कर्मयोगी कौन ? – स्व. एकनाथ रानाडे


कर्मयोगी वह जो अपने समय और ऊर्जा को उत्पादक कार्य में लगाएं । किसी व्यक्ति की सर्वाधिक भलाई के लिए चार प्रशस्त मार्ग हैं - कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, और राज योग, जिसे कुछ लोग ध्यान योग भी कहते हैं । इन चारों मार्गों में से हमने जानबूझकर कर्म योग का मार्ग चुना है | मानसिक नियंत्रण का नहीं, ज्ञान का नहीं, भक्ति का नहीं, अपितु क्रियाशीलता का मार्ग । इसका अर्थ यह नहीं है कि भक्ति, ज्ञान और ध्यान का हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं है। इन चारों रास्तों का जीवन में अलग अलग महत्व है, ये कोई अभेद्य कक्ष नहीं हैं ।

हमारे पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब महासागर और दक्षिण में हिन्द महासागर है। हमारी समझ में आसानी के लिए हमने उन्हें अलग अलग नाम दिये है। लेकिन वस्तुतः तो वे पानी की एक ही चादर है। इसी प्रकार हमने हमारी अपनी समझ के लिए इन चार रास्तों का नाम अलग अलग रखा है, लेकिन वे सब जीवन में एक दूसरे के पूरक हैं। जहां कर्म की प्रधानता है, वह कर्म योग है और जहां ज्ञान की प्रबलता है, वह ज्ञान योग है | 

नाम उस तत्व के अनुसार दिया जाता है जो कि प्रबल होता है। उदाहरण के लिए, हर एक में तीन मूल गुण होते हैं, राज, तमस और सत्व। सभी में ये तीनों गुण विद्यमान हैं। आप को कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा, जिसमें केवल सत्व गुण हो, मिलावट रहित रजोगुण हो, या केवल तमोगुण ही हो ।

जब आप कहते हैं कि कोई तामसी प्रकृति का है तो इसका मतलब है कि उसमें यह तत्व विशेष प्रमुखता से है। जब कोई व्यक्ति आलसी, सुस्त, उनींदा हो, जिसमें किसी कार्य को करने का कोई उत्साह नहीं हो, हमेशा निष्क्रिय रहना पसंद करता हो, उस व्यक्ति में तमोगुण की प्रबलता कहा जाता है | 

एक आदमी जो कुछ न कुछ करने को सदा उत्सुक रहे, जो कर रहा है, उसके साथ और भी बहुत कुछ करना चाहे, यहां से वहां, वहां से यहाँ कूदता रहे, हमेशा ऊंचाई पर रहना पसंद करे, लेकिन बहुत अहंकारी हो, तो उस गतिविधि अवतार में हम रजोगुण की प्रमुखता कहते है। ऐसे लोगों को राजसी व्यक्ति कहा जा सकता है। और एक व्यक्ति जो चिंतनशील है, तनाव की अवस्था में भी जिसका मन शांत रहता है, जिसका कोई भी कार्य निरर्थक नहीं होता, जो अकारण कूदफांद और नृत्य नहीं करता, हमेशा सही दिशा में चलता है, ऐसे व्यक्ति को एक सात्विक व्यक्ति कहा जा सकता है। 

व्यक्ति की कोई भी गतिविधि इच्छाओं से परे नहीं है; 'मुझे यह चाहिए, मुझे वह चाहिए होता ही है | किन्तु यदि गतिविधि उच्च जीवन मूल्यों से प्रेरित है, तो यह एक सात्विक व्यक्ति का लक्षण है।

