चंदेरी की मणिमाला का जौहर, जिसे देखकर घबरा गया था बाबर, चौथी बीबी दिलावर बेगम हो गयी थी बेहोश !

आज हम आप लोगो को ऐसे जौहर एवं शाके की जानकारी दे रहे जिसे देखकर बाबर भी घबरा गया था ! चंदेरी के महाराज मेदिनीराय एवं उनकी रानी मणिमाला के बलिदान पर यह लेख जरुर पढकर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं !

27 जनबरी 1528 की रात्रि का अंतिम प्रहर समूची प्रकृति सोई पड़ी थी, भोर होने मे एक पहर शेष था, यकायक रणतूर्य बज उठे, सुरक्षा चौकियों से साबधान होने के संकेत मिलने लगे। दुर्ग के प्रहरियों ने रणतूर्य बजाकर सजग होने का संदेश दोहराया उत्तर दिशा से धूल का बवंडर चंदेरी की ओर बढ़ा चला आ रहा था । कुछ ही समय में धूल और लाली के मिश्रण ने चंदेरी नगर को ढक लिया था। महाराज मेदनीराय परिहार ने चारों ओर दृष्टि डाली तब पता चला कि चंदेरी नगर चारों ओर से बाबर की तोपों से लैस सैना द्वारा घेरा जा चुका है। तभी भागता हुआ प्रहरी आया। महाराज की जय हो.... तुर्क सैनिक एक पत्र देकर गया है। महाराज मेदनीराय ने पत्र पढ़ा....।

“मेंदनीराय मेरी दिली ख्वाहिश है , कि मुल्क मैं ज्यादा खून खराबा ना हो मुल्क में अल्लाह और इमान की सल्तनत कायम हो जाए काफिरों का सूर्य अस्त हो चुका है। इसके लिए तुम से दोस्ती का हाथ बढ़ाता हूं । तुम आकर मेरी मातहती (गुलामी)कबूल करलो और रांणासांगा का साथ छोड़ दो, तुम्हे सोचने और समझने के लिए एक दिन का वक़्त दे सकता हूं, इससे ज्यादा रियायत की उम्मीद ना करना, आखरी अंजाम क्या होगा, यह तो तुम खानबा में देख ही चुके हो। समय रहते समझ जाना काबलियत की निशानी है। लेकिन मुझे सख्त अफसोस है, कि हिंद के क्षत्रियों में जोश ही बहुत है पर होश की बहुत कमी है, लेकिन तुमसे उम्मीद है कि अपने होशो हबाश की मिसाल कायम करके मेरी मातहती(गुलामी) कबूल कर लोगे। काबुल से लेकर बेतवा तक के मालिक से दोस्ती करने पर तुम्हारा रुतवा बढ़ेगा न कि घटेगा, बड़ों की दोस्ती हमेशा फायदेमंद रहती है। अब अपनी अक्ल से काम लेना, अपनी औकात को भी नजर अंदाज ना करना। मैं भी तुम्हारी दोस्ती पर फक्र करुंगा .....।

शहंशाह बाबर”

इस भावी युद्ध की सूचना राणासांगा को भेजी जा चुकी थी । परंतु बाबर का सौभाग्य कहिये, कि राणा सांगा इस युद्ध में भाग नहीं ले सके। बल्कि ठीक इसी समय एक प्रहरी तुर्क वेश में रांणासांगा का पत्र लेकर आया। महाराज की जय हो....। पत्र हाथ मे देते हुये....। महाराज मेदनीराय ने पत्र खोला और पढ़ने लगे ......

