंत सिंह के इरादों का पता चल गया था ! अब जोधपुर को बचाने का पूरा दारोमदार सरदार पटेल पर था !

10 अगस्त १९४७ को 1 औरंगजेब रोड, नई दिल्ली पर सरदार पटेल और हनुमंत सिंह की मुलाक़ात हुई ! इस मुलाक़ात के दौरान हुई चर्चा :-

पटेल :- मैंने सूना है कि आपकी मुलाक़ात लार्ड माऊंटबेटन से हुई है ! क्या चर्चा हुई ?

हनुमंत सिंह :- जी सरदार साहब मिला हूँ परन्तु कोई खास चर्चा नहीं हुई है !

पटेल :- मैंने यह भी सूना है कि आपकी मुलाक़ात जिन्ना से भी हुई है और आप स्वतंत्र रहना चाहते है !

हनुमंत सिंह :- (थोडा झेपते हुए) जी आपने सही सुना है !

पटेल :- यदि आप अलग रहकर स्वतंत्र रहना चाहते है तो रह सकते है ! परन्तु आपके फैसले से यदि जोधपुर वासियों ने बगावत कर दी तो भारत सरकार से किसी भी तरह की उम्मीद न रखें !

हनुमंत सिंह :- पर जिन्ना साहब हमें काफी रियायत दे रहे है ! उन्होंने जोधपुर को रेल लाईन द्वारा कराची से जोड़ने की बात की है ! अगर वह काम नहीं हुआ तो हमारा व्यापार ठप्प हो जाएगा !

पटेल :-हम जोधपुर को कच्छ से जोड़ देंगे ! आपके व्यापार पर कोई फर्क नहीं आएगा ! और देखो हनुमंत तुम्हारे पिता उमेश सिंह जी मेरे काफी अच्छे मित्र थे और वह तुम्हे मेरी देख रेख में छोड़ कर गए थे ! अगर तुम सही रास्ते पर नहीं आये तो तुम्हे अनुशासन में लाने के लिए मुझे पिता की भूमिका निभानी पड़ेगी !

हनुमंत सिंह :- आपको ऐसा करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी में रियासतों के विलीनीकरण के समझौते पर हस्ताक्षर करूँगा !

सरदार पटेल के सामने तो महाराज ने कह दिया कि वह भारत में शामिल होने को तैयार है लेकिन बात वहां ख़तम नहीं हुई ! जो सवाल भारत की एकता पर जोधपुर ने उठाये थे वो एक बार फिर खड़े हो गए !

11 अगस्त १९४७ सुबह 10 बजे महाराज हनुमंत सिंह ने INSTRUMENT OF ACCESSION पर अपने हस्ताक्षर कर दिए, परन्तु महाराज का असली इरादा क्या था उस पर तो आज भी विवाद है ?

आजादी से महज चार दिन पूर्व ही जोधपुर भारत में शामिल हुआ ! आज भारत का जो स्वरुप हम देखते है यह आजादी के चार दिन पूर्व तक ही बिखरा हुआ था ! हैदराबाद,भोपाल,जूनागढ़,जम्मू और काश्मीर यह रियासतें भारत में शामिल होने को तैयार नहीं थी ! इन रियासतों को भारत में शामिल कैसे किया गया ? इस पर आगे के लेखों में चर्चा जारी रहेगी !

!!क्रमशः!!   


साभार https://www.youtube.com/watch?v=S_3i0Hf8KMI 
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