पर्यावरण संरक्षण, सरकार के साथ हम सबका भी सामूहिक उत्तरदायित्व - पर्यावरण दिवस विशेष


मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होता है, शीत की ठिठुरन का स्थान बासंती बयार ले लेती है, मौसम में सुखदाई परिवर्तन होने लगता है | किन्तु एक प्रश्न सामने आता है | प्रकृति तो परिवर्तन को तत्पर हो जाती है, किन्तु मानव निर्मित संत्रास कब परिवर्तित होगा ? हमने अपने रहन सहन व आदतों से अपने आस पास दुःख का जो जाल बन लिया है, वह कैसे समाप्त होगा | जी हाँ, मैं पर्यावरण प्रदूषण की ही बात कर रहा हूँ, जिसे हमने ही पैदा किया है और जो इतनी विकराल समस्या बन चुका है कि विनाशकारी सिद्ध होने लगा है | आखिर हम कब तक आत्मघात के मार्ग पर चलते रहेंगे ?

एक ज़माना था जब बच्चों का पेड़-पौधों, तितलियों, पंछियों से गहरा रिश्ता हुआ करता था | घरों की पहचान भी अक्सर किसी न किसी पेड़ से जुडी होती थी | फल भी मौसम से जुड़े होते थे,,,आजकल तो `मौसमी-फल' जैसे phrases आउट-डेटेड हो गये हैं| इस पथरीली-सभ्यता की पक्की दीवारों ने सिर्फ बांटा ही नहीं वरन रिश्तों का सच्चापन, खरापन, भोलापन सब निगल लिया है | `यूज़ एंड थ्रो' वाली बात बेजान वस्तुओं के साथ-साथ रिश्तों में भी आ गयी है | ग़ुम हो गयी है वह सरल ज़िन्दगी| आज हर बात के दस मुँह हैं, हर परेशानी के दस समाधान | कितना उलझा लिया है हमने अपनी ज़िंदगी को | छोड़कर जाने के लिए कोई निरापद स्थान भी तो नहीं | अतः सुलझाना ही एकमात्र उपाय है | उलझे धागों का सिरा ढूँढने का प्रयास करें तो शायद कोई समाधान मिले | 
कर्नाटक में एक आईऐएस अधिकारी अपने परिवार के साथ रविवार की छुट्टी मनाने गाँव की तरफ गए | बच्चों ने एक खेत में पेड़ पर घोंसला देखकर उसे घर ले चलने की जिद्द की | अधिकारी ने बच्चों का दिल रखने को अपना ड्राईवर घोंसला लेने भेजा | खेत में काम करते बच्चे से ड्राईवर ने वह घोंसला माँगा किन्तु बच्चे ने इनकार कर दिया | १०-१५ रुपये का लालच देने पर भी वह वालक तैयार नही हुआ तो अधिकारी महोदय स्वयं उसके पास पहुंचे और जबरदस्ती घोंसला ले जाने की धमकी दी | उस बालक ने जबाब दिया की मुझे मारकर ही घोंसला ले जा पाओगे | अधिकारी को हैरानी हुई तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा | बालक ने जबाब दिया कि घोंसले में चिड़िया के बच्चे हैं | शाम को जब इनकी माँ आयेगी तो वह कितनी दुखी होगी ? आप तो इस घोंसले को अपने घर ले जाकर रख दोगे | वहां बच्चे रोयेंगे यहाँ उनकी माँ | आई ऐएस चुपचाप वापस हो गए | बाद में उन्होंने खुद इस घटना का खुलासा उस बालक की प्रशंसा के रूप में एक समाचार पत्र में सम्पादक के नाम पत्र लिखकर किया | इसे कहते हैं परिवेश के साथ सम्बन्ध जोड़ना | पर्यावरण की शिक्षा अलग से देने की जरूरत नहीं पड़ती | जैसे उस गाँव के बालक को कभी नहीं मिली |

पर्यावरण-संरक्षण के कुछ उपाय:


# जैविक-खाद्य अपनाएँ# पेड़-पौधे लगायें


# कपडे के थैले इस्तेमाल करें: पोलिथिन व प्लास्टिक को `ना' कहें# stationery की दोनों साइड्स इस्तेमाल करें


# जितना खाएँ, उतना ही लें# दिन में सूरज की रौशनी से काम चलायें


# काम नहीं लिए जाने की स्थिति में बिजली से चलने वाले उपकरणों के स्विच बंद रखें# CFL का उपयोग कर ऊर्जा बचाएँ


# सोलर-कूकर का इस्तेमाल बढ़ाएं# सौर-ऊर्जा का अधिकाधिक इस्तेमाल करें


# ब्रश एवं शेव करते समय बेसिन का नल बंद रखें# फ़ोन, मोबाईल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल `पावर सेविंग मोड' पर करें


# ठन्डे पानी से कपडे धोएं,,,,ड्रायर का प्रयोग न करें# जितना हो सके पैदल चलें 


# पैकिंग वाली चीजों को कम से कम काम में लें:: औद्योगिक कचरे में एक तिहाई अंश इन्हीं पैकिंग्स का होता है# घर में चीजों का भण्डारण दुरुस्त तरीके से हो ताकि उनके व्यर्थ जाया होने से बचा जा सके 


# विशिष्ट अवसरों पर एक पौधा अनिवार्यतः उपहार-स्वरुप दिया जाये#`यूज़ एंड थ्रो' की दुनिया को छोड़ पुनः `सहेजने' वाली सभ्यता को अपनाया जाए 

पर्यावरण-संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली के विस्तार से लिया जाता है परन्तु विस्तृत व विराट रूप में इसका तात्पर्य पेड़-पौधों के साथ-साथ जल, पशु-पक्षी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा से है | ऐसे में घर-परिवार ही सही अर्थों में पर्यावरण-शिक्षण की प्रथम पाठशाला है | परिवार के बड़े सदस्य अनेक दृष्टान्तों के माध्यम से ये सीख बच्चों को दे सकते हैं | घर में लगे हरेक पौधे की ज़िम्मेदारी हर एक सदस्य विशेषकर बच्चों को सौंप दी जाए| पेड़-पौधों के नाम उन्हें बताये जाएं, उनसे जुडी ख़ास बातें बच्चों से साझा की जाएँ| घर में पशु-पक्षी पाले जाएँ |बच्चों को `हेर्बेरियन फाइल्स' बनाने जैसे प्रोजेक्ट दिए जाएँ | बच्चों को कमरों की कैद से, कम्प्यूटर गेम्स से बाहर निकलने की ज़रूरत है |

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