महमूद गजनवी को दो दो बार धूल चटाने वाला कश्मीर - कोई तो दिलाये पूर्वजों की याद !

जो तेगों के साये में पले बढ़े होने का दम्भ भरते रहे हैं और इसी दम्भ से पनपी क्रूरता के कारण जिन्होंने विश्व में लाखों करोड़ों लोगों का वध किया, उनमें से एक महमूद गजनवी भी था ! बड़ी क्रूरता से ईरान और तुर्किस्थान में इस क्रूर आक्रांता ने अमानवीयता का प्रदर्शन किया था ! भारत के कुछ क्षेत्रों में भी इसने रक्तिम् होली खेली थी ! परंतु कश्मीर की भूमि वह पावन भूमि रही है, जिसने इस क्रूर आक्रांता को एक बार नही अपितु दो-दो बार पराजित कर भगाया ! पराजय भी इतनी भयानक थी कि तीसरी बार कश्मीर जाने का सपना ही नही देख सका था !

यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि कश्मीरी सैनिकों की तलवार के वार क्रूर आक्रांता महमूद गजनवी सह न सका और जिंदगी भर कश्मीर की वादियों को जीतने की तमन्ना पूरी न कर सका ! कश्मीर के इस शौर्य को इतिहास के पन्नों पर लिखा गया महाराजा संग्रामराज के शासनकाल में ! इस शूरवीर राजा ने कश्मीर प्रदेश पर 1003 ई.से लेकर 1028 ई.तक शासन किया ! महमूद गजनवी का अंतिम आक्रमण भारत पर 1021 ई. में हुआ था ! संग्रामराज महमूद की आक्रमण शैली को समझता था ! धोखा, फरेब, देवस्थानों को तोड़ने, बलात्कार इत्यादि महाजघन्य कुकृत्य करने वाले महमूद गजनवी के आक्रमण की गंभीरता को समझते हुए उसने पूरे कश्मीर की सीमाओं पर पूरी चौकसी रखने के आदेश दिए ! सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया ताकि पूरी सतर्कता से प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सकें ! प्रसिद्ध इतिहासकार अल्बरूनी ने कश्मीर की सीमाओं की सुरक्षा व्यवस्था में लोगों के योगदान की चर्चा की है, ‘कश्मीर के लोग अपने राज्य की वास्तविक शक्ति के विषय में विशेष रूप से उत्कंठित रहते हैं ! इसलिए वे कश्मीर में प्रवेश द्वार और इसकी ओर खुलने वाली सड़कों की ओर सदा मजबूत निगाह रखते हैं ! फलस्वरूप, उनके साथ कोई वाणिज्य व्यापार कर पाना, बहुत कठिन है ! इस समय तो वे किसी अनजाने हिन्दू को भी प्रवेश नहीं करने देते, दूसरे लोगों की तो बात ही छोड़िए !’

जब भाग खड़ा हुआ था महमूद गजनवी

भारत की सीमाओं पर महमूद गजनवी ने कई आक्रमण किए उसने भारत के अनेक नगर रौंदे ! कांगड़ा के नगरकोट किले को फतह करने के बाद उसकी गिद्ध दृष्टि पास लगते स्वतंत्र कश्मीर राज्य पर पड़ी ! उसने इस राज्य को भी फतह करने के इरादे से सन् 1015 ई.में कश्मीर पर आक्रमण किया ! कश्मीर की सीमा पर स्थित लोहकोट नामक किले के पास तौसी नामक मैदान में उसने सैनिक पड़ाव डाला ! तौसी छोटी नदी को कहते हैं ! इस स्थान पर यह नदी झेलम नदी में मिलती है अत: इसका नाम तौसी मैदान पड़ा ! महमूद के आक्रमण की सूचना सीमा क्षेत्रों पर बढ़ाई गई चौकसी और गुप्तचरों की सक्रियता के कारण तुरंत राजा तक पहुंची ! कश्मीर की सेना ने एक दक्ष सेनापति तुंग के नेतृत्व में कूच कर दिया ! कश्मीर प्रदेश के साथ लगे काबुल राज्य पर त्रिलोचनपाल का राज्य था ! राजा त्रिलोचनपाल स्वयं भी सेना के साथ तौसी के मैदान में आ डटा ! 

महमूद की सेना पहाड़ों के बीच दोनों ओर से भारतीय स्वतंत्रता प्रेमी सैनिकों से घिर चुकी थी ! जितने भर भी छल, छदम षडयंत्र और घात प्रतिघातों को महमूद अब से पूर्व युद्घों में अपनाता रहा था, वो सब धरे के धरे रह गये ! भागने के लिए घिरे हुए आक्रांता को रास्ता खोजने पर भी नही मिल रहा था ! कश्मीर व काबुल का ऐसा समीकरण बैठा कि शत्रु को दिन में तारे दिखा दिये गये ! कश्मीर का तौसी युद्घ क्षेत्र स्वतंत्रता संघर्ष और स्वाभिमान की रक्षा का साक्षी बना और हमारे सैनिकों ने हजारों शत्रुओं का वध कर युद्घक्षेत्र में शवों का ढेर लगा दिया ! लोहकोट के दुर्ग पर महमूद का कब्जा था ! संग्राम राज की सेना ने किले को व्यूह रचना को तोड़कर दुर्ग में प्रवेश किया ! महमूद भारतीय सैनिकों को दुर्ग में प्रवेश करते देखकर अत्यंत भयभीत हो गया था ! अत: वह एक सुरक्षित स्थान पर छिप गया ! किसी प्रकार महमूद गजनवी अपनी प्राणरक्षा कर भागने में सफल हो सका ! ‘कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया’ में इस युद्घ का बड़ा रोचक वर्णन किया गया है-

