आशाराम - एक संत या सामान्य गृहस्थ या दुष्ट पापी ? एक तटस्थ विश्लेषण


साधू सन्यासी को त्याग, तपस्या, साधना में तल्लीन होना चाहिए, नाकि एम्पायर बनाना चाहिए ! जिन्होंने एम्पायर बनाया उनमें से एक आशाराम बापू का हश्र हम देख ही रहे हैं ! आयकर विभाग की रपट को मानें तो आसाराम और उनके बेटे नारायण साई के पूरे देश में ज्ञात 400 आश्रम और 50 गुरुकुल हैं। इसके अलावा अभी ढाई हजार करोड़ के अज्ञात पैसे का पता पड़ा है। आयकर विभाग ने सूरत में 40 बोरों में भरे दस्तावेज, कंप्यूटर, लैप़टॉप की छानबीन के बाद कोई सौ बैंक खातों का पता लगाया। इसमें 2,500 करोड़ रु की आवाजाही जाहिर हुई।

रिपोर्ट में और भी ब्योरा है। मोटे तौर पर जाहिर हुआ कि आसाराम के एंपायर में अफसर, पुलिस अफसर, व्यापारी, नेताओं का लेन-देन रहा है। मतलब धर्म, राजनीति, अफसरशाही की दो नंबर की कमाई का ऐसा गोरखधंधा है जिसमें जितने डूबेंगे पता ही नहीं पड़ेगा कि पेंदा कितना गहरा है! संत की लालसा ने क्या-क्या करा डाला ? एक तांगा चलाने वाले से लेकर जेल तक की उनकी यात्रा के विभिन्न पड़ाव हैं | 

भारत भावुक लोगों का देश है | भावनाओं में बहकर हम लोग न जाने कितने ठगे जाते हैं | धर्म के नाम पर तो कोई भी हमें चूना लगा सकता है | चतुर सुजान हमारे भोलेपन का लाभ उठाकर हमारे ही पैसों से अपनी सल्तनत खडी कर लेते हैं | लेकिन इस प्रकार सल्तनत खडी करने वाले, ऐशो आराम में आठों पहर डूबे रहने वाले, क्या संत रह सकते हैं ? 

प्रत्येक व्यक्ति में सात्विक और तामसी दोनों प्रकार की प्रवृत्ति होती हैं | अपने अन्दर झांककर देखें तो महसूस होगा कि किसी पल हम आध्यात्मिक प्राणी होते हैं, तो अगले ही पल पूर्ण सांसारिक, तो कभी कभी अधम विचारों से भी ओतप्रोत हो जाते हैं | अगर एक संत भी ऐशो आराम में रहने लगे, तो वातावरण से प्रभावित होगा ही, उसका पतन निश्चित है | जब काम पर विजय पाने में स्वयं नारद असमर्थ रहे, तो अन्य किसी की क्या बिसात ?
मैं आशाराम के स्खलन पर अचंभित नहीं हूँ, किन्तु अचंभित हूँ उनके अंध भक्तों पर, जो आज भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि आशाराम व्यभिचारी भी हो सकते हैं | जैसा कि समाचार है – सजा सुनने के बाद आशाराम फूट फूट कर रोने लगे | अतः स्पष्ट ही उनमें संतत्व का अंश कम ही है | किन्तु श्रद्धालुओं में निष्कपट अंध श्रद्धा भी यूं ही पैदा नहीं हो सकती | निश्चय ही आशाराम ने कुछ पूण्य कर्म भी किये होंगे | मैंने उनके जीवन वृत्त को जानने के लिए गूगल देव की मदद ली, तो यह सामने आया – 

17 अप्रैल 1941 को सिंध प्रान्त के नवाबशाह के छोटे से गाँव बेराणी में जन्मे आसूमल सिरूमलानी भारत विभाजन के बाद अपनी माता महँगीबा और पिता थाऊमल के साथ भारत आये | यह परिवार अहमदावाद में बस गया | पिता ने शक्कर बेचना शुरू किया, किन्तु काल चक्र की गति भी विचित्र है, वे भी जल्द ही चल बसे | स्वाभाविक ही आसूमल का बचपन आर्थिक अभावों में ही गुजरा | तांगा भी चलाया और चाय भी बेची | कम उम्र में ही लक्ष्मी देवी से विवाह हो गया | 

