चित्रकूट में भाजपा की पराजय या विजय ? - हरिहर शर्मा



यह ध्यान देने योग्य बात है कि पिछले 27 सालों में 6 बार हुए चुनावों में चित्रकूट से भाजपा सिर्फ एक बार ही जीत पाई थी, और वह भी महज 722 वोटों से ।

2013 के चुनाव में कांग्रेस के श्री प्रेमसिंह कुल 45732 वोट पाकर विजई हुए थे | उस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के श्री तीरथ प्रसाद कुशवाह भी चुनाव लडे थे, तथा उन्हें कुल 24214 वोट प्राप्त हुए थे | 

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्यासी थे श्री सुरेन्द्र सिंह गहरवार, उन्हें कुल 34743 वोट मिले थे |

कांग्रेस के विजई प्रत्यासी श्री प्रेमसिंह की असामयिक मृत्यु के कारण हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्यासी श्री शंकरदयाल त्रिपाठी को हराकर श्री नीलांशु चतुर्वेदी 14333 वोटों से विजई हुए हैं | नीलांशु चतुर्वेदी को 668,10 और बीजेपी प्रत्याशी शंकर दयाल को 52,477 वोट मिले। 

अब भी क्या दो और दो चार लिखना पडेगा ?

सीधी सी बात है – भाजपा प्रत्यासी को 2013 की तुलना में 17734 वोट ज्यादा मिले हैं और वह भी तब, जबकि बसपा का हाथी कांग्रेस को रोंदने के स्थान पर उसे सिर पर बैठाकर चल रहा था | 

भोपाल के वरिष्ठ कांग्रेस नेता श्री पी सी शर्मा तो मतगणना के प्रारम्भिक चरण में टी वी चेनल पर यह डींग हांकते नजर आ रहे थे कि 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने जो 28 हजार से ज्यादा की जीत इस सीट पर पाई थी, उससे कहीं ज्यादा बड़ी जीत इस बार होगी | लेकिन उनका यह अनुमान तो पूरी तरह ध्वस्त ही हो गया | 

निश्चय ही भाजपा इस पराजय के कारणों की मीमांसा करेगी ही | किन्तु कार्यकर्ताओं को निराश होने का कोई कारण नहीं है | प्रदेश की जनता कोलारस और मुंगावली में निश्चय ही शिवराज जी और नरेंद्र मोदी की जनहितैषी योजनाओं पर ही ठप्पा लगाने वाली है | 

चुनाव का गणित बसपा के कारण प्रभावित हुआ है, तो भविष्य के लिए भाजपा को सतर्क और सावधान होने की आवश्यकता है | साथ ही एक महत्वपूर्ण विन्दु पर भाजपा नेतृत्व को ध्यान देने की अविलम्ब आवश्यकता है, वह है कर्मचारियों का असंतोष | इसका प्रगटीकरण इस तथ्य से होता है कि इस चुनाव में एक भी पोस्टल वेलेट नहीं डला | ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों ने किसी के भी पक्ष में वोट नहीं किया | अपाक्स और सपाक्स के झगड़े में, म.प्र. सरकार किसी को भी साधने में असफल रही है | "

कोई माई का लाल आरक्षण नहीं हटा सकता", यह उद्धत वाक्य शिवराज जी को बहुत भारी पड़ रहा है | किन्तु यह राहत की बात है कि अभी भी कर्मचारी कांग्रेस समर्थक नहीं हुआ है | भाजपा सरकार से निराश अवश्य हुआ है |

जहाँ तक जनमत सवाल है, वह तो आज भी 2013 के समान ही है | बस कार्यकर्ताओं की एकजुटता और प्रत्यासी चयन में सूझबूझ ही विजयमाल पुनः गले में आने का मन्त्र है |


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