‘भारत में महमूद की यह पहली और बड़ी पराजय थी! उसकी सेना अपरिचित पहाड़ी मार्गों पर रास्ता भूल गयी और उसका पीछे मुड़ने का मार्ग बाढ़ के पानी ने रोक लिया ! परंतु अत्यधिक प्राणहानि के पश्चात यह सेना मैदानी क्षेत्रों में भागी और अस्त व्यस्त स्थिति में गजनी तक पहुंच सकी !’

कश्मीर में मिली इस पराजय से महमूद को पता चल गया कि भारत अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कितना समर्पित है और किसी क्षेत्र विशेष पर नियंत्रण कर लेने मात्र से हिंदुस्तान की स्वाधीनता को नष्ट नही किया जा सकता ! भारतवर्ष पर शासन करने के लिए एक नही अनेकों शक्तियों से टक्कर लेनी होगी और यह भी पता नही कि इन शक्तियों में से कौन सी शक्ति कितनी शक्तिमान हो ? महमूद ने पहली बार भारत के विषय में गंभीरता से सोचा ! वह अपमान और प्रतिशोध सम्मिश्रित भावों से व्याकुल था, इसलिए उसने एक बार पुन: भाग्य आजमाने का निर्णय लिया ! उसने प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने के अपने संकल्प को विस्मृत कर दिया और पूरे छह वर्ष पश्चात अर्थात 1021 में उसने कश्मीर पर पुन: आक्रमण किया ! प्रतिवर्ष आक्रमण करने वाले आक्रांता का कश्मीर पर आक्रमण करने का साहस छह वर्ष में लौटा ! स्पष्ट है कि उसे तौसी का युद्घ क्षेत्र देर तक स्मरण रहा ! 1021 ई. में भी महमूद ने लोहकोट पर ही पड़ाव डाला !

त्रिलोचनपाल को जैसे ही महमूद के आक्रमण की भनक लगी, उसने उसे पुन: खदेड़ने का अभियान तुरंत आरंभ कर दिया ! त्रिलोचनपाल की सहायतार्थ महाराजा संग्रामराज ने भी अपनी सेना भेज दी ! महमूद को अपनी पिछली पराजय का स्मरण था ! वह पिछले घावों को सहलाते सहलाते भारत की कश्मीर में अपने पांवों को रख ही रहा था कि पुन: अप्रत्याशित मार पड़नी आरंभ हो गयी ! उसे पिछला अनुभव भीतर तक सिहराने लगा ! स्थिति इस बार भी वही बन गयी थी, पृष्ठ भाग और सामने दोनों ओर से उसे त्रिलोचनपाल और महाराजा संग्रामराज की स्वतंत्रता प्रेमी सेना ने घेर लिया था ! वह जिस दीपक को बुझाने आया था भारत की स्वतंत्रता का यह दीपक और भी प्रचण्ड होता जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि यह दीपक अब महमूद के लिए ही भस्मासुर बनने वाला था ! महमूद गजनवी को फिर प्राण रक्षा के लिए कश्मीर से गजनी की ओर भगाना पड़ा और इस बार वह ऐसा भागा कि फिर कभी जीवन में कश्मीर की ओर पैर करके भी नही सोया !

धन्य है त्रिलोचनपाल, धन्य हैं महाराजा संग्राम राज और धन्य है उनकी सेना के वीर सैनानी जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता के प्रति अगाध निष्ठा का ऐसा परिचय विदेशी आक्रांता को दिया ! भारत के इतिहास में इन सभी स्वतंत्रता सैनानियों का नाम सदा सम्मान से ही लिया जाएगा !

उपरोक्त वर्णन के मद्देनजर वर्तमान संदर्भ में ये समझना जरूरी है कि हमलावर विदेशी लुटेरों की आक्रामक तहजीब को आधार बनाकर कश्मीर घाटी में भारत विरोधी हिंसक जिहाद का संचालन कर रहे इन्हीं कश्मीरी नेताओं के हिन्दू पूर्वजों ने अनेक शताब्दियों तक विदेशी आक्रमणकारियों को धूल चटाई है, परंतु लम्बे समय तक बलात् मतान्तरण के परिणामस्वरूप इनकी राष्ट्रनिष्ठा लुप्त हो गई ! अत: इस समाप्त हो चुकी राष्ट्रनिष्ठा को पुनर्जीवित किए बिना कश्मीर की वर्तमान समस्या नहीं सुलझाई जा सकती !

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