सोलहवीं सदी में गोवा के हिन्दुओं पर पुर्तगाली ईसाईयों का कहर - सीताराम गोयल



हिंदू धर्म और ईसाई धर्म के बीच संघर्ष ईसाई मिशनरियों के आने के बाद शुरू हुआ, जब वास्को दा गामा ने 1498 ई. में मालाबार के रास्ते कालिकट का मार्ग खोजा । इसके बाद 1542 ई. में एक समुद्री डाकू फ्रांसिस जेवियर के संत बनकर आगमन के बाद इसने गंभीर रूप ले लिया | उसकी समस्त गतिविधियों का लेखा जोखा, स्वयं ईसाई इतिहासविदों ने वर्णन किया है, जो भारत में ईसाई धर्म के कलंकित इतिहास का दिग्दर्शन कराती हैं । फ्रांसिस जेवियर भारत में मूर्तिपूजा समाप्त कर ईसाई धर्म की स्थापना के दृढ़ संकल्प के साथ आया था।

फ्रांसिस जेवियर का मानना था कि बुद्धिहीन हिन्दू नहीं जानते कि उनके लिए क्या अच्छा है । वे लोग पूरी तरह से दुष्टात्मा ब्राह्मणों के प्रभाव में हैं । इसलिए भारत की पहली प्राथमिकता, गरीब हिंदुओं को ब्राह्मणों के मायाजाल से मुक्त कराने की है, साथ ही उन जगहों को नष्ट करना है जहां बुरी आत्माओं की पूजा की जाती है। इसलिए उन लोगों को धर्मान्तरित कर चर्च की शरण में लाना चाहिए । [1]

आईये देखते हैं कि एक ईसाई इतिहासकार पुर्तगालियों द्वारा अपने उपनिवेश भारत में किये गए दुष्कर्मों का वर्णन कैसे करता है ? यूनिवर्सिडाड लुसोफोना, लिस्बन में इतिहास के विभाग अध्यक्ष डॉ. टेटोनियो आर. डी सूजा लिखते हैं कि, "1540 के बाद गोवा द्वीप में, सभी हिंदू मूर्तियों का सफाया हो गया था, सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था और उनकी ही सामग्री से उन्हीं स्थानों पर ईसाई चर्चों का निर्माण कर दिया गया था | विभिन्न वाइसगैलल और चर्च काउंसिल ने हिंदू पुजारियों को पुर्तगाली क्षेत्रों से भगा दिया था; विवाह संस्कार सहित सभी प्रकार के हिंदू संस्कारों के सार्वजनिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था; हिंदू अनाथ बच्चों के लालन पालन का कार्य राज्य ने अपने हाथ में ले लिया था; हिंदुओं को रोजगार से वंचित किया गया, यह सुनिश्चित किया गया कि हिन्दू से ईसाई बने लोगों के हाथों में ही सारे रोजगार रहें, इतना ही नहीं तो हिंदुओं को बाध्य किया गया कि वे समय-समय पर चर्चों में आकर उनके ही धर्म की निंदा और ईसाईयत की महानता के किस्से सुनें । "[2]

मिशनरियों के कार्य व्यवहार के बारे में वह आगे कहता है: "गोवा में 'बड़े पैमाने पर बपतिस्मा का गंभीर दुरुपयोग किया गया । यह प्रथा जेसुइट द्वारा शुरू की गई थी और इसे बाद में फ्रांसिस द्वारा भी जारी रखा गया । जेसुइट अपने नीग्रो दासों के साथ हिन्दू मोहल्लों में जाता था, तथा ये लोग हिन्दुओं को पकड़ पकड़ कर उनके मुंह में गोमांस के टुकड़े ठूंसते थे | एक बार गौमांस खा लेने के बाद उन वेचारों के पास ईसाई बनने के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं बचता था, क्यों कि वे अपने ही लोगों के बीच 'अछूत' घोषित हो जाते थे । ईसाई धर्मांतरण ही उनका एकमात्र लक्ष्य था। "[3]