“मेरे प्रिय मानस पुत्र मेदनीराय, तुम्हारी चिंता में चित्तोड़ से चंदेरी के लिये चला, अब एरच मे ठहरा हूं , मेरे जीबन का यह अंतिम ठहराब है। शरीर शिथिल तथा निर्जीव होता जा रहा है। प्राण शरीर की समस्त इंद्रीयो के कर्म समेट कर फड़-फड़ा रहे है। अब कुछ ही देर में प्राण इस विकलांग शरीर से नाता तोड़ देगें। मेरे मन की इच्छा अतृप्त ही रह जायेगी। मैं चाहता था कि मेरे प्राण इस शरीर को युद्ध स्थल में ही छोड़ते , जिससे मुझे तृप्ति , तुम्हें सहयोग और आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलती और बाबर का हिसाब-किताब भी पाई-पाई चुकता हो जाता। सयोंग देखें कि बीच मे ही अब प्रांण विचक रहे हैं।और मेरे कितने ही रोकने पर अब नही रूकेंगे । इसलिये तुम्हे अपने जीबन का अंतिम पत्र लिख रहा हूं। 

प्रिय मेदनीराय.....थोड़े से साधनों पर निर्भर पिंजड़े मे बंद पंक्षी की भांति तुम्हारी स्थिति आगई है। अब तुम्हे बल से नही बुद्धि से काम लेना है। संयम और विवेक के अंकुश से विजय पा कर, दूरदर्शी बुद्धीमत्ता पूर्ण निर्णय लोगे, इसी विश्वास के साथ तुम्हे युद्ध का होता बनाकर अब अपने जीवन की अंतिम आहुती युद्ध के मार्ग मे दे कर जा रहा हूं। कुछ और अधिक लिखता लेकिन अब और लिखने की सामर्थ नही है। तुम बाबर की सेना से घिर चुके हो। और मे तुम्हारी चिंता की भावना से घिर चुका हूं। तुम से अंतिम अनुरोध है कि विवेक से कार्य करना । मुझे खेद है कि जीवन की अंतिम आहुति युद्ध स्थल पर न दे सका। यह मेरी इच्छा नही है वल्कि मेरी विवशता है । मानस पुत्र मुझे क्षमा कर देना ।

रांणासांगा.........।“

तभी मेदनीराय ने संकल्प लिया - हे धर्म पिता आपका मानस पुत्र रक्त की सरिता में स्नान कर, तुर्कों के रक्त को अंजुली मे भर कर ही आपका तर्पण करेगा उसी से आपकी आत्मा तृप्त होगी। तभी बाबर के विशेष दूत शेखगुरेन तथा अरयाश पठान ने पत्र का जबाव मांगा.......।

कोट नवै,पर्वत नवै,माथौ नवाये न नवै।
माथौ सन जू को जब नवै,जब साजन आये द्वार।। असंभव..........................

मेदनीराय.....हिन्दू क्षत्रिय है.... भारत के इतिहास में हिन्दू भेंट नही लेते हैं... फिर समर्पण क्या होता है। यही हमारा इतिहास है..। भाग्य के धनी बाबर के भाग्य से सांगा चले गये , जाओ बाबर को बता दो, दोनो और की फौजों को क्यो नाहक मरबाता है। हम दोनो मैदान मे निपट लेते है जो हार जाये वह हार स्वीकार करलेगा। बाबर यदि वीर है तो आमने-सामने आजाये, तोपों की क्या आग दिखलाता है...। जितनी आग उसकी तोपों मे है ,इतनी गर्मी तो हर हिन्दू के खून मे होती है.......। 

पठान बोला महाराज ये सियासत नही है, आप सियासत की बात करें।

लुटेरों से सियासत की क्या बात करूं...? जो दूसरों के घर जलाता फिरता है उससे क्या बात करूं ...। कह दो बाबर से हम युद्ध करेंगे.......।

महाराज मेदनीराय परिहार बाबर से युद्ध की घोषणा करते है....। 

बाहर शंखध्वनी तथा रणतूर्य बज उठते हैं राजपूतों की भुजायें फड़क उठती हैं। 

मेदनीराय का अपनी पत्नी से अंतिम संवाद -

प्रिये मंणिमाला अब हमे विदा दो हो सकता है ,यह हमारे जीवन का अंतिम मिलन और अंतिम विदा हो।

