क्या कश्मीर गुलाम है? जीहाँ कश्मीर कलुषित पाकिस्तानी मानसिकता का गुलाम है - संजय तिवारी


क्या कश्मीर गुलाम है, गुलाम है तो किसका है? यह प्रश्न मैदानी धरा से लेकर पहाड़ की चोटियों तक गूंज रहा है| किन्तु इसका सही उत्तर कोई नहीं बता रहा कि दरअसल कश्मीर तो आजाद है किन्तु कुछ लोगों की मानसिकता गुलाम है, या फिर कश्मीर मजहबी मानसिकता का गुलाम है, अलगाववादी नेताओं की जिद का गुलाम है, आतंकियों के जनाजे में जमा होकर हिंसा करती भीड़ का गुलाम कहा जा सकता है। सच है यह सवाल कि आखिर कश्मीर है किसका ?

यह सवाल अकेला नहीं है। कश्मीर के नाम की याद ही बहुतो को सवालो के जंगल में खड़ा कर देती है। कश्मीर केवल धरती का एक टुकड़ा भर नहीं है। यह साक्षात एक प्रतिमा भी है जिसमे प्राण हैं। सवालो के घेरे में कैद कश्मीर की वादियों में और भी ंप्रश्नो की गूँज उठ रही है। आज उमर ख़ालिद को कश्मीर चाहिये, शबनम लोन को कश्मीर चाहिये, अहमदशाह ग़िलानी को कश्मीर चाहिये, यासीन मलिक को कश्मीर चाहिये। लेकिन इन सवालों का जवाब कौन देगा जिनकी बहुत लम्बी श्रृंखला सदियों से चली आ रही है। 

सनातन संस्कृति के उपासक नागा, गान्धार, खासा और द्रादियों का कश्मीर आज किसका है ? महाभारत युग के गणपतयार और क्षीरभवानी मन्दिर से सुशोभित होने वाला कश्मीर आज किसका है ?त्रिखाशास्त्र से गौरवान्वित होने वाला कश्मीर आज किसका है ?सरस्वती, ब्राह्मी, पाली और संस्कृत भाषाओं से समृद्ध रहा कश्मीर आज किसका है ? वितस्ता, सिन्धु आदि नदियों के किनारे विकसित हुयी भारतीय सनातन संस्कृति वाला कश्मीर आज किसका है ? मधुमती (नीलम) नदी के तट पर ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती की आराधना के लिए स्थापित शारदापीठ से शोभित कश्मीर आज किसका है ? जिस केसरिया रंग को आज घृणा की दृष्टि से देखा जाना प्रगतिशीलता का प्रतीक मान लिया गया है उसके मौलिक स्रोत केशर की घाटियों वाला कश्मीर आज किसका है ? द्वापर युग में महाभारत के चर्चित रहे कनिष्ठ पांडव सहदेव द्वारा मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि के नाम पर स्थापित व शासित राज्य कश्यपमेरु से अपभ्रंश हुआ कश्मीर आज किसका है ? ईसापूर्व 1182 में राम के वंशज राजा गोनन्द द्वारा शासित कश्मीर आज किसका है ? ईसापूर्व 1182 से लेकर ईसवी सन् 1339 तक लगभग 145 सनातनधर्मी राजाओं से शासित रहा कश्मीर आज किसका है ? ईसापूर्व छठी शताब्दी के चरक ऋषि (Father of Medicine) का कश्मीर आज किसका है ? ईसापूर्व 273 में बौद्धों द्वारा शासित रहा कश्मीर आज किसका है ? तीसरी शताब्दी में मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक द्वारा शासित कश्मीर आज किसका है ? 

सम्राट अशोकवर्द्धन द्वारा बसायी राजधानी श्रीनगर से शासित कश्मीर आज किसका है ? छठी शताब्दी में महाराजा विक्रमादित्य से शासित कश्मीर आज किसका है ?आठवी शताब्दी में ईसवी सन् 724 से 761 तक कर्कोटा वंश के सनातनधर्मी सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ का विशाल साम्राज्य कश्मीर जो शैव आराधना के लिये विख्यात् था आज किसका है ? आठवी शताब्दी में महाराजा अवंतिवर्मन द्वारा स्थापित राजधानी अवंतिनगर से शासित होने वाला कश्मीर आज किसका है ? 12वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में शारदा लिपि में रचित ग्रंथ “राजतरंगिणी” के लेखक कल्हण का कश्मीर आज किसका है ? चौदहवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों से दलित होने से पूर्व सनातनधर्म और शैव मत का अनुयायी रहा कश्मीर आज किसका है ? 

ये सभी प्रश्न यू ही नहीं खड़े हुए हैं। इनके पीछे ठोस आधार भी है और इतिहास भी। वरना तो मिलिए, सीखिए कुपवाड़ा के निवासी शाह फैसल से जिसने साल 2010 में आईएएस की परीक्षा में टॉपर बने थे| या फिर पहले एमबीबीएस फिर IPS और अब IAS पास करने वाली लड़की रूवैदा सलाम से जिनका कश्मीरी दिल हिंदुस्तान के लिए धडकता है| क्या कश्मीरी युवा बुरहान के बजाय इन नौजवानों से प्रेरणा नहीं ले सकता? लेकिन नहीं युवाओं के हाथ में जेहादी नेताओ द्वारा दीन का नारा थमा दिया झूठी आजादी का सपना दे दिया| कोई बताये तो सही कश्मीर में क्या नहीं है? लोकतंत्र है, समानता का अधिकार है, समाजवाद है, स्थानीय लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार है| क्या नहीं है? यदि इन सबके बावजूद भी कश्मीर गुलाम है तो फिर मेरा मानना है कश्मीर कलुषित पाकिस्तानी मानसिकता का गुलाम है|

अब एक और गहरा प्रश्न स्वभावतः ही उठता है कि क्या भारत में एक भी सनातनी ऐसा नहीं है जिसे कश्मीर चाहिये, वह कश्मीर जो कभी आर्यावर्त्त का शीर्ष हुआ करता था ! कश्मीर में ईसवी सन् 1339 में मुस्लिम शासक शाहमीर का शासन हुआ । उसके बाद कई हिन्दू और सिख राजाओं से शासित रहा कश्मीर आज भारत का नहीं है इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है ? कश्मीर भारतीय संस्कृति एवं विद्या का प्राचीनतम केन्द्र रहा है जहाँ कभी “नमस्ते शारदे देवी कश्मीर पुर वासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्या दानं च देहि मे”॥ जैसी प्रार्थनायें गूँजा करती थीं ।

यह वही कश्मीर है जिसके बारे में कल्हण ने राजतरंगिणी के प्रथम तरंग के 39वें श्लोक में यह कहा है - 

विजीयते पुण्यबलैर्बर्यत्तु न शस्त्रिणम ।
परलोकात ततो भीतिर्यस्मिन् निवसतां परम् ।। 

अर्थात् “वहां (कश्मीर) पर शस्त्रों से नहीं केवल पुण्य बल द्वारा ही विजय प्राप्त की जा सकती है। वहां के निवासी केवल परलोक से भयभीत होते हैं न कि शस्त्रधारियों से”।

श्री सन्जय तिवारी
अध्यक्ष

भारत संस्कृति न्यास नयी दिल्ली 


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