वैदिक संस्थान पर मनाया गया ऋषि दयानंद जी का बोधोत्सव दिवस !

शिवपुरी में वैदिक संस्थान पर ऋषि दयानंद सरस्वती जी का बोधोत्सव मनाया गया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में सहगान के रूप में ऋषि गाथा का गायन किया गया, जिसके पश्चात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला व्यवस्था प्रमुख श्री राजेश गोयल जी ने स्वामी दयानंद के जीवन वृत पर अपने विचार व्यक्त किये तत्पश्चात आर्य समाज शिवपुरी के वरिष्ठ सम्माननीय श्री लखवीर सिंह राणा जी ने स्वामी जी के आध्यात्मिक कार्यों तथा देश की आजादी के लिए किये गए क्रांतिकारी कार्यों के विषय मे विस्तृत वर्णन किया। जिसके अंतर्गत श्री राणा जी ने बताया की स्वामी जी अपनी योग और सिद्धियो को सर्व साधारण के समक्ष उजागर न करते हुए उस दैवीय शक्ति का प्रयोग उन्होंने स्वतंत्रता की अलख जगाने अन्धविश्वास तथा पाखण्ड को मिटाने तथा सनातन वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करने में लगाया, जिसके परिणाम स्वरूप हमे स्वराज्य प्राप्त हुआ ! हिन्दू आर्य धर्म से सतीप्रथा, जाति प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह, स्त्री शिक्षा सबको वेद पड़ने का अधिकार समाज में प्राप्त हुआ।

इनके उद्बोधन के पश्चात वैदिक संस्थान के धर्माचार्य श्री योगेश जी ने इस अवसर पर स्वामी दयानन्द जी और आर्य समाज से सम्बंधित प्रचलित भ्रांतियों का खण्डन करते हुए कहा कि स्वामी जी ने मूर्ति पूजा का विरोध नहीं किया, इसको स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि गुरु दो प्रकार के होते हैं। एक वो जो शिष्यों से स्वयम की पूजा कराकर जगत कर्ता धर्ता ईश्वर को पीछे रख उसके नाम से मठ मंदिर बनाते और स्वयम की चरण पादुकाओं को पुजवाना ही मुक्ति का मार्ग बताते हैं, और दूसरे गुरु वो होते हैं जिन्होंने आत्मतत्व को जान लिया जगत की परमसत्ता को जान लिया है, वह उसी सचिदानंद सर्वव्यापक सर्वान्तर्यमी अजन्मा अनंत महान ईश्वर की उपासना का सन्देश देते।

स्वामी दयानद जी ने ईश्वर को जाना माना हुआ था इसलिए उन्होंने कहा था कि बाहर के मंदिरों में नहीं अंदर के मंदिर में ईश्वर मिलेगा। स्वामी जी अपना जीवन काल मंदिरों में ही शयन प्रवचन भोजन आदि के माध्यम से किया, स्वामी जी तो कण कण में ईश्वर को देखने वाले थे, इसलिए उन्होंने कहा की संसार के रचयिता को चार दीवार के भीतर ही मानना उस महान ईश्वर का उपमान और हिन्दू समाज की मूर्खता ही है। एक और प्रमुख भ्रान्ति कि आर्य समाज किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष का समुदाय का नाम है। उसको स्पष्ट करते हुए पंडित जी ने कहा की आर्य समाज किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष का समुदाय का नाम नहीं है ! महर्षि दयानन्द ने आर्य समाज की स्थापना सर्व धर्म और सर्व जातियों के लोगों विशेष का अछूत उद्धार हेतु की। उस काल मे ऊँच नीच जाती पाति का बोलबाला अधिक था लोग मंदिरों के अंदर नहीं जा पाते थे, इसलिए उन्होंने इस आर्य समाज रूपी मंदिर का निर्माण कराया की जहाँ बिना किसी भेद भाव के आप ईश्वर की आराधना का मूलमंत्र जान सकें, आर्य समाज तो गुरुकुल है विद्यालय है, एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण की प्रयोग शाला कार्य शाला का नाम है जहाँ जाकर व्यक्ति सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार राष्ट्र भक्त पितृ भक्त ईश्वर भक्त एक आदर्श पुत्र पिता भाई आदि के गुणों को सीखता जानता है।

इसके पश्चात श्री अशोक गुप्ता जी ने ऋषि दयानंद जी का यशोगान गाया, कार्यक्रम के अंत में श्री महेंद्र रावत जी ने स्वामी दयानंद जी से प्रेरणा लेने की बात कही उन्होंने कहा की स्वामी जी योगी पुरुष महान क्रांति कारी तथा समाज सुधारक थे। कार्यक्रम में उपस्थित आर्यसमाज के उज्ज्वलल रत्न श्री ब्रह्मदत्त जी तिवारी का परिचय कराया गया, समापन श्री उमेश जी के द्वारा हुआ

इस कार्यक्रम में प्रमोद मिश्रा, गजेंद्र शिवहरे,दिवाकर शर्मा, रंजीता देशपांडे, कृष्णकांत,शिवा पाराशर, दीपक गर्ग, कुलदीप दंडोतिया ,जितेन्द्र समाधिया, राजेश शर्मा, हरी मिश्रा, देवेन्द्र कुशवाह एवं वैदिक संस्थान के प्रधान बृजेश अग्निहोत्री जी, पब्लिक पार्लियामेंट वैदिक संस्थान के कई सदस्य उपस्थित रहे ।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें