एक संघ प्रचारक का साक्षात्कार - गौरक्षा, भाजपा के साथ संघ के सम्बन्ध, हिन्दू राष्ट्र जैसे सामयिक मुद्दों पर संघ का रुख |



पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्नाटक दक्षिण के सह प्रचार प्रमुख श्री प्रदीप ने एक कन्नड़ न्यूज़ पोर्टल Samachara.com को एक साक्षात्कार दिया | उन्होंने बेबाकी से समसामयिक मुद्दों पर आरएसएस का अभिमत व्यक्त किया -

प्रश्न: प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, 2014 के आम चुनावों और नरेंद्र मोदी के पद संभालने के बाद, आरएसएस ने काफी वृद्धि की है। क्या यह सच है?

प्रदीप: परिस्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल, अपने स्थापना काल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार बढ़ता ही रहा है । शाखाओं की संख्या में वृद्धि, संघ विचारधारा की व्यापक स्वीकृति के कारण हुई है, केवल राजनीतिक नेतृत्व में बदलाव के कारण नहीं । विगत 91 वर्षों में आरएसएस का जो विकास हुआ है, उसका श्रेय केवल प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को दिया जा सकता है, जो लगातार प्रवास करते हैं और संघ की गतिविधियों को बढ़ाते हैं । आरएसएस ने हमेशा कहा है कि यह एक "कैडर आधारित संगठन" है, उसी के कारण वृद्धि, स्थिरता और विस्तार संभव हुआ है।

आपको आरएसएस की समयरेखा पर बहुत पीछे जाने की आवश्यकता नहीं है, हम पिछले दशक में हुई संघ की उल्लेखनीय वृद्धि को देखें । वह दशक जिसमें 2006 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य गुरु गोलवलकर जी का शताब्दी समारोह संपन्न हुआ । उस वर्ष के बाद के आंकड़ों से पता चलता है कि आरएसएस की शाखाओं की संख्या में प्रत्येक वर्ष 10% - 20% के बीच वृद्धि हुई है। यही प्रवृत्ति 2014 के चुनावों के बाद भी जारी रही है। हां, यह सही है कि वर्तमान समय की अनुकूल परिस्थितियां संघ के पारिस्थितिक तंत्र को बढ़ावा देती हैं।

प्रश्न: क्या आपके पास साझा करने के लिए कुछ हालिया आंकड़े हैं?

प्रदीप: हम साल में दो बार देशभर के आंकड़े एकत्र करते हैं। मार्च 2017 के महीने में इकट्ठा किए गए आंकड़े बताते हैं, कि इस समय हमारी 57,233 दैनिक शाखाएं हैं । साप्ताहिक मिलनों की संख्या कुल 14,896 है, जबकि 8,226 मासिक मिलन होते हैं | अगर हम दक्षिण कर्नाटक के आंकड़ों की बात करें तो कुल 1943 शाखा, 468 साप्ताहिक और 63 मासिक मिलन हैं। हमारे पास 100 से अधिक पूर्णकालिक प्रचारक हैं, जो केवल दक्षिण कर्नाटक में शाखा विस्तार और संबंधित गतिविधियों पर काम कर रहे हैं।

लगभग एक दशक से कुछ पहले हमने आईटी कर्मचारियों का साप्ताहिक मिलन प्रारम्भ किया । बेंगलुरू में इस तरह के 130 मिलन संपन्न होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में हर हफ्ते लगभग 10-15 की औसत उपस्थिति होती है। हम ऐसे मिलन के माध्यम से लगभग 4000 आईटी इंजीनियर तक पहुंच चुके हैं। हमारे 30 से अधिक सेवा संगठनों द्वारा सेवा गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। ये तो वे सेवा गतिविधियां हैं जो संगठनात्मक स्तरों पर समन्वित हैं, इनके अतिरिक्त कई स्वतंत्र परियोजनाएं समविचारी संस्थानों के सहयोग से भी चल रही हैं। संघ का भी अपना आउटरीच कार्यक्रम है जिसके माध्यम से हम आरएसएस और इसकी लोकप्रिय सेवा गतिविधियों में रुचि रखने वाले लोगों से जुड़ते हैं। यह कार्य हमारी वेबसाइट पर दी गई एक सुविधा के माध्यम से किया जाता है जिसे जॉइन आरएसएस कहा जाता है।

प्रश्न: ठीक है, इससे संगठन की ताकत दिखती है। इतनी सारी शाखाएं, मिलन, सेवा गतिविधियों और काम के कई आयाम चल रहे हैं, लेकिन आखिर यह किया क्यों जा रहा है? इस सब का उस समाज पर क्या प्रभाव है, जिसमें हम रहते हैं?

प्रदीप: आपका सवाल उचित है। ऐसे सभी कार्यक्रमों का हमारा अंतिम लक्ष्य 'मनुष्य निर्माण' और सामाजिक परिवर्तन है, जिसके आधार पर एक मजबूत, आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण | संगठन की स्थापना का यही उद्देश्य था । संगठित समाज ही प्रगति करता है | हम कोई बाह्य मॉडल नहीं अपना रहे हैं | हम एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण चाहते हैं जहां लोगों में भारत के प्रति अगाध श्रद्धा हो, सीमाएं सुरक्षित हों, देशवासियों का जीवन सुरक्षित, सुखी और समृद्ध हो, जिससे भावी पीढ़ियों का बेहतर भविष्य भी सुनिश्चित किया जा सके।

इसीलिए संघ व्यक्ति निर्माण पर ही सर्वाधिक ध्यान केंद्रित करता है, संघ विचार से अनुप्राणित स्वयंसेवकों का विशाल समूह सेवा गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के लिए अपना समय देता है। संघ के प्रशिक्षित स्वयंसेवक सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं। अतः इसके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता, संघ और उससे संबद्ध सभी संगठनों के प्रयासों का प्रभाव संख्यात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार से देखा जा सकता है ।

योग्यता के मापदंड को उन मानकों के माध्यम से समझा जा सकता है जो संघ ने सार्वजनिक जीवन में स्थापित किये, सामाजिक सक्रियता, तत्व निष्ठा, घृणा किसी से नहीं, सर्व समावेशी दृष्टिकोण, राष्ट्रहित के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं, कार्यप्रणाली में पारदर्शिता, परिवर्तन और सुधार के प्रति लचीला रुख रखते हुए भी अपरिवर्तनीय लक्ष्य । ये ही वे उच्च मानदंड हैं, जो आरएसएस के संस्थापक पूर्वजों द्वारा निर्धारित किए गए थे और जिन्हें अगली पीढ़ियों के द्वारा भी निरंतर जारी रखा जा रहा है।

आरएसएस ने हमेशा अपने मात्रात्मक मूल्यांकन को समाज के लिए खुला रखा है। संघ प्रत्येक वर्ष आँकड़ों के साथ सामने आता है | संघ प्रेरित संगठनों की संख्यात्मक वृद्धि की जानकारी समय-समय पर सार्वजनिक की जाती है। जैसा कि मैंने पहले कहा था कि संगठनात्मक विकास लगातार और सुसंगत रहा है। संघ विचार के पंख महाद्वीपों की सीमाएं भी लांघ गए हैं, जिसके कारण आरएसएस विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवक संगठन बन गया है | संक्षेप में आरएसएस के मात्रात्मक विकास का यह बड़ा प्रमाण है। आरएसएस द्वारा प्रेरित संगठनों ने अपने संबंधित क्षेत्रों में उच्च सम्मान प्राप्त किया है । 

प्रश्न: यह रोचक तथ्य है कि एक ओर तो आप आत्मनिर्भर देश के निर्माण के बारे में बात करते हैं। लेकिन एफडीआई नरेन्द्र मोदी की निजी पहल है और देश की अर्थव्यवस्था के लिए इसका समर्थन किया जा रहा है? 

