जब जीएसटी आ ही रहा है, तो समझना जरूरी - हरिहर शर्मा



जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है – गुड्स एंड सर्विस टेक्स – गुड्स अर्थात ऐसी वस्तु जिसे मापा जा सके, नापा जा सके तथा सर्विस अर्थात वस्तु उपभोक्ता तक पहुँचाने का कार्य |

चलिए इस कराधान को समझने के पूर्व यह समझते हैं, कि वर्तमान में कौन कौन से टेक्स हमें देने पड़ते हैं | इससे हमें यह समझने में आसानी होगी कि आखिर क्या क्या बदलाव होने वाले हैं | आम व्यक्ति और आम व्यापारी को क्या अंतर पड़ने वाला है |

आज जो टेक्स हम सरकार को देते हैं, उसमें पहला होता है, डायरेक्ट टेक्स, जो सीधे सरकार को जाते हैं, जैसे कि इन्कम टेक्स, केपिटल गेन टेक्स, सीक्योरिटी ट्रांजेक्शन टेक्स और कारपोरेट टेक्स आदि | दूसरे होते हैं इनडायरेक्ट टेक्स – ये हम सीधे सरकार को नहीं देते, बल्कि जिन लोगों से हमने कोई बस्तु खरीदी है, उनके माध्यम से वह टेक्स सरकार को जाता है, यह अलग बात है कि बस्तु हमने खरीदी है, अतः जाता हमारी जेब से ही है | इनमें से एक्साईज ड्यूटी, सीएसटी, सर्विस टेक्स जाते हैं केंद्र सरकार के पास, शेष सेल्स टेक्स, वेल्यूएडेड टेक्स, वेट, इंटरटेनमेंट टेक्स, लक्जरी टेक्स, चुन्गी आदि राज्य सरकार लेती है |

राज्य सरकारों का खजाना हमारे इनडायरेक्ट टेक्सों से ही भरता है | टोल टेक्स, इलेक्ट्रीसिटी ड्यूटी आदि बहुत सारे टेक्स घुमा फिराकर हम सरकारों को देते हैं, जिनके विषय में हममें से बहुतों को पता भी नहीं होता, कि कब उनकी जेब से सरकार ने टेक्स बसूल लिया |

तो मित्रो ये जितने भी इनडायरेक्ट टेक्स होते थे, इन सबको मिलाकर एक बना दिया गया है जीएसटी, ताकि अलग अलग टेक्स न भरने पड़ें और वह भी अलग अलग अथोर्टी को | एक सिंगल अथोर्टी बना दी जाए जीएसटी के नाम से और सारे टेक्स उसी को पे किये जाएँ |

जीएसटी के अंतर्गत भी तीन केटेगरी आती है | एक होता है सीजीएसटी, दूसरा एसजीएसटी और तीसरा आईजीएसटी | सीजीएसटी से प्राप्त टेक्स केंद्र सरकार के पास जाएगा, एसजीएसटी स्टेट यानी राज्य के पास जाएगा और आईजीएसटी इंटरस्टेट यानी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले उत्पाद पर लगेगा | एक उपभोक्ता के नाते हमको तो एक ही टेक्स देना है, वह है जीएसटी और वह डिवाइड हो जाएगा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में |

मार्केट में तीन प्रकार के लोग होते हैं | उत्पादक, थोक विक्रेता, खेरीज विक्रेता और उपभोक्ता | मान लीजिये कि उत्पादक अपना कोई प्रोडक्ट बनाता है, 90 रुपये में | उस पर वह अपना मुनाफा जोड़ता है, मान लीजिये 10 रुपये | सरकार उस पर अपना टेक्स लगाती है 10 प्रतिशत तो यह प्रोडक्ट बैठता है 110 रुपये का, जो वह होलसेलर को बेच देता है | होलसेलर उस पर अपना प्रॉफिट जोड़ता है और उत्पाद की कीमत हो जाती है, 120 रुपये | उस पर भी सरकार दस प्रतिशत टेक्स लेती है, तो वह बैठती है 12 रुपये और उत्पाद हो जाता है एक सौ बत्तीस रुपये का | अब वह एक सौ बत्तीस रुपये काआईटम रिटेलर खरीद कर उस पर अपना प्रॉफिट जोड़ता है दस रुपये और वह हो जाता है एक सौ बयालीस रुपये का | सरकार उस पर फिर से दस प्रतिशत टेक्स थोपती है और उपभोक्ता को फिर वह मिलता है एक सौ छप्पन रुपये बीस पैसे में |

अब देखते हैं कि जीएसटी में क्या होगा | उत्पादक का नब्बे रूपया, उसका प्रॉफिट व सरकार का टेक्स तो यथावत रहा और होल सेलर को मिला 110 रुपये में | होल सेलर ने दस रुपये मुनाफा जोड़ा और वस्तु की कीमत हुई 120 रूपया | यहाँ तक तो सब समान रहा, किन्तु इसके बाद सरकार द्वारा टेक्स पूरी कीमत पर ना लगाकर केवल मुनाफे पर लगाया जाएगा, जो होगा एक रूपया | तो इसके बाद वस्तु रिटेलर को मिली 121 रुपये में | रिटेलर ने भी मुनाफा लगाया दस रूपया, सरकार ने मुनाफे पर टेक्स लगाया 1 रूपया और फिर उपभोक्ता को वह वस्तु मिली केवल एक सौ बत्तीस रुपये में | उपभोक्ता को सीधा 24 रुपये का लाभ |

सवाल उठता है कि सरकार आखिर यह 24 रुपये का घाटा क्यूं उठाना चाहती है ? वह क्यूं टेक्स कम कर रही है ? यह फंडा भी साफ़ है | अभी व्यवहार में हो यह रहा है कि सब दूर बिना रसीद के खरीद विक्री का बोलबाला है | कोई टेक्स देना ही नहीं चाहता, देता भी नहीं | इसके परिणाम स्वरुप केवल दो नंबर का पैसा बढ़ता जा रहा है | अब जीएसटी लागू होने के बाद यह संभव नहीं होगा | सरकार को टेक्स की राजस्व बसूली में फायदा ही होगा, उसका खजाना लबालब होगा |

अब देखते हैं कि किस उत्पाद पर कितना टेक्स लगाया जाएगा जीएसटी के नाम पर | कुल मिलाकर 1211 उत्पादों को अलग अलग वर्गों में बांटा गया है | तो दैनंदिन उपयोग की आवश्यक वस्तुओं पर शून्य प्रतिशत टेक्स, अर्थात जिन पर कोई टेक्स नहीं लगने जा रहा है –
ताजा मांस, मछली, चिकन, अंडा, दूध, मक्खन, दही, प्राकृतिक शहद, ताजा फल और सब्जी, आटा, ब्रेड, पापड़, नमक बिंदी, सिन्दूर, स्टैम्प्स, ज्यूडिसियल पेपर, मुद्रित पुस्तकें, अखबार, चूडी, हेंडलूम, एक हजार से कम किराये वाले होटल व लोज आदि |

5 प्रतिशत टेक्स वाले उत्पाद हैं –

क्रीम, दूध का पावडर, ब्रांडेड पनीर, शीतगृह की सब्जी, कोफ़ी, चाय, पिज्जा, रस्क, साबूदाना, मिट्टी का तेल, कोयला, दवाइयां, स्टंट, लाइफवोट आदि तथा ट्रांसपोर्ट सर्विस, रेल व वायुयान टिकिट, लघु रेस्टोरेंट आदि |

अब हम 12 प्रतिशत वाला वर्ग देखते हैं, तो उसमें है –

फ्रोजन मीट प्रोडक्ट, बटर, चीज, घी, ड्राय फ्रूट के पैकेट, सौस, जूस, एनीमल फेट, नमकीन, आयुर्वेदिक दवाएं, दन्तमंजन, अगरबत्ती, रंगीन व फोटोयुक्त पुस्तकें, छाता, सिलाई मशीन, सेलफोन आदि तथा नॉन एसी होटल, बिजनेस क्लास एयर टिकिट, खाद और ठेकेदारी कार्य आदि |

अठारह प्रतिशत वाले वर्ग पर नजर डालें तो उसमें है –

सुगन्धित रिफाईंड चीनी, पास्ता, कोर्नफ्लेक्स, केक और पेस्ट्री, प्रिजर्ब सब्जियां, जेम, सूप, आईसक्रीम, मिनरल वाटर, टिश्यूज, लिफ़ाफ़े, नोट बुक, स्टील के उत्पाद, प्रिंटेड सर्किट, मोनीटर आदि तथा एसी होटल (जहाँ लिकर सर्व किया जाता है) टेलीकोम सर्विस, आईटी सर्विस, फायनेंसियल सर्विस आदि | सीधा सा मतलब है कि जो प्रीपेड़ मोवाईल हम अभी उपयोग करते थे उस पर 15 प्रतिशत टेक्स था, उसमें तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है |

28 प्रतिशत वर्ग इस प्रकार है –

चूइंग गम, कोको रहित चोकलेट, पान मसाला, पेंट, सेविंग क्रीम, आफ्टर सेव, शेम्पू, डाई, सनस्क्रीन, वाल पेपर, टाइल्स, वाटर हीटर, डिस वाशर, वेईंग मशीन, वाशिंग मशीन, वेंडिंग मशीन, वेक्यूम क्लीनर, आटोमोवाईल, मोटर साईकिल, निजी वायुयान आदि तथा फाईव स्टार होटल, रेस क्लब, आदि |

अब ये 1211 वस्तुएं आप भारत के किसी भी कोने में खरीदो, समान कीमत पर मिलेंगी | जो चीजें महंगी होंगी, उनमें हैं – गारमेंट (सिले हुए कपडे), आभूषण, मोवाईल फोन आदि | और सस्ते होने वाले आईटम हैं – मकान, एसी, आदि | कुछ ऐसे भी आईटम हैं, जिन पर जीएसटी लागू नहीं होगा – जैसे अल्कोहल, डीजल – पेट्रोल, तम्बाकू और इलेक्ट्रीसिटी यूनिट आदि | इसके कारण यह अवश्य होगा कि जो लोग एक राज्य से सस्ती वस्तु खरीदकर दूसरे राज्य में अधिक कीमत में विक्रय करते थे, वह नहीं कर पायेंगे | एक लाभ भी होगा | एक उदाहरण देखिये – मान लीजिये कि आपने एक 100 रुपये मूल्य की वस्तु किसी राज्य में दस प्रतिशत टेक्स देकर 110 में खरीदी | वर्तमान व्यवस्था में अगर उसे दूसरे राज्य में ले जाकर विक्रय किया जाए तो वहां का टेक्स भी देना होगा, अर्थात दस प्रतिशत एक राज्य में टेक्स दे देने के बाद भी दूसरे राज्य में टेक्स पर टेक्स देना होगा | यह अब नहीं होगा | एक राज्य में टेक्स देने के बाद दूसरे राज्य में विक्रय करने पर टेक्स नहीं देना होगा |

यदि किसी छोटे व्यापारी का वार्षिक टर्नओवर 20 लाख रुपये वार्षिक से कम है, तो उसे कोई टेक्स नहीं देना होगा | उससे अधिक होने पर ही उसे जीएसटी लेना होगा | अगर आपके पास टिन नंबर है तो बिना एप्लाय किये ही आपको जीएसटी नंबर दे दिया जाएगा | किन्तु अगर आप एक राज्य से दूसरे राज्य में माल बेचते हैं या आप ई कोमर्स का कार्य करते हैं, तो आपको जीएसटी का लाईसेंस लेना आवश्यक है | फिर आपके टर्नओवर से कोई मतलब नही रहेगा |

जीएसटी नंबर में शुरू के दो अंक में स्टेट का नंबर रहेगा | उसके बाद आपका पेन कार्ड का नंबर रहेगा | एक शंका आज भी लोगों के मन में है, कि जो रिटर्न फाईल करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है, उसमें हर महीने तीन बार रिटर्न फाईल करना होगा, तो यह प्रक्रिया आसान कहाँ हुई ? क्या बेचा, किसको बेचा, कब बेचा, यह महीने में तीन बार हर छोटे बड़े व्यापारी को बताना होगा | एक बड़े व्यापारी ने अगर दूसरे छोटे व्यापारी अर्थात मान लीजिये मुझे कोई सामान बेचा, तो मैं उसे अपना जीएसटी नंबर भी बता दूंगा तो वह आटोमेटिक मेरे जीएसटी एकाउंट में अपलोड हो जाएगा | फिर जब भी मैं अपना एकाउंट ओपन करूंगा, तो मुझे अपने आप ज्ञात हो जाएगा कि मैंने किस किस से क्या क्या सामान खरीदा | अब मुझे केवल इतना करना होगा कि मैंने वह सामान किसको बेचा वह भी अपलोड कर दूं | कुल मिलाकर यातो व्यापारी को स्वतः इस सबका अभ्यस्त बनना होगा, या फिर किसी कम्प्युटर दां को नियुक्त करना होगा | शायद सरकार ने नौकरी के नए अवसर इसी प्रकार बढाने का निर्णय लिया है ?

अब बात करते हैं व्यापारियों के आंदोलन की, उनके द्वारा किये जा रहे विरोध की | व्यापारी कोई सामान बेचता है तो उस पर लगने वाला टेक्स पहले जनता से बसूलता है, फिर वह टेक्स सरकार को देता है | अर्थात सीधे शब्दों में कहें तो व्यापारी की भूमिका – सरकार और जनता के बीच मध्यस्थ जैसी होती है | जनता से बसूलना और सरकार को देना |
अभी तक व्यापारी सत्रह तरह के टैक्स वसूलने, उनको अलग अलग विभागों में जमा कराने के झंझट में फंसा था | अब GST के लागू होने के बाद उसका यह झंझट पूरी तरह खत्म होगा। उसे केवल एक टैक्स जनता से वसूलना होगा और एक ही विभाग में जमा करना होगा।
अब GST से कोई वस्तु महंगी हो या सस्ती, उससे व्यापारी को तो कोई लेना देना ही नहीं है | उसकी कीमत तो हम और आप यानि इस देश की जनता चुकायेगी।
अब यह बात समझने लायक है कि आखिर GST के खिलाफ व्यापारियों का एक धड़ा नंगानाच क्यों कर रहा है?
दरअसल लफड़ा जीएसटी का है ही नहीं ।
विशेषज्ञों के अनुसार GST लागू होने के पश्चात किसी दुकानदार के लिए अपनी बिक्री छुपाना लगभग असम्भव हो जाएगा। और यदि कोई दुकानदार फिर भी ऐसा करने की कोशिश करेगा तो वो किसी ना किसी बिंदु पर पकड़ में आ जायेगा।
जाहिर सी बात है कि जब बिक्री नहीं छुपा पाएंगे तो आमदनी स्वतः उजागर हो जाएगी। और तब आयकर की चोरी करना भी असम्भव हो जाएगा।
व्यापारियों का सबसे बड़ा दर्द या डर यही है।

मैं ज्यादा समझदार तो नहीं ही हूँ, फिर भी जितना समझ में आया, वह यह कि -

उद्योगपति व लघु व्यापारी यथावत - उन्हें कोई फर्क नहीं |

व्यापारी हैरान परेशान (पूरी तरह पारदर्शी व्यवस्था किसे भायेगी भला, टेक्स चोरी की कोई गुंजाईश ही नहीं छोड़ी सुसरों ने, ऊपर से महीने में तीन बार रिटर्न फाईल करना ? कहाँ की आफत) 

आम उपभोक्ता मस्त (बेलगाम महंगाई पर लगाम) 

सरकार भरेगी खजाना भरपूर  |

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