शंकराचार्य जो बने एक साम्राज्य के प्रधान मंत्री !


दक्षिण भारत में श्री रंगम अर्थात रंगनाथ स्वामी का मंदिर प्राचीन काल से हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल रहा है ! मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा सैंकड़ों वर्षों से अर्पित की गई अपार सम्पदा थी ! अलाउद्दीन खिलजी के कानों तक यह समाचार पहुंचा तो उसने अपने प्रधान सेनापति मलिक काफूर को वहां आक्रमण के लिए भेजा ! इस आक्रमण के अनेक हेतु थे ! एक तो मंदिर में विद्यमान धन संपत्ति पर कब्जा दूसरे हिन्दुओं का मान मर्दन ! साथ में हिन्दू ललनाओं का शील हरण ! 

मंदिर की प्राचीर भले ही दुर्गनुमा बनी थीं, किन्तु उनमें अस्त्र शस्त्र का तो पूर्णतः अभाव ही था ! मंदिर ति तपःस्थली है, वहां शस्त्रास्त्र की क्या आवश्यकता, यही धारणा आम हिन्दू मन में रही होगी ! मंदिर में एक विशाल ग्रंथागार भी था, जिसमें पीढ़ी दर पीढी से संजोई गई ज्ञान संपदा विद्यमान थी | 

मन्दिर के तत्कालीन प्रमुख श्री सुदर्शनाचार्य को जैसे ही मुगलों के आक्रमण की भनक लगी, उन्होंने वहां के हिन्दू राजा से मंदिर और ग्रंथालय की सुरक्षा करने की गुहार लगाई ! राजा कायर और निकम्मा था, उसने अपनी असमर्थता जताई ! सुदर्शनाचार्य और उनके गुरूभाई व्यंकटनाथाचार्य ने दुर्लभ ग्रंथों की पांडुलिपियाँ काबेरी के तट पर बालू के रेत में छुपा दीन ! इसी प्रकार भगवान के अनेक बहुमूल्य आभूषण व रत्न संपदा भी तिरुपति ले जाकर छुपा दिए ! उसके बाद राजा से निराश आचार्य द्वय ने मंदिर की रक्षा के लिए जनता से आव्हान किया ! यह आव्हान निरर्थक नहीं रहा ! घरों में जो शस्त्र मिला उसे लेकर आम नागरिक अपने आराध्य देव की रक्षा के लिए दौड़ पडा !

सामान्य जन ने आतताईयों का वीरता पूर्वक प्रतिकार किया ! हजारों लोग बलिदान हुए, किन्तु प्रशिक्षित व अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित मुग़ल सेना से मंदिर बचा नहीं पाए ! यद्यपि बहुमूल्य रत्न वहां से हटा दिए गए थे, इसके बाद भी जो कुछ मलिक काफूर को मिला, उससे वह अत्यंत संतुष्ट हुआ ! मुसलमानों ने उस निकम्मे राजा को भी नहीं बख्शा ! परिवार सहित उसको भी मौत के घाट उतार दिया गया ! अगर वह लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होता तो कमसेकम इतिहास में उसका नाम तो आदर सहित लिया जाता !

उसके बाद तो अल्लाहो अकबर का निनाद गुंजाते, दक्षिण के राजाओं को पराजित करते, मंदिरों को लूटकर तहस नहस करते, अलाउद्दीन की सेना रामेश्वरम तक जा पहुंची ! मलिक काफूर ने विजय प्रतीक स्वरुप रामेश्वरम में विजय स्तम्भ प्रस्थापित किया ! सभी विजित प्रदेशों में उसने अपने अधिकारी, शासक और सूबेदार नियुक्त किये ! उत्तर भारत के बाद अब दक्षिण में भी इस्लाम का परचम लहराने लगा !

श्री रंगम में सुदर्शनाचार्य, सत्य मंगला में व्यंकटनाथाचार्य और पम्पा क्षेत्र में माध्वाचार्य उपाख्य विद्यारण्य स्वामी, हिन्दू समाज की यह दुरावस्था देखकर अत्यंत व्यथित हो उठे ! मध्वाचार्य श्रंगेरी कांचीकामकोटि के शंकाराचार्य भी थे ! इन लोगों को आश्चर्य इस बात से हुआ कि इतना निर्मम अत्याचार होने के बाद भी हिन्दू समाज सोता रहा ! ये लोग अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ जन जागरण के कार्य में जुट गए ! अध्यात्म की साधना शांतिकाल में तो उचित है, किन्तु अब धर्म और समाज पर ही संकट आ खड़ा हो, तब तो सबको मिलकर आतताईयों से अपनी रक्षा करनी चाहिए, यह इनका स्पष्ट अभिमत था ! 