प्रदीप: आत्मनिर्भर देश का मतलब दुनिया से अलग थलग होना या अकेले रहना नहीं है । इसका अर्थ अन्य देशों के साथ सह-अस्तित्व है, किन्तु हमारे अपने संसाधनों पर निर्भरता और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करने में सक्षम होना है। नए वैश्विक परिदृश्य में जहाँ देश अर्थतंत्र में स्वतंत्र हो, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और अन्य पहलुओं के लिए परस्पर आश्रित हैं, यह अनिवार्य हो जाता है कि देश को लेन देन की नीति अपनानी होती है। 

लेकिन जिस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं हो सकता, वह है आर्थिक सुरक्षा और संप्रभुता । भारत के कई देशों के साथ व्यापार का इतिहास है। सवाल यह पूछा जाना चाहिए कि जब हम वैश्विक व्यापार में जाते हैं तो हमारी व्यापार प्रक्रिया पर हमारा कितना नियंत्रण होता है। आज की दुनिया में एफडीआई के लिए मजबूत कारण है। हम अपनी सीमाओं को जानते हैं और सीमाओं को स्पष्ट रूप से समझने के लिए एक लक्ष्मण रेखा भी खींची है। किसी भी मजबूत देश ने शक्तिशाली राष्ट्रों को खुश करने और वैश्विक समीकरणों में स्थान बनाए रखने के लिए स्वयं के हितों से कभी भी समझौता नहीं किया है। घरेलू कानून, राष्ट्रीय आवश्यकताओं, उत्पादन करने की क्षमता और इच्छा, बचाने के लिए ज्ञान, आंतरिक अर्थतंत्र में दृढ़ता से टिके रहना और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में व्यावहारिक होना, वर्तमान सरकार की मुख्य आर्थिक नीति होना चाहिए। विकास का बेंचमार्क बदल रहा है, अतः उसके अनुसार बदलना भी जरूरी है। 

प्रश्न: आर्थिक मुद्दों पर आपका अभिमत है कि हमें समय के अनुसार बदलना होगा। किन्तु जब सांस्कृतिक और धर्मार्थ विषयों की बात आती है, तो ऐसा लगता है कि आरएसएस दृढ दिखाई देता है, हिलता ही नहीं है। कम से कम समाज को ऐसा महसूस होता है | उदाहरण के लिए गौ-रक्षा के नाम पर हत्याएं, उस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया हैं? 

प्रदीप: सबसे पहले तो मैं यह कहूंगा कि जब आप यह कहते हैं कि आरएसएस धर्म और संस्कृति से संबंधित मुद्दों पर दृढ है, तो मैं इसे तारीफ के रूप में लेता हूं । गाय के वास्तविक संरक्षकों को हत्यारा कहना थोड़ा कठोर लगता है | सतर्क समाज अब न केवल सक्रिय बल्कि कुछ ज्यादा ही सक्रिय है, वास्तविक सतर्कता के कृत्यों की आलोचना करना या उनके प्रति कठोर होना, अंततः समाज को बैकफुट पर डाल देगा। जागरूक सामाजिक सक्रियता की व्यापक अवधारणा के साथ समझौता किया जाएगा, जबकि मूल तत्व स्वतंत्र होना चाहिए, अनन्त गतिशीलता। 

हम अक्सर समाचारों में असामाजिक तत्वों के बारे में पढ़ते है कि चोरी करते पकडे गए, चेन छीनकर भागते हुए या जेबकाटते पाए गए | साथ ही हमें यह समाचार भी पढ़ने को मिलता है कि लोगों ने अपराधियों को पकड़ा, उनकी पिटाई लगाई और बाद में उन्हें पुलिस को सौंप दिया। जब सतर्कता के इस तरह की कृत्य की सराहना की जाती है, तो फिर जो गाय हिंदूओं के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, उसकी रक्षा के लिए खड़े होने वालों को हत्यारा कहना कहाँ तक उचित है ? क्या हिंदुओं के लिए अपनी आस्था पर खरा उतरना गलत है? इसका अर्थ यह नहीं है कि कानून का उल्लंघन होना चाहिए। विश्वास और श्रद्धा के प्रतीकों को सुरक्षित करना हिंदू समाज के लिए नया नहीं है। ये प्रतीक सामाजिक पहचान और स्वयं समाज का मूल रूप हैं। एक प्रकार से गाय की सुरक्षा स्वयं समाज की जीवन रक्षक प्रणाली की सुरक्षा है। 

