लछिराम भट्ट : बस्ती के छन्द परम्परा के जनक - डा. राधे श्याम द्विवेदी ‘नवीन’ एडवोकेट

हिंदी में लछिराम नाम के सात कवियों का उल्लेख मिलता है जिनमें बहुज्ञात और प्रख्यात हैं 19 वीं शती के अमोढ़ा या अयोध्यावाले लछिराम। लछिराम का जन्म संवत् 1898 में पौष शुक्ल 10 को अमोढ़ा शेखपुरा (जि. बस्ती) में हुआ। पिता पलटन ब्रह्मभट्ट ब्राह्मण थे। राजा अमोढ़ा इनके पूर्वजों को अयोध्या से अमोढ़ा लाए थे। ये कुछ दिन अयोध्या नरेश महाराज मानसिंह (प्रसिद्ध कवि द्विजदेव) के यहाँ रहे। इस कुल में कवियों की परंपरा विद्यमान थी। सं. 1904 में लछिराम लामाचकनुनरा ग्रामवासी (जिला सुल्तानपुर) साहित्यशास्त्री कवि "ईश" के पास अध्ययनार्थ गए। 5 वर्ष वहाँ अध्ययन करने के बाद घर चले आए। फिर इनकी भेंट अयेध्याधिपति राजा मानसिंह "द्विजदेव" से हुई। उन्होंने इन्हें "कविराज" की उपाधि दी और अपना आश्रम भी प्रदान किया। "द्विजदेव" के माध्यम से लछिराम का संपर्क अनेक काव्यरसिक और गुणज्ञ राजाओं से हुआ जिनमें प्रत्येक के नाम पर एक एक रचना इन्होंने की। बस्ती के राजा शीतलाबख्श सिंह ने इन्हें 500 बीघे का "चरथी" गाँव दिया और निवासार्थ मकान भी बनवाया। आज भी इनके वंशज यहाँ रहते हैं। अपने आश्रयदाता राजाओं से कवि को अधिकाधिक द्रव्य, वस्त्राभूषण तथा हाथी, घोड़े आदि पुरस्कार में प्राप्त हुए। लछिराम ने अयोध्या में पाठशाला, राम जानकी का मंदिर और अपने निवासार्थ मकान बनवाया। भाद्रपद कृ. 11 सं. 1961 को अयोध्या के प्रमोदबन में इनका शरीरांत हुआ। 

रीतिबद्ध परंपरा के आचार्य:-

लछिराम रीतिबद्ध परंपरा के आचार्य कवि हैं। उनकी कृतियों में रस, अलंकार, शब्दशक्ति, गुण और वृत्ति आदि रीतितत्वों का लक्षण, उदाहण सहित, सांगोपांग निरूपण हुआ है। अपनी शास्त्रीय दृष्टि के लिए वह संस्कृत में "काव्यप्रकाश", भानुदत्त की "रसमंजरी", अप्पयदीक्षित के "कुवलयानंद" आदि और हिंदी में भिखारीदास तथा केशव आदि के ऋणी कहे जा सकते हैं। ढाँचा पुराना होने पर भी उनकी सहज काव्य प्रतिभा रमणीय भाव दृश्य चित्रण करती है। बस्ती के राजा शीतलाबख्श सिंह से, जो एक अच्छे कवि थे, बहुत सी भूमि पाई। दरभंगा, पुरनिया आदि अनेक राजधानियों में इनका सम्मान हुआ। प्रत्येक सम्मान करने वाले राजा के नाम पर इन्होंने कुछ न कुछ रचना की है, जैसे, मानसिंहाष्टक, प्रताप रत्नाकर, प्रेम रत्नाकर (राजा बस्ती के नाम पर), लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, (दरभंगा नरेश के नाम पर), रावणेश्वर कल्पतरु (गिध्दौर नरेश के नाम पर), कमलानंद कल्पतरु (पुरनिया के राजा के नाम पर जो हिन्दी के अच्छे कवि और लेखक थे) इत्यादि। इन्होंने अनेक रसों पर कविता की है। समस्यापूर्तियाँ बहुत जल्दी करते थे। वर्तमानकाल में ब्रजभाषा की पुरानी परिपाटी पर कविता करनेवालों में ये बहुत प्रसिद्ध हुए हैं। 

रचनाएँ :- 

लछिराम की प्रसादगुणयुक्त ब्रजभाषा में रचनाएँ है। कुछ के नाम ये हैं - मुनीश्वर कल्पतरु, महेंद्र प्रतापरस भूषण, रघुबीर विलास, लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, प्रतापरत्नाकर, रामचंद्रभूषण, हनुमंतशतक, सरयूलहरी, कमलानंद कल्पतरु, मानसिंह जंगाष्टक, , सियाराम चरण चंद्रिका, करुणाभरण नाटक, प्रेम रत्नाकर, राम रत्नाकर, लक्ष्मीश्वर रत्नाकर, रावणेश्वर कल्पतरु ,महेश्वर विलास ,नायिका भेद, देवकाली शतक, राम कल्पतरु, गंगा लहरी और नखशिख परम्परा आदि उनकी उत्कृष्ट रचनायें है। 

मूल्यांकन:- 

लछिराम एक प्रसिद्ध तथा व्यापक प्रचार प्रसार वाले राज कवि थे। उस समय भारत के प्रत्येक कोनो में इनको अच्छी ख्याति मिल चुकी थी। आचार्य कवि लछिराम भट्ट नामक विषय पर डा. राम फेर त्रिपाठी ने शोध प्रवन्ध प्रस्तुत किया है। इसको , अन्य तत्कालीन साहित्य तथा परिवारी जनों से व्यक्तिगत सम्पर्क कर डा. सरसजी ने भी इनका बहुत उच्चकोटि का मूल्यांकन बस्ती जनपद के छन्दकारों का साहित्यिक योगदान भाग एक के पृष्ठ 57 पर किया है-“आचार्य कवि लछिराम भट्ट बस्ती जनपद के छन्द परम्परा के विकास के वर्चस्वी छन्दकार थे। पीताम्बर से लेकर लछिराम तक जो छन्द परम्परा का विकास बस्ती जनपद के काव्य भूमि पर सतत रुप से हुआ उसमें छन्द परम्परा के आदि चरण के स्थाई स्तम्भ के रुप में लछिरामजी ने परवर्ती छन्दकारों को मानक छन्द विधान प्रस्तुत किया और भविष्य के लिए एक एसी छन्द परम्परा का मार्ग दर्शन दिया है, जिसमें छन्दों के आचार्य रंगपाल जी, बलराम मिश्र द्विजेश, जनार्दन नाथ त्रिपाठी गोपाल, राम चरित पाण्डेय पावन आदि के मध्य चरण को सुविकसित और पल्लवित किया है। संक्षिप्त में जनपदीय छन्द परम्परा को विकसित, पुष्पित और पल्लवित करने में लछिरामजी का योगदान गौरवशाली और स्तुत्य रहा है।”

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