बच्चा चुराने वालों को अब आजीवन कारावास : डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले
दिनों मानव तस्करी रोधी विधेयक के मसौदे को कैबिनेट के पास भेजा है, जिसमें मानव
तस्करी के मामलों में दोषी पाए जाने पर हत्या करने या हत्या के प्रयासों के लिए दी
जाने वाली सजा के समकक्ष तक सजा देने का प्रावधान है !
वर्तमान भारत एशिया में मानव तस्करी का गढ़ बन
गया है। यह निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र नशीली दवा और अपराध
कार्यालय के हैं। इस
संदर्भ में आज से दो वर्ष पूर्व आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे भारत मानव
तस्करी का बड़ा बाजार बन चुका है और दिल्ली, मुंबई
जैसे बड़े शहरों से किस प्रकार खरीद-फरोख्त को अंजाम दिया जाता है, यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को विदेश तक भेज दिया जाता है।
एक अन्य पुरानी रिपोर्ट में साल 2009 से 2011 के बीच के मानव तस्करी के आंकड़े हैं । इन दो वर्षों में 1 लाख 77 हजार 660 बच्चे लापता हुए थे, 55 हजार से ज्यादा बच्चे अभी
तक लापता हैं इनमें 35 हजार 615 नाबालिग लड़कियां थीं। लापता महिलाओं
में से 56 हजार अब तक नहीं मिल सकी
हैं। यूएन की इस रिपोर्ट को आधार माना जाए तो हर साल भारत में 1 लाख से अधिक बच्चे, महिलाएं और पुरुष लापता हो जाते हैं। और उनमें से ज्यादातर के
घरवाले आजीवन खून के आंसू रोने के लिए विवश हो जाते हैं ।
मानवता के लिए मानव तस्करी को अभिशाप कहा जाए तो
गलत नहीं होगा। इंसानी दुनिया में वस्तुओं की तस्करी अर्थ के लोभ के चलते की जाती
रही है, किंतु इंसान अपने स्वार्थों के लिए अपने ही रक्त से जुड़े लोगों की तस्करी
में संलिप्त हो जाए, यह कहीं से भी स्वीकार्य योग्य नहीं। इस अपराध
में जितनी भी सजा दी जाए, वह कम ही होगी। आज मानव व्यापार पूरी दुनिया के
लिए चुनौती बन गया है।
यह आज नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के
बाद विश्वभर में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध बनकर उभरा है। दुनिया भर में 80 प्रतिशत
से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। आधुनिक युग की यह दासता एक व्यापार
के रूप में तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत में भी व्यापक पैमाने पर फलफूल रही है। भारत में रोजाना औसतन चार
सौ महिलाएं और बच्चे लापता हो जाते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े
बताते हैं कि देश में हर आठवें मिनट में एक बच्चा लापता होता है। ऐसा अनुमान है कि
करीब 6 करोड़ तक लोग इसकी चपेट में
हैं।
इस अपराध को रोकने के लिए बाकी देशों की तरह
भारत में भी कानून बनाए गए हैं। जिसमें अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत
व्यवसायिक यौन शोषण दंडनीय है। इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है।
भारत में बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल
श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम लागू हैं। लेकिन यह कानून कभी इतने प्रभावी
नहीं हो सके कि इस ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे संवेदनाओं से जुड़े भयंकर अपराध को रोका
जा सकता, अपराधी कानून से भयाक्रांत
नहीं हैं।
भारत में मानव तस्करी की तस्वीर कितनी भयावह है, वह इससे भी समझा जा सकता है कि खुद आगे होकर सुप्रीमकोर्ट मानव
तस्करी रोकने तथा महिलाओं और बच्चों को देहव्यापार में धकेलने से बचाने में केंद्र
सरकार के सुस्त रवैये पर नाखुशी जाहिर कर चुका है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र
सरकार से एक साल पूर्व कहा था कि सिर्फ इस संबंध में रोकथाम के लिए राज्यों को
पत्र लिखना भर पर्याप्त नहीं है। केंद्र सरकार कोई पोस्ट आफिस नहीं जो केवल
सूचनाओं को भेजने का कार्य करे। केंद्र ने राज्यों के टालमटोल वाले जवाब पर कोई
कार्रवाई क्यों नहीं की।
उसके बाद केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
ने मानव तस्करी रोधी विधेयक के मसौदे को कैबिनेट के पास भेजा है। उसे देखते हुए यह
कहने में कोई संकोच नहीं कि अब भारत सरकार इस विषय और इससे जुड़े अपराध को जड़ से
समाप्त करने के लिए संकल्पित हो उठी है। संसद में इस बिल पर मोहर लग जाने के बाद
उम्मीद यही की जा सकती है कि इसके सख्त कानून के दायरे में आने से अपराधियों
में भय व्याप्त होगा और वे छोटी-मोटी सजा के बजाय लम्बी एवं जीवनभर की सजा
पाने के भय से इस अपराध से दूर रहेंगे।
इस विधेयक के पास हो जाने के बाद यह संभव हो
सकेगा कि मानव तस्करी के गंभीर मामलों में जो दोषी पाए जाएंगे उन्हें हत्या करने
या उसके प्रयासों के लिए दी जाने वाली सजा के समकक्ष तक माना जा सकेगा। साथ ही
मानव तस्करी रोधी विधेयक के माध्यम से यह भी एक श्रेष्ठ निर्णय लिया जा रहा है कि
इसमें बंधुआ मजदूर से लेकर भीग मंगाने के उद्देश्य से बच्चों का इस्तेमाल कर रहे
लोगों एवं शादी के लिए बिना उसकी इच्छा और स्वीकारोक्ति के किसी महिला की तस्करी
या उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाये जाने जैसे अपराध को भी सम्मिलित किया
गया है।
विधेयक में अपराधियों से जुर्माना वसूलने और
गुलामी के दौरान जिन पीड़ितों को उनकी मजदूरी नहीं दी जा रही थी उसकी भरपाई करने
का भी प्रावधान है, इसके साथ इसमें तस्करी के
लिए मादक पदार्थ खिलाना या शराब पिलाना और शोषण के
लिये रासायनिक पदार्थों या हार्मोन का इस्तेलमाल करना अपराध माना गया है। विधेयक
तस्करी के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिये विशेष अदालतों और पीड़ितों को
दोबारा सामान्य जीवन शुरू करने में मदद के लिये अधिक आश्रय स्थेलों तथा पुनर्वास
कोष का भी प्रावधान करता है।
वस्तुत: इन सभी उपायों से ही मानव तस्करी से
जुड़े अपराधों को भारत में रोक पाना संभव होगा। केंद्र की मोदी सरकार से देश
मानवता के हित में ऐसे ही सख्त कानूनों के लागू करने की उम्मीद करता रहा है।
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