प्रश्न: आप कैसे कह सकते हैं कि ऐसी घटनाएं आत्म-सुरक्षा के लिए होती हैं? कृपया विस्तार से बताएं। क्या आप इस प्रकार से गौ रक्षा के नाम पर आपराधिक गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं? 

प्रदीप: आरएसएस किसी भी प्रकार की हिंसा या आपराधिक गतिविधियों का समर्थन नहीं करता है। गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल कोई भी व्यक्ति हो, आपराधिक कार्य से कठोरता से निपटा जाना चाहिए। किन्तु यह दोनों पक्षों पर लागू होता है | गाय की सुरक्षा के नाम पर क़ानून हाथ में लेना अगर आपराधिक कृत्यों में शामिल हैं, तो जो लोग अवैध रूप से गौ तस्करी में लिप्त हैं, उनका क्या ? लेकिन दुर्भाग्य से आलोचना केवल गौ संरक्षण के कार्य की होती है । ऐसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दों को उचित और संतुलित होना चाहिए। हम खुद से पूछें कि ऐसी अप्रिय घटनाएं क्यों होती हैं? ऐसा क्यों है कि इस तरह के कृत्य केवल रातों के दौरान बड़े पैमाने पर हुए हैं? यदि यह दावे किये जा रहे हैं कि यह गौ संरक्षण के नाम पर हुए, तो इसका सीधा मतलब यह भी है कि गायों का गैरकानूनी तौर से अवैध व्यापार किया जा रहा है। अतः स्वाभाविक रूप से लोग (गौ रक्षक) सक्रिय हो जाते हैं और गैरकानूनी रूप से ले जाई जा रहीं गायों को बचाने की कोशिश करते हैं। हम इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया को बहस का मुद्दा बनाते हैं । लेकिन हम इसके मूल कारण पर बहस करना भूल जाते हैं। 

अतः, इसका स्पष्ट रूप से अर्थ है कि सतर्कता का वास्तविक कार्य, स्वयं समाज की सुरक्षा के लिए है, यह विचारधारा के पालन में विफलता नहीं है । यहां स्वयं का मतलब है – व्यक्ति, समाज, सामाजिक जीवन की समर्थन प्रणाली, आस्था, विश्वास और श्रद्धा के प्रतीक – इन सभी को एक साथ रखा गया है। 

प्रश्न: भाजपा को आरएसएस का राजनीतिक चेहरा माना जाता है। आज भाजपा में मोदी एक बड़ा चेहरा बन गए हैं। पार्टी के पास अतीत में इस तरह का एक प्रमुख चेहरा नहीं था। आरएसएस, एक बड़े नेता के रूप में मोदी के विकास को किस रूप में देखता है? 

प्रदीप: यह कहना कि भाजपा, आरएसएस का राजनीतिक चेहरा है, पूरी तरह से सच नहीं है। दोनों संगठनों की स्वतंत्र संगठनात्मक संरचना और संविधान हैं, और दोनों पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। कामकाज के तरीके भी एक दूसरे से पूरी तरह से अलग है। लेकिन भाजपा संगठन में आरएसएस के कई स्वयंसेवक और प्रचारक हैं। उपयुक्त स्पष्टीकरण यह होगा कि भाजपा का अपना संविधान और एक सुव्यवस्थित संगठनात्मक ढांचा है । इसके अपने अध्यक्ष, सचिव और अन्य संगठन चलाने वाले हैं। आरएसएस द्वारा कभी भाजपा के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता । हम स्वयं होकर उन्हें कभी नहीं बुलाएंगे और नाही उन्हें कोई निर्देश देंगे। भाजपा के अनुरोध पर ही हमारी विचारणीय भूमिका है। जो स्वयंसेवक भाजपा में हैं, वे उन विचारों और सिद्धांतों को भाजपा में प्रतिध्वनित करते हैं, जिनसे वे सम्बद्ध हैं । 

