मध्यप्रदेश के विधानसभा उपचुनाव और कांग्रेस की हिंसक राजनीति ! - हरिहर शर्मा


राजे रजवाड़ों का प्रभावक्षेत्र माने जाने वाले गुना शिवपुरी अंचल में आजादी के 70 साल बाद भी कांग्रेस के बाहुवली लगभग हर चुनाव में प्रजातंत्र की धज्जियां उड़ाते दिखाई दे जाते हैं | फिर चाहे १९९८ का श्री कैलाश जोशी विरुद्ध लक्ष्मण सिंह का राजगढ़ संसदीय चुनाव हो, ज्योतिरादित्य विरुद्ध स्व. देशराजसिंह का गुना शिवपुरी संसदीय चुनाव हो या वर्तमान का कोलारस विधानसभा उपचुनाव, यही कहानी दोहराई जाती रही है | 

कल जब भिंड के भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह पर कोलारस के यादव वहुल खतौरा क्षेत्र में प्राणघातक हमले का समाचार सुना, तब पिछली कई घटनायें चलचित्र की तरह आँखों के सामने आ गईं | बात १९९८ की है – 

अजातशत्रु कहे जाने वाले म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी के समर्थन में प्रचार करने हेतु उनके सुपुत्र श्री दीपक जोशी के साथ उनके अभिन्न मित्र व वर्तमान सांसद श्री आलोक संजर, भोपाल के ही भाजपा कार्यकर्ता नवल प्रजापति, भरत चतुर्वेदी, वर्तमान महापौर आलोक शर्मा, वर्तमान विधायक रामेश्वर शर्मा तथा शिवपुरी के भी अनेक कार्यकर्ता वहां पहुंचे थे | 

लेकिन हुआ क्या ? 

इन बाहरी कार्यकर्ताओं के साथ बेरहमी से मारपीट की गई, इनकी गाड़ियों पर पथराव हुआ, उनमें तोड़फोड़ की गई | पोलिंग बूथों पर तैनात कार्यकर्ताओं को दिग्विजय सिंह के पालतू गुंडे पोलिंग अधिकारियों के सामने से खींच कर ले गए | शिवपुरी में विद्यार्थी परिषद् के तत्कालीन संगठन मंत्री रतलाम के मूल निवासी श्री सुनील सारस्वत व वर्तमान में वरिष्ठ भाजपा नेता श्री धैर्यवर्धन शर्मा के लघुभ्राता श्री हर्षवर्धन शर्मा को पुरेना गाँव में पोलिंग बूथ से खींचकर बेरहमी से पीटकर एक सूखे कुए में पटक दिया गया | 

इसी प्रकार का व्यवहार पुरेनी गाँव में शिवपुरी के ही शैलेद्र गप्ता, उपदेश अवस्थी, ऋषभ जैन व गोपाल वत्स के साथ हुआ | अंतर बस इतना ही कि इन्हें कुए में नहीं फेंका गया, बल्कि हाथ पैर बांधकर एक खलिहान में बंद कर दिया गया, जिसमें मोटे मोटे चूहों ने इनकी दुर्गत कर दी | 

चुनाव के बाद एक पोलिंग ऑफीसर ने मुझे बताया कि जनाब आप लोगों की बजह से इस बार कुछ कमी रह गई | हर बार तो गाँव के ठाकुर परिवारों की महिलाएं वोट डालने पोलिंग बूथ पर नहीं जातीं थीं, मतदान पेटी घर घर ले जाई जाती थी, जहाँ महिलाए, वोट डालने का अपना शौक पूरा करती थीं | हरिजन आदिवासियों के वोट छोटे छोटे बच्चों से डलवाए जाते थे | 

इसी प्रकार का नजारा ज्योतिरादित्य सिंधिया के पहले संसदीय चुनाव में खनियाधाना क्षेत्र में देखने को मिला | राव देशराज सिंह के पक्ष में प्रचार को पहुंचे वर्तमान कृषि मंत्री तथा तत्कालीन विधायक गौरीशंकर विसेन को भी पथराव और अभद्र व्यवहार झेलना पड़ा | हालात यह हो गई कि उनके अंगरक्षक को जान बचाने के लिए अपनी बन्दूक से हवाई फायर करने पड़े | सभी जानते हैं कि पिछोर खनियाधाना से कांग्रेस के बाहुवली विधायक के.पी. सिंह हर चुनाव में यही धींगामुश्ती करने के आदी हैं | 

