नशे की आड़ में बढ़ रहा है मानव अंग तस्करी का घिनौना धंधा - दिवाकर शर्मा



दिहाड़ी के लिए शहर आए मज़दूर का जीवन 3 बिन्दुओं पर टिका हुआ होता है ! दो वक्त की रोटी, शराब, और सामाजिक मूलधारा से अलगाव ! बहुधा ये लोग रिक्शा चलाते हैं पर अब ऑटो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट एवं कैब के दौर में ये रिक्शे वाले बहुत मुश्किल में हैं ! इनकी पत्नियां भी मज़दूरी अथवा झाड़ू-पौंछा आदि घरेलू काम में संलग्न होतीं हैं ! बस ज़रा सा पैसा दो वक्त की रोटी, शराब में ख़त्म ... इनके बच्चों के लिए तो मंदिर का दरवाज़ा, सड़क का किनारा, कूड़े का ढेर ही स्कूल है ! जहां जीवन जीने के लिए एक अर्थशास्त्र सीखते हैं ये बच्चे ! कूड़े से प्लास्टिक और पन्नी बीन कर अथवा भीख मांगकर, कुछ पैसा घर में माँ को थमा देते हैं, कुछ पैसा चुपके से बचाकर कंचे का जुआ, नशीला गुटखा, पंचर जोड़ने वाले साल्यूशन को पीना, जैसे काम में लाते ये हैं बच्चे !

कहते हैं कि जीने के लिये खाना जरुरी होता है ! लेकिन ये क्या? यहां तो जीने के लिये नशा जरुरी हो गया है ! जीं हम बात कर रहें हैं उन किशोरों की जो इस समय सिलोचन, पेट्रोल और वाइटनर को सूंघ कर नशा करते हैं ! उनका कहना होता है कि हमें खाना मिले या न मिले ! बस हमें नशा करने का सामान मिलते रहना चाहिए ! इसके बिना वे जीवित नही सकतें हैं ! हम खाने के लिये नही बल्कि नशा पूरा करने के लिये मजदूरी करते हैं ! 

जैसे-जैसे हमारा देश बदल रहा, लोग बदल रहें है ! उसी प्रकार नशा करने वालों का तरीका बदल रहा है ! पहले लोग हुक्का और बीड़ी व शराब का नशा करते थे ! लेकिन जैसे-जैसे समय ने करवट ली ! लोगों ने अपना नशा पूरा करने के लिये पंचर सुधारने वाले सिलोचन को अपना सहारा बना लिया ! अब आलम यह हो गया कि इन नशा करने वालों ने सिलोचन के साथ-साथ वाइटनर व पेट्रोल को भी अपना सहारा बनाना शुरु कर दिया ! ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी प्रशासन और समाजसेवी संस्थाओं को न हो ! इसके बाद भी इन्हें रोकने के लिये केवल वे प्रचार-प्रसार तक ही सीमित रह जाते हैं !

गरीबी और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित निर्धन परिवारों के बच्चे पहले नशा नही करते थे, लेकिन गरीबी और आर्थिक तंगी के कारण उनकी मुलाकात कुछ नशेड़ियों से हो जाती है ! जो उन्हें पहले उन्हे थोड़ा-थोड़ा नशा कराना सिखाते है इसके बाद आलम यह होता है कि उन्हे सुबह उठते ही नशा चाहिए ! इतना ही नही रात्रि में उनके पास इंजेक्शन के माध्यम से नशा देने वाले भी मिलते है ! जो पैसा लेकर नशे का इंजेक्शन उन्हें देतें है ! जिसे मिलते ही वह मदमस्त हो जाते है ! उन्हें पूरे दिन खाना मिले या न मिले बस मिलना चाहिए यह नशा ! यदि यही हाल रहा तो जिस तेजी से युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में फंसती जा रही है वह आगे चलकर ओर भी चिंतनीय होगी ! 

नशे के आदी हो चुके ये बच्चे आसानी से मानव तस्करों के हत्थे चढ़ जाते हैं ! नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व भर में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है ! भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है ! सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है ! सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे ! इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है ! 

भारत में 2013 में तकरीबन साढ़े छह करोड़ लोगों की तस्करी की गई

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2013 में तकरीबन साढ़े छह करोड़ लोगों की तस्करी की गई ! इनमें से ​अधिकतर बच्चे हैं जिन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी या भीख मांगने के काम में लगाया गया ! वॉक फ्री फाउंडेशन के 2014 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक भारत में एक करोड़ चार लाख से अधिक लोग आधुनिक गुलामी में जकड़े हुए हैं ! यह संख्या दुनिया भर में सबसे अधिक है ! प्रस्तावित कानून में पड़ोसी देशों, मसलन नेपाल या बांग्लादेश के साथ मानव तस्करी की रोकथाम के लिए साझे तौर पर काम करने का प्रावधान भी शामिल है ! हालांकि भारत के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी की समस्या को बेहद कम करके आंका गया है ! राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ​ब्यूरो में 2014 में महज 5,466 मामले ही दर्ज हुए हैं !

पिछले कुछ सालों में यौन गुलामी, अंग तस्करी, भीख मांगने के लिए और बंधुआ मजदूरी के लिए मानव तस्करी के मामले बहुत बढ़ोतरी हुई है ! हॉवर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार तस्करी से बचाकर लाये गए ज़्यादातर बच्चे अवसाद, डायस्थिमीया और मानसिक रूप से पीड़ित होते हैं !

भारत और नेपाल से निकल कर आई एक खबर जिसे सुनकर झुक जायेगी हर नजर 

विगत कुछ वर्षों पूर्व भारत और नेपाल के बीच से एक ऐसी खबर निकल कर आई जो तथाकथित सभ्य समाज के नाम पर कलंक है ! यह खबर है कि कैसे नेपाल की महिलाएं अपनी गरीबी मिटाने के लिए पहले अपनी त्वचा के उत्तक बेचती है और फिर वो कैसे देह व्यापार के कुचक्र मे फंस जाती है ! दरअसल, यह हमारे समाज का वो घिनोना चेहरा है जिसने सभ्यता का मुखौटा पहना हुआ है ! इस अपराध को आप मानव तस्करी, जबरन वेश्यावृत्ति तथा अंगों की तस्करी की श्रेणी मे डाल सकते हैं ! विगत कुछ वर्षों पूर्व एक महिला किसी तरह मुंबई के एक वैश्यालय से भाग कर नेपाल मे अपने पैतृक गाँव मे आ गई ! उसके लिए उसके शरीर पर लगे चोट के निशान ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं थे बल्कि वो जीवित है यह उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था ! एक साल बाद जब उसने किसी दूसरी महिला के शरीर पर वैसे ही चोट के निशान देखे तो उसे एहसास हुआ कि उसका यह हाल उसके किसी ग्राहक की वजह से नहीं है ! उसने उन चोटों से पर्दा उठाना चाहा और उसे मालूम चला की उसकी त्वचा अमीर लोगों को सुंदर बनाने के लिए बेची गयी है ! उस महिला ने गरीबी से लड़ने के लिए अपनी 20 वर्ग इंच त्वचा का उत्तक एक दलाल को अपनी मर्जी से बेच दिया ! वो पैसा जल्द ही खत्म भी हो गया क्योकि वो बड़े कर्जे मे थी ! उसी दलाल ने उसे सेक्स वर्क भी दिलाया ! उसी दलाल ने उसे बताया कि उसने उसकी त्वचा किसी और दलाल को सप्लाइ कर दी है और वो प्लास्टिक सर्जरी मे प्रयोग मे लायी जाएगी !

”स्किन बहुत डिमांड में है ! 100 स्क्वायर इंच गोरी स्किन का टुकड़ा 50,000 से 1,00,000 तक में बिकती है दिल्ली और मुंबई में ! कोई एक एजेंट औरतों को भारत-नेपाल बॉर्डर तक ले जाता है ! उस बॉर्डर से कोई दूसरा एजेंट महिलाओं को भारत लाता है और किसी और एजेंट को सौंप देता है और तीसरा एजेंट ही स्कीन निकालने की पूरी प्रक्रिया को अंजाम तक पहुंचाता है ! महिलाओं से लिखित में ये ले लिया जाता है कि उन्होंने स्कीन डोनेट किया है ना की बेचा है !”

कुख्यात आतंकी संगठन भी उतर चुका है मानव अंग तस्करी के धंधे में 

आतंक का पर्याय बन चुका खतरनाक आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) धन जुटाने के लिए मानव अंगों की तस्करी के धंधे में उतर आया है ! हाल ही में आई रिपोर्टों के अनुसार आईएस बंधकों और यहां तक कि अपने मारे गए सैनिकों के अंगों की तस्करी कर रहा है ताकि इससे मिले धन का इस्तेमाल पश्चिम एशिया में आतंक फैलाने में किया जा सके !

यदि इस विषय पर सोशल नेटवर्किंग साईट पर मिलने वाली जानकारियों पर यकीन किया जाए तो शरीर से अंगों को निकालने के लिए आईएस ने बकायदा विदेशी डॉक्टर तैनात किए हैं ! इन ख़बरों से पता चलता है कि आईएस बंधक बनाए गए लोगों के जबरन अंग निकाल रहा है ! बच्चों की किडनी निकाली जा रही है ! यहां तक कि आतंकी अपने लड़ाकों के मारे जाने पर उसका भी अंग निकाल लेते हैं !

आईएस के कब्जे वाले इलाकों में मौजूद अस्पतालों में मानव अंगों को निकालने की और उसे विश्व के काले बाजारों में बेचने की जबर्दस्त व्यवस्था की जाती है ! सूत्रों के अनुसार जिन विदेशी डॉक्टरों को इस काम के लिए नियुक्त किया गया है उन्हें अलग रखा जाता है ! स्थानीय डॉक्टरों और आस पास के लोगों से भी उन्हें मिलने की इजाजत नहीं है ! रिपोर्ट के अनुसार इस काले व्यापार से आतंकवादी संगठन आईएस को सालाना बीस लाख डॉलर की आय होने की संभावना जताई गई है !

