आपके हित में आपका मरना बहुत जरूरी है - स्वदेश के स्वर्णजयन्ती कार्यक्रम में पत्रकार श्री प्रभु जोशी


कल दिनांक 6 नवम्बर को भोपाल के रवीन्द्र भवन में दैनिक स्वदेश के स्वर्ण जयन्ती समारोह के अवसर पर “देश के हिन्दी समाचार माध्यमों के सामने भाषा की चुनौती” विषय पर राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन हुआ ! मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर कार्यक्रम में सहभागी हुए तथा अनेक प्रबुद्ध वक्ताओं के सारगर्भित उद्बोधन हुए !

दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना के उपरांत स्वदेश के प्रधान सम्पादक श्री राजेन्द्र शर्मा ने अपने प्रस्ताविक भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक स्व. सुदर्शन जी का स्मरण करते हुए कहा कि शुद्ध हिन्दी का आग्रह करने के लिए सुदर्शन जी स्वयं समाचार पत्रों के कार्यालयों में जाकर संपादकों से मिलते थे तथा उनके समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों की भाषाई अशुद्धियों पर ध्यान दिलाते थे ! आज उन्हीं की प्रेरणा से प्रारंभ हुए स्वदेश ने समाचार माध्यमों में राष्ट्रभाषा के स्वरुप को सुधारने का संकल्प लिया है ! हरिभूमि, नई दुनिया, राष्ट्रीय हिन्दी मेल, पीपुल्स समाचार, राज एक्सप्रेस, समय जगत सहित अनेक समाचार पत्रों ने स्वदेश के इस अभियान को अपना पूर्ण समर्थन दिया है !

कार्यक्रम में प्रारम्भिक वक्ता के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार तथा राष्ट्रीय एकता परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि जिन दिनों दुनिया में मार्क्स का बोलबाला था, तब भी स्वयं मार्क्स का मानना था कि भारत की समाज रचना ऐसी है कि यहाँ वर्ग संघर्ष की गुन्जाईस नहीं है, यहाँ अगर कभी संघर्ष होंगे तो जाति और भाषाई आधार पर ! मार्क्सवादियों ने 42 में अंग्रेजों का साथ दिया, और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद योजनापूर्वक समाचारपत्रों में आ गए ! वे जानते हैं कि समाचारपत्र केवल संवाद प्रक्षेपण का ही साधन नहीं है, बल्कि जनमत भी बनाते हैं ! अब भारत में भारत पर ही हमला सबसे ज्यादा हो रहा है, उसके मूल में ये ही लोग हैं ! ये लोग राष्ट्रीय मुद्दों पर होने वाली बहस को तमाशा बनाए दे रहे हैं !
ध्यान देने योग्य बात है कि आजादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान जिन तत्कालीन समाचार पत्रों का रहा था, आज वे सब बंद हो चुके हैं ! बलिदान, केसरी, कर्मवीर, यहाँ तक कि महात्मा गांधी का हरिजन और रंगरसिया तथा नेहरू जी के नव जीवन और नॅशनल हेरोल्ड भी बंद हो गए ! लेकिन आजादी के पूर्व जितने भी अंग्रेजों के समर्थक समाचार पत्र थे वे आज भी चल रहे हैं तथा स्वतंत्र भारत में अंग्रेजियत लाने की मुहिम जारी रखे हुए हैं !
योजनाबद्ध रूप से भारतीय भाषाओं पर हमला भी ये जानबूझकर कर रहे हैं ! इनका मूल मकसद भारतीय संस्कृति पर हमला करना है ! यह बात छुपाई जा रही है कि भारत से ही बेबिलोनिया और ईरान होकर संस्कृति व ज्ञान की ज्योति पश्चिमी देशों में गई !

इंदिरागांधी कलाकेन्द्र दिल्ली के कुलसचिव श्री सच्चिदानंद जोशी ने अपने वक्तव्य में हिन्दी के अनन्य सेवक स्व. माधवराव सप्रे द्वारा 1906 से 1908 के बीच लिखे गए लेखों को पढ़ने की सलाह श्रोताओं को दी ! उन्होंने कहा कि उस समय भाषा को लेकर सप्रे जी की चिंता भी बैसी ही थी, जैसी आज हम सब की है !
उन्होंने कहा कि संचार माध्यमों से हमारी अपेक्षा तो ठीक है, किन्तु समाज में भी अच्छी भाषा का वातावरण बनाना चाहिए ! समाज ही परिवर्तन ला सकता है ! आज मोवाइल इंटरनेट के माध्यम से स्लेग लेंग्वेज और शोर्ट कट भाषा का प्रयोग बढ़ रहा है ! यह समाज की भाषा बन गई, फिर क्या होगा ? समाज की भाषा में सुधार लाये बिना मीडिया की भाषा में सुधार संभव नहीं है ! पिछले वर्ष भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ था, लेकिन उसका परिणाम क्या निकला ? भोपाल के ही प्रवेश द्वार पर आज भी लिखा हुआ है – Welcome in the city of lake ! इसे हम “झीलों की नगरी में आपका स्वागत” तक में नहीं बदल पाए ! हमें आत्मलोचन करना होगा !
भाषा से भी अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि आज मीडिया राष्ट्र हितैषी और राष्ट्र विरोधी समूहों में बंटा दिखाई दे रहा है ! अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर राष्ट्रद्रोही बातें भी जायज ठहराई जा रही हैं ! विद्वत समाज का दायित्व है कि वह समाज को तैयार करे, मैकाले के भूत से पीछा छुडाये ! इस मुद्दे पर सोचने की जरूरत है !