बामिलिका ऑफ बॉम यीशु: का निर्माण 1594 में हुआ | पहले एक प्राचीन शिव मंदिर का विनाश किया गया, फिर उसी स्थान पर इसे बनाया गया । अंत में जब चर्चों के लिए वित्तपोषण की बात आई, तो यह निर्णय लिया गया कि हिंदू मंदिरों और उनके पुजारियों की संपत्ति राजसात कर चर्चों का आर्थिक प्रबंधन किया जाए । इसके अतिरिक्त जिन गांवों को विद्रोही माना गया, उन्हें भी आदेशित किया गया कि वे अपना राजस्व जीससियों को सौंपे । जिन गांवों के लोगों ने स्वयं को सामूहिक धर्मांतरण के लिए प्रस्तुत किया, उनमें भी प्रतिस्पर्धा आयोजित की गई, कि कौन अपने गाँव में बड़ा चर्च बनवाता है । गांव के अन्य महत्वपूर्ण कल्याणकारी कार्यों के स्थान पर इस तरह की प्रतियोगिताओं में बड़ी धनराशि व्यय हुई, परिणाम स्वरुप गोवा में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह खोखली हो गई । "[4]

यह वही दौर था, जब ईसाई धर्म बंगाल में भी अपना जाल फैला रहा था। इसके संरक्षक भी गोवा से भिन्न नहीं थे, उनके भी वही तौर तरीके थे । सिसिर कुमार दास ने अपनी पुस्तक “The conversion of the Bengalis into Christianity,” में लिखा, बंगाल में पुर्तगाली समुद्री डाकूओं ने ईसाई धर्मांतरण में गहरी रूचि ली और सक्रिय भाग लिया। [5] अगस्तिनियन और जेसुइट ने पूर्वी बंगाल में चटगांव तथा पश्चिम बंगाल में बंडल और हुगली में अपने अड्डे बनाए । दूरदराज के कई स्थानों पर भी मिशन स्टेशन स्थापित किए गए थ। डॉ. पी. थॉमस ने लिखा है कि " हुगली पुर्तगाली का एक ही उद्देश्य था कि पूर्ववर्ती सभी मिशनरियों की तुलना में जबरन धर्मांतरण करके एक वर्ष में अधिक से अधिक ईसाई बनाना। "[6]

पुर्तगाली सोसायटी ऑफ़ जीसस के फ्रांसिस जेवियर ने एक अगस्तिनी सन्यासी डी 'रोज़ारियो की मदद से ढाका जिले की एक रियासत भूषण के युवा राजकुमार पर अपना प्रभाव जमा लिया | धर्मांतरण के बाद उसका नाम बदलकर डोम एंटोनियो डी रोज़ारियो हो गया । राजकुमार ने अपने प्रभाव क्षेत्र में 20,000 से अधिक हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर ईसाई बनाया । डॉ दास कहते हैं, "धर्मान्तरित लोगों को प्रभावशाली बनाने के लिए जेसुइट आगे आए, उनमें से कईयों को राज्य में मंत्री भी बनाया गया | किन्तु इससे अगस्तिनियन और जेसुइट्स के बीच कड़वाहट पैदा होने लगी ...। 1677 में, गोवा के प्रांतीय अधिकारी ने आगरा कॉलेज के रेक्टर फादर एंथनी मैगलहंस को इस समस्या की जाँच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नियुक्त किया । उसकी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 25,000 से अधिक लोग धर्मान्तरित तो हुए, किन्तु उनके पास ईसाई धर्म का सामान्य ज्ञान भी नहीं था ...। उन्होंने यह भी पाया कि उनमें से कई केवल पैसा कमाने के लिए ईसाई बने । ये सभी पत्र मार्सडेन पांडुलिपियों के रूप में आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में रखे हुए हैं, जो पुर्तगाली मिशनरियों की गतिविधियों का जीताजागता सबूत हैं । "[7]

हिन्दुओं के लिए यह एक बड़ा ही मुश्किल समय था, लेकिन, बड़े पैमाने पर अत्याचारों और प्रलोभनों के बावजूद अधिकाँश हिंदुओं ने अपने पूर्वजों के धर्म में ही रहने का फैसला किया। और अंततः फ्रांसिस जेवियर द्वारा अपनाई गई, जबरन धर्मांतरण की रणनीति विफल हुई । - History of Hindu-Christian Encounters: AD 304 to 1996, Voice of India, 1996


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