आर्यपुत्र.......कौन सी शक्ति है ? संसार में भारतीय नारी के सुहाग को मिटा सकती है ? हॉ इतना अवश्य माना जा सकता है कि हमारा आधा अंग युद्ध की ओर जा रहा है, यदि कही वह रणचंडी का प्रिय हो गया तो अविलंम्व यह दूसरा अंग भी अग्निमार्ग से अपने आधे अंग से जा मिलेगा, फिर आप कैसे कह सकते है कि यह हमारा अंतिम मिलन है। महारानी मणिमाला ने आरती उतारी, महाराज अश्वारूढ़ हो कर सेना के मध्य पहुच कर वोले  -

बंधुओ संसार मे अपना सोचा कभी पूरा नही होता, इस युद्ध के लिये मैंने और महावीर रांणासांगा ने निश्चय किया था कि बाबर को चंदेरी और वेतवा के बीच रोक कर हमेशा के लिये समाप्त कर देगें, पर ऐसा न हो सका हमारे दुर्भाग्य से रांणासांगा हमे छोड़कर चले गये। बंधुओ पराधीनता के राज्य का यश, वैभव, हेय,त्याज्य और कलंक की कालिमा में लिपटे हुये सुख हैं। क्षणिक सुख के लिये हम अपनी जाति, धर्म और देश की प्रतिष्ठा को गिरवी नही रख सकते ! जीवन मरण तो ईश्वर के हाथ है, हम उसे नही रोक सकते ! जब मरना निश्चित है तब मरने पर भी अमरपद मिल सके, ऐसी मौत तो मातृभूमी के लिये उत्सर्ग करने से ही मिलती है.....तो आओ चलें महाकाल के चरणों मे अमरपद प्राप्त करे... 

( यहॉ पर यह बताना आवश्यक है कि भारत मे किसी हिन्दू सेना का सामना पहली बार तोपों से होने बाला था यही कारण था कि महाराज मेदनीराय ने मरना तय मान लिया था..अर्थात शाका युद्ध किया )

दोनो सेनाये आमने सामने हर हर महादेव के जय घोष के साथ हिन्दू प्राणों को भूलकर, शरीर की ममता को भेट कर, मौत का खुला अलिंगन करने के लिये मचल मचल कर तुर्क सेना पर अप्रतिम साहस के साथ टूट पड़े.....। भले ही हिन्दू सेना का संख्या बल कम था पर पहले ही हमले मे तुर्क सेना के अग्रिम पक्ति के सैनिक काट डाले गये ! सेनापति मेहमूद गाजी के उकसाने पर भी तुर्क सेना पीछे हटने लगी। इस युद्ध में बुंदेलखंड के राव, सामंत और लड़ाकू वीर हिन्दू युद्ध के आमंत्रण पर स्वेच्छा से मातृभूमि पर प्रांणोत्सर्ग करने आ पहुचे। महाराज मेदनीराय ने हुंकार भरते हुये मॉ चामुंडा का जयकारा लगाया, हिन्दू सेना वीरता और वलिदान के उभार पर आ गई , अब तो तुर्क सैना मे त्राहि त्राहि मच गई । खानवा और पानीपत का विजेता बाबर भी हिन्दुओं के विकट युद्ध से भयभीत हो गया। इस विषम परिस्थिति को आंक कर पीछे हट गया और खच्चर गाड़ियो पर लदी तोपों को आगे बढ़ा दिया गया। तथा घुड़सवार सैनिको को दांये तथा बांये से आक्रमण का हुक्म दिया (मानो भेड़िये सिंहों के घेरने की कोशिश कर रहे हैं ) ! युद्ध के नवीन संचालन से सिंहों की गति अवरूद्ध हो गई तोपों की मार से चीख-चिल्लाहट बढ़ी तो बढ़ती ही गई।

