राजनीति का पहला पाठ – समझें राजनैतिक शिष्टाचार (व्यंगलेख) - हरिहर शर्मा


आज टीवी पर राष्ट्रवादी कांग्रेस नेता अजित पंवार को यह कहते सुना कि नरसिंहराव के समय तो सांसद भी केवल पचास लाख में अपना समर्थन दे दिया करते थे, जबकि आज तो नगर सेवक भी इतने कम पैसे में अपनी निष्ठा नहीं बदलेगा ! तो लगा कि वे अपने कार्यकर्ताओं को आधुनिक युग के राजनैतिक शिष्टाचार का प्रशिक्षण दे रहे हैं ! यह आलोचना का नहीं प्रशंसा का विषय है ! राजनैतिक कार्यकर्ताओं की दक्षता व कौशल में हुए इजाफे का परिचायक है !
तभी मुझे एक वरिष्ठ नेता के श्रीमुख से सुना एक प्रसंग भी स्मरण हो आया, जो उन्होंने अर्जुन सिंह जी की प्रशंसा करते हुए सुनाया था ! प्रसंग कुछ यूं सुनाया गया था –
एक गरीब कार्यकर्ता अर्जुनसिंह जी के पास पहुंचा और कुछ आर्थिक मदद की गुजारिस की ! अर्जुनसिंह जी उन दिनों केन्द्रीय संचार मंत्री थे, साथ ही उस कार्यकर्ता को व्यक्तिगत रूप से जानते भी थे, कि इस बन्दे की आरती स्थिति सही में डांवाडोल है ! उन्होंने अपने गरीब कार्यकर्ता की मदद का नायाब तरीका ईजाद किया, उसे मुम्बई की किसी झुग्गी बस्ती में उसके नाम एक टेलीफोन कनेक्शन दे दिया ! उन दिनों टेलीफोन कनेक्शन पर अच्छा ख़ासा ब्लैक था, कार्यकर्ता के बारे न्यारे हो गए ! वह जीवन भर के लिए अर्जुन सिंह जी का मुरीद बन गया !
अभी दो दिन पूर्व ही 17 अप्रैल को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी की 86वीं जयंती थी। इस अवसर पर नया इण्डिया में छपे श्री विवेक सक्सेना के एक आलेख में इस राजनैतिक शिष्टाचार के कुछ और नायाब उदाहरण पढ़ने को मिले –
चंद्रशेखर जी रिश्ते बनाने और उन्हें बनाए रखने में विश्वास करते थे। उनकी बारातमें तरह-तरह के बाराती हुआ करते थे। उनके लिए वह किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते थे। देश के सबसे तेज-तर्रार अखबार समूह इंडियन एक्सप्रेसके मालिक रामनाथ गोयनका से उनके बहुत करीबी संबंध थे। संबंध इतने गहरे थे कि गोयनका जी उनके कहने पर नेताओं की आर्थिक मदद करते थे। एक बार की बात है कि बिहार विधानसभा चुनाव होने थे। चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को गोयनकाजी के पास बंबई भेजा। उन्होंने उनसे कहा कि कर्पूरी की आर्थिक मदद कर दीजिए। जब कर्पूरी ठाकुर रामनाथ गोयनका से मिले और चुनाव खर्च पर चर्चा हुई, तो गोयनका जी ने उनसे पूछा कितना पैसा चाहिए।कर्पूरी ठाकुर ने सकुचाते हुए कहा – ‘पांच लाख रुपए दे दो, तो फिर कहीं और हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।
गोयनका जी ने मुस्कुराते हुए, अंदर से पैसा लाने के निर्देश दिए। अभी पैसा आ नहीं पाया था कि कर्पूरी ठाकुर धीरे से बोले – ‘इतनी बड़ी रकम लेकर रेल से जाना ठीक नहीं है। अगर एक अटैची और पटना तक के हवाई जहाज के टिकट का इंतजाम करवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी। गोयनकाजी ने इसके लिए भी निर्देश जारी कर दिया। जब शाम को कर्पूरी ठाकुर चलने लगे, तो उनसे बोले -एक अंतिम कष्ट और दे रहा हूं। पटना से घर तक टैक्सी से जाना होगा। अगर 100 रुपए टैक्सी भाड़े के और दिलवा दें, तो बस मजा आ जाएगा। गोयनका जी ने उनकी वह इच्छा भी पूरी कर दी।
