प्लास्टिक : हमने खुद पाल रखा है अपना दुश्मन - संजय तिवारी

हर घर में हमने खुद पाल रखा है अपना दुश्मन। सबसे सस्ता और सबसे सुविधाजनक माने जाने वाला प्लास्टिक दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। नदी नालो को छोड़ भी दीजिये तो दुनिया में हर साल 88 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंच रहा है। इसी वजह से एक लाख से ज्यादा समुद्री जीव हर साल दम तोड़ रहे हैं। प्लास्टिक कितना बड़ा खतरा है, यह इसी से समझा जा सकता है कि दुनिया में आज तक जितना भी प्लास्टिक बना है, वो किसी न किसी रूप में मौजूद है। प्लास्टिक खत्म होने में हजार सालों का समय लेता है। यह स्थिति इसलिए भी डराती है, क्योंकि दुनिया में हर साल 300 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जा रहा है। सिर्फ समुद्र में पड़े प्लास्टिक कचरे को ही साफ करने की बात करें तो जिस रफ्तार से यह काम अभी चल रहा है, उससे इसे पूरा होने में करीब 80 हजार साल लगेंगे। प्लास्टिक हमें बीमार भी बना रहा है। अकेला अमेरिका प्लास्टिक से होने वाली बीमारियों पर हर साल 340 अरब डॉलर खर्च कर रहा है। हालांकि, प्लास्टिक पर पूरी रोक संभव भी नहीं है, लेकिन हम समझदारी से इसका इस्तेमाल करें तो इसके खतरों को सीमित कर सकते हैं। दुनिया के पॉल्यूटेड शहरों की लिस्ट में हमारे दस शहर हैं। ग्वालियर दूसरे स्थान पर है। इलाहाबाद 3rd, पटना 6th, रायपुर 7th, दिल्ली 11th, लुधियाना 12th, कानपुर 15th, खन्ना 16th, फिरोजाबाद 17th और लखनऊ 18th स्थान पर है।
90 कंपनियां दुनिया का 63% पॉल्यूशन फैला रही हैं, इनमें टॉप सात कंपनियां एनर्जी सेक्टर यानी तेल, गैस और कोयले से जुड़ी हैं। बाकी कंपनियों में सीमेंट उत्पादक कंपनियां शामिल हैं।

कुछ ख़ास तथ्य :

हर मिनट 10 लाख पॉलिथीन बैग, हर साल 88 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में जा रहा है। दूध से लेकर दवा की बाेतल तक। हमारे जीवन में हर कहीं प्लास्टिक है। हम अंधाधुंध प्लास्टिक का इस्तेमाल करते जा रहे हैं। हर साल दुनिया में पांच सौ अरब प्लास्टिक बैग इस्तेमाल किए जाते हैं। इतने ज्यादा कि हर मिनट में दस लाख से ज्यादा बैग इस्तेमाल कर फेंक भी दिए जाते हैं। प्लास्टिक हमें सुविधा तो दे रहा है, लेकिन भीषण संकट की शर्त पर। प्लास्टिक से पॉल्यूशन फैलाने में भारत दुनिया के 20 शीर्ष देशों में एक है। 88 लाख टन प्लास्टिक जो समुद्र में हर साल फेंका जाता है। उसका बड़ा हिस्सा भारत से जाता है। 15,342 टन भारत में एक दिन का प्लास्टिक कचरा। 9,205 टन रोज़ इकट्‌ठा किया जा रहा है। 6,137 टन कचरा प्रॉसेस नहीं हो पाता, बिखरा रहता है।

केंद्र ने कानून बनाया, 12 राज्यों में बैन, लेकिन इस्तेमाल नहीं घट रहा

2016 में केंद्र सरकार पुराने प्लास्टिक वेस्ट कानून को खत्म कर नए नियम लाई। माइक्रॉन की मोटाई 40 से बढ़ाकर 50 कर दी गई। प्लास्टिक निर्माताओं को कलेक्ट बैक सिस्टम से जोड़ा गया। यानी इन्हीं निर्माताओं/ब्रांड ओनर्स पर जिम्मेदारी डाली गई कि वो मार्केट से प्लास्टिक वापस लेने का सिस्टम डेवलप करेंगे। पंजाब, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, हिमाचल, गोवा और पश्चिम बंगाल ने भी बाद में प्लास्टिक थैलियों पर रोक लगा दी। फिलहाल प्लास्टिक का कचरा सबसे ज्यादा महाराष्ट्र (4,69,098 टन), गुजरात (2,69,295 टन) और तमिलनाडु (150323 टन) में पैदा हो रहा है। दिल्ली में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली प्लास्टिक कटलरी समेत सिंगल यूज वाला प्लास्टिक का हर सामान बैन किया जा चुका है।

प्लास्टिक कटलरी ज्यादा खतरनाक

प्लास्टिक कटलरी से ज्यादा नुकसान हो रहा है लेकिन दिल्ली के अलावा कहीं रोक नहीं लग सकी.