हिन्दुओं की आधी सेना तुर्कों की चौगनी सैना को मार कर वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी। संध्या हो चुकी थी आज का युद्ध समाप्त हुआ। मेदनीराय अपने सेनापति नारायण के साथ अपनी सेना को एकत्र कर दुर्ग बापस लौटे। उधर बाबर ने चैन की सांस लेते हुये अपने सैनिको से खुदा का शुक्र है सांगा मर गया, नही तो तय था कि वेतवा के किनारे ही हमारी कव्र बनती ! खैर अब बताओ हिन्दुओं के जुनून के आगे हमारी जीत कैसे हो....? तभी महमूद गाजी ने कहा गुलाम के रहते आलमपनाह को तकलीफ उठाने की जरूरत नही है आलमपनाह आज ही आधी रात को अहमद खां फाटक खोल देगे और हम रात मे ही हमला करेंगें।

रात्रि का प्रथम पहर था। रानी मणिमाला महाराज मेदनीराय के शरीर पर लगे घाव धोकर राज वैद्य के द्वारा दी गई दवा लगाकर महाराज गहन चिंतन मे लेटे थे। महारानी पास मे ही वैठी थी। महारानी पैर दबाते हुये बोलीं - महाराज थोड़ा विश्राम कर ले !

नही मणीं अब तो चिर विश्राम रणांगन मे ही होगा। 

तभी हॉफते हुये सेनापति... नारायण ....महाराज की जय हो..... अहमद खॉ ने नगर का द्वार खोल दिया है, नगर में बाबर की सैना घुस आई है। महाराज मेदनीराय झटके से उठे और पीछे मुड़कर बस इतना कहा विदा.... अंतिम विदा मंणि......और बाहर निकल आये। महारानी मणिमाला किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी देखतीं रहीं। महाराज मेदनीराय ने नगर के मध्य पहुच कर शंखध्वनी कर उद्घोष किया। 

वीरो मरणहोम में यदि जीवन की आहुती नही गिरी तो पुण्य नही मिलेगा कीर्ती भी मंद पड़ जायेगी शक्ति हीनता का थोड़ा भी आभास जीवन मे न होने पाये, यदि कही इसका अंकुर पनप गया तो जीवन तो नष्ट होगा ही मरण भी मूल्य हीन हो जायेगा। अतएव हमे अपराजेय यौद्धा की भॉति ही तांडव के ताल पर मृत्यु के साथ नृत्य करना है। रणचंडी के चरणों मे रक्त का अर्घ देने का आज सुअवसर है।

हर हर महादेव का घोष दोहरा कर हिन्दू तुर्को पर टूट पड़े तिल तिल बढ़ना अब तुर्कों के लिये मौत का खुला खेल था। इस परिस्थिति को भांप कर बाबर ने चारों और से तोपों को चलाने का हुक्म दिया। तोपों को रोकने मेदनीराय प्रतिहार बढ़े तो बढ़ते ही गये। अब चंदेरी के आकाश मे चारों और धुंआ और धूल के अतिरिक्त कुछ दिखाई नही दे रहा था। दोनों और की सेनाओं मे अंधाधुध तलवारे चल रहीं थी। कुछ ही क्षणों मे महाराज मेदनीराय घायल हो कर जमीन पर गिर पड़े। महाराज के विशेष सहयोगी नारायण ने परिस्थिति को भांप कर महाराज को कंधों पर उठा दुर्ग की ओर बढ़ गये।

इधर तुर्क सेना ने चंदेरी नगर में आग, लूट तथा हत्या का जो कार्य शुरू किया दूसरे सारे दिन चलता रहा। सूर्यास्त होने पर ही तुर्क सेना शिविर मे लौटी। बाबरनामा के अनुसार चंदेरी नगर मे हुये नरसंहार का आकलन करने के लिये बाबर ने मरे हुये लोगों के शीश कटबाये तथा सब को इक्ठ्ठा करबा कर टीले पर झंडा गाढ़ दिया जो नगर के किसी भी स्थान से आसानी से देखा जा सकता था। इधर चंदेरी दुर्ग मे सभी सांसों को रोके महाराज मेदनीराय के लिये चिंतित बैठे थे। रात्रि के तीसरे पहर प्रतिहार मेदनीराय ने ऑखें खोलीं मेदनीराय उठ कर बैठने लगे तब मणिमाला ने सहारा दिया। महल मे महाराज के होश में आने की चर्चा फैल गई नारायण ने औषधि युक्त दूध का कटोरा मेदनीराय के मुंह से लगाया, दूध पीने के बाद मेदनीराय में स्फूर्ति आई।

नारायण........

