राजनेता या महानायक ?



हमारे तत्व चिंतन में चार चीजें मुख्य हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ! हमारा धर्म शास्त्र बताते हैंकि हरेक का धर्म अलग है-भाई का अलग, बहिन का अलग, नारी का अलग, पुरुष का अलग, राजा का अलग, प्रजा का अलग ! वह कृत्य आधारित है ! यह आदमी का आंतरिक विषय है !

जब हम अन्दर से बाहर निकले हैं तब संसार से जुड़ते हैं, जहाँ का मुख्य तत्व है अर्थ ! हमारे देश में अर्थ नीति तो बहुत बनीं, किन्तु अर्थ रीति की चिंता नहीं हुई ! आईये कुछ इसके बारे में विचार करें ! पैसा विनिमय का माध्यम है ! यह विनिमय की बस्तु नहीं है ! कागज के टुकडे पर लिखा है कि मैं धारक को इतने रुपये देने का वचन देता हूँ ! कीमत कागज़ की नहीं, उस पर लिखे वचन की है ! हमारे देश की मुख्य समस्या है कि हमने मीडियम अर्थात माध्यम को प्रवाह के स्थान पर पजेशन में रखने की आदत बना ली ! यह नदी की धार को रोकने जैसा कार्य है ! 

जैसे हम हिन्दी बोलते हैं, यह हमारा भाव सम्प्रेषण का माध्यम है, हम इस पर अधिकार नहीं जता सकते ! यह नहीं कह सकते कि यह मेरी भाषा है, मैं किसी अन्य को इसका उपयोग नहीं करने दूंगा ! इसके विपरीत वस्तु / कमोडिटी ऐसी होती है, जिसे हम स्वामित्व में रख सकते हैं, कब्जे में रख सकते हैं ! जैसे मेरा मोवाईल अथवा मेरा शर्ट ! दुनिया भर में रुपये को या करेंसी को मीडियम / माध्यम माना जाता है, कमोडिटी/वस्तु नहीं ! लेकिन हमारे देश में इसे वस्तु मानने की वृत्ति बन गई ! जब तक पैसा मेरी जेब में या तिजोरी में है, तब तक वह वस्तु है ! किन्तु अगर वह बैंक में है तो माध्यम बन जाता है ! उसका उपयोग दूसरे जरूरतमंद लोग भी कर सकते हैं !

दुनिया की बड़ी बड़ी पांच सात अर्थ व्यवस्थाओं में और हममें यही फर्क है ! हमारे देश में करेंसी मनी बैंक मनी से ज्यादा है ! लोग सांप की तरह कुण्डली मारकर करेंसी पर बैठ जाते हैं, उसे गद्दों में भरकर उस पर सोते हैं, या फिर घर की सीलिंग में छुपा कर रखते हैं ! जबकि विकसित देशों में बैंक मनी, करेंसी मनी से पांच छः गुना अधिक होती है ! बहां माध्यम का उपयोग होता है, उस पर अधिकार नहीं जमाया जाता ! 

सरकार द्वारा छापी गई करेंसी और हमारे द्वारा हस्ताक्षरित चेक में कोई अंतर नहीं होता ! एक में रिजर्व बैंक की गारंटी होती है, तो दूसरे में हमारी ! अंतर है तो केवल एक - बैंक मनी ट्रेसेबल होती है -किससे आया, किसके पास गया, इसका पूरा लेखा जोखा होता है ! जबकि घरों में रखी करेंसी या नोट का कुछ अतापता नहीं होता, हिसाब किताब नहीं होता ! यही भ्रष्टाचार की जड़ है ! आतंकवाद की भी !

अमरीका में ट्विन टावर हमले के बाद आतंकी संगठनों या संदिग्ध लोगों के बैंक एकाउंट सीज कर दिए गए ! चूंकि वहां का 95 प्रतिशत ट्रांजेक्शन बैंक के माध्यम से ही होता है, अतः पैसे के अभाव में आतंकियों की कमर ही टूट गई ! जबकि हमारे यहाँ तो खुली छूट है – सेना पर बच्चों से पत्थर फिंकवाना है अथवा मानव बम बनाना है, सबके लिए पैसा दो और खुलकर आतंक का तांडव करो ! सरकारी करेंसी की भी जरूरत नहीं है, पडौसी देश चाहे जितना छाप कर भेज देगा ! वे सब कुछ खरीद सकते हैं – हमारी पुलिस व्यवस्था को, न्याय व्यवस्था को, राजनीति को – सब को ! न उसे ट्रेस कर सकते हैं, ना चुनौती दे सकते हैं !

आज इंग्लेंड केसलेस व्यवस्था की दिशा में सोच रहा है, ताकि आतंकियों को विटामिन एम (मनी) नहीं मिले, तो मोदी जी ने विचारकर उसी दिशा में कदम बढ़ाया – उसका स्वागत होना चाहिए या विरोध ? सुविचारित ढंग से योजना पूर्वक पहले जनधन योजना के तहत आम आदमी के खाते खुलवाये और अब करेंसी बदलकर उन खातों में पैसे जमा करने की आदत डलवाई ! इतनी विचारपूर्ण कार्य योजना कोई राजनेता बनाएगा या कोई महानायक ?

साभार आधार - ArthaKranti proposal -It will Fully Change India


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