क्या देश की रक्षा का दायित्व केवल और केवल सेना का है और हम देशवासी महज दर्शक हैं ?



भारतीय सेना के एक जवान का अंग्रेजी में लिखा सन्देश आजकल सोशल मीडिया पर छाया हुआ है | इसे आप अनुशासन हीनता नहीं कह सकते | क्योंकि उन्होंने एक बाजिव सवाल उठाया है |
सवाल यह है कि क्या देश की रक्षा का दायित्व केवल और केवल सेना का है ?
क्या अन्य देशवासी महज दर्शक भर हैं, जो सेना की वीरता और आत्माहुति की प्रशंसा में गाहेबगाहे ताली बजाएं और चैन की नींद सो जाएँ ?
तो प्रस्तुत है कर्नल अनिल चावला के उस सन्देश का हिन्दी रूपांतर :-
पाकिस्तानी कलाकारों को वापस भेजना, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना रोकना या उसके साथ व्यवसाय प्रतिबंधित करना, आदि कदमों से क्या पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद खत्म हो सकता है?
नहीं, निश्चित रूप से नहीं !
लेकिन एक भावना होती है, जिसे एकता कहा जाता है।
आप उनके साथ मिलकर फ़िल्में बनाते रहें, उनके साथ क्रिकेट खेलते रहें, व्यवसाय कर पैसा बनाते रहें, और मानते रहें कि हम जो कर रहे हैं, सब ठीक है ! लेकिन क्या यह वास्तव में उचित है ?
क्या इससे एक सैनिक को आश्चर्य नहीं होता होगा ? निश्चित रूप से वह सोचता होगा कि क्या संघर्ष का दायित्व अकेले मुझ पर है ? आगे चलकर कभी वह यह सोच सकता है कि जब सब पाकिस्तान से प्यार की पेंगें बढ़ा रहे हैं, तो लड़ाई का भार मैं क्यों उठाऊँ ?
भारत और पाकिस्तान के बीच का यह संघर्ष किसी सैनिक का व्यक्तिगत युद्ध नहीं है ! वह मर रहा है या मार रहा है, तो आपके लिए ! ऐसी स्थिति की कल्पना करें जिसमें सैनिक भी बादल गया, और उसने भी सलमान खान, करन जौहर और महेश भट्ट जैसे सोचना, बोलना और व्यवहार करना शुरू कर दिया, तो क्या होगा ? कल्पना कीजिए कि एक सैनिक अपने वरिष्ठ के पास जाकर सवाल करे कि मैं नियंत्रण रेखा पर मर रहा हूं, जबकि ये लोग तो मान रहे हैं कि दोनों देशों के बीच सब कुछ ठीकठाक है, तो अधिकारी क्या कहेगा, क्या जबाब देगा ?
वे अकेले भारत के लिए बलिदान क्यों करते हैं, जबकि दूसरों को यथास्थिति ही पसंद है ?
देशभक्ति और बलिदान केवल सैनिक की ज़िम्मेदारी नहीं है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1 9 80 में मास्को ओलंपिक का बहिष्कार किया, और 1 9 84 में लॉस एंजिल्स के ओलंपिक का बहिष्कार करते हुए रूसियों ने भी ऐसा ही किया। यह तब होता है जब राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखा जाता है। अगर हम आज यह नहीं करेंगे, तो कब करेंगे ?
हर मरने वाले सैनिक के परिवार कांच की तरह बिखर जाते हैं ... उनकी अंतिम यात्रा का दर्द तो अत्यंत असहनीय है ... "

लेकिन -

फिल्म सितारों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
गायकों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
राइटर्स को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
निदेशकों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
कलाकारों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
पत्रकारों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
कार्यकर्ताओं को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
क्रिकेटरों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
राजनीतिज्ञों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
व्यापारियों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
पेशेवरों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ...
वकीलों को आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है ....
फिर जवान किसके लिए अपनी ज़िंदगी का त्याग करते हैं?
जय हिन्द


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