राष्ट्रवाद का घोर विरोधी वामपंथ – दिवाकर शर्मा


वामपंथ एक ऐसी विचारधारा है जो राष्ट्रवाद से विद्रोह करती है ! यह विचारधारा किसी राष्ट्र-राज्य की सीमा को नहीं मानती ! वामपंथ राष्ट्रवाद को अपनी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मानती है ! भारत में २०१४ में नरेन्द्र मोदी की भारी जीत के बाद से ही वामपंथ का कद घट रहा है, इस वजह से भारत में वामपंथी निराश है ! 

यूंतो आजादी के बाद से ही रक्षामंत्री कृष्णमेनन के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी पर वामपंथी प्रभाव स्पष्ट था, जिसका बड़ा खामियाजा देश को चीन के हाथों उठाना पड़ा | किन्तु इंदिरा जी के सत्ता सँभालते ही इंदिरा गाँधी-वामपंथी समझौते के तहत भारत में वामपंथियों को शिक्षण संस्थाओं पर काबिज किया गया ! शिक्षण संस्थाओं पर काबिज होते ही वामपंथियों ने हमारे देश के मूल इतिहास को मिटा कर हमारे स्वाभिमान को चूर चूर करने का कुचक्र रचना प्रारम्भ कर दिया ! यदि हम देखें तो पायेंगे कि हमारे देश का सम्पूर्ण इतिहास वामपंथी रोमिला थापर, विपिन चंद्रा, सुमित सरकार जैसों ने लिखा है ! इन इतिहासकारों का उद्देश्य केवल इतना था कि भारत के वास्तविक गौरवशाली इतिहास को धूमिल कर दिया जाए जिससे स्वाभिमानशून्य भारतीयों में कभी राष्ट्रवाद का संचार न हो सके ! 

वामपंथ की विचारधारा से प्रभावित होकर ही स्टालिन, माओ और पॉल पॉट जैसे रक्तपिपासु बनते रहे है ! यह वामपंथी बड़े ही विचित्र किस्म के प्राणी होते है ! विरोधियों के सर्वनाश जैसे अमानवीय कृत्य को वामपंथियों की शब्दाबली में अंग्रेजी शब्द “पर्ज” अर्थात सफाई करना कहा जाता है ! कुछ समय पूर्व कम्युनिस्ट नॉर्थ कोरिया से खबर आई थी कि वहां के रक्षा मंत्री योन यौंग चोल को तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया वो भी सैकड़ों लोगों के सम्मुख.... सरेआम ! उसका कसूर केवल इतना भर था कि नॉर्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग युन के भाषण के दौरान उसकी आँख लग गयी थी ! उसे ऊंघते हुए पकड़ लिया गया ! नॉर्थ कोरिया के संविधान के अनुसार यह एक सोशलिस्ट राज्य है ! संविधान में नॉर्थ कोरिया की विचारधारा “Creative application of Marxism-Leninism” है अर्थात यहाँ मार्क्सवाद-लेनिनवाद का सृजनात्मक प्रयोग हो रहा है ! नॉर्थ कोरिया की विचारधारा मूल रूप से कम्युनिज्म थी लेकिन बदलते अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य में १९७२ में कम्युनिज्म को बदलकर समाजवाद कर दिया गया ! १९७२ के बाद से यहाँ वर्कर्स पार्टी का शासन है ! मजदूरों के नाम का ऐसा दुरुपयोग सिर्फ और सिर्फ मार्क्सवादी ही कर सकते है ! 

मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित वामपंथ में हिंसा को प्रमुखता दी जाती है ! भारत की बात करें तो यहाँ वामपंथी विचारधारा के सबसे बड़े समर्थक नक्सली और कुछ राजनैतिक दल है ! इस विचारधारा के समर्थक यह लोग कभी सामाजिक न्याय और साम्प्रदायिकता से लड़ने वाले लड़ाकू के रूप में, तो कभी पर्यावरण को लेकर पदयात्रा कर, कभी मानवाधिकार की आड़ में आन्दोलन करते नजर आते है ! अज्ञानतावश इस विचारधारा के प्रोपगंडा का शिकार होकर अज्ञानी लोग इतनी साधारण सी बात को भी समझ नहीं पाते कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद की विचारधारा पर चलने वाले सोशलिस्ट-स्टेट ने जितना जनसंहार किया है, उतने लोग तो किसी विश्वयुद्ध में भी नहीं मारे गए ! अफ़सोस जनक यह है कि यह बातें भारत के स्कूल और कॉलेज में नहीं पढाई जाती है ! 

शायद ही ऐसा कोई काम होगा जिसे तनिक भी फासीवादी कहा जाए और जिसे वामपंथियों ने न किया हो ! फिर भी वामपंथी, भारत में अपने तानाशाही रवैये की निंदा नहीं करते ! वामपंथी झुकाव वाली इंदिरा गाँधी और कांग्रेस ने १९७५-१९७७ तक देश पर इमरजेंसी थोपी, क्या इनकी नीतियाँ ठीक वैसी दिखाई नहीं देती जिसे फासीवादी कहा जाए ? भारत में अपनी असफलता भांप कर वामपंथियों ने यहाँ समाजवाद का चोगा पहिन लिया, जिसके नायक के रूप में लालू प्रसाद यादव जैसे लोग सत्ता की सीढियां चढ़ गए, जिन्होंने अपने लम्बे शासन काल के दौरान बिहार को पिछड़ा और क़ानून व्यवस्था विहीन रखा, जो बाद में न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के दोषी ठहराये गए और जेल भेजे गये | इन घोषित वामपंथियों को घोषित वामपंथी सदा फासीवादी, सम्प्रदायवाद और भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम पर सहयोग करते दिखाई दिए | वो लालू के साथ बिहार में राजनैतिक गठजोड़ किये रहे ! 

इतिहास के पन्नो को जरा सा उलट के देखने पर स्पष्ट समझ आ जाएगा कि जो हर बार गलती करें और उसे ऐतिहासिक भूल बताएं, वही वामपंथी हैं ! वामपंथियों के बारे में 24 मार्च, 1943 को भारत के तत्कालीन अतिरिक्त गृह सचिव रिचर्ड टोटनहम ने टिप्पणी लिखी कि ''भारतीय कम्युनिस्टों का चरित्र ऐसा है कि वे किसी का विरोध तो कर सकते हैं, किसी के सगे नहीं हो सकते, सिवाय अपने स्वार्थों के !'' 

वामपंथी वही है जो पकिस्तान निर्माण के समय “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगा रहे थे और वही नारे इनके अनुयायी आज जेएनयू में लगा रहे है ! यह वही वामपंथी हैं जो चीन के साथ हुए युद्ध में भारत विरोध में खड़े रहे, क्योंकि चीन के चेयरमैन माओ उनके भी चेयरमेन थे ! यह वही वामपंथी है जो आपातकाल के पक्ष में खड़े रहे ! यह वही वामपंथी हैं जो अंग्रेजों के मुखबिर बने और आज भी उनके बिगड़े शहजादे (माओवादी) जंगलों में आदिवासियों का जीवन नरक बना रहे हैं यह वही वामपंथी हैं जो भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ अंग्रेजों के साथ खड़े थे ! यह वही वामपंथी हैं जो मुस्लिम लीग की देश विभाजन की मांग का भारी समर्थन कर रहे थे ! यह वही वामपंथी हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को 'खलनायक' और जिन्ना को 'नायक' की उपाधि दे दी थी ! यह वही वामपंथी हैं जिन्होंने खंडित भारत को स्वतंत्रता मिलते ही हैदराबाद के निजाम का साथ देकर पाकिस्तान में मिलाने के लिए लड़ रहे मुस्लिम रजाकारों की मदद से अपने लिए स्वतंत्र तेलंगाना राज्य बनाने की कोशिश की ! 

वामपंथियों ने भारत की क्षेत्रीय, भाषाई विविधता के आधार पर देशवासियों को आपस में लड़ाने की रणनीति बनाई ! भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश दासता के विरूध्द भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे देशभक्तों पर वामपंथियों ने 'देशद्रोही' का ठप्पा लगाया ! भले पश्चिम बंगाल में माओवादियों और साम्यवादी सरकार के बीच कभी दोस्ताना लडाई चल चुकी हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दोनों के बीच समझौता था ! चीन को अपना आदर्श मानने वाली कथित लोकतंत्रात्मक पार्टी मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) एक ही आका के दो गुर्गे हैं !

भले चीन भारत के खिलाफ कूटनीतिक युद्ध लड रहा हो, लेकिन इन दोनों साम्यवादी धड़ों का मानना है कि चीन भारत का शुभचिंतक है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का नम्बर एक दुश्मन ! देश के सबसे बडे साम्यवादी संगठन के नेता कामरेड प्रकाश करात ने चीन के बनिस्वत देश के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज्यादा खतरनाक बताया है ! संत लक्ष्मणानंद की हत्या कम्युनिस्टों और ईसाई मिशनरी गठजोड़ का प्रमाण थी ! केरल में, आंध्र प्रदेश में, उडीसा में, बिहार और झारखंड में, छातीसगढ में, त्रिपुरा में यानी जहाँ भी साम्यवादी हावी हैं वहां इनके निशाने पर राष्ट्रवादी हैं और आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या इनके एजेंडे में शमिल है ! देश की अस्मिता की बात करने वालों को अमेरिकी एजेंट ठहराना और देश के अंदर साम्यवादी चरंपथी, इस्लामी जेहादी तथा ईसाई चरमपंथियों का समर्थन करना इस देश के साम्यवादियों की कार्य संस्कृति का अंग है ! चीनी फरमान से अपनी दिनचर्या प्रारंभ करने वाले ये वही साम्यवादी हैं जो दिल्ली दूर और पेकिंग पास के नारे लगाते रहे हैं ! 

ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने सन 62 की लडाई में हथियार कारखानों में हडताल का षडयंत्र किया था, ये वही साम्यवादी हैं, जिन्होंने कारगिल की लडाई को भाजपा का षडयंत्र बताया था ! ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण को जायज ठहराया था ! इन साम्यवादियों का मानना है कि आज भी देश गुलाम है और इसे चीन की सेना ही मुक्त करा सकती है ! इन्ही साम्यवादियों के द्वारा बाबा पशुपतिनाथ मंदिर पर हुए माओवादी हमले का समर्थन किया गया था ! ये वही साम्यवादी हैं जो महान संत लक्ष्मणानंद सरस्वती को आतंकवादी ठहरा रहे हैं ! ये वही साम्यवादी हैं जो बिहार में पूंजीपतियों से मिलकर किसानों की हत्या करा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को बुर्जुवा कहा ! 

ये वही है जिन्हें 'हिन्दुत्व को कमजोर करने में सुख मिलता है, इसीलिए भारतीय वामपंथ हर उस झूठ-सच पर कर्कश शोर मचाता है जिससे हिन्दू बदनाम हो सकें ! न उन्हें तथ्यों से मतलब है, न ही देश-हित से ! विदेशी ताकतें उनकी इस प्रवृत्ति को पहचानकर अपने हित में जमकर इस्तेमाल करती है ! मिशनरी एजेंसियाँ चीन या अरब देशों में इतने ढीठ या आक्रामक नहीं हो पाते, क्योंकि वहां इन्हें भारतीय वामपंथियों जैसे स्थानीय सहयोगी उपलब्ध नहीं हैं ! चीन सरकार विदेशी ईसाई मिशनरियों को चीन की धरती पर काम करने देना अपने राष्ट्रीय हितों के विरूद्ध मानती है, किंतु हमारे देश में चीन-भक्त वामपंथियों का भी ईसाई मिशनरियों के पक्ष में खड़े दिखना उनकी हिन्दू विरोधी प्रतिज्ञा का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है !

पाकिस्तान बनवाने के आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने वाले भारतीय कम्युनिस्टों का हिन्दू-विरोध यथावत है, किंतु जैसे ही किसी गैर-हिन्दू समुदाय की उग्रता बढ़ती है-चाहे वह नागालैंड हो या कश्मीर-उनके प्रति कम्युनिस्टों की सहानुभूति तुरंत बढऩे लगती है ! अत: प्रत्येक किस्म के कम्युनिस्ट मूलत: हिन्दू विरोधी हैं ! केवल उसकी अभिव्यक्ति अलग-अलग रंग में होती है ! पीपुल्स वार ग्रुप के आंध्र नेता रामकृष्ण ने कहा ही है कि 'हिन्दू धर्म को खत्म कर देने से ही हरेक समस्या सुलझेगी' ! अन्य कम्युनिस्टों को भी इस बयान से कोई आपत्ति नहीं है !

सी.पी.आई.(माओवादी) ने अपने गुरिल्ला दस्ते का आह्वान किया है कि वह कश्मीर को 'स्वतंत्र देश' बनाने के संघर्ष में भाग ले ! भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में चल रहे प्रत्येक अलगाववादी आंदोलन का हर गुट के माओवादी पहले से ही समर्थन करते रहे हैं ! अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थिति भी बहुत भिन्न नहीं ! माकपा के प्रमुख अर्थशास्त्री और मंत्री रह चुके अशोक मित्र कह ही चुके हैं, 'लेट गो ऑफ़ कश्मीर'-यानी, कश्मीर को जाने दो !

वामपंथियों के बारे में समझने वाली बात बस इतनी सी है कि यह विपक्ष में रहते हुए अधिकार, प्रजातंत्र और आजादी जैसी बड़ी-बड़ी बातें करते है और आन्दोलन करते है वहीँ सत्ता में आने के बाद सबसे बड़े दमनकारी साबित होते है ! यही उनकी चाल, चरित्र और चेहरे की हकीकत है !

दिवाकर शर्मा
संपादक
क्रांतिदूत डॉट इन 

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