माघ मास पर विशेष। दिव्य साधनाकाल अन्त:ऊर्जा के जागरण का - पूनम नेगी

भारतीय दर्शन में आध्यात्मिक दृष्टि से माघ मास का विशेष महत्व है। इसे आलोक मास भी कहा गया है। अन्त:ऊर्जा के जागरण के इस विशिष्ट साधनाकाल की महिमा गोस्वामी तुलसीदास जी के इन शब्दों में स्वत: स्पष्ट हो जाती है- माघ मकर गत रवि जब होई, तीरथ-पतिहि आव सब कोई। इस माह में पड़ने वाले हर पर्व के रूप-रंग निराले व अनोखे हैं। इसमें आध्यात्मिकता के साथ भरपूर उल्लास भी है और लोकतत्वों की जीवंतता भी। प्रकृति के प्रति आदरभाव और सकारात्मकता है, तो लोकरंजन की गहन भावना भी। इसमें दान देने की उदात्तता समाहित है। स्नान-दान का यह काल विशेष मानव समाज को अपने अंतर में संयम व त्याग के दिव्य भाव जगाने की शुभ प्रेरणा देता है। देश के विभिन्न प्रांतों में अद्भुत परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ एक माह का यह स्नान पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

हिन्दू कैलेंडर के ग्यारहवें महीने को माघ कहा जाता है। ऋतु चक्र के परिवर्तन का यह स्नान पर्व तब मनाया जाता है, जब खेतों में फसल कट चुकी होती है और किसान अच्छी पैदावार के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते हैं। हमारा अन्नदाता खुद को प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसको अपना सबसे प्रिय और आराध्य मानता है। शरीर विज्ञानियों के अनुसार यह महीना शरीर को कैल्शियम, विटामिन डी और आयरन से पोषित करने का महीना है। इस स्नान पर्व के प्रसाद में भी यह विशिष्टता दिखती है। यह वह समय होता है जब शीतकाल अपने यौवन पर होता है। ऐसे ठंडे मौसम मे सभी त्यौहार तिल, गुड़ से मनाए जाते हैं। उड़द की दाल की खिचड़ी खायी जाती है और पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। ऋतु अनुकूलन के लिए नदी स्नान की परम्परा तथा उष्ण प्रवृत्ति के भोज्य पदार्थों के सेवन का विधान हमारे मनीषियों की वैज्ञानिक सोच का परिचायक है। इस मौसम मे शाक, फल और वनस्पतियां अमृत तत्व को अपने में सर्वाधिक आकर्षित करती हैं। माघ के महीने में होने वाली वर्षा की एक-एक बूंद अमृततुल्य होती है। इससे रबी की फसल पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

मकर संक्रांति के दिन से सूर्य नारायण अपनी दिशा बदलकर धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण कर हमारे अधिक निकट आ जाते हैं। उनकी यह समीपता हमारे जीवन में नवजीवन भरती है। सूर्य की ऊर्जा अधिक मात्रा में मिलने से जीव-जगत में सक्रियता बढ़ जाती है। सूर्य अपनी गति उत्तरायण की ओर करके यह संकेत देते हैं कि अब अंधकार को छोड़ प्रकाश की ओर बढ़ने का समय आ गया है। इसी कारण साधना विज्ञान के मर्मज्ञों ने माघ मास को सबसे अधिक महत्व दिया है।