जमीन : प्लास्टिक खत्म नहीं होता। 50 माइक्रॉन से पतला प्लास्टिक सूखकर टूट जाता है। जमीन में मिल जाता है, जिससे अंडरग्राउंड वाटर जहरीला हो जाता है।

पानी : प्लास्टिक की वजह से 1200 से ज्यादा समुद्री जीवों की प्रजातियां खतरे में। मुंबई, अंडमान-निकोबार और केरल में सबसे पॉल्यूटेड बीच।

हवा: प्लास्टिक कचरे के डिस्पोजल लिए देश में व्यवस्था नहीं है। इसे लैंडफिल साइट्स में दबा दिया जाता है। जलाया भी जाता है। ऐसे में हवा जहरीली हो जाती है।

एटम बम से भी बड़ा खतरा है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय के मुताबिक, प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल हमारी नदियों और तालाबों को बर्बाद कर रहा है। यह अगली पीढ़ी के लिए परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक है। यह न सिर्फ जानवरों, बल्कि हमारे संसाधनों को नष्ट कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी मई 2012 को की थी। आंध्र के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में तब पिटीशन लगाई थी जब मरी हुई गायों के पेट से 60 किलो प्लास्टिक निकला था। कोर्ट ने इसे बड़ा विषय मानते हुए कई पिटीशन्स को एक जगह लाने को कहा था।

सिर्फ धरती को ही नहीं, समुद्र को भी बना दिया डंपिंग यार्ड

समस्या:

1 खरब प्लास्टिक बैग्स दुनिया में हर साल तैयार किए जाते हैं।
एक प्लास्टिक बैग को पूरी तरह से खत्म होने में 1000 साल लगते हैं ।
35 लाख टन प्लास्टिक की थैलियां हम हर साल फेंक देते हैं।

संकट:

1 लाख समुद्रीय जीव प्लास्टिक बैग के पॉल्यूशन के कारण हर साल मारे जाते हैं।
4.3 बिलियन गैलन क्रूड ऑयल हर साल प्लास्टिक बैग बनाने में इस्तेमाल हो जाता है।
46 हजार प्लास्टिक बैग समुद्र में हर एक स्क्वेयर मील के दायरे में पाए जाते हैं।

समाधान

प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर अगर पैसे लिए जाएं तो संभवत: इनका इस्तेमाल कम हो सकता है।
93.5% तक प्लास्टिक का इस्तेमाल आयरलैंड में इसी तरह कम हुआ।

प्लास्टिक फेंकने से पहले समझें, दोबारा इस्तेमाल के लिए यह कितना सेफ
सोसाइटी ऑफ द प्लास्टिक इंडस्ट्री के मुताबिक प्लास्टिक सात प्रकार के होते हैं। चलन में ज्यादातर छह तरह के प्लास्टिक होते हैं। यूं तो खाद्य पदार्थों में प्लास्टिक बोतलें सुरक्षित मानी जाती हैं, लेकिन गर्मियों में हमें सावधानी रखनी चाहिए। हल्की क्वालिटी के प्लास्टिक में गर्मी की वजह से टॉक्सिन निकलते हैं। - इस साल देश में प्लास्टिक का इस्तेमाल 20% बढ़ जाएगा यानी 178 लाख टन हो जाएगा। 2015-2016 में इसकी खपत 148 लाख टन थी।

कौन-कितना खतरनाक?

1. पीईटी/पीईटीई: दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। पानी, तेल की बोतलें इसी प्लास्टिक से बनती हैं। - औसत खतरनाक
2. एचडीपीई: सीमित इस्तेमाल। दूध, पानी के जग, जूस, बैग, शैम्पू की बोतलें, खिलौने इसी से बनते हैं। - कम खतरनाक
3. पीवीसी: इसके दोबारा इस्तेमाल से बचना चाहिए। गद्दे का कवर, कन्टेनर्स में इस्तेमाल।- खतरनाक
4. एलडीपीई: इसे रिसाइकल किया जा सकता है। ग्रॉसरी बैग्स, गार्बेज बैग्स में इसी का इस्तेमाल होता है। - कम खतरनाक
5. पीपी पॉली: रीसाइकल कर इस्तेमाल कर सकते हैं। फूड कन्टेनर्स, सिरप की बोतलें बनती हैं।
- कम खतरनाक
6 पीएस: इसे दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कटलरी, मीट ट्रे और कप इसी से बनते हैं।- खतरनाक

160 अरब का सिर्फ बोतलबंद पानी

जो पानी हमें प्रकृति ने मुफ्त दिया, उसे हमने बाज़ार बना दिया। अकेले भारत में बोतलबंद पानी का बाज़ार अगले साल तक 160 अरब रुपए का हो जाएगा। 2020 तक पानी का ग्लोबल मार्केट 280 अरब डॉलर का हो जाएगा।

