"शिवपुरी" कहने को पिछड़ा जिला, पर इस पावन धरा का कंकर कंकर शंकर ।। भाग - 1

शिवपुरी की वर्तमान दुर्दशा को देखते हुए क्या कोई कल्पना कर सकता है कि यह वही शिवपुरी है, जिसका अतीत अतीव गौरवशाली रहा है ? अनगिनत महापुरुषों की गौरवगाथाओं से यहाँ का इतिहास अभिसिंचित हुआ है ! ऐतिहासिक सन्दर्भ हों, या यहाँ के पर्यटन योग्य स्थल, जहाँ भी नजर डाली जाए, इसका स्थान विशिष्ट नजर आता है ! 

यह अलग बात है कि विगत कई वर्षों से इस क्षेत्र को न जाने किस की नजर लग गयी है ! रोजगार का अभाव, बुनियादी मूलभूत सुविधाओं का अभाव, पानी को तरसती प्यासी जनता, सड़कों के स्थान पर धूल भरे गड्ढे देखकर एक बार तो मन में शंका पैदा हो जाती है कि कहीं इस ऐतिहासिक क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास को किसी बड़े षड़यंत्र के तहत नेस्तनाबूद करने का कुचक्र तो नहीं किया गया ?

शिवपुरी की धरती में इतिहास के वे पृष्ठ रचे गए है, जिन्हें स्वर्णाक्षरी कहां जा सकता है ! पुरा वैभव हो या पौराणिक, स्वतंत्रता संग्राम का स्कंध हो अथवा साहित्य और संस्कृति का अध्याय सबका सब उज्जवल व धवल है ! 

भगवान् पशुपतिनाथ की पुण्य भूमि शिवपुरी पूर्व में अपनी प्राकृतिक सुषमा, अविरल प्रवाहमान जल प्रपात और दर्पण सी स्वच्छ झीलों, वनों में स्वच्छंद विचरते पशुओं और कलरव करते पक्षियों के लिए विख्यात हुआ करता था ! शिवपुरी जिला आदिमानव की सांस्कृतिक यात्रा के प्रथम पड़ाव रुपी शैल चित्रों, रामायण-महाभारत काल के चरित्रों की कर्मभूमि, पौराणिक आख्यानों के नायकों की स्मृतियाँ एवं १८५७ के अमर सेनानी तात्याटोपे की वीर गाथाओं की नगरी है ! इस जिले में बौद्ध कालीन मठ शांति का सन्देश सुनाते है ! यहाँ सबर्जाती (सहरिया) आज भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखे हुए है ! वाल्मीकि समाज के नारायणी भजन, बेड़िया जाती की राई, कोरियों के कबीरपंथी भजन, ढीमरों की ढीमरयायी, यादवों के कन्हैया गोटें केवल जातिगत संपत्ति ही नहीं अपितु सम्पूर्ण लोक की सांस्कृतिक विरासत हो गए है ! 

क्या शास्त्रों में वर्णित शंखचूड पर्वत यहीं स्थित था ?

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार शास्त्रों में जिस शंखचूड पर्वत का उल्लेख हुआ है वह कहीं और नहीं यहीं स्थित था ! लोकमान्यता है कि भगवान् विष्णु ने संखचूड दैत्य का वध यहीं किया था ! कुछ लोग संघासुर के भगवान् शिव की कथा से इस स्थान को जोड़ते है ! एक लोककथा के अनुसार भगवान् शिव का अनन्य गरीब भक्त जो बूढा और कमजोर था उसे भगवान् शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर वर मांगने को कहा ! तब उस भक्त ने कुछ ऐसी वस्तु देने का अनुरोध किया जिससे उसका बचा खुचा जीवन आसानी से कट जाए ! तब भगवान् शिव ने उस एक शंख देते हुए कहा कि इससे तुम जो भी वस्तु मांगोगे वह तुम्हे प्राप्त हो जायेगी ! धीरे धीरे इस बात की चर्चा सम्पूर्ण गाँव में फ़ैल गयी और इसकी जानकारी बादशाह तक पहुंची तब बादशाह ने उस गरीब ब्राह्मण को वह शंख राजकोष में जमा कराने का आदेश दिया ! जब उस भक्त ने उसे राजकोष में जमा कराने से मना किया तो क्रोधित बादशाह ने उसे तत्काल गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया, जिससे भयभीत होकर वह भक्त वहां से भाग खड़ा हुआ ! भागते भागते वह जंगल की और चला गया एवं उसने उस शंख को वहां स्थित पहाड़ों के बीच में छुपा दिया ! राज सेना के भय के कारण वह यह भूल गया कि उसने उस शंख को कहाँ छुपाया है ! बाद में जब सेना ने उसे अपनी गिरफ्त में लिया तब उसने उन्हें बताया कि वह यह भूल गया है कि उसने पहाड़ों के बीच उस शंख को कहाँ छुपाया है ! तब सेना ने जंगल का चप्पा चप्पा छान मारा ! गुस्से में एक एक पत्थर को उठा कर तोड़ कर देखा गया ! वह जिस भी पत्थर को तोड़ते उसमे से एक शंख निकलता ! जिसे देखकर बादशाह के परामर्श-दाताओं ने उसे समझाया कि ब्राह्मण पर परमेश्वर की कृपा है, यदि उसे सताओगे तो निश्चित ही परमात्मा के क्रोध को सहना होगा ! आपके कारण उसका शंख खो गया है अतः उसे शीघ्र ही मुक्त कर उसके भरण पोषण का भार उठाइए ! बादशाह ने ऐसा ही किया ! 