प्रयत्न रंग लाया और समाज आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर अंगडाई लेकर उठ खड़ा हुआ ! अब विद्यारण्य स्वामी को तलाश थी एक युवा नेतृत्व की | सौभाग्य से वह भी मिल ही गया ! 
1315 के उस कालखंड में अनेगोंदी के हिन्दू राजा थे कम्पिलराय ! उन पर भी मलिक काफूर ने आक्रमण कर दिया ! अनेगोंदी के किलेदार संग्रामदेव राजा कम्पिलराय के दामाद भी थे ! दोनों के नेतृत्व में हिन्दू सेना ने प्रबल प्रतिकार किया ! मुट्ठीभर सैनिकों के साथ बहादुरी से लडे, पर असंख्य मुस्लिम फ़ौज के सामने उनकी बिसात ही क्या थी ? फिर भी एक बार तो उन्होंने शत्रुओं को पीछे धकेल ही दिया, किन्तु तभी देवगिरी से नई टुकड़ी आ जाने के कारण पांसा पलट गया ! इसके बाबजूद जब तक एक भी हिन्दू सैनिक जीवित रहा, मुग़ल सेना किले में प्रवेश नहीं कर सकी ! 

संग्रामदेव के दो अवयस्क पुत्र जीवित पकड़ लिए गए व दिल्ली ले जाए गए ! जहाँ मोहम्मद तुगलक ने इन्हें मुसलमान बनाकर युवा होने पर अपनी सेना में सरदार बना दिया व नया नाम दिया हक्क-बुक्क ! दोनों भाई बड़े चतुर थे ! उन्होंने अपने अन्तःकरण में प्रतिशोध की आग को मंद नहीं पड़ने दिया ! ऊपर से मुसलमानों के साथ रहते हुए भी वे अपने माता पिता व सगे सम्बन्धियों की क्रूर ह्त्या को नहीं भूले ! 

आध्यात्मिक संतों ने सम्पूर्ण क्षेत्र को आठ खण्डों में बांटकर अनेक सामाजिक चेतना केन्द्रों को स्थापित किया ! इन केन्द्रों में युवकों को निर्भीकता और देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाता था ! अस्त्रों का प्रशिक्षण भी दिया जाता था ! देखते देखते कर्नाटक में तुगलक वंश की पकड़ कमजोर पड़ने लगी ! स्थान स्थान पर बगावत भड़कने लगी ! वातावरण का प्रभाव ऐसा हुआ कि जिस जम्बुकेश्वर को मलिक काफूर ने अनेगोंदी का सूबेदार बनाया था, उसने भी स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया ! 

मोहम्मद तुगलक आग बबूला हो उठा ! उसने मलिक नायब को वहां का सूबेदार घोषित कर एक बड़ी सेना के साथ जम्बुकेश्वर को सबक सिखाने भेजा ! हक्क बुक्क भी उसके साथ थे ! एक दिन शत्रु की टोह लेने के बहाने इन दोनों ने आचार्य विद्यारण्य स्वामी से भेंटकर पुनः हिन्दू धर्म में दीक्षित करने का अनुरोध किया ! समय के थपेड़ों ने स्वामी जी को भी कूटनीति परायण बना दिया था ! उन्होंने इन दोनों तेजस्वी नौजवानों को समय की प्रतीक्षा का निर्देश देकर, तब तक मुस्लिम सेना में ही रहने का निर्देश दिया ! 

स्वामी जी की राजनीतिक योजना, संगठित जन शक्ति और हक्क-बुक्क के सैनिक नेतृत्व के समन्वय ने शीघ्र ही गुल खिलाया ! अनेगोंदी पर मुग़ल आक्रमण हुआ, और जीत मुग़ल सेना की ही हुई ! जिस सूबेदार जम्बुकेश्वर ने विद्रोह किया था, वह जीवित पकड़ लिया गया ! उससे इस्लाम कबूल करने को कहा गया, व इनकार करने पर मृत्युदंड की घोषणा कर दी गई ! हक्क बुक्क ने जिम्मेदारी ली कि वे उसे मुसलमान बनने के लिए तैयार कर लेंगे ! एकांत में भेंट कर उन्होंने जम्बुकेश्वर के साथ योजना बनाई | योजनानुसार जम्बुकेश्वर मुसलमान बनने को तैयार हो गया ! इस खुशी में एक बड़े जलसे का आयोजन हुआ ! शराब के दौर चले ! 

