क्यों मनाएं भारतीय नव वर्ष ?


ईसाई मान्यता के अनुसार ईसा के जन्म से नया वर्ष प्रारम्भ होता है | पर यह बात कोई नहीं समझा पाता कि ईसा का जन्म तो 25 दिसंबर को हुआ, तो फिर 1 जनवरी क्या है ? और एक विचित्र बात कि वे 25 दिसंबर को बड़ा दिन कहते हैं, जबकि भूगोल बताता है कि मकर संक्रांति अर्थात 14 जनवरी से तो दिन बढ़ना शुरू होता है और सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है | सच तो यह है कि अंग्रेजी वर्ष न तो वैज्ञानिक है और ना ही ऐतिहासिक |

सचाई यह है कि पश्चिम में अधिकांशतः सर्दी रहती है, इसलिए उनकी काल रचना सूर्य केन्द्रित है | इसके विपरीत अरब के रेगिस्तान प्रायः तपते ही रहते हैं, इसलिए उनकी काल गणना में चन्द्रमा की शीतलता का अधिक महत्व है | इसी कारण उनके कैलेण्डर अधूरे ही रह गए | एक समय था जब दोनों ही साल में दस महीने मानते थे | बाद में पश्चिम ने तो भूल सुधार कर उनकी संख्या 12 कर ली, पर मुस्लिम कैलेण्डर आज भी जस का तस है | यही कारण है कि कभी ईद सर्दी में आती है तो कभी गर्मी या बरसात में |

ईसाईयों द्वारा दस महीने के स्थान पर 12 महीने किये जाने की भी बड़ी रोचक गाथा है | यह कार्य हुआ 532 ईसवी में जूलियस सीजर के राज्य में | अतः इसे रोमन या जूलियन कैलेण्डर कहा गया | कैलेण्डर बनाते समय संत आगस्ट के नाम पर एक महीना बनाकर उसमें 31 दिन कर दिए गए | इस पर शासक जूलियस सीजर की भोंहें तन गईं | उसने कहा कि उसके नाम पर भी एक महीन होना चाहिए और वह भी अगस्त से पहले और उस में भी 31 दिन ही होना चाहिए | तो लीजिये जूलियस के नाम पर अगस्त के पहले जुलाई महिना आ गया और वह भी 31 दिन का | अब सवाल आया कि बढ़ाये हुए दो दिन कहाँ से लाये जाएँ ? तो गरीब फरवरी सामने पड़ गई और उसके हिस्से के तीस दिन में से दो दिन काट लिए गए | वह बेचारी आज भी अपने 28 दिनों के साथ जुलाई और अगस्त को कोस रही है |

इतना ही नहीं तो शुरू में एक साल को 365.25 दिन के बराबर माना गया, जबकि वह सायन वर्ष (365.2422 दिन) से 11 मिनिट, 13.9 सैकिंड अधिक था | फलतः सन 1582 तक इस कैलेण्डर में 10 अतिरिक्त दिन जमा हो गए | अतः पोप ग्रेगरी ने एक धर्मादेश जारी कर 4 अक्टूबर के बाद सीधे 15 तारीख घोषित कर दी |

अब बड़ा मजा हुआ | लोग सोये 4 अक्टूबर की रात को, पर जब उठे तो उस दिन 15 अक्टूबर था | जिन लोगों के जन्मदिन या विवाह कि वर्षगाँठ उन दिनों में पड़ती थी, वे सडकों पर आकर शोर मचाने लगे, अपने दिन वापस माँगने लगे | कुछ लोग इसलिए भी भयभीत थे, कि कहीं उनकी आयु भी तो कम नहीं हो जायेगी | कुछ दिन के शोर के बाद सब शांत हो गए |

इस व्यवस्था के बाद बना कैलेंडर पोप ग्रेगरी के नाम पर ग्रेगारी कैलेण्डर कहलाया | जहाँ जहाँ अंग्रेजों का शासन रहा, वहां यही प्रचलित किया गया | उनका दिन रात के अँधेरे में बारह बजे प्रारम्भ होता है | शायद ऐसे ही लोगों के लिए भारतीय शास्त्रों में निशाचर शब्द आया है |

इस्लाम या ईसाई कालगणना की तुलना में भारतीय काल गणना अधिक वैज्ञानिक है | भारतीय मनीषियों ने सूर्य और चन्द्रमा दोनों को आधार बनाकर अपना कैलेण्डर निर्मित किया | इसीलिए हमारा पंचांग तिथि, मास, पक्ष और अयन भी बताता है | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही प्रथ्वी का पिंड सूर्य से अलग हुआ था, अतः यह प्रथ्वी का जन्मदिन है | ब्रह्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण इसी दिन सूर्योदय से प्रारम्भ किया | 

चैत्र मासे जगद्ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेहनि,
शुक्ल पक्षे समग्रं तु तदा सूर्योदय सति |

भारतीय कालगणना में प्रथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास को 14 भागों में बांटा गया है | प्रत्येक भाग को मन्वंतर नाम दिया गया है | एक मन्वंतर की आयु 30 करोड़ 67 लाख 20 हजार वर्ष की होती है | अभी तक छः मन्वंतर बीत चुके हैं | अर्थात अभी तक प्रथ्वी का सम्पूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का है | विश्व में प्रचलित सभी कालगणनाओं में भारतीय काल गणना प्राचीनतम है | 

