क्या कोई तूफ़ान आने वाला है ?



आम तौर पर जब कोई तूफ़ान आता है, तब अप्रत्यासित शांति छा जाती है | आजकल ऐसा बिलकुल नहीं है | इसके विपरीत घटनाओं और बयानबाजी में तेजी आई दिख रही है | आडवाणी जी, जोशी जी, उमाजी सहित 14 लोगों पर बाबरी विध्वंश की साजिश का मुक़दमा चलाने और प्रतिदिन सुनवाई कर दो वर्ष में निर्णय देने का जो आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया, यह तो शायद सामान्य बात है, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने तल्ख़ टिप्पणी भी की – बाबरी विध्वंश भारत के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को छिन्न भिन्न करने का प्रयास था |

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व सुब्रमण्यम स्वामी ने रामजन्मभूमि स्वामित्व विवाद का निबटारा प्रतिदिन सुनवाई कर शीघ्र करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया था, जिसे न्यायालय ने ठुकरा दिया था | साफ़ सन्देश है कि सर्वोच्च न्यायालय का द्रष्टिकोण विवादित स्थल को लेकर एक पक्षीय है | वे उसे मस्जिद मान रहे हैं, न कि मंदिर | जबकि उच्च न्यायालय ने माना है कि वहां पूर्व में मंदिर था, जिसे तोडकर बाबर के सेनापति मीर बाक़ी ने मस्जिद बनाई | अतः उस स्थान का दो तिहाई भाग हिन्दुओं को तथा एक तिहाई मुसलमानों को सोंपा जाए | दोनों ही पक्ष उच्च न्यायालय के इस निर्णय से असंतुष्ट थे | हिन्दुओं का मानना था कि जब यह मान लिया गया कि वहां पूर्व में मंदिर था, तो एक तिहाई भाग भी मुसलमानों को क्यों ? जबकि मुसलमान तो पूरा अधिकार चाहते ही हैं | तो कुल मिलाकर विवादित भूमि पर स्वामित्व किसका, यह निर्णय यथाशीघ्र हो, यह सुब्रमण्यम स्वामी ने याचिका लगाई, जो अस्वीकार कर दी गई |

जब स्वामित्व ही प्रमाणित नहीं तो फिर उसे मस्जिद विध्वंश मानकर टिप्पणी करना, यह असामान्य है, जो मुझे समझ नहीं आ रहां | इसके साथ ही सीबीआई की अतिरिक्त सक्रियता भी हैरत में डालने वाली है | 

उसके बाद आज की बड़ी घटना –

कश्मीर मुद्दे पर सुब्रमण्यम स्वामी ने एक प्रकार से भाजपा के साथ साथ संघ पर भी हमला,बोल दिया | उन्होंने कहा कि कश्मीर के वर्तमान हालात की ज़िम्मेदारी कौन लेगा ? राम माधव या अजित डोभाल ?? अजीत डोभाल तो ठीक है, किन्तु राम माधव का नाम इतनी तल्खी भरे अंदाज में स्वामी द्वारा लेना दर्शाता है कि पर्दे के पीछे कुछ बेढव पक रहा है | सब जानते हैं कि पीडीपी और भाजपा की संयुक्त सरकार बनवाने में राम माधव जी की बड़ी भूमिका रही थी | तमाम आलोचनाओं और आशंकाओं को दरकिनार कर उस समय यह स्टेंड लिया गया था | किन्तु अमरनाथ यात्रा के बाद से कश्मीर के जो हालात बने है,उसमे खुद राम माधव जी का भी मानना है कि सरकार फेल हो गयी है | उसके बाद स्वामी का यह बज्र प्रहार??

दो जमा दो चार जैसा स्पष्ट संकेत है कि सत्ता के गलियारों में सब कुछ सहज सामान्य नहीं चल रहा | कुछ अघटित घटने वाला है | देखने में तो यह लगता है कि भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ है और मोदी जी की विजय दुन्दुभी चारों ओर दिग्दिगंत में गूँज भी रही है | आरएसएस सरसंघचालक जी भी लगातार संघ का समर्थन बार बार घोषित करते रहे हैं | किन्तु, किन्तु परन्तु भी कम नहीं हैं | उसके दो ही कारण हो सकते हैं | पहला तो एकछत्र राज्य की कामना, जिसमें न केवल घोषित विरोधी, अपितु संभावित विरोधियों को भी ठिकाने लगा दिया जाए, और दूसरा सहज ईर्ष्या | जो कल तक हमारे समकक्ष था, आज वह इतना आगे कैसे निकल गया | हो सकता है कि इनमें से कोई एक कारण हो, अथवा हो सकता है कमोवेश दोनों कारण हों | जो भी है आने वाले दिनों में संदेह का कुहासा बढेगा या छटेगा, यह देखना दिलचस्प होगा | राम मंदिर, कश्मीर, राष्ट्रपति चुनाव के भंवर कोई चक्रवाती तूफ़ान उठाएंगे या भारत शांति के साथ विकास पथ पर अग्रसर होगा, इसका जबाब आने वाले दो तीन माह में मिल जाएगा |

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