असली शंख तो कभी नहीं मिला परन्तु आज भी नकली शंख पत्थरों के बीच दबे हुए शिवपुरी के कोलारस विकासखंड के कुंडा, कुदोनिया, राई ओर रामराई ग्रामों के पर्वतीय क्षेत्र में पाए जाते है ! वैज्ञानिक इस तरह के प्राणियों के अवशेषों को भले ही जीवाश्म (फोसिल्स) कहते है, परन्तु स्थानीय ग्रामीणों के लिए तो यह भगवान् शिव का वरदान है !

चुड़ैलछाज नामक स्थान पर प्रागैतिहासिक कालीन सुरक्षित अतिप्राचीन शैलचित्र

शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उधान में टुंडा-भरका खो के समीप बिची बाजार में चुड़ैलछाज नामक स्थान पर प्रागैतिहासिक कालीन मनुष्यों के स्मृति चिन्ह शैलचित्रों के रूप में आज भी सुरक्षित है ! सुप्रसिद्ध पुरातत्व विशेषज्ञ श्री रविन्द्र डी पंड्या के शब्दों में “चुड़ैल चट्टानों कि यह मौन चित्रशालाएं तात्कालिक आदि मानव की संघर्षमय कहानी कह रही थी ! मानव ने प्रथ्वी पर जन्म लेने के पश्चात अपनी असहाय स्थिति को देखा प्रकृति की महान शक्तियों के सम्मुख उसकी नगण्य चेतना जागृत हुई और उसने अपने उदर की क्षुधा को शांत करने के लिए अनेक प्रयत्न किये ! उसने पर्वत की कंदराओं को अपना निवास बनाया और अनगढ़ प्रस्तर खण्डों को काटकर आखेट के हथियार बनाए ! इन कंदराओं को गर्म व प्रकाशित करने हेतु पशुओं की चमड़ी व लकड़ी को जलाया ! उसने इस प्रकाश में अपनी जीवन की सरस एवं सरल अभिव्यक्ति तूलिका के माध्यम से गुफाओं की दीवारों पर चित्रों के रूप में अंकित कर दी ! 


चुड़ैल छज्जों में प्रागैतिहासिक कालीन महत्वपूर्ण चित्रों के असंख्य उदाहरण देखने को मिलते है ! इन शैल चित्रों की खोज का श्रेय सुप्रसिद्ध छायाकार हरी उम्पन्यु जी को जाता है (लेखक श्री रविन्द्र डी पंड्या के साप्ताहिक हिन्दुस्तान के २२ फरवरी १९८७ के अंक में पृष्ठ क्रमांक ३४ व ३५ के अनुसार) उन्ही के आमंत्रण पर रविन्द्र डी पंड्या शिवपुरी पधारे थे ! उनके अनुसार शिवपुरी के यह शैल चित्र लगभग ८ हजार वर्ष पुराने है ! उल्लेखनीय है कि आदिमानव की यह चित्रशालाएं शिवपुरी के अलावा पंचमढी, होशंगाबाद, सिंघनपुर, मंदसौर जिले का गोह स्थान की दरी, भीमपुरा ग्राम के भीमबेटका में भी है ! भीमबेटका विश्वस्तर पर प्रचारित हो चुका है ! शिवपुरी की इन चित्रशालाओं में चित्रलिपि में सात पंक्तियाँ अंकित है जो इसे अधिक महत्वपूर्ण बनाती है ! पर समुचित प्रचार प्रसार के अभाव में इन चित्र शालाओं तक आम पर्यटक की पहुँच भी नहीं हो पाती है ! 


साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका में प्रकाशित उल्लेखित दोनों लेखों को पढ़कर प्रसिद्द पुरातत्ववेता श्री बाकणकर शिवपुरी पधारे और उन्हों इन शैल चित्रों का अवलोकन कर कहा –“मैंने अपने जीवन में इतने प्राचीन शैलचित्र प्रथम बार देखे है !” दीवारों पर लिखी हुई उस लिपि को पढ़कर आपने कहा कि “श्री कृष्ण अपने साथियों की रक्षा करें !” उनका सोच था कि यहाँ कभी भगवान् श्री कृष्ण पधारे थे और इस गुफा में सोते हुए संत को अपना पीताम्बर उड़ा कर विलुप्त हो गए थे !

(क्रमशः ........)

साभार – “शिवपुरी” अतीत से आज तक, लेखक – श्री अरुण अपेक्षित

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