विगत वर्षों में विश्व संवाद केंद्र भोपाल द्वारा आयोजित नारद जयन्ती कार्यक्रमों में देश के ख्यातनाम वक्ताओं द्वारा व्यक्त विचार सार |



26 – 5- 2013, 

फिल्मों में नारद जी को विदूषक अथवा चुगलखोर के रूप में प्रदर्शित किया जाना वस्तुतः उनके साथ व उनकी भूमिका के साथ अन्याय है | नारद समस्त ब्रह्माण्ड में दुष्टों के संहार के लिए दैवीय शक्तियों के दूत अथवा सहयोगी की भूमिका में रहे | आदर्श पत्रकार भी ऐसा ही होना चाहिए | स्वतंत्रता के पूर्व पंजाब में लाला लाजपत राय ने जयहिंद, महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक ने केसरी, गांधी जी ने हरिजन, नेहरू जी ने नॅशनल हेराल्ड इसी भूमिका से प्रारम्भ किये थे | एक ही लक्ष्य था देश की आजादी | किन्तु आज समाचार पत्रों का व्यवसाईकरण हो गया है | समाचार पत्र पैसा कमाने की मशीन बन गए हैं | एडिटर की जगह मेनेजर ने ले ली है | पेड न्यूज़ देश की पत्रकारिता को कलंकित कर रही है, उसके मूल भाव को डुबा रही है | आज की स्थिति पर टिप्पणी इस प्रकार की जा सकती हैकि “बन्दूक निकालो न तलवार निकालो, अगर ब्लेकमेल करना हो किसी को तो अखबार निकालो |

यह बेबाक टिप्पणी की पंजाब केसरी के प्रधान सम्पादक श्री अश्विनी कुमार ने | वे आज स्थानीय टीटीटीआई सभागार श्यामला हिल्स पर विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित नारद जयन्ती कार्यक्रम को संवोधित कर रहे थे | 

श्री अश्विनी कुमार ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा में अपने पूज्य दादा लाला जगत नारायण एवं पिता श्री रमेश चंदर जी के पुण्य बलिदान का भी भाव पूर्ण स्मरण इस दौरान किया | स्मरणीय है के उक्त दोनों महानुभावों की अस्सी के दशक में पंजाब में खालिस्तान समर्थकों द्वारा ह्त्या कर दी गई थी | श्री अश्विनी कुमार ने कहा कि नेहरू जी कहा करते थे कि मैं स्वतंत्र भारत में केवल प्रेस नहीं चाहता, वरन फ्री प्रेस चाहता हूँ | अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आजादी की बुनियाद है | केन्तु देश का दुर्भाग्य रहा कि उन्ही नेहरू जी की बेटी श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल के दौरान प्रेस की आजादी को बेरहमी से रोंदा | पंजाब केसरी के प्रकाशक दोनों पिता पुत्र लाला जगत नारायण तथा श्री रमेश चंदर उस दौरान गिरफ्तार कर लिये गए थे | किशोर अश्विनी कुमार जी की भी गिरफ्तारी हुई | किन्तु बाद में अत्यंत आग्रह के बाद उन्हें मुक्त कर दिया गया | पंजाब केसरी प्रकाशित न हो पाए इसलिए बिजली चोरी का झूठा आरोप लगाकर बिजली काट दी गई | घर की महिलाओं पर भी चोरी के मुकदमे दर्ज किये गए | 

अश्विनी जी ने स्मरण किया कि उस समय एक सिक्ख किसान वहां मदद को आया तथा उसने अपने ट्रेक्टर की पुली में प्रेस की पुली जोड़कर अखबार का प्रकाशन करवाया | उन्होंने पत्रकार विरादरी का आव्हान किया कि आज के समय में देश की एकता अखंडता के प्रति सच्चा प्यार ही हर पत्रकार के दिल में होना चाहिए |

अपने अध्यक्षीय उद्वोधन में दैनिक नई दुनिया के पूर्व सम्पादक वरिष्ठ लेखक व समाजसेवी श्री मदनमोहन जोशी ने कहा कि भारत जो कभी कृषि व ऋषि प्रधान देश हुआ करता था, आज ऋषियों के स्थान पर कथा वाचकों का तथा कृषि के स्थान पर घोटालों का देश बनकर रह गया है | अगर देश की आत्मा को बचाना है तो विचार की गंभीरता आवश्यक है | आज जब सुबह समाचार पत्र पढ़ने बैठते हैं तो लगता है कि रक्त की बाल्टी भरी हुई है और हम उससे स्नान करने जा रहे हैं | इतनी हिंसा जैसे रक्त का समुद्र बह रहा हो | इस स्थिति को बदलने हेतु चिंतन करना प्राथमिकता होना चाहिए |

15 जून 2014 // 

भारत केवल एक राष्ट्र नहीं, वरन एक सभ्यता है, संस्कृति है, जिसकी जड़ें हजारों साल पुरानी हैं | आज राष्ट्र पुनर्जागरण के दौर में लोग मई दिवस को भूलकर विश्वकर्मा दिवस मनाने लगे हैं, यह इसी बात का प्रमाण है, अपनी विरासत के प्रति गर्व की भावना का प्रगटीकरण है | नारद जयन्ती भी इसका ही एक रूप है | कानपुर के साम्प्रदायिक दंगे में मारे गए गणेश शंकर विद्यार्थी हों, अथवा बापूराव पराड़कर, हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे कालजयी पत्रकार, इनके शब्दों की वाणी तब भी सुनाई पड़ती थी, आज भी गूंजती है | 

आज दिनांक 15 जून रविवार को स्थानीय शहीद भवन में विश्व संवाद केंद्र तथा हिन्दुस्थान समाचार द्वारा आयोजित नारद जयन्ती कार्यक्रम में “सामाजिक चेतना में मीडिया की भूमिका” विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए भारतीय नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक तथा जाने माने लेखक, चिन्तक व दिल्ली विश्व विद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक श्री राकेश सिन्हा ने उक्त विचार व्यक्त किये | श्री सिन्हा ने आगे कहा कि -

अंग्रेजों के शासनकाल में विदेशी पूंजी की मदद से अच्छे कागज़ पर छपने वाले टाईम्स ऑफ़ इंडिया अथवा स्टेट्समेन जैसे समाचार पत्रों की तुलना में 1887 से 1910 तक चले हिन्दी प्रदीप को 23 वर्षों में 10 प्रेस बदलनी पडीं |

इलाहाबाