उत्तर प्रदेश की भाजपा विजय और मध्यप्रदेश में अगले वर्ष का भावी समर - हरिहर शर्मा



उत्तरप्रदेश चुनाव में भीषण पराजय के बाद कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस की भावी रणनीति की घोषणा की | उन्होंने स्वीकार किया कि अकेले कांग्रेस नरेंद्र मोदी के चमत्कारी नेतृत्व वाली भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती, किन्तु साथ ही उन्होंने वही कहा जो कांग्रेस की भारी विजय होने पर पूर्व में विरोधी नेता कहा करते थे | श्री अय्यर ने कहा कि भाजपा की उत्तर प्रदेश में जीत तो हुई है, किन्तु उसे प्राप्त मतों की संख्या कुल मतदान की महज 44 प्रतिशत है, अर्थात 56 प्रतिशत मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में मत दिया है | भाजपा इसलिए जीती है, क्योंकि उसके विरोधी वोट समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन तथा बहुजन समाज पार्टी के बीच बंटे हैं | उन्होंने भाजपा का मुकाबला करने के लिए बिहार में बने महागठबंधन की तर्ज पर भविष्य में भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता के लिए कार्य करने की अपनी भावी रणनीति को स्पष्ट किया |

इस आधार पर अगर 2018 में होने वाले मध्यप्रदेश के चुनावों पर एक बिहंगम द्रष्टि डाली जाए तो परिद्रश्य कुछ विचित्र हो जाता है | 2013 के चुनाव में मध्यप्रदेश में भाजपा के कुल 165 प्रत्यासी विजई हुए थे, जबकि कांग्रेस के महज 58 प्रत्यासी जीते थे | 4 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी तथा 3 पर निर्दलीय उम्मीदवार सफल हुए थे | प्रथम द्रष्टि में ये आंकड़े भाजपा की भारी सफलता को प्रदर्शित करते हैं, किन्तु मणिशंकर जी की भावी रणनीति को यदि 2013 में संपन्न हुआ मान लिया जाए तो नजारा एकदम बदल जाता है |

2013 में भाजपा ने सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़कर 45.9 प्रतिशत वोट प्राप्त किये | कांग्रेस 229 सीटों पर लड़ी और उसे महज 36.38 प्रतिशत वोट मिले | इसी प्रकार बहुजन समाज पार्टी ने 227 सीटों पर लड़कर 6.29 प्रतिशत वोट प्राप्त किये | अन्य कई छोटे मोटे दल भी चुनाव लडे, मसलन मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी ने 8 सीटों पर लड़कर 0.07 प्रतिशत, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 72 सीटों पर लड़कर 0.29, सीपीआई ने 23 सीटों पर लड़कर 0.15 प्रतिशत मत प्राप्त किये | इनके अतिरिक्त अन्य 9 क्षेत्रीय दलों ने भी 1.70 प्रतिशत वोटों में सेंध लगाई |

पंजाब में दो बार जीती हुई अकाली भाजपा सरकार की आज जो दुर्गति देखने में आई है, उसके बाद भाजपा को सतर्क हो जाना चाहिए | पंजाब में तो त्रिकोणीय मुकाबला था, जिसमें सत्तारूढ़ दल को भारी एंटी इनकम्बेंसी के चलते अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा | मध्यप्रदेश में तो लगातार तीन बार भाजपा सरकार रही है | हो सकता है यहाँ भारी एंटी इनकम्बेंसी न हो, किन्तु अगर मात्र दो प्रतिशत वोट भी कम हो गए तथा बाक़ी पार्टियों की बात जाने दें, केवल कांग्रेस और बसपा में तालमेल हो जाए तो चुनाव परिणाम का नक्शा ही बदल जाएगा | 

2013 में कांग्रेस और बसपा के संयुक्त वोट 42.67 प्रतिशत हो जाता है, जो कि भाजपा के 45.9 के आसपास है | अर्थात कांटे की टक्कर | यह तो तबकी स्थिति है, जब कांग्रेस के अन्दर जूतों में दाल बंट रही थी | आज जबकि लगातार पिट पिट कर कांग्रेस एकजुट होने को विवश है, अगर गठबंधन के साथ चुनाव हुआ तो क्या होगा ? भाजपा को सतर्क हो जाना चाहिए | आज जो “अँधा बांटे रेबडी चीन्ह चीन्ह कर देय” वाली स्थिति है, अपने नजदीकी लोगों को प्रतिष्ठित कर सत्ता का केन्द्रीकरण किया गया है, जल्द से जल्द उस नजरिये को बदलना चाहिए | प्रदेश नेतृत्व को समझना होगा भोंथरे हथियारों से युद्ध नहीं जीते जाते | 

इस आलेख में जो लिखा गया है, उसे कुंठा समझने की भूल ना करें | इस प्रकार की दो टूक बात केवल वही कर सकता है, जिसकी खुद कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा न हो ! यह निंदा नहीं है, एक शुभचिंतक की महज सद्भावना पूर्ण सलाह है |

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