कहें महाराज....

नारायण चंदेरी पतन के बाद में अभी तक जिदा हूं, यह सोचकर आश्चर्य मे हूं। अब मेरे जीबन के नाटक का पटाक्षेप होने को है। इन्ही विचारों मे भोर होने को आई। सुबह जब मेदनीराय ने खिड़की खोली तो नरमुंडो पर गढ़ा तुर्क ध्बज देखा तो चीख कर कहा - 

धिक्कार है मुझ पर जो मेरे रहते चंदेरी पर तुर्कध्बज फहरा रहा है। तभी तड़प कर महारानी मणिमाला ने कहा महाराज वह देखे सामने ध्वज के चिथड़े उड़गये है। महारानी ने धनुष उठाया और ध्वज के चिथड़े उड़ा दिये। तब तक धूप निकल चुकी थी ! चारो और से गिद्ध, चील, कौवे चंदेरी की ओर दौड़े चले आ रहे थे। नर मांस खाने के लिये। यह देख कर मेदनीराय ने बस इतना ही कहा जो प्रभु की इच्छा.. तभी एक द्वारपाल ....... अंदर आया अन्नदाता की जय हो.....कहो क्या बात है। महाराज द्बार पर तुर्क दूत खड़े हैं कह रहे है, हार स्वीकार करके महल खाली कर दो। 

दुर्ग मे ठहरे नागरिकों को बुलाया गया। जन समूह एकत्र हुआ मेदनीराय बोले बाबर का संदेशा आया है हार मान कर महल खाली कर दो, सभी मे सन्नाटा छा गया ! कुछ ने संधी करने की सलाह दी ! इसी बीच मणिमाला बोली मेरे वीरो ये समय हित अहित विचारने का नही है। मृत्यु तो अवश्यम्भावी है। चाहे शयन कक्ष में आये या रण क्षेत्र मे विचारणीय विषय तो ये है कि संधी करने का हक अब न तो महाराज को है और न ही पंचों को यदि संधी ही करनी थी तो हमारे वीरों को मरवाया क्यो । क्या जबाव देगे उन विधबाओं को...क्या जवाब देगे उन मांओं को जिनके लाल रणचंडी की भेट चढ़गये.....नही अब कोई समझौता नही, हमारे कुल के जूझ के मरने बालों की कीर्ति को कलंकित नही कर सकते, अब अंतिम युद्ध होगा। 

यह सुन सभी एक स्बर मे बोले – हाँ हम अंतिम युद्ध करेगे। महाराज मेदनीराय खड़े हुये हाँ अब मे अतिम युद्ध करने जा रहा हूं.........जिन्हे साथ चलना है वह स्वेच्छा से चले तथा जिनकी इच्छायें शेष है बह पलायन कर सकता है, बाहर निकलने का इंतजाम करबा दिया गया है। जो युद्ध करना चाहते है वह केशरिया धारण कर लें। आज माघ के महीने मे भी केशरिया की बहार होगी, क्यों कि हम मरणोत्सव का महापर्व मनाने जा रहे है। चंद्रगिरि दुर्ग मे मरणोत्सव पर्व की तैयारी शुरू हो गई ! हिन्दू स्वर्ग के मेहमान बनने के लिये केशरिया धारण कर तैयार होने लगे थे।

मणीं......हमें भी महापर्व मनाने के लिये तैयार कर दो।

महाराज के आदेश का पालन करती हूं। महाराज मुझे भी आदेश दे कि मे जौहर की आग जला आऊं, जो कभी न बुझे। दुर्ग के बाहर रणभेरियॉ बज उठीं नगाड़े गड़गड़ाने लगे...महारानी ने अपने हाथों से महाराज को केशरिया पहना कर मृत्यु वरण के लिये तैयार किया। महाराज मेदनीराय शाका युद्ध के लिये महल से बाहर निकलने लगते है। तभी भाग कर मणिमाला महाराज के चरणों मे गिर जाती हैं। महाराज मेदनीराय भावनाओं के समुद्र से बाहर निकल कर दुर्ग से बाहर निकल आये। 

आओ वीरो अपने इस जीवन के सबसे सुखद और पावन समय को सार्थक कर लें,यदि काल अमर है तो हम महाकाल बनजायें। हर हर महादेव करते हुये हिन्दू वीर दुर्ग के प्रमुख द्वार से बाहर आ गये, दुर्ग का द्वार खोल दिया गया जो आज भी खुला है। हिन्दू तुर्कों पर घायल शेर की भांति टूट पड़े। दोनों ओर से अंतिम युद्ध लड़ा जाने लगा ! दुर्ग के मुख्य द्वार से रक्त की सरिता वहने लगी लाशों के ढेर लग गये। दिन के तीसरे पहर तक युद्ध चला और सभी महाराज मेदनीराय सहित तुर्कों को काटते काटते वीरगति को प्राप्त हो गये। बिल्कुल शांति छागई। मुख्य द्वार खुला पड़ा था फिर भी तुर्क भीतर घुसने की हिम्मत न कर सके, बाबर जिसके साहस की दंन्त कथायें एशिया भर मे फैल चुकीं थी, वह भी चंदेरी दुर्ग मे घुसने मे रक्त की धारा लांघने मे कांप रहा था। यह देख कर बाबर के मुंह से घबरा कर निकल गया...ओह..खूनी दरबाजा....।

उस दरबाजे को आज भी खूनी दरबाजे के नाम से जाना जाता है। अंतिम बचे प्रहरी ने महारानी मणिमाला को संदेश दिया....अन्नदाता वीरगति को प्राप्त हो गये। मणिमाला कॉप कर पाषाणवत् हो गईं। फिर झटके से अपने आपको संम्भालते हुये सुहाग, सिदूर, मेहदी तैयारी कर पूजा का थाल लेकर बाहर आयीं। दुर्ग की स्त्रीयों मे हाहाकार मचा हुआ था। सौंदर्य और सुहाग की साकार मूर्ति को देख कर सभी का शोर शांत हुआ। मणिमाला विना कुछ बोले महाशिव के मंदिर चली गईं ,शिव को गंगाजल से स्नान कराकर, मासिक पूजन कर अखंड सौभाग्य का आशीष एवं चरणोदक लेकर लौटीं।

बाहर अनुमानतः 1500 क्षत्राणिया खड़ी थी उन्हे संवोधित किया। बहनो .....हम प्रत्येक परिस्थिति मे जीते हैं, लेकिन पति से अलग हो कर हम नही जी सकते पति के उठते पॉव के चिन्हों पर ही हमे पांव रखना है....हमारे प्राणप्रिय से हमारा संबंध मात्र शरीर का नही हैं, वरन् आत्मा का संबंध है। उसी आत्मानुभूति से प्रेरित हो कर हम आत्मा के मिलन के लिये सुहाग की अमरता पाने पवित्र अग्नि मार्ग से जा रहे हैं। मेरे जीवन में ही क्या, युगों युगों से भारतीय नारी के जीवन मे आग और सुहाग कोई अलग अलग वस्तु नही रही है। आग और सुहाग का चिर संबंध है। जब तक भारत में इस आग और सुहाग के महत्व को नारी जानती और मानती रहेगी, तब तक एक क्या हजारों बाबर भी एक साथ मिलकर भारत की पावनता और संस्कृति को नही जीत सकते भले ही कुछ समय के लिये भारत का तेज निस्तेज हो जाये, छुपी हुई आग का दबा हुआ बीज फिर से फूटेगा और अवश्य फूटेगा।

चिर सुहागन मणिमाला के संकेत पर गिलैया ताल किनारे बनी विशाल चिता मे अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। महारानी मणिमाला के आदेश पर विशाल चिता मे अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। कुछ ही क्षणों मे लपटे आकाश छूने लगीं। गिलैया ताल किनारे 1500 राजपूत रमणियों ने अपने जीवन को होम कर दिया। देखते ही देखते समूचां दुर्ग आग का गोला बन चुका था। जैसे ही तुर्क सैनिक दुर्ग के भीतर जाने को हुये तो बचे हुये दो-चार सैनिकों ने मोर्चा संभाला औऱ बीरता पूर्बक लड़ते हुये वीरगती को प्राप्त हुए और अहमद खॉ बाबर के अगल-बगल खड़े हुये जलती चिता को देख रहे थे। जीवित जलती कोमलांगीयों को देख बाबर वेचैन हो गया। उसका कठोर ह्रदय भी पीडा से कराह उठा ! उसी समय चिता के भीतर से एक सनसनाता हुआ तीर आया और बाबर की पगड़ी मे लगा और वह जमीन पर गिर गई। तुर्कों मे फिर से आतंक छा गया तब बाबर के सभी सैनिक भाग कर चिता के नजदीक पहुचे और देखा कि मणिमाला अपने तरकश के तीर प्रयोग कर खाली धनुष कंधे पर डाल कर उस महाचिता को प्रणाम कर सुहाग के गीत गाती हुई चिता की ओर ऐसे बढ़ती गंई जैसे मुगल बेगम फूलों की सैर करने जाती हैं। यह देख बगल में खड़ी बाबर की चौथी बीबी दिलावर बेगम के मुह से चीख निकली और वेहोश हो गई।

बाबर ने अपनी आत्मकथा में इस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा है कि "उसने चंदेरी को मात्र तीन घडी में ही जीत लिया था "अपने आप में श्लाघापूर्ण है और विजेता के बडबोलेपन का उदाहरण मात्र है ! बाबर के अपने इस कथन की धज्जियां उसके द्वारा शेख गुरेन और अरायाश खां पठान को बारम्बार संधि के लिए चंदेरी भेजने की घटना से ही उड़ जाती हैं ! हकीकत तो यह है कि चंदेरी कि जटिल भौगोलिक रचना, मेदिनी राय खंगार का सैन्य बल, और खानवा के युद्ध में उसका शौर्य देखकर बाबर की हिम्मत जबाब दे रही थी ! 

बाबर ठगा सा तलबार टेके हुये एकटक खड़ा देखता रहा । बाबर अनमना सा अपने खेमे मे लौट आया चंदेरी दुर्ग जीतकर । बाबर ने चंदेरी के भग्न ध्वस्त दुर्ग की सूबेदारी अहमद खॉ को सौप कर उसी समय दिल्ली के लिये कूच कर दिया। चंदेरी दुर्ग की जलती चिता भभकती रही इस सुहाग की आग को लोगों ने 15 -15 कोस दूर से देखा। चंदेरी जौहर का पता चलते ही सुदूर अंचल की प्रजा भागी भागी आई और श्रद्धा सुमन अर्पित कर धन्य हुई। वहां पहुचते ही अनायास ही मुह से बोल फूट पड़ते हैं।।

पग-पग पर लाल न्यौछाबर हुये।।
बजासे लाल भई जा चंदेरी की माटी।।।
अत्र सरस्तीरे असंशख्याता क्षत्रिय वीरांगना।।
सतीत्व रक्षार्थ जौहरेण विधिना ज्वलनं प्रविश्य दिवंगता:।।

Refrence : -
(1) प्रतिहार राजपूतों का इतिहास लेखक - देवी सिंह मंडावा
(2) मेमायर्ष आफ बाबर - अनुवाद एसकाइन पृष्ठ
(3) ग्वालियर गजेटियर पृष्ठ संख्या 39
(4) गुना गजेटियर / मध्य प्रदेश मार्गदर्शिका प्र. 31,38
(5) चंदेरी मार्गदर्शिका प्रपत्र - 13

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