जहाँ तक चेहरों का सवाल है, आपको आरएसएस में आरएसएस का चेहरा मिलेगा और भाजपा में भाजपा का चेहरा मिलेगा। इन दोनों का सम्मिश्रण न करें । दूसरा, यह कहना सही नहीं है कि कोई व्यक्ति संगठन से बड़ा हो सकता है। जो लोग संगठन के विज्ञान और संरचना को समझते हैं, वे इस तरह की बयानबाजी नहीं कर सकते । संगठन हर हाल में व्यक्ति की तुलना में बड़ा है | जैसा कि पूर्व में उत्तर दिया जा चुका है, संघ की संगठनात्मक संरचना और उसके पारिस्थितिकी तंत्र अनिवार्य रूप से कैडर आधारित है। कार्यकर्ता संगठन की नींव हैं। लेकिन एक सार्वजनिक जीवन में, संगठन को इसे प्रतिनिधित्व करने के लिए एक नेता की जरूरत होती है। जो व्यक्ति तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है वह स्वाभाविक ही सार्वजनिक रूप से अधिक दिखाई देता है और संगठन का चेहरा बन जाता है, किन्तु संगठन का पूर्ण आकार नहीं । इस समय नरेंद्र मोदी और अमित शाह राजनीतिक संगठन के चेहरे हैं। स्वाभाविक रूप से चेहरे बदलते रहते है | समय समय पर इस कद के नेता पैदा होते रहे है। 

प्रश्नः एक अंतिम सवाल, यह धारणा है कि आरएसएस ने अपना रुख बदल दिया है। आजकल नातो हम अखंड भारत शब्द सुन रहे हैं और नाही हिंदू राष्ट्र जैसे शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है?

प्रदीप: आरएसएस ने अपना रुख नहीं बदला है। लेकिन आप इसे बदलते समय के अनुसार अभिव्यक्ति में परिवर्तन कह सकते हैं। कोई इसे लचीलापन कह सकता है, किन्तु जहाँ तक मिशन, कार्य, मूल्य और लक्ष्य का प्रश्न है, उनमें कोई लचीलापन नहीं है । संघ का मानना ​​है कि, सभी सकारात्मक राष्ट्रवादी ताकतों को एक साथ लाने और उनके साथ मिलकर काम करना मुख्य है, इसमें किसी प्रकार की बाधाओं को बचा जाना चाहिए। फिर चाहे वो बाधा अभिव्यक्ति के रूप में हो, अथवा शब्दों या कार्यप्रणाली की शैली आदि के रूप में हो । इस दृष्टिकोण ने व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों को एक साथ ला दिया है । संघ के द्वार देश निर्माण के मिशन में सम्मिलित होने के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए खुले हैं | इतना ही नहीं तो संघ स्वयं भी देश के व्यापक हित में किसी अन्य का सहयोगी बनने हेतु भी तत्पर है । जो भी व्यक्ति या संगठन आम सहमति के कार्यों हेतु साथ आ रहे हैं, उन्हें नातो अपने विचारों से समझौता करने की आवश्यकता है, और नाही अपनी कार्यप्रणाली की शैली बदलने की जरूरत, जिसके लिए उन्होंने अपनी सार्वजनिक पहचान बनाई है । यह सामाजिक सक्रियता का अगला स्तर है जो दिखाई दे रहा है । विचारों में भिन्नता और असहमति होते हुए भी, हम सभी एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं, और साथ मिलकर लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

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