वैदिक साहित्य में उल्लेख है कि हमारे ऋषि-मनीषी इस महीने में विभिन्न उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधनाएं करते थे। यह परंपरा रामायण एवं महाभारत काल में भी प्रचलित थी। रामायण काल में तीर्थराज प्रयाग में महर्षि भारद्वाज का आश्रम एवं साधना आरण्यक था, जहां समूचे आर्यावर्त के जिज्ञासु साधक एकत्रित हो संगमतट पर एक मास का कल्पवास करते थे। आज भी माघ मास में प्रयाग की पुण्यभूमि में होने वाले आध्यात्मिक समागम में बड़ी संख्या में लोग कल्पवास के लिए जुटते हैं। कुंभ पर्व पर तो इसकी रौनक देखते ही बनती है। एक माह तक चलने वाले इस धार्मिक मेले में देश-विदेश से करोड़ों लोग स्नान, दान जप, तप, भजन, प्रवचन के लिए यहां आते हैं। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार, उच्जैन, नासिक, अयोध्या व नैमिषारण्य जैसे देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में इस स्नान पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। वैसे तो इस महीने की प्रत्येक तिथि पवित्र मानी गई है, लेकिन प्रमुख पर्व हैं-मकर संक्रांति, संकष्टी चतुर्थी, अचला सप्तमी, माघी पूर्णिमा षट्तिला एकादशी, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी और जया एकादशी। माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि भीष्माष्टमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नर्श्वर शरीर का त्याग किया था। षट्तिला एकादशी के दिन छह प्रकार से तिल के सेवन का विधान है। इस दिन तिल के जल से क़ान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान,तिल का भोजन तथा तिल का दान किया जाता है। मौनी अमावस्या माघ मास का प्रमुख पर्व है, जो कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। आत्मसंयम की साधना की दृष्टि से इस पर्व का विशेष महत्व है। इसी प्रकार माघ मास की शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि देवी सरस्वती का इस दिन आविर्भाव हुआ था। इसीलिए इसे वागीर्श्वरी जयंती एवं श्रीपंचमी कही गयी है। माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सनातन धर्म में माघ माह में तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी स्नान का विशिष्ट महत्व माना गया है। वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम आचार्य त्रिवेणी स्नान की तात्विक विवेचना करत हुए कहते हैं कि आध्यात्मिक रूप से हमारी देह ही तीर्थ है और भ्रूमध्य (दोनो भौंहों के मध्य त्राटक केन्द्र ही त्रिवेणी संगम। इसी त्राटक बिंदु में ध्यान करना ही त्रिवेणी संगम में स्नान करना है। वे कहते हैं कि माघ मास की पुण्यदायी प्रात:कालीन बेला में जब भुवन भास्कर अपनी दिशा बदल कर वातावरण में अपने प्रकाश से धरती पर जीवंतता का संचार करते हैं; त्राटक बिंदु में सविता देवता का ध्यान बहुत फलदायी होता है।

पुण्य प्राप्ति के लिए जिन अवसर को हमारे धर्म में महत्ता दी गई है, उनमें माघ मास श्रेष्ठतम है। शास्त्रों में प्रसंग मिलता है कि भरत ने कौशल्या से कहा कि यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वे बैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वह वंचित हो जाएं और उन्हें निम्न गति प्राप्त हो। यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले लगा लिया। पौराणिक विवरण कहते हैं कि प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा माघ स्नान से कुरूपता से मुक्ति हुए थे। भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याध्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान से ही श्राप मुक्ति मिली थी। शास्त्रों में वर्णित इन प्रसंगों से माघ मास की महत्ता का पता चलता है। आज हमारी जीवनदायिनी नदियां हमारे कुकृत्यों से बेतरह प्रदूषित हो रही हैं, सूख रही हैं; फिर भी हम धर्मप्राण भारतीयों की आस्था तो देखिए, पुण्य अर्जित करने हर स्नान पर्व पर भारी तादात में उमड़ पड़ते हैं। इन स्नान पर्वों पर हमें अपनी जीवनदायिनी नदियों को स्वच्छ व प्रवाहमान बनाये रखने का संकल्प लेना चाहिए ताकि हमारी देव धरा में इन पुण्य परम्पराओं का प्रवाह अक्षुण्ण रह सके।

पूनम नेगी 
16 ए, अशोक मार्ग पटियाला कम्पाउण्ड 
हजरतगंज, लखनऊ 
मो. 9984489909

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