एक टन प्लास्टिक रीसाइकल करने पर 685 गैलन ऑयल बचेगा। 5774 किलो वॉट बिजली बचेगी। 30 क्यूबिक यार्ड जगह कचरागाह बनने से बच जाएगी। चिड़िया, मछलियां और डॉल्फिन सुरक्षित रहेंगी।

प्रकृति जिसने हमें भरपूर दिया

पेड़- कुदरत ने तीन खरब पेड़ दिए हैं, भारत में 35 अरब, हर व्यक्ति के पास 28 पेड़। दुनियाभर में कुल 3 खरब पेड़ । यानी हर व्यक्ति के पास 422 पेड़। प्रति व्यक्ति पेड़ के हिसाब से कनाडा सबसे आगे। यहां प्रकृति ने हर एक को 8953 पेड़ दिए हैं। सबसे पीछे मिस्र है, यहां हर व्यक्ति के पास सिर्फ एक पेड़ हैं।

हवा- हर साल छह अरब टन ऑक्सीजन

कुदरत ने हमें हवा दी है। हवा यानी अलग-अलग गैसों का मिश्रण। नाइट्रोजन, ऑक्सीजन जैसी दस गैसों से मिलकर वायुमंडल बना है। हमारे लिए सबसे जरूरी यानी ऑक्सीजन वातावरण में 21% है और नाइट्रोजन 78%। जीवन के लिए दोनों गैसें जरूरी हैं।

पानी- हर मिनट एक अरब टन पानी बारिश के रूप में। दुनिया में मौजूद 97% पानी महासागरों में है। यह खारा है, पीने लायक नहीं है। सिर्फ ढाई फीसदी पानी ही पीने लायक है। इस पानी में से भी 30% भूगर्भ जल है। प्रकृति हमें अस्तित्व बनाए रखने के लिए हर मिनट कहीं न कहीं एक अरब टन पानी बारिश के रूप में देती है।

हमारा लालच

अधिक जमीन पाने के लिए हम दुनिया में हर साल काट डालते हैं। 15 अरब से ज्यादा पेड़। मानव सभ्यता के बढ़ने के साथ ही दुनियाभर में 46% पेड़ घट चुके हैं। 73 लाख हेक्टेयर जंगल हर साल काट दिया जाता है। जब तक आप यह वाक्य पढ़ेंगे, उतनी देर में तीन हेक्टेयर जंगल दुनिया से साफ हो चुका होगा।

हवा-हम 40 अरब टन कार्बन डायऑक्साइड 

हम हर साल 40 अरब टन कार्बन डायऑक्साइड हवा में छोड़ रहे हैं। यह 2013 के मुकाबले करीब ढाई फीसदी ज्यादा है। हर साल लगातार बढ़ रही है। दुनिया में सबसे बड़ा प्रदूषण उत्सर्जक देश अमेरिका सिर्फ अपने फायदे के लिए अब खुद क्लाइमेट चेंज पर हुए समझौते से हट गया है।

पानी- 70% कचरा पानी में 

पिछले 40 साल में दुनिया की आबादी दाेगुनी हुई है, पानी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ गया है। नए तरीके न अपनाने और पैसा बचाने के लालच में हम आज भी 82% पानी खेती में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी तरह उद्योगों से निकलने वाला 70% ट्रीट करने के बजाय पानी में बहा देते हैं।

जंगल-40 साल में आधे हो गए जानवर

हाथी 12 साल में 60% घटे- दुनियाभर में अब सिर्फ1 लाख हाथी बचे हैं।
कछुए 20 साल में 95% घटे- सिर्फ दस हजार मादा कछुए बचे दुनिया में।
डॉल्फिन 30 साल में 75% घटी- हेक्टर्स प्रजाति की डॉल्फिन सिर्फ 7400 बची हैं दुनियाभर में।
60% तक घट गई घरेलू गौरैया- देश में यह अब विलुप्त प्रजातियों की सूची में आ गई।
12.90 करोड़ हेक्टेयर जंगल खत्म
2014 की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार 1970-2010 के बीच 52% जानवर घट गए। ऐसा जंगलों में इंसानी दखल से हुआ। जल प्रदूषण की वजह से समुद्री जीवों की संख्या में तेजी से कमी आई है। पिछले 25 साल में 12.90 करोड़ हेक्टेयर जंगल खत्म।
फिनलैंड में 72 हजार पेड़ प्रति वर्ग किमी पर। विश्व में सर्वाधिक। यही वजह है फिनलैंड साफ हवा के मामले में तीसरे स्थान पर, खुशहाली में 5वें।
दुनियाभर में सिर्फ 17 हजार शेर बचे हैं। हालांकि, भारत में शेरों की संख्या में 2010 की तुलना में 27% वृद्धि हुई है। भारत में कुल 523 शेर बचे हैं।

संजय तिवारी
वरिष्ठ पत्रकार
संस्थापक,
भारत संस्कृति न्यास 

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