मैंने केवल आपको समझाने के लिए इन्हें अलग अलग वर्णित किया है, किन्तु कोई व्यक्ति केवल सात्विक, राजसी या तामसी नहीं पाया जाता, आदमी में इन तीनों का मिश्रण होता है। एक तत्व प्रमुख हो सकता है, किसी व्यक्ति के जीवन में कभी एक तत्व की प्रमुखता हो सकती है, किन्तु संभव है कि बाद में कभी किसी दूसरा तत्व की प्रधानता हो जाए | और जीवन के तीसरे चरण में तीसरा गुण प्रभावी हो जाए । एक ही जीवन में, संभव है कि उस व्यक्ति में ये तीनों ही गुण दिखाई दें । जीवन का एक चरण दूसरे चरणों से भिन्न हो सकता है | लेकिन जब जिस तत्व की प्रधानता हो, उसे विशेष नाम तब ही दिया जाता है । 

इसी प्रकार, जब हम कर्म योग की बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि मुख्यतः आप जो करना चाहते हैं, उसी अनुरूप आपने विषय चुना है | अगर आप कर्म के मार्ग पर जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि राजयोग, भक्ति योग और ज्ञान योग इस कर्मपथ के अधीन होंगे। जब हम कहते हैं कि एक व्यक्ति कर्म योगी है, तो इसका मतलब है कि शेष सभी तीनों योग उसके जीवन में जो कुछ भी घटता है, कर्म के मार्ग में अलग अलग अनुपात में योगदान करते हैं। वे सहयोगी हैं | वे इस मार्ग के सहायक हैं। वे केवल उसे अधिक सक्रिय होने में सहायता करते हैं |

एक कर्म योगी का मतलब यह नहीं है कि वह कभी प्रार्थना नहीं करता। अगर किसी को भी कर्म योगी कहा जाए, तो इसका अर्थ यह भी नहीं है कि वह ध्यान नहीं करता, या उसे योगासन की ज़रूरत नहीं है, या उसे प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है, उसे पूजा की जरूरत नहीं है या उसे दर्शन शास्त्र की ज़रूरत नहीं है, या किसी चीज के गहन अर्थ में नहीं जाना है; या उसे केवल अपने हाथों और पैरों से काम करना चाहिए; नहीं यह ऐसा नहीं है। इसका अर्थ केवल इतना है कि कर्म योगी जब प्रार्थना करता है, तो वह काम करने के लिए अधिक शक्ति प्राप्त करने और सही मार्ग दिखाने की प्रार्थना करता है। उसके लिए प्रार्थना आवश्यक है, लेकिन जो वह करना चाहता है, उसे सही ढंग से करने की सामर्थ्य पाने के लिए | उसकी प्रार्थना, उसे प्रेरणा देती है | वह प्रार्थना करने के लिए प्रार्थना नहीं करता है, बल्कि वह उसे कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। प्रार्थना उसे ऊर्जा देती है और उसे सही मार्ग पर भी रखती है। वह प्रार्थना करेगा, लेकिन केवल और केवल प्रार्थना नहीं करेगा, अपने कार्य की कीमत पर प्रार्थना नहीं करेगा। अपनी गतिविधि की कीमत पर, वह प्रार्थना नहीं करेगा

एक कर्मयोगी प्रार्थना करेंगा, लेकिन वह देखेगा कि उसकी प्रार्थना, उसकी पूजा, कार्य को शक्ति प्रदान करने की दिशा में योगदान करे । उसे सही दिशा में काम करने के लिए अधिक प्रकाश मिले । इसका अर्थ यह नहीं है कि कर्म योगी ध्यान नहीं करेंगे; या वह योग का अभ्यास आदि कुछ नहीं करेगा; या वह प्राणायाम से दूर रहेगा; या उसका आध्यात्म से कोई लेनादेना नहीं होगा, नहीं वह इन सब आध्यात्मिक प्रथाओं का उपयोग करेगा क्योंकि उसे काम करना है। उसे पूरी दक्षता और तीव्रता के साथ काम करना है, अपने कार्य में अधिक दक्षता प्राप्त करने के लिए, वह योगाभ्यास करेगा; वह राज योग के माध्यम से जो सीखता है, उस सब का उपयोग करता है । उसे ध्यान केंद्रित करना और अधिक शक्ति देता है, उसे इससे और अधिक स्थिरता मिलती है, जो काम के लिए बहुत ज़रूरी है | यदि आपका मन विचलित है, तो आप ठीक से अपना नेटवर्क नहीं बना सकते। अतः "चित्तवृष्टि निरोधाः" विचारों पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है।