नृत्य राग रंग का आयोजक हक्क की ओर से ही किया गया था ! अन्दर ही अन्दर क्या खिचडी पकाई गई है, इससे मुस्लिम सरदार पूरी तरह अनभिज्ञ थे ! वे तो प्रसन्न थे कि हक्क बुक्क के कारण एक हिन्दू सरदार धर्मांतरण को सहमत हो गया है ! सारे प्रबंध हक्क बुक्क के हाथों में ही थे ! उन्होंने ही प्रवेश पत्र जारी किये थे ! सामरिक महत्व के हर स्थान पर उसके विश्वासपात्र सैनिक नियुक्त हो गए | शराब में बेहोशी की दवा मिला दी गई थी ! हक्क बुक्क की आँखों में जोहर की चिता में जलती अपनी माँ और बहनों का मुखड़ा था, दिल में वीरगति पाने वाले अपने पिता और नाना की यादें चिंगारियां सुलगा रही थीं ! जैसे ही शराब और दवा के असर से मुस्लिम सरदार मदहोश हुए, जय श्री रंगम और हर हर महादेव का जयघोष गूँज उठा ! हिन्दू सैनिक मुसलमानों पर टूट पड़े थे ! भुट्टे के समान उड़ते उनके सिर धड से अलग होकर गिराने लगे ! चीत्कारों और कराहों से वातावरण गूंजने लगा ! लेकिन थोड़ी ही देर में वातावरण पूर्ण शांत हो गया ! स्वतंत्रता सैनानियों की योजना सफल हो चुकी थी ! अनेगोंदी का किला मुक्त हो चुका था ! 1336 की बसंत ऋतू कर्नाटक के हिन्दू जीवन में बहार लेकर आई थी !

कन्नड़ की धरती पर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना हुई ! हक्क का नामकरण हुआ हरिहर ! बैसाख सुदी सप्तमी संवत 1336 गुरूवार को शास्त्र सम्मत विधि विधान से ब्राह्म मुहूर्त में सभी नदियों के जल से हरिहर और बुक्का को स्नान करवाया गया ! नए परिधान पहनाकर यज्ञ में आहुति दिलवाई गई ! वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ उनका हिन्दू धर्म में परावर्तन संस्कार संपन्न हुआ ! श्रंगेरी कांची कामकोटि तीर्थ के शंकराचार्य स्वामी विद्यारण्य स्वामी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में यह कार्य संपन्न हुआ ! न हिन्दू पतितो भवेत् का यह प्रथम सोपान था ! अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा मुसलमान बनाये गए हरिहर और बुक्का की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं था ! आज वे अपने पूर्वजों से पुनः जुड़ गए थे ! 

इसके साथ ही नवनिर्मित विजय नगर साम्राज्य के प्रथम सम्राट हरिहर राय का राज्यारोहण भी संपन्न हुआ ! इस अभूतपूर्व विजय की स्मृति में अनेगोंदी का नया नाम विजय नगर रखा गया ! कालान्तर में इस विजय नगर की सीमाएं उत्तर पश्चिम में कोंकण, पूर्वी घाट से पश्चिमी घाट तक, कृष्णा और काबेरी तक पहुँच गई ! मुस्लिम राज्य अहमदनगर को भी वह छूने लगी ! साढ़े तीन सौ वर्षों तक विजय नगर कर्नाटक की राजधानी रही ! विद्यारण्य स्वामी उसके प्रधान मंत्री बने ! किन्तु जैसे ही हिन्दवी स्वराज्य की नींव मजबूत हुई, वे पुनः श्रंगेरी चले गए ! विजयनगर साम्राज्य के शिल्पी, श्रंगेरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी मध्वाचार्य उपाख्य विद्यारण्य स्वामी के प्रखर व श्रेष्ठ जीवन की सुगंध युगों युगों तक राष्ट्र जीवन को चैतन्य करती रहेगी !

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