मध्यप्रदेश सरकार में संस्कृति सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि क्रोस के अनुसार केवल भाषा की ताकत से ही मीडिया वास्तविक शासक बना हुआ है ! उन्होंने कहा कि आज हिन्दी में अंग्रेजी का बढ़ता प्रचलन गुलामी के कारण नहीं, बल्कि अमरीकी प्रभाव के कारण है ! आर्थिक पूंजीवाद ने भाषाई परिवर्तन किये हैं ! अब खिचडी भाषा भी नहीं बल्कि चटनी भाषा बन रही है !

अटल बिहारी वाजपेई हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री मोहनलाल छीपा ने स्वदेश की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह समाचार पत्र अन्य समाचार पत्रों से अलग है, इसने धारा के विपरीत कार्य किया है, चुनौतियां झेली हैं ! वैश्वीकरण के आज के जमाने में यह राष्ट्रीयता, नैतिक मूल्यों, सामाजिक सरोकारों की बात करता है !
उन्होंने प्रश्न उठाया कि प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया किसके प्रति उत्तरदाई है, हमें जागरुक राष्ट्रभक्त समाज के रूप में पांचवे स्तम्भ की बात करनी होगी ! पेड न्यूज़, पक्षपातपूर्ण न्यूज़, गलत तथ्य की रिपोर्टिंग, भाषाई गड़बड़ करने वाले अखबारों का समाज आसानी से बहिष्कार कर सकता है ! कल तक संस्कृति का विरोध करने वाले प्रगतिशील कहे जाते थे, किन्तु अब भारत केन्द्रित सोच के साथ जनता का जुड़ाव होने लगा है !

कार्यक्रम में सर्वाधिक प्रभावशाली वक्तव्य रहा ख्यातनाम पत्रकार श्री प्रभु जोशी का ! उन्होंने दो टूक लहजे में सीधे मंचासीन केन्द्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर को लक्ष्य कर अपना अभिमत रखा ! उन्होंने कहा कि परिवर्तन सत्ता केन्द्रित होते हैं ! कैसी विचित्र स्थिति है कि ज्ञान आयोग के चेयरमेन सेम पित्रोदा ने सरकार को पत्र लिखा – हम 65 साल में केवल एक प्रतिशत लोगों को ही अंग्रेजी सिखा पाए ! किसी ने उन ज्ञानपति से नहीं पूछा, उनकी सोच पर सवाल नहीं उठाये ! सचाई यह है कि हम हिन्दी बोलने वालों ने ही हिन्दी की ह्त्या की सुपारी ली हुई है ! अंग्रेजी का व्यवसाय अब इंग्लेंड नहीं अमेरिका और डब्लूटीओ कर रहा है ! जब कोई गुलाम बनने को आतुर हो, तो फिर युद्ध पोतों की क्या आवश्यकता ?
कांग्रेस शासन का सर्कुलर है कि हिन्दी को सरल बनाने के लिए उसमें अंग्रेजी शब्द डालो ! उस सर्कुलर के कारण हिंगलिश का प्रचलन बढ़ा ! विज्ञापनों में हिंगलिश – दिल मांगे मोर ! बर्नार्ड शॉ का मशहूर कथन है – आपके हित में आपका मरना बहुत जरूरी है ! अब भाषा की शुद्धता की नहीं, भाषा को बचाने की बात है ! अतः सत्ता को ही आगे बढ़ना होगा !
शहाबुद्दीन ने अखबार निकाला “मुस्लिम इण्डिया” ! क्यों भाई “इन्डियन मुस्लिम” क्यों नहीं ? क्योंकि मुस्लिम इण्डिया में अलगाव है, इण्डिया से अलगाव ! इसी प्रकार आज यंग इंडिया, यूथ इंडिया, ये बांटने वाले संबोधन हैं !
इतिहास बोध नहीं अब इतिहास बोझ है ! सांस्कृतिक उद्योग के जरिये गुलाम बनाने की साजिश ! क्या आप जानते हैं कि बीसवीं सदी में सारी अफ्रीकी भाषाएँ नष्ट कर दी गईं ! हमारे यहाँ भी भाषा का व्याकरण ख़तम कर उसे लूली लंगडी बनाने का षडयंत्र चल रहा है ! भाषा पर अंतिम हमला एफडीआई ने किया है, उसकी शर्त है, हिन्दी को रोमन बनाना ! इसलिए जिन अखबारों ने एफडीआई लिया है, वे हिन्दी की बात सुनेंगे ही नहीं ! यह सांस्कृतिक आदान प्रदान का नहीं सांस्कृतिक अपहरण का युग है !
हमारे बच्चों का दिमाग लिया जा रहा है, हमें कोई चिंता नहीं, कोई दुःख नहीं ! दो वर्ष पूर्व जापान में जिसको नोबल पुरष्कार मिला, उसे अंग्रेजी नहीं आती ! वह हमारे बस्तर से भी छोटा राष्ट्र है ! उसने सारा ज्ञान विज्ञान अपनी चित्रात्मक लिपि में तैयार किया है !