कल कोलारस विधानसभा में भी जो कुछ हुआ, वह खनियाधाना के नजदीकी क्षेत्र खतौरा में ही हुआ | के.पी.सिंह इस बार कांग्रेस द्वारा कोलारस विधानसभा उपचुनाव के प्रभारी भी बने हैं, तो स्वाभाविक ही वे अपने स्वभाव के अनुकूल खेल खेलते दिखाई दे रहे हैं | झूठे बहाने घडकर चुनाव में हिंसा फैलाने में कांग्रेसी महारथी हैं | जैसे कि इस बार आरोप लगाया गया कि भिंड विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह अपनी गाडी में नोट भरकर बांटने जा रहे थे और इसकी सूचना मिलने पर कांग्रेस प्रत्यासी महेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक बड़े हुजूम ने उनकी गाडी पर पथराव किया | जबकि सचाई यह है कि वेचारे विधायक चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद क्षेत्र छोड़कर वापस जा रहे थे | पुलिस ने बमुश्किल तमाम विधायक की जान इस हिंसक गिरोह से बचाई व उनकी कार को वहां से निकाला | 

अफवाहों का यही नजारा इसी क्षेत्र में एक बार पहले मैंने भी देखा था | खतौरा में राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया और तत्कालीन कांग्रेस सांसद स्व. माधवराव सिंधिया की एक ही दिन चुनावी सभाएं थीं | किसी कारण से माधवराव जी की सभा का माईक बंद हो गया और माधवराव जी को बिना माईक के ही भाषण देना पड़ा | कांग्रेसियों ने यह अफवाह फैला दी कि भाजपा वालों ने ही षडयंत्र पूर्वक माईक बंद करवाया है | स्वाभाविक ही यह बेसिरपैर का आरोप था, किन्तु भीड़ तंत्र को क्या कहा जाए | आज के प्रत्यासी महेंद्रसिंह के पिता स्व.रामसिंह यादव उस समय जीवित थे | उनके नेतृत्व में एक हुजूम ने राजमाता के काफिले को घेर लिया और उनकी गाडी पर एक लाठी दे मारी | 

राजमाता का रौद्ररूप उस दिन मैंने पहली बार देखा | वे अपनी गाडी का दरवाजा स्वयं खोलकर सिंहनी की तरह उस भीड़ का सामना करने अकेले नीचे उतर आईं और गरज कर बोलीं – रामसिंह तेरी इतनी हिम्मत | बेचारे रामसिंह की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और भीड़ भी वहां से ऐसे भागी मानो उनके पीछे शेर पड़ गए हों | 

आज भी कुछ बैसी ही अफवाह फैलाई गई है कि भिंड विधायक नोट बाँट रहे थे | अगर यह आरोप सत्य था तो उसकी सूचना चुनाव अधिकारी को दी जानी चाहिए थी, या स्वयं क़ानून हाथों में लेकर उनको प्राणदंड देकर जान से मार दिया जाना चाहिए था ? पर प्रजातंत्र को मजाक समझने वाली कांग्रेसी मानसिकता को क्या कहा जाए ? अपनी संभावित पराजय को भांपकर वे हिंसा पर उतारू हो गए हैं | 

बेशक भाजपा प्रत्यासी देवेन्द्र जैन पर्याप्त समृद्ध हैं, किन्तु वे सज्जन और सरल भी हैं | वे चाहते तो कांग्रेसी गुंडागर्दी का तुर्कीबतुर्की जबाब देने के लिए भाड़े के लोग भी लगा सकते थे, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वे प्रजातंत्र का अर्थ समझते हैं | जबकि कांग्रेस राजशाही में भरोसा करती है, राजी नहीं तो बल पूर्वक विजय पाना चाहती है | जनता इस मनोवृत्ति को समझकर निश्चय ही समुचित जबाब देगी | साथ ही शासन प्रशासन को भी बलवाईयों पर कठोर कार्यवाही करते हुए आपराधिक मुकदमे कायम करना चाहिए | 

इस घटना के बाद तो निश्चय ही क्षेत्र की जनता कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गई होगी | क्योंकि चुनावों में हम केवल विधायक ही नहीं चुनते, बल्कि बाद में उसके साथ जुड़े हुए लोगों को भी भुगतते हैं |

कोलारस उपचुनाव में जनता को यह तय करना है कि उनका नेतृत्व कैसे लोग करेंगे ?
उजड्ड हिंसक गिरोह या सहज सरल मानवीयता युक्त समूह ? 

भिंड विधायक श्री नरेंद्र सिंह कुशवाह के साथ जो कुछ हुआ सुनिए उन्हीं के शब्दों में -

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