मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले एक वफादार स्वान की अनसुनी एवं वास्तविक गाथा !

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक, शुभ्रक और हाथी रामप्रसाद की गाथाओं से आप निश्चित ही परिचित होंगे परन्तु इस बहादुर स्वान के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है ! आप जानते है स्वान सबसे वफादार जानवर माना जाता है जो अपने मालिक की रक्षा के लिए जान पर खेलने को तैयार हो जाता है ! स्वान की वफादारी के अनेक किस्से हमे समाचारों में देखने को मिल जाती है ! वर्तमान में स्वान को फ़ौज में भी लिया जाता है जहा पर वह अपना युद्ध कौशल दिखाते है ! इन्ही वफादार स्वान में से भारत के इतिहास में एक ऐसा स्वान भी हुआ था जिसमे अपनी मालिक के साथ मिलकर मुगलों से रणभूमि में लोहा लिया था ! आइये उसी वफादार स्वान की आपको कहानी सुनाते है !

आज से लगभग 350 साल पुरानी बात है जब मुगलों ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाया हुआ था ! मुगल बादशाह औरंगजेब उस समय मुगल बादशाहत का राजा था जो हिन्दू शासकों के प्रति अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात था ! औरंगजेब ने छोटी छोटी रियासतों के राजाओ पर आक्रमण कर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया था ! उस समय कई रियासतों ने मुगल बादशाह की क्रूरता के समक्ष अपने घुटने टेक दिए थे क्योंकि वो मुगलों की विशाल सेना से लड़ने में असक्षम थे जबकि कुछ रियासतों के राजा लगातार आक्रमण के बावजूद मुगलों से लोहा लेते जा रहे थे !

इन्ही बहादुर शासकों में ठाकुर मदन सिंह का भी नाम आता है को लोहारु नामक एक रियासत के मालिक थे ! ठाकुर मदन सिंह का अपनी रियासत में बहुत नाम था और प्रजा के प्रति अच्छे कार्यो के लिए उनका सम्मान किया जाता था ! ठाकुर मदन के दो पुत्र थे जिनमे से एक का नाम महासिंह और दुसरे का नाम नौराबाजी था ! ठाकुर मदन सिंह का एक वफादार सेवक बख्तावर सिंह था जिसने अपनी वफादारी से हमेशा महाराज का दिल जीता था ! उस सेवक के पास एक स्वान था जिसे वो बहुत प्यार करता था और स्वान भी अपने मालिक के प्रति हमेशा वफादारी दिखाता था !

1671 ईस्वी की बात है जब ठाकुर साहब ने औरंगजेब को राजस्व देने से मना कर दिया ! जब औरंगजेब को इस बात की खबर लगी तो उसने हिसार में नियुक्त अपने गर्वनर अलफु खान को आदेश दिया कि वो लोहारु पर आक्रमण कर उनसे राजस्व छीन ले ! अलफु खान अपनी सेना लेकर लोहारु पहुच गया जहा पर ठाकुर साहब की सेना भी लड़ने के लिए तैयार खडी थी ! अब दोनों सेनाओ ने एक दुसरे पर धावा बोल दिया जिससे भीषण युद्ध छिड गया जिसमे दोनों सेनाओ को भारी जान माल का नुक्सान हुआ ! इस भीषण युद्ध में ठाकुर साहब के दोनों पुत्र भी लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये !

अब ठाकुर साहब की सेना में उनका वफादार सेवक बख्तावर सिंह पूरी ताकत से लड़ाई कर रहा था ! बख्तावर सिंह के साथ साथ उनका वफादार स्वान भी रणभूमि में बना हुआ था ! वो स्वान इतना वफादार था कि अपने मालिक को जख्मी करने वाले मुगल सैनिक को नोच डालता था ! वो स्वान न केवल अपने मालिक की रक्षा करने बल्कि अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए लड़ रहा था जिसमे मुगलों के 28 सैनिको को बड़ी बेरहमी से मार डाला था ! जब मुगल सैनिको ने उस स्वान को मुगल सैनिको पर आक्रमण करते देखा तो वो भी दंग रह गये ! अब उनके सामने स्वान बड़ी चुनौती थी जिसे कोई एक मुगल सैनिक नही सम्भाल सकता था इसलिए सभी मुगल सैनिको ने एक साथ उस कुत्ते पर हमला कर दिया !

उन सैनिको के साथ बीरता से लड़ते हुए वो स्वान वीरगति को प्राप्त हो गया ! उस स्वान की मृत्यु के कुछ समय बाद ही उसका मालिक बख्तावर सिंह भी ज्यादा देर मुगलों के आगे नही टिक पाया और वो भी वीरगति को प्राप्त हो गया ! उन दोनों की बाहदुरी के कारण मुगल सेना को घुटने टेकने पड़े थे जिसके कारण अंत में ठाकुर साहब के आते ही अलफु खान को भागना पड़ा ! युद्ध खत्म होने के पश्चात ठाकुर साहब ने उस बहादुर वफादार स्वान की याद में एक गुम्बद का निर्माण करवाया जहा पर उस स्वान ने वीरगति पायी थी ! इसी गुम्बद से कुछ दूरी पर रानी सती का मन्दिर भी है जहा बख्तावर सिंह की पत्नी सती हुयी थी !

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