भारत में दंडनीय है यौन शोषण 

अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम के तहत व्यवसायिक यौन शोषण दंडनीय है ! इसकी सजा सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की है ! भारत में बंधुआ मजदूर उन्मूलन अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम, बंधुआ और जबरन मजदूरी को रोकते हैं !

दिसंबर 2012 में हुए जघन्य बलात्कार मामले में सरकार ने एक विधेयक पारित किया जिससे यौन हिंसा और सेक्स के अवैध कारोबार से जुड़े कानूनों में बदलाव हो सके, लेकिन अब भी इन कानूनों के बनने और लागू होने में बड़ा अंतर है ! हर तरफ फैले भ्रष्टाचार और रिश्वत के कारण इन एजेंटों द्वारा लड़के और लड़कियां को बेचना आसान है ! लेकिन इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरुरत है, जिससे इस समस्या को खत्म किया जा सके ! साथ ही लोगों को उनके इलाके में अच्छी शिक्षा और बेहतर सुविधाएं देने की जरुरत है, जिससे मां बाप अपने बच्चों को इस तरह ना बेच सकें ! इसके साथ ही लड़कियों और महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की भी जरुरत है !

भारत में बढती मानव तस्करी की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए किया गया नया क़ानून तैयार 

भारत में बढ़ती मानव तस्करी की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए एक नया कानून तैयार किया गया नई दिल्ली में इस विधेयक के मसौदे को महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने सार्वजनिक परामर्श के लिए पेश किया था ! इस मौके पर मेनका गांधी का कहना था कि मानव तस्करी से निपटने के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं हैं ! इसके चलते इस कानून को खासतौर पर मानव तस्करी से निपटने के लिए तैयार किया गया है ! उनका कहना था, ''कई बार तस्करों और पीड़ितों दोनों को जल भेज दिया जाता है, लेकिन यह विधेयक इससे काफी अलग है और इन दोनों के बीच में अंतर करता है !'' मेनका गांधी ने इस बात को स्वीकार किया था कि देश में सालाना लाखों लोगों की तस्करी हो रही है जिनमें से अधिकतर बच्चे हैं ! इस कानून के मुताबिक ऐसे तस्करों को जेल की सजा होगी जो पीड़ितों के शोषण के लिए ड्रग और शराब का इस्तेमाल करते हैं या बच्चों की यौन परिपक्वता को बढ़ाने के लिए रसायनों या हारमोन्स का इस्तेमाल करते हैं !

अंग तस्करी रोकने हेतु आवश्यक है कुछ क्रांतिकारी कदम 

ऐसे अनेक मामले उजागर हो चुके हैं, जिनमें पेट की शिकायत लेकर आए मरीजों का बेवजह ऑपरेशन करके गुर्दे निकाल लिए गए ! मानव अंगों की तस्करी करने वाले गिरोह अंग बेचने के लिए बच्चों तक का अपहरण करके उनकी हत्या करने से भी नहीं हिचकते हैं ! दुनिया में जिन देशों में मानव अंगों का अवैध व्यापार सबसे ज्यादा होता है, उनमें भारत भी एक है ! केंद्र सरकारें विदेशी पूंजी निवेश के लालच में जिस तरह से मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देती रही हैं, उसकी ओट में भी मानव तस्करी और अंग प्रत्यारोपण का गोरखधंधा परवान चढ़ रहा है ! ऐसी स्थिति में मेडिकल टूरिज्म को तो प्रतिबंधित करने की जरूरत है ही, स्वेच्छा से अंगदान से जुड़़ी रूढ़ मान्यताओं को तोडऩे के लिए भी जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है, ताकि लोग खुद आगे आएं !

दरअसल हमारे यहां आमतौर यह धारणा प्रचलन में है कि अगर व्यक्ति अपने अंग किसी दूसरे को दान देंगे तो उनकी अपनी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी, इसलिए क्यों जोखिम उठाएं ? इस बिंदु पर कुछ धार्मिक मान्यताएं और सामाजिक पूर्वाग्रह भी अपनी जगह कायम हैं ! गोया किसी दुर्घटना के दौरान मस्तिष्क मृत हो जाने की स्थिति में भी व्यक्ति के परिजन उसका कोई अंग दान में देने की इच्छा नहीं जताते हैं ! जबकि इस हालात में गुर्दा हृदय, यकृत, फेफड़ें और आंखों जैसे महत्वपूर्ण व अनमोल अंगों समेत शरीर के करीब अन्य 37 अंग और ऊतक दान किए जा सकते हैं ! यदि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अंग दान होने लग जाएं तो शायद इस अवैध व्यापार पर आप से आप प्रतिबंध लग जाए ?

दिवाकर शर्मा
सम्पादक
क्रांतिदूत डॉट इन
krantidooot@gmail.com
8109449187

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