अगले दिन चंद्रशेखर का उनके पास फोन आया। वे बोले आप मुझे गुरु कहते हैं, पर आप तो खुद महागुरु निकले। मैंने कर्पूरी को आपके पास चुनाव में मदद मांगने के लिए भेजा था और आपने उसे महज पांच लाख रू दे कर चलता किया।जवाब में गोयनकाजी ने कहा गुरु मैं मारवाड़ी हूं, समाजवादी नहीं, जब उन्होंने मुझसे पांच लाख ही मांगे, तो मैं क्या करता…?’ मैं क्यों अपनी तरफ से ज्यादा देता। अब बताओ, क्या करना है…?’ उसके बाद चंद्रशेखर ने उनसे 25 लाख रुपए भेजने को कहा, जिसे उन्होंने तुरंत पूरा कर दिखाया।
चंद्रशेखर जी उनका दोस्त अच्छा है या बुरा, उसकी समाज में कैसी छवि है, वह इसकी जरा भी परवाह नहीं करते थे। जब दिल्ली का सबसे बदनाम बिल्डर तेजवंत सिंह धोखाधड़ी के आरोप में जेल जाने वाला था और उससे बचने के लिए दिल्ली के एक नर्सिंग होम में भरती हुआ, तो प्रधानमंत्री होते हुए भी वे उसे देखने गए। अध्यक्षजी का एक मुंह लगा छूट भैया, युवा नेता जो 7 जंतर-मंतर की पुदत्ती में फोटो कापी करने का धंधा करता था, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद लखपति बन गया। उसने बाबा खड़क सिंह मार्ग स्थित एक पुराने सरकारी मकान को अपना निवास बना लिया और उसके बाहर उसकी अपनी कारों की लाइन लगी रहती थी। आज वह युवा नेता इस दुनिया में नहीं है।
एक पत्रकार जिसके तमाम परिचित व्यवसायी थे, अध्यक्षजी की अनुकंपा से अपने एक रिश्तेदार को, जो तेल मिल चलाता था, पदमश्री दिलवा दिया।
एक छुट भैया नेता प्रधानमंत्री से दिल्ली पुलिस के सब इंस्पेक्टर को सही जगह पर तैनात करने की सिफारिश लेकर पहुंच गए। अध्यक्षजी ने उनसे कहा कि वह सुबोधकांत सहाय से मिलें, जो उस समय गृह राज्य मंत्री थे। वह नेता उनसे मिला। सुबोधकांत ने उससे पूछा जिसकी सिफारिश लेकर आए हो, वह कौन है? क्या करता है? उस नेता ने कहा वह सब इंस्पेक्टर है। पार्टी का आदमी है। अपनों के काम करता है। विरोधियों को टांग कर रखता है और उसका काम हो गया।
जनता पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए, उनके समाजवादी साथियों के भाजपा के संघ रिश्तों को मुद्दा बनाए जाने के कारण ही पार्टी टूटी थी। चंद्रशेखर खुद भी संघ के बेहद खिलाफ थे। इसके बावजूद जब भैरोंसिंह शेखावत राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने तो उनके पक्ष में मतदान करने की अपील करने वाले चंद्रशेखर सबसे पहले नेता थे। शायद उन्हें लग रहा था कि पृथ्वीराज चौहान व उनके बाद देश के सर्वोच्च सिंहासन पर संभवतः तीसरा राजपूत आसीन हो सकता था। इसलिए उसकी पूरी मदद की जानी चाहिए।

तो भाई साहब आप इसे कदाचरण कतई न मानें यही वास्तविकता है, इस राजनैतिक शिष्टाचार को समझें, जानें और अगर राजनीति में रचना बसना कहते हैं तो इसे स्वीकार कर ही आगे बढ़ें ! अजीत पंवार भी तो यही शिक्षा अपने कार्यकर्ताओं को दे रहे हैं ! लोग राजनीति के दीवाने यूंही थोड़े ही हैं !
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