कर्मयोगी अपने मन को स्थिर करने के लिए सभी प्रथाओं का उपयोग करेंगे, क्योंकि स्थिर मस्तिष्क के साथ ही वह कुशलतापूर्वक काम कर सकता है। इस प्रकार राजयोग का भी कर्म योगी के जीवन में एक विशेष स्थान है। ज्ञान योग भी चीजों के मूल में जाने के लिए आवश्यक है, सही परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए तत्वमीमांसा आवश्यक है | जब आप ज्ञान योग के मार्ग पर चलते हैं, तो आप गूढ़ और गहन होते हैं और यदि आपने अपने दिमाग को चीजों के गहन अर्थ की खोज में जाने के लिए प्रशिक्षित कर लिया किया है, तो यह कर्म योग के लिए उत्कृष्टता, पूर्णता, परिशुद्धता के लिए बहुत सहायक होता है | यदि कोई सतही ढंग से सोचता और निर्णय लेने वाला है, फैसले पारित करता है, तो वह जीवन में बुरी तरह असफल हो जायेगा। यदि उसे गहन चिंतन और उचित परिप्रेक्ष्य में चीजों को समझने की आदत है, तो वह सफल होगा । लेकिन, कोई कुछ कहे; उस पर त्वरित प्रतिक्रिया देना, बिना समझे अपनी राय बनाना, गहन आपदा में फंसाता है । किसी बात के गहन अर्थ को समझकर सही परिप्रेक्ष में निर्णय लेना, एक कर्म योगी के लिए जरूरी है | अतः कर्म योगी के लिए ज्ञान योग, भक्ति योग और राज योग बहुत आवश्यक हैं। यह अलग बात है कि वह इनका उपयोग कर्मयोग के बेहतर क्रियान्वयन के लिए करता है। वह उनका अभ्यास करता है, उनका उपयोग करता है, ताकि वह अधिक कुशलता से, सही और प्रभावी तरीके से काम करने में सक्षम हो। यही उसके प्रकरण में अन्य तीन योगों की भूमिका है।

मान लीजिए, कि ध्यान करने से एक कर्मयोगी को कर्म से विरक्ति हो जाती है, वह जितना अधिक ध्यान करता है, उतना कर्म से दूर हो जाता है, तो इसका अर्थ है कि उसके ध्यान में कुछ गड़बड़ है। उनके ध्यान करने का तरीका बहुत ग़लत है । यदि उसने कर्म का मार्ग चुना है, तो जब वह ध्यान करता है, तो उसका ध्यान उत्पादक होना चाहिए। उसके लिए क्या उत्पादक है? उसे अपने काम को करने पर अधिक जोर देना चाहिए। अगर आधे घंटे के ध्यान से, व्यक्ति ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है, वह उत्साह के साथ काम करने लगता है तो यह ध्यान उसके लिए उपयोगी है | और मान लीजिये कि यदि आपको यह लगता है कि योगासन करने से आपको नींद आ रही है, तो इसका अर्थ है कि आपके योगासन में कुछ गंभीर गड़बड़ है। आपने शीर्षासन किया, या अन्य कोई आसन किए, तो आपमें उत्साह का संचार होना चाहिए । किन्तु अगर आप निद्रा महसूस करते हैं, तो आपके योगों के साथ कुछ गंभीर गलत है। यदि आप कुछ विचार कर रहे हैं, तो उसका योगदान आपकी गतिविधि के लिए होना चाहिए। इसके लिए आप ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं, जब आप परमेश्वर के साथ मिलकर काम करते हैं तो वह आपको प्रकाश देता है, जिससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है | इसलिए यदि आप कर्म योगी हैं, तो आपकी प्रार्थना आपको काम करने और अधिक काम करने के लिए प्रेरित करेगी। आपका चिंतन, सोच, ध्यान भी आपको काम करने और अधिक काम करने के लिए प्रेरित करेगा। सब कुछ आपको अधिक काम करने में मदद करना चाहिए। यही एकमात्र परीक्षण है |

