कलम खामोश क्यों ?



इस समय देश में बौद्धिक युद्ध चल रहा है | मुकाबला है मेक इण्डिया टीम और ब्रेक इण्डिया ब्रिगेड के बीच | भारत को आगे बढ़ता देखकर बहुत से लोग चिंतित हैं | राष्ट्र हित में देशभक्तों की कलम खामोश नहीं रहना चाहिए जबकि ब्रिटिश काल से चली आ रही व्यवस्था के अंतर्गत कलम को षड्यंत्रपूर्वक खामोश रखा गया है। राष्ट्रविरोधी किसी भी घटना पर हमें मुखर होना चाहिए । राष्ट्र के बारे में सोचे बिना हम मानवतावादी नहीं हो सकते। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले के चौथे दिन प्रेरणा मीडिया एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय साहित्य संगम में रखी गयी परिचर्चा “कलम खामोश क्यों” में प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक श्री जे. नंद कुमार ने यह विचार व्यक्त किये | 

श्री नन्द कुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र भाव माना गया हैं, किन्तु एक योजना के तहत हिन्दू लड़कियों का धर्मांतरण करा कर देश तोड़ने के हथियार के रूप में उनका प्रयोग किया जाता है | स्वाभाविक ही इसका विरोध होना ही चाहिए । 

मीडिया में हिन्दू पीड़ित और मुस्लिम पीड़ितों के लिए अलग-अलग दृष्टि व होने वाली चर्चा पर उन्होंने चिंता प्रकट की। अख़लाक और जुनैद की हत्या में जिस तरह गलत तथ्य के साथ तथाकथित वामपंथी मीडिया ने महीने भर प्राइम टाइम पर चर्चा चलाकर हिन्दू संगठनों को कटघरे में खड़ा किया | इससे देश को तोड़ने का षड्यंत्र उजागर होता है, क्योंकि इन घटनाओं के वास्तविक कारण और थे। दूसरी और इसी तरह की घटना दिल्ली में डॉ. नारंग की हत्या की रूप में जब होती है, जिसमें मुस्लिम युवक शामिल होते हैं उसको सामान्य घटना मानकर, मीडिया में केवल कुछ घंटों का समय दिया जाता है। 

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में दलित उत्पीड़न पर तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग के कई लेख व रिपोर्ट मीडिया में प्रसारित हो जाती हैं, किन्तु केरल में दलित उत्पीड़न, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेता महेंद्र कर्मा की उनके 92 परिवारजनों सहित हत्या,निर्भया जैसी घटित घटना पर यह मीडिया वर्ग खामोश रहता है। क्योंकि वहां उनकी विचारधारा की सरकार है और वहां हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को चर्चा में लाकर उनका विचार कमजोर पड़ता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का आडम्बर इन घटनाओं को कलमबद्ध करने से कतराता है। 

परिचर्चा में वरिष्ठ टी.वी पत्रकार श्री चन्द्र प्रकाश, आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर, दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफ़ेसर प्रेरणा मल्होत्रा व दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता नीलू रंजन ने भी भाग लिया । 

इस अवसर पर लव जेहाद पर केन्द्रित डॉ. वंदना गाँधी की पुस्तक ‘एक मुखौटा ऐसा भी’ का विमोचन किया गया, यह पुस्तक अर्चना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी है।


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