जीएम सरसों - नरेंद्र मोदी - स्व. अनिल दवे - यथार्थ - मिथ्या प्रपंच ?


अनिल जी की वर्षों पूर्व ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी थी | उनकी सामान्य मृत्यु को निहित स्वार्थी तत्व जीएम सरसों से जोड़ रहे हैं | इन लोगों का एक ही मकसद होता है कि येनकेन प्रकारेण प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को खल नायक चित्रित करना | यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि नरेंद्र मोदी हों, चाहे स्व. अनिल जी दवे, दोनों ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे, उनके बीच किसी प्रकार की तकरार का प्रश्न ही नहीं उठता | 

विरोधियों को बहाना चाहिए, भले ही वह काल्पनिक ही क्यों न हो | जिन लोगों का स्व. दवे जी से कोई वास्ता नहीं, वे भी आज उनके प्रति झूठी सहानुभूति प्रदर्शित करने के बहाने मोदी जी पर निशाना साध रहे हैं | 

आईये जीएम सरसों को लेकर सिलसिलेवार घटनाओं पर नजर डालें -

भारत के जीएम फसलों के नियामक, जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्राइजल समिति (जीईएसी) ने पर्यावरण मंत्रालय को दी गई एक प्रस्तुति में जीन संवर्धित सरसों के वाणिज्यिक उपयोग की सिफारिश की | लेकिन मंत्रालय के तहत आने वाले जीईएसी ने सुरक्षा पहलुओं की जांच करने के लिए गठित की गई एक उप समिति की रिपोर्ट की समीक्षा की।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने अविलम्ब इस पर एतराज जताया । मंच का कहना था कि जीएम सरसों के वाणिज्यिक उपयोग को मंजूरी देने का असर कृषि से जुड़ी गतिविधियों पर पड़ेगा। 

इसी प्रकार संघ की प्रेरणा से चलने वाले एक अन्य संगठन भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री बद्री नारायण चौधरी ने भी कहा, "सरकार किसी की भी हो अगर किसान विरोधी, देश विरोधी और राष्ट्र विरोधी कदम है, तो भारतीय किसान संघ हमेशा विरोध करेगा. यहां ऐसा ही हो रहा है. वैज्ञानिकों के नाम पर सरकार को बरगलाया जा रहा है और किसानों को आवाज़ उठानी पड़ रही है. अगर ये आवाज नहीं सुनेंगे तो किसानों को सड़कों पर आना पड़ेगा."

विरोध के इन स्वरों के बाद अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया और जल्दबाजी में कोई निर्णय लिया जाएगा, इसकी भी कोई संभावना नहीं है | 

वहीं विषय के दूसरे पक्ष पर गौर करना भी आवश्यक है | जीएम सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जैनिटिक मैनुपुलेशन एंड क्रॉप प्लांट्स ने विकसित किया है. जीएम सरसों को कई साल के शोध के बाद डीयू के पूर्व वीसी डॉ दीपक पेंटल की अगुवाई में एक टीम ने विकसित किया है. अर्थात यह पूर्णतः स्वदेशी तकनीक से विकसित की गई है | कमेटी की एक सदस्य और पर्यावरण मंत्रालय में सचिव अमिता प्रसाद का कहना है कि खेती में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने की नीति के तहत ये हरी झंडी दी गई है.

कुछ आंकड़े भी अपनी कुछ अलग कहानी कह रहे हैं –

2012-13 में सरसों तेल का उत्पादन 23 लाख टन हुआ था। जबकि खपत इससे कहीं ज्यादा होने के कारण तेल आयात भी करना पड़ा था | २०१४ - १५ में पूरे ऑयल वर्ष के दौरान देश में ३, ५५, ८२४ टन सरसों तेल का आयात हुआ था जो किसी भी साल में हुए आयात के मुकाबले सबसे ज्यादा था |

उस समय वरिष्ठ वैज्ञानिक और मुस्टर्ड रिसर्च प्रमोशन कंसोर्शियम में सहायक निदेशक प्रज्ञा गुप्ता ने कहा था कि हमें घरेलू उत्पादन बढ़ाने के तरीकों का इजाद करना होगा और खाद्य तेल का आयात घटाना होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि मौजूदा चलन वाले बीज से 33-35 फीसदी तेल ही मिलता है, अतः अधिक तेल देने वाली सरसों के बीज की किस्म का विकास करना होगा जिससे 40-42 फीसदी तेल मिल सके । तभी से शोध कार्य जारी थे |

खपत के मुकाबले उपलब्धता लगातार काफी कम होती जा रही है जिसके कारण हमें इसके आयात पर ही निर्भर रहना पड रहा है । सवाल यह उठता है कि कहीं जीएम फसलों के विरुद्ध चलाई जा रही मुहीम ग्रीन पीस जैसी उन एनजीओ द्वारा बदले की भावना से तो संचालित नहीं हो रहीं, जिन पर मोदी सरकार ने प्रतिबंधात्मक कदम उठाये हैं, उनके विदेशी चंदों पर रोक लगाई है ? 

रहा सवालकिसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच का, तो सरल ह्रदय स्वयंसेवकों को चतुर सुजान षडयंत्रकारी उपयोग भी तो कर सकते हैं | एक मौलिक सवाल पर विचार होना चाहिए - 

देश के वैज्ञानिक स्वदेशी तकनीक से अगर पैदावार बढ़ाने के उपाय कर रहे हैं, तो उन्हें प्रोत्साहन मिलना चाहिए या उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए ? 

जरा विचार कीजिए कि सरसों तेल का आयात होता कहाँ से है ? प्रमुख सरसों उत्पादक देश हैं –

फ्रांस - 52 लाख टन
जर्मनी - 51 लाख टन
ब्रिटेन - 22 लाख टन
पोलैंड - 21 लाख टन
यूरोपियन यूनियन में कुल उत्पादन 246 लाख टन से अधिक |
इनके अतिरिक्त यूक्रेन और कनाडा भी प्रमुख सरसों निर्यातक देश हैं |

अब दो और दो का जोड़ चार आप स्वयं करेंगे या वह भी मुझे ही करना होगा | मोदी जी जो करेंगे वह देश हित में ही करेंगे | उनके और स्व. अनिल जी दवे के मतभेद की खबरें प्रसारित करने वाले मिथ्या प्रपंच रच रहे हैं | इन समाचारों में कोई सचाई हो ही नहीं सकती |

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