अब यातो इसे जिम्मेदारियों से पलायन कहें या फिर आध्यात्मिकता, 23 वर्ष की आयु में ही ये घर छोड़कर निकल गए | देश भर में भटकते भटकते ये नैनीताल स्थित स्वामी लीलाशाह के आश्रम जा पहुंचेऔर उन्हें गुरू बनाकर दीक्षा ले ली | गुरू ने नया नाम दिया आशाराम | आशाराम ने घूम घूम कर आध्यात्मिक प्रवचन देना प्रारम्भ कर दिया और उनके सत्संग कार्यक्रमों में श्रद्धालु भी भारी संख्या में पहुँवने लगे। आशाराम ने दीक्षा तो ली, किन्तु साथ ही गृहस्थ जीवन भी जीने लगे और 1972 में प्रथम पुत्र नारायण का जन्म हुआ और कुछ वर्ष बाद ही बेटी भारती की किलकारियां भी घर में गूंजने लगी | 

तभी अगस्त 2012 में एक ऐसी घटना हुई, जिसे चमत्कार मानकर आशाराम के प्रति लोगों की आस्था बहुत बढ़ गई | हुआ कुछ यूं कि गोधरा के समीप उनका हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया, किन्तु आसाराम व पायलट सहित सभी यात्री सुरक्षित बच गये। बस फिर क्या था, उनके सत्संग में शामिल होने वालों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती चली गई । 

इसके आगे की कहानी तो अब सबको ज्ञात ही है | सरकारों और राजनेताओं के माध्यम से किस प्रकार आश्रम दर आश्रम खुलते गए और सल्तनत बनती गई | नतीजा यह कि अब शेष जीवन जेल में ही गुजरने की आसार हैं | 

आशाराम के सत्कर्म - जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया कि कोई भी इंसान पूर्ण रूप से पापिष्ठ नहीं होता, उसमें कुछ ना कुछ अच्छाई भी होती हैं | आशाराम को अगर आज कई लोग "बापू" जैसा आत्मीय संबोधन देते हैं, तो उसके पीछे भी कुछ तो कारण होंगे | निश्चय ही प्रवचन की उनकी लच्छेदार शैली एक बड़ा कारण है, किन्तु केवल वही नहीं है, कुछ अन्य कारण भी हैं -

उन्होंने देश के विभिन्न भागों में नशा मुक्ति, तनाव प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और आपदा राहत के कार्य किये हैं। निशुल्क ध्यान और योग शिविर आयोजित किये हैं | और सबसे बढ़कर सनातन धर्म का प्रचार करते हुए, ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर रोक लगाई है |

एक व्यंगकार ने कुछ इस प्रकार आशाराम की प्रशंसा की -
गुजरात का "डाँग" जिला याद है? ईसाई बन चुके लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में वापिस लाने के लिये महान ईसा ने आसाराम बापू को कड़ी सजा दी है। यह पाखण्डी खुलेआम विदेशी चीजें न खरीदने की बात करता था। जन्मदिन, शादी या अन्य किसी त्योहारों को विदेशी परम्परा से न मनाकर हिन्दू परम्परा से मनाने के लिये कहता था। एक गृहस्थ होते हुए भी सनातन का प्रचार ही करता था। वैलेंटाइन डे को मातृ पितृ पूजन दिवस, क्रिसमस डे को तुलसी पूजन दिवस मनाता था। सैकड़ों गौशाला चलाता था। और तो और कितने भीम भाई (जो सिर्फ बाबा को ही भगवान मानते हैं), उनको भी भगवान के नाम की दीक्षा देकर उनसे भगवन्नाम का जप करवाता था। और भी बहुत घिनौने अपराध इस व्यक्ति के किये हैं। ऐसे व्यक्ति को सजा होना बाबा के बनाये संविधान की सबसे बड़ी जीत है
 

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2 टिप्पणियाँ

  1. ये किस प्रकार के विश्लेषण है???राजनेताओं वाली भाषा में।

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  2. इस प्रकार तो रामदेव और सभी शंकराचार्य और बहुत से संत दोषी मान लिया जाय जिनके पास एम्पायर है।
    ये बहुत ही ओछा दृष्टिकोण है किसी के संतत्व को मापने का। संत की महानता उससे समाजिक हित के कार्यों से होती है।

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