क्या संस्कृत कठिन भाषा है ?

संस्कृत के विषय में कुछ लोगों के मन में “संस्कृत कठिन है”, “निर्जीव भाषा है”, “एक जाति की भाषा है”, “कभी बोलचाल की भाषा नहीं थी” –इस प्रकार की कई गलत धारणाएं है, वर्षों से संस्कृत में बातचीत करने की परंपरा लुप्त होने के कारण ये भ्रांतियां फैलीं है !

कोई भी भाषा सरल या कठिन नहीं होती ! भाषा के दो पहलू है – (1.) बोलचाल की भाषा सरल होती है (2.) साहित्य में प्रयुक्त होने वाली भाषा प्रोढ़ होती है ! तब संस्कृत भाषा कठिन है – यह धारणा लोगों के मन में कैसे घर कर गयी ? इसके बहुत से कारण है जिनमे से एक कारण है – इसके सिखाने की पद्धति ! अंग्रेजों के भारत में आने से पहले शिक्षा संसथान के रूप में केवल संस्कृत पाठशालाएं थी ! वहां सारी पढाई संस्कृत माध्यम से ही होती थी ! आचार्य ओर शिष्य आपस में संस्कृत में ही बात किया करते थे, इस कारण सहजता से भाषा सीखी जाती थी ! लेकिन अंग्रेज यहाँ अपना शासन करने के लिए ओर हमें दुर्बल बनाने के लिए भारत की आत्मा ओर श्रद्धा का नाश करना चाहते थे ! इस उद्धेश्य की पूर्ति हेतु उन्होंने भारत की अस्मिता के मूल स्त्रोत संस्कृत भाषा को नष्ट करने की चाल चली ! इसलिए उन्होंने दो कदम उठाये – संस्कृत पाठशालाओं को बंद करना और मेकाले द्वारा चलाई गयी नयी अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था शुरू करना ! इसके लिए उन्होंने “संस्कृत मृत भाषा है” ऐसा प्रचार किया ! अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में जो संस्कृत-शिक्षण जोड़ा गया उसमे भी संस्कृत सिखाने के लिए अंग्रेजी पद्धति अर्थात व्याकरण-अनुवाद-पद्धति लागू की गयी ! संस्कृत शिक्षा में आज भी वही पद्धति प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में चल रही है ! हमें इस विष-वृक्ष की परिधि से बाहर निकलना है !

उसी व्याकरण-अनुवाद-पद्धति पर आधारित और सरलता की ओर ध्यान दिए बिना रची गयी पाठ्यपुस्तकों के कारण ही संस्कृत सीखना कठिन हो गया ! संस्कृत भाषा व्यवहार में न होने के कारण पंडितों ने संस्कृत का व्यवहार करते समय प्रोढ़ ग्रंथों की भाषा का ही प्रयोग किया ! शास्त्र चर्चा में भी वही प्रोढ़ भाषा व्यवहत हुई ! इसके कारण ही संस्कृत कठिन है – ऐसा अनुभव किया जाने लगा ! आज संस्कृत व्यवहार में न होने के कारण भाषानियमों को याद करना पड़ता है और शब्दरूप व धातुरूप रटने पड़ते है ! यदि आप संस्कृत भाषा का व्यवहार शुरू करेंगे तो धीरे-धीरे सारी परिस्थितियां बादल जायेंगी !

जैसा कि कुछ लोग बोल रहे है वैसा संस्कृत के सरलीकरण की आवश्यकता नहीं है ! सरलीकरण से अभिप्राय है – नियमों का परिवर्तन ! इसमें संस्कृत भाषा का जो वैशिष्ट्य है वही नष्ट हो जाएगा और हम अपने प्राचीन वाड्मय को समझ नहीं पायेंगे ! लेकिन संस्कृत में पाणिनि-नियमों की परिधि के अन्दर ही बहुत से सरल उपाय दिए गए है ! उन्ही का प्रयोग करने से पर्याप्त मात्रा में संस्कृत सरल हो जाती है ! इसके बारे में आप और भी जानेंगे !

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