इसके साथ ही इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी यह दिन रहा है | त्रेतायुग में श्रीराम और द्वापर में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ था | उज्जयिनी के महान सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी शकों को हराकर इसी दिन राजधानी में प्रवेश किया था | उसी स्मृति में विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ | विक्रमादित्य के विषय में एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी स्मरणीय है कि उन्होंने पराजित शकों को हिन्दू समाज में ही विलय कर लिया | यहाँ तक कि आज उनकी प्रथक पहचान भी मुश्किल है | 

यह दिन शालिवाहन का विजय दिवस भी है, जिनके विषय में कहा जाता है कि उन्होंने मिट्टी से सैनिक निर्मित कर शत्रुओं को धुल चटाई | इसका निहितार्थ यही माना जा सकता है कि शालिवाहन ने जमीन से जुड़े आम आदमी को शत्रुओं के विरुद्ध चैतन्य किया व उनसे ही अपना सैन्य बल बनाकर स्वदेश की रक्षा की, विजय पताका फहराई | दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू नववर्ष स्वदेश की विजय का पर्व है |

जब विदेशी आक्रान्ताओं के आतंक से सिंध थर्रा रहा था, तब चैत्र शुक्ल द्वितीया को वरुण अवतार झूलेलाल ने जन्म लेकर हिन्दू समाज को त्राण दिलाया | सिक्ख परम्परा के दूसरे गुरू अंगद देव जी का प्राकट्य दिवस भी यही वर्ष प्रतिपदा ही है | महर्षि दयानंद सरस्वती ने वैदिक मान्यताओं की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की थी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलीराम पन्त हेडगेवार जी का जन्म भी वर्ष प्रतिपदा को ही नागपुर में हुआ था | 

संक्षेप में कहें तो भारतीय कालगणना का प्रत्येक संवत्सर वर्ष प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है | सृष्टि संवत से लेकर कल्पाब्द, युगाब्द, वामन, श्री राम, श्री कृष्ण, युधिष्ठिर, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, शालिवाहन, बंगला, हर्षाब्द, कलचुरी, फसली, वल्लभी आदि सभी संवत्सर इसी दिन से प्रारम्भ होते हैं |

तो आईये विदेशी झूठन को छोड़कर अपने महान पुरुखों से जुड़ें | नई पीढी को अपनी तिथियों और मास के बारे में अवश्य बताएं | भारतीय नव वर्ष वाले दिन शास्त्रोक्त पद्धति से अपने घरों व सार्वजनिक स्थानों पर भगवा पताका फहराएं | नव वर्ष के प्रथम सूर्योदय का स्वागत करें | घरों के द्वार पर रंगोली बनाएं | घर में श्री रामचरित मानस या अपने अपने मतानुसार धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करें | साफ़ वस्त्र पहनें, मिष्ठान्न खाएं और खिलाएं | मंगल तिलक लगाएं, एक दूसरे के वधाई दें |

इस अवसर पर समाज के निर्धन और उपेक्षित बंधुओं को न भूलें | हमारे दैनंदिन जीवन के सहयोगी नौकर, चाकर, बर्तन मांजने वाली महरी, कपडे धोने वाले धोबी, चौकीदार, माली, लुहार, मोची, बढई, सफाई कर्मी आदि को सपरिवार अपने घर बुलाएं व प्रेम सहित भोजन कराएं | यह कार्य यदि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को संभव न हो तो इसके लिए प्रतिपदा से राम नवमी के बीच किसी भी दिन समय निकाल लें |

आप कहेंगे कि यह अनावश्यक सुझाव मैं क्यों दे रहा हूँ ? तो मित्रो एक समाज में यह समरसता का वातावरण बनने तो दीजिये, आप स्वयं आनंद से झूम उठेंगे | अमीरी जब झुककर गरीबी से गले मिलेगी, शिक्षा जब आगे बढ़कर अशिक्षा का हाथ थामेगी, समाज में अहंकार विगलित होकर सद्व्यवहार में रूपांतरित होगा, तब न जातिवाद रहेगा, न क्षेत्रवाद | भाषा और प्रांत के झगड़े भी किसी कोने में दुबक जायेंगे | हम यह करेंगे किसी और के लिए नहीं, स्वयं के लिए | हाँ स्वार्थ को थोडा बड़ा करने की जरूरत है | मैं से आगे बढ़ें तो मेरा परिवार, उससे भी आगे मेरा समाज, मेरा देश, मेरी मानवता | छोटा स्व स्वार्थी बनाता है, जबकि स्व बड़ा हो तो सम्पूर्ण सृष्टि के लिए हितकर हो जाता है | बड़े स्वार्थी बनें – यही सन्देश युगों से हमारे पुरखे देते आये हैं | वर्ष प्रतिपदा अपनी परंपरा को स्मरण करने का हमें अवसर देती है |

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. NAV VARSH PRATIPADA KE SAMBANDH ME ITNI WISTRAT JANKARI MUJHE BHI AAP KE LEKH SE PRAPT HUI HAI.HAR HINDU ,HAR BHARWASI KO YAH JANKARI PRAPT HO, AISA PRAYAS KARNA AVASHYAK HAI.

    जवाब देंहटाएं