विवेकानंद केंद्र की जीवनव्रती उपाध्यक्ष माननीया निवेदिता दीदी का गुरूपूर्णिमा सन्देश |



प्रिय बहनो और भाईयो
सप्रेम नमस्कार |

इस वर्ष गुरुपूर्णिमा 9 जुलाई को है। अपनी गुरूपरंपरा के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु, व्यास जयन्ती पर हम गुरुपुर्णिमा मनाते हैं। बैसे तो गुरु परंपरा ईश्वर से प्रारम्भ होती है, किन्तु व्यास जयंती- आषाढी पूर्णिमा को हम गुरुपूर्णिमा के रूप में इसलिए मनाते हैं, क्योंकि यह महर्षि वेद व्यास ही थे जिन्होंने उन विभिन्न ऋषियों के अक्षय ज्ञान का भण्डार - विभिन्न ऋचाओं का सम्पादन व संकलन किया | उन्होंने वेदों की विभिन्न शाखाओं और विद्याओं को विभिन्न समुदायों और परिवारों के आधार पर क्रमबद्ध व्यवस्थित भी किया और गुरु-शिष्य परंपरा को प्रारम्भ किया । यही कारण है कि इतने सारे आक्रमणों के बावजूद वेदों और विभिन्न विद्याओं का काफी बड़ा भाग संरक्षित रहा और आज भी वह विद्यमान है । अतः आज का दिन हमारी संस्कृति और हमारे जीवन के सभी गुरुओं को भी कृतज्ञतापूर्ण स्मरण करने का दिन है।

विवेकानंद केंद्र में हम लोगों के लिए ईश्वर ही हमारा गुरु है | भाषाओं से परे, ईश्वर का जो सबसे अच्छा नाम है और जिसमें ईश्वर के सभी रूप और नाम सम्मिलित हैं, वह है ओमकार। अतः हम ओमकार को अपना गुरु मानते हैं। यह समस्त गुरु-परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है | हमारे पांच उत्सवों में से कुछ उत्सवों को हम सामान्यतः सार्वजनिक रूप में नहीं मनाते हैं, बल्कि हम उन्हें कार्यकर्ताओं की आंतरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए मनाते हैं। गुरुपूर्णिमा एक ऐसा ही उत्सव है।

इस साल हम जिस विषय पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं वह है 'जड़ को जल' । स्वामी विवेकानंद ने कहा था 'जल वृक्ष का मूल है, और पूरा पेड़ जलमय है । वेद हमारे देश का मूलतत्व है | वेदों का क्या मतलब है? - एकत्व का वैदिक दृष्टिकोण और वैदिक सिद्धांत |

हमारा देश स्वतंत्र हो गया है; हिंदुओं को जागृत और संगठित भी किया जा सकता है, परन्तु जब तक हम अपनी राष्ट्रीय प्रणाली और निजी जीवन का एकत्व के वैदिक सिद्धांतों और वैदिक दृष्टिकोण के आधार पर पुनर्निर्माण नहीं करते, असली राष्ट्र-निर्माण नहीं होगा। ऐतिहासिक मजबूरियों ने हमें कुछ प्रथाओं को अपनाने के लिए विवश किया, किन्तु वे हमारी मूल परंपरा या हमारी जड़ नहीं है और समय के परिवर्तन के साथ हमें उचित रुख और प्रथाओं के जरिये हमारी जड़ों से जुड़ने की आवश्यकता है।

विवेकानंद केंद्र का मूल उद्देश्य यही है। एकनाथजी ने कहा था कि एक ऐसे विचार आंदोलन की आवश्यकता है जो वेदों से अपनी प्रेरणा ले । स्वामी विवेकानंद ने भी कहा, 'अपनी आध्यात्मिकता के साथ दुनिया को जीतो' | एकनाथजी ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की -

"हमारे देश की बीमारियों का इलाज करना है तो पूरे देश में सही विचारों के एक शक्तिशाली आंदोलन को प्रारंभ करो । यह द्विआयामी कदम होना चाहिए। एक ओर तो इसका उद्देश्य हो 

(1) हमारे लोगों में अन्तर्निहित भगवान को शाब्दिक के स्थान पर उपनिषदों की शिक्षाओं के अनुरूप सही आध्यात्मिक इच्छाशक्ति में रूपांतरित करना, अर्थात् (ए) प्रत्येक आत्मा में मूलतः देवत्व है और (बी) स्वयं के स्थान पर ईश्वर में आस्था, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति मेंदिव्य ऊंचाइयों को छूने की क्षमता है | 

दूसरी तरफ (2) इस आध्यात्मिक पुनरुत्थान के उत्साह को राष्ट्र निर्माण के कार्य में परिवर्तित करना |"

बाद में इसे हमारे केंद्र की प्रार्थना में और अधिक विस्तार से समझाया गया है। हम पांच वैदिक सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जिन्हें हम अपने केंद्र की प्रार्थना में देखते हैं।

1. ध्येयमार्ग यात्रा जो कि जड़ों को पानी देने पर केंद्रित है । अगर त्याग, सेवा और आत्मबोध आदि व्यवहार में है, तो वैदिक सिद्धांतों के अभ्यास करने में कठिनाई नहीं होगी |
2. वयम सुपुत्रा अमृतस्य नूनम- आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर हमारे अंदर के सर्वश्रेष्ठ की अभिव्यक्ति के लिए, अथक प्रयास ।
3. बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के आर्त और विपन्न की सेवा ही ईश्वर की हमारी आराधना है (निष्काम बुद्ध्या) - स्वार्थरहित कार्य |
4. तव एव आशीष पूर्णताम ततप्रयातु – हे ईश्वर आपने जो भी योजना बनाई हो, हम उसकी पूर्ति हेतु पूरी शक्ति से प्रयत्न करें, आपके आशीर्वाद की कामना है। इस प्रकार किये गएकाम में नम्रता है और ईश्वर की योजना के अनुसार कार्य करने की भावना ।
5. जीवने यावदादानम स्यात प्रदानम ... – जो हमने ग्रहण किया, आपने उससे कहीं अधिक दिया - जीवन गणना करने के लिए नहीं है |

इन सभी को व्यवहार में लाने के लिए हम कार्यकर्ताओं को कुछ बातों पर ध्यान केंद्रित करना होगा -

1 समय नियोजन - जब हम यह जानते हैं कि हम काम नहीं कर सकते। क्या जरूरी है और क्या नहीं | तो हमें व्यर्थ में समय नहीं खोना चाहिए | हमें अपने प्रतिबंध स्वयं लगाना चाहिए, हम इसका इस्तेमाल करने के लिए इसे व्रत कह सकते हैं, इसके पहले कि यह हमें निगल जाए।
2. वाणी संयम - श्री राम ने हनुमान का चयन उनकी वाणी को सुनकर किया था। उनके वाणी में चार विशेषतायें थीं | अदीर्घम - ठीक से बात करें - जब तक कि हमें अपने लक्ष्य और काम की योजना स्पष्ट नहीं हैं, हम ठीक से बात नहीं कर सकते | अविलम्बतम - तुरंत बताओ – हम तब तक अपने काम के बारे में नहीं जानते या हमें अपने कार्यक्षेत्र के बारे में नहीं पता है, हम उसके बारे में ना तो तुरंत बता सकते हैं, नाही उसके बारे में बात कर सकते हैं | असंदिग्धम – अस्पष्ट ना बताएं | हम असंदिग्द्ध केवल तभी हो सकते हैं जब हम अपने काम के बारे में स्पष्ट हों, हमेशा अपने कार्य के बारे में सतर्क और ईमानदार रहो | अव्यथम - दूसरों के मन में दर्द, चिंता नहीं पैदा करनी चाहिए। जब तक हम दूसरों के प्रति सहानुभूति नहीं रखते, हम अव्यथम रहकर बात नहीं कर सकते।
3. आत्मीयता - संपूर्ण सृष्टि, उस एक आत्म चैतन्य से ही आई है। एकोहम बहूस्याम - मैं एक हूं, मैं अनेक हो जाऊं | ओमकार उपासना और कुछ नहीं है, यह केवल एकत्व की अनुभूति है । सभी के प्रति एकत्व की भावना | हमारे काम का प्रमुख आधार अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और सृष्टि के प्रति एकात्मता या आत्मीयता ही है |
4. निरहंकारिता – आत्मीयता की अनुभूति के लिए व्यक्ति को सबसे पहले “मैं” को छोड़ना पड़ता है; 'मैं और मेरा', और तब ही हम एक टीम में काम कर सकते हैं। यह 'मैं' एक बड़ी बाधा है | कई बार कोई कार्यकर्ता बहुत सक्रिय और सक्षम हो सकता है, किन्तु अगर उसका'मैं' हर कार्य में काम कर रहा है, तो वह कार्यकर्ताओं का समूह नहीं बना सकता और नाही काम का विस्तार कर सकता है।
5. अपने अन्दर झांको और उन गुणों को देखो, जो काम के लिए उपयोगी हो सकते हैं, उन्हें और विकसित करना चाहिए तथा जो काम के लिए उपयोगी नहीं हैं, उन्हें कम करने की समयसीमा में योजना बनाना चाहिए । अगर कार्यकर्ता में पहले से ही टीम भावना है तो कोई दूसरा हमें नहीं सुधार सकता, हमें स्वयं ही अपने भीतर देखकर सही करना है।