हिन्दी भवन भोपाल के सचिव संचालक श्री कैलाश पंत ने कहा कि इस समय स्पष्टतः दो धाराएँ चल रही हैं, एक है जिसे राष्ट्रवादी कहा जाता है, किन्तु मैं उसे सांस्कृतिक धारा कहता हूँ, और दूसरी है आयातित गौरांग महाप्रभु धारा, जो गोरी चमड़ी के प्रति आसक्त होती है ! आजादी के पूर्व इस धारा के प्रतिनिधि राजा राममोहन राय ने तो एक बार कहा भी था कि अंग्रेजों का आना भारत के हित में है ! किन्तु इसके विपरीत उस समय सांस्कृतिक पहचान की दूसरी धारा भी प्रवाहित होती रही ! बंगाल के केशव चन्द्र सेन ने गुजरात के स्वामी दयानंद सरस्वती से आग्रह किया कि वे अपने प्रवचन संस्कृत के स्थान पर हिन्दी में दें ! लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र के बुद्धिजीवियों की एक बैठक बुलाई और प्रश्न किया – कोई राष्ट्रभाषा होना चाहिए, अथवा नहीं ! और हो तो कौनसी हो ! सर्वसम्मत स्वर आया कि राष्ट्रभाषा अनिवार्य और वह केवल हिन्दी ही हो सकती है !
राष्ट्र के चिंतन में भाषा अनिवार्य तत्व है ! स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगड़ी खोला और उसमें हिन्दी में विज्ञान पढाया ! महावीर प्रसाद द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, गणेश शंकर विद्यार्थी इन सबके सामने राष्ट्र की सही तस्वीर थी !
आज कुछ समाचार पत्रों द्वारा तो हिन्दी से बलात्कार किया जा रहा है ! सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का प्रयत्न होता रहा तो भारत नातो आर्थिक रूप से और ना ही ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से महान बन सकेगा ! उसकी पहचान है वेद, उपनिषद्, गीता, रामायण, महाभारत, आध्यात्म ! अटल जी की कविता ध्यान देने योग्य है –
शतशत आघातों को सहकर भी जीवित हिन्दुस्थान हमारा !
जग के माथे पर रोली सा, शोभित हिन्दुस्थान हमारा !!

अंत में मुख्य अतिथि केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री नरेन्द्रसिंह तोमर ने स्वदेश के साथ अपने संबंधों को स्मरण करते हुए कहा कि स्वदेश की यात्रा बहुत ही प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रारम्भ हुई, कई बार तो अनुकूल परिस्थितियों में भी प्रतिकूलता से जूझा ! स्वदेश ने समाज व देश के प्रति अपने दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया है ! स्वदेश की एक और भी विशेषता है – भारतीय मानस से ओतप्रोत पत्रकारों का प्रशिक्षण ! आज देश भर के अखबारों में स्वदेश से निकले पत्रकार सफलता पूर्वक कार्य कर रहे हैं !
यूं तो अखबारों में हिंदी की स्थिति अनुभव होती रही, किन्तु आज के वक्ताओं को सुनकर स्थिति की गंभीरता समझने का अवसर मिला ! हरिशकर परसाई का एक व्यंग लेख है – पगडंडियों का रास्ता, सरल मार्ग ढूँढना व्यक्ति का स्वभाव है ! हमारी कमजोरी, बाहरी शक्तियों का षडयंत्र, भाषा के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों आदि का सामना व निराकरण करते हुए हम सब मिलकर उन्हें पराजित करेंगे !

अंत में आभार प्रदर्शन स्वदेश के कार्यकारी सम्पादक श्री अक्षत शर्मा ने किया !
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