अनाथ भिखारी बचपन और देश भक्ति !



यह आलेख लिखते समय मन और आँखें अन्सुआई हुई हैं ! गम से नहीं आनंद से ! लग रहा है कि अभी आशादीप जल रहा है, भारत जीवंत है ! हुआ कुछ यूं कि कल भोपाल के कुछ राष्ट्रभक्तों ने उरी में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि स्वरुप मोमबत्तियां जलाईं ! पर्याप्त संख्या में लोग एकत्रित भी हुए, किन्तु सबसे ख़ास बात रही वहां रोज भीख मांगने वाले मासूम बचपन की सक्रियता ! वे बच्चे दौड़ दौड़कर हवा के थपेड़ों से बुझी मोमबत्तियों को बार बार जला रहे थे ! 

अटल बिहारी वाजपेई हिन्दी विश्वविद्यालय में व्याख्याता निवेदिता चतुर्वेदी पहले तो कौतुहल से इस दृश्य को देखती रहीं, फिर एक बच्चे से पूछा – क्या कर रहे हो यह , क्यों कर रहे हो ?

बच्चे के जबाब ने निवेदिता जी को अचंभित भी किया, और प्रफुल्लित भी ! 

बालक का कथन था – हम आपकी तरह मोमबत्ती तो नहीं जला सकते, पर जली हुई मोमबत्ती को बुझने से तो रोक सकते हैं ! जो देश की खातिर शहीद हुए, उनके लिए हम क्या इतना भी नहीं कर सकते ?

अभिभूत निवेदिता जी, उन बच्चों को आग्रह पूर्वक अपने साथ भोपाल स्‍थि‍त न्‍यू मार्केट में ले गईं तथा अपने पतिदेव हिन्दुस्थान समाचार के ब्यूरो चीफ मयंक चतुर्वेदी जी से आग्रह किया कि बच्चों को भोजन कराईये ! उसके बाद तो सारे बच्‍चों ने ठीक उसी प्रकार छोटे-बटूरों का आनंद लिया, जैसे हम और हमारे जैसे परिवार होटलों में जाकर अक्‍सर लेते हैं। उन नन्‍हें फुलों के चहरों पर तृप्‍ति की मुस्‍कुराहट देखकर चतुर्वेदी दंपत्ति को जो सुकून मिला होगा, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता ! चलते-चलते सभी बच्‍चों से मिलते रहने का वायदा किया !

जब हमारे देश का उपेक्षित, निरीह और काफी हद तक अनाथ बचपन, इतना ओतप्रोत है देशभक्ति से, तो पाकिस्तान क्या, सारा जमाना मिलकर भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता ! उनकी रोशनी के सामने सूरज की रोशनी भी फीकी है। ..........



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