यदि आप आज आधे घंटे ध्यान करते हैं, आप कल दो घंटे और अगले दिन चार घंटे ध्यान करते हैं, तो फिर अपने आप को कर्म योगी मत कहिये । आप कर्म योगी नहीं हैं, आप भ्रमित हैं। यदि आप कर्म योगी हैं तो सिर्फ आधे घंटे का ध्यान पर्याप्त होना चाहिए, अन्यथा आपके पास अन्य चीजों के लिए समय नहीं होगा। यदि आपने कर्म योग का मार्ग चुना है, तो फिर आधे घंटे का ध्यान पर्याप्त है, किन्तु वह केंद्रित और मजबूत होना चाहिए। इससे आपको पर्याप्त ताकत मिलेगी | आपकी प्रार्थना, ध्यान और अन्य सभी योग ठीक तरह से सिलसिलेवार होना चाहिए, यदि आप अपने मार्ग के प्रति निष्ठावान हैं, तो समय विभाजन ठीक से किया जाना चाहिए ।

मैंने इस उदाहरण को कई बार दिया है | जैसे कि हम हमारे भोजन में सांबर लेते हैं। सांबर में दाल, पानी और नमक का अनुपात क्या है?इसका बड़ा हिस्सा दाल और पानी है, जबकि नमक कम है। लेकिन यह कम नमक क्या करता है? हालांकि यह बहुत कम है, किन्तु यह पूरे सांबर को स्वादिष्ट बना देता है। यह सांबार में फैलता है, इसी प्रकार ध्यान, चिंतन और प्रार्थना आदि का अनुपात कर्म योगी के जीवन में होना चाहिए। हमारा कार्य दाल और पानी के अनुपात में होना चाहिए। और भगवान का ध्यान, उस नमक की तरह होना चाहिए। यह थोड़ा कम हो सकता है, लेकिन यह पूरे जीवन, संपूर्ण दैनंदिन दिनचर्या को स्वाद देता है। जब आप हार्मोनियम बजाते है, तो उसमें एक मुख्य वस्तु है | उसकी भूमिका क्या है? यह पार्श्व में सबसे पीछे है | उसी प्रकार आपकी सभी गतिविधियों में, आपके दिमाग का भगवान के साथ तालमेल होना चाहिए। सुबह, जब आप अपना दिन शुरू करते हैं, तो ध्यान से या प्रार्थना के माध्यम से, भगवान के साथ संवाद करें, उनका आशीष लें । यह आधा घंटा शेष साढ़े तेईस घंटे आपके दिमाग में रहेगा। यही आपको सही रास्ते पर रखेगा | यह आपको कभी भी अपना आधार खोने नहीं देगा | यही भगवान के साथ ध्यान या सम्वाद का उद्देश्य है। "

यदि हम इस अनुपात खो देते हैं, तो हम न तो यहां रहेंगे और न ही वहां होंगे। एक बार दायित्व स्वीकार करने का अर्थ है, कि हमने अपना रास्ता चुन लिया है। अगर हमने इस पथ को चुना है तो पूरी योजना कार्य उन्मुख होना चाहिए। इस प्रकार, कार्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता स्पष्ट हो जाती है - कर्मयोगैकनिष्ठः | फिर आसन, प्रार्थना, ध्यान, स्वाध्याय के सभी अभ्यास सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनते हैं और हमारे जीवन में सही अनुपात में स्थापित होते हैं। हम अपने समय की सही योजना बनायें, ताकि हम घर या कार्यस्थल पर हमारी सभी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें | और फिर हमारे दायित्व को पूरा कर सकें। 

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