बुंदेलखंड में भी हुआ था जलियांबाला बाग़ जैसा भीषण हत्याकांड – श्री शिवअनुराग पटेरिया जी की पुस्तक “मध्यप्रदेश” का एक अंश


1930 के दौर में महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे उफान पर था | गांधी जी की दांडी यात्रा ने अंग्रेज सरकार के सम्मुख कठिन चुनौती पैदा कर दी थी | बुंदेलखंड में भी सत्याग्रह आन्दोलन की चिंगारी ज्वाला का रूप लेती जा रही थी |

अक्टूबर 1930 को छतरपुर जिले के चरणपादुका नामक कस्बे में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया | इसमें लगभग 60 हजार लोगों ने भाग लिया | आन्दोलनकारी नेताओं ने अपने भाषणों में स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने तथा लगान का भुगतान न करने की अपील की | 

इसके बाद छतरपुर जिले के महाराजपुर में दूसरी सभा आयोजित हुई | इस सभा की निगरानी के लिए स्वयं जिला मजिस्ट्रेट उपस्थित था | किन्तु उसकी उपस्थिति का जनता पर उल्टा असर हुआ और क्रोधित भीड़ ने मजिस्ट्रेट की कार पर पथराव कर दिया | आगबबूला भीड़ के कोप से वह बमुश्किल बच पाया | इस घटना के बाद अनेक लोगों पर मुक़दमा चलाया गया, कई लोगों पर जुर्माना लगाया गया, कईयों को सजाएं हुईं |

किन्तु जन असंतोष चरम पर पहुँच गया | कर का भुगतान न करने का अभियान दूसरे क्षेत्रों में भी फ़ैल गया | हालत यह हो गई कि लोगों द्वारा लगान देने से इनकार करने पर राजनगर के निकट खजुआ गाँव में लोगों पर सरकारी कारोंदों ने गोलियां बरसाईं | लोगों ने भी इसका जबाब पत्थरों और लाठियों से दिया | 

अक्टूबर के अंत में बेनीगंज बाँधा के निकट एक विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग 80 हजार लोगों ने भाग लिया | इस सभा की अध्यक्षता कुंवर हीरासिंह ने की | मुख्य वक्ता रामसहाय तिवारी ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाई | उन्होंने बताया कि कैसे रियासती पुलिस ने अपने जूतों के नाम “हन-प्यारी” और “दिल-बिगाड़” रखे हुए हैं, जिनसे उन्हें भी पीटा गया |

4 जनवरी को आन्दोलन के नेतागण लगभग 2000 लोगों के साथ नौगाँव जाकर गवर्नर जनरल से मिले | उसने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि कर और लगान तो देना ही पडेगा | उसने यह भी कहा कि सेना इलाके में तब तक तैनात रहेगी, जब तक कि राजनैतिक परिस्थितियाँ सामान्य नहीं हो जातीं | 

उसके बाद तो ग्रामीण अंचल में अत्याचारों की पराकाष्ठा हो गई | फिर आया 14 जनवरी 1931 का वह काला दिन, जबकि मकर संक्रांति के मेले में चरणपादुका में हो रही सभा को सेना ने घेर लिया | आमसभा में उपस्थित निहत्थे लोगों पर बेरहमी से मशीनगनों और बंदूकों से गोलियों की बौछार की गई | इस गोली चालन में 21 लोगों की मृत्यु हुई और 26 लोग गंभीर रूप से घायल हुए | 

स्वतंत्रता के इस यज्ञ में अपनी आहुती देने वाले बलिदानियों में पिपट के सेठ सुन्दरलाल बरोहा, छीरू कुरमी, बंधैया के हलकई अहीर, खिरवा के धर्मदास और गुना बरवा के रामलाल शामिल थे | इसके बाद 21 व्यक्ति गिरफ्तार किये गए | इनमें से सरजू दउआ को चार वर्ष तथा शेष 20 को तीन तीन वर्ष के सश्रम कारवास की सजा सुनाई गई |

ख़ास बात यह है कि उस समय तक कांग्रेस की कोई इकाई भी वहां नहीं थी | जो कुछ भी हो रहा था, वह स्वतः स्फूर्त था | उक्त नरसंहार ने पूरे बुन्देलखंड में अन्ग्रेजशासन के खिलाफ माहौल को सरगर्म कर दिया | आन्दोलन कारियों के होंसले टूटने के स्थान पर और बढ़ गए | आखिर क्यों न हो | यह बुंदेलखंड की सरजमीं जो थी, महाराज छत्रसाल की धरती | 1939 में जाकर कांग्रेस समिति गठित हुई और हरपालपुर के रामसहाय तिवारी उसके प्रथम अध्यक्ष बने | 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चरण पादुका बलिदान स्थल पर एक स्मारक बनाया गया, जहाँ पर लगे हुये एक बोर्ड में बलिदानी देशभक्तों के नाम अंकित हैं। जिनमें अमर शहीद श्री सेठ सुंदर लाल गुप्ता, गिलोंहा, श्री धरम दास मातों, खिरवा, श्री राम लाल, गोमा, श्री चिंतामणि, पिपट, श्री रघुराज सिंह, कटिया, श्री करण सिंह, श्री हलकाई अहीर, श्री हल्के कुर्मी, श्रीमती रामकुंवर, श्री गणेशा चमार, लौंड़ी आदि के नाम शामिल हैं। 

इस शहीद स्मारक का शिलान्यास भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री बाबू जगजीवन राम के कर कमलों द्वारा 8 अप्रैल 1978 को किया गया था। इसके पश्चात शहीद स्मारक चरण पादुका का अनावरण म0प्र0 के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह के द्वारा 14 जनवरी 1984 को सम्पन्न हुआ था।

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