अंत में जड़ों को सिंचित करने का मतलब है कि धीरे-धीरे हमारे जीवन में वैदिक सिद्धांतों को शामिल करते हुए तदनुरूप स्वयं में बदलाव ।

यह तब ही होता है जब कोई चुनौतीपूर्ण कार्य सामने हो, तब ही हमारे अन्दर का सबसे अच्छा प्रकट होता है। इससे ही हमें आवश्यक गुण, और इसके लिए आवश्यक टीम वर्क को विकसित करने में सहायता मिलती है। इसलिए, इस वर्ष अधिकारी बैठक में हुए निर्णय के अनुसार प्रत्येक नगर के लिए “करणीयम” अर्थात करने योग्य दस में से तीन कार्य चुने गये हैं । प्रत्येक नगर को उन तीन करणीय कार्यों के लिए विस्तृत प्रक्रिया की योजना भी करना चाहिए । यदि यह कार्य गुरुपूर्णिमा के पूर्व या गुरुपूर्णिमा तक नहीं किया जा सके तो हम ओमकार के साथ उत्सव मना सकते हैं।

गुरुपर्णिमा के दिन, नगर केन्द्र प्रार्थना का अभ्यास कर सकता है, जिसमें प्रार्थना के ऊपरोक्त पांच बिंदुओं पर चर्चा या बौद्धिक हो अथवा नगर द्वारा उपरोक्त पांच गुणों या बाह्य और आतंरिक तैयारी के लिए आवश्यक तीन करणीय कार्यों व उद्देश्यों पर कार्यशाला आयोजित की जा सकती है | सभी आवश्यक मानवीय और अन्य संसाधनों आदि का सूक्ष्म नियोजन पूर्व से किया जाना चाहिए । आतंरिक तैयारी से अभिप्राय है, हमारा संकल्प, प्रतिबद्धता और तीन करणीय कार्यों के लिए आवश्यक गुणों को बढ़ाने का प्रयत्न । उदाहरण के लिए यदि मान लें कि हमने योगवर्गों की संख्या में वृद्धि का फैसला किया है, तब वर्ग शिक्षक जब वर्ग ले रहे हों, अन्य कार्यकर्ताओं को योग का अध्ययन और अभ्यास करना चाहिए ताकि केंद्र का वातावरण ऐसा हो कि लोग केंद्र में आने और योग सीखने के लिए प्रेरित हों | इस प्रकार, तीन करणीयम को नगर के सभी कार्यकर्ताओं के दिमागों तक पहुँचाना और समझाना चाहिए। गुरुपर्णिमा इस प्रकार का माहौल बनाने व स्वयं को तैयार का अवसर होना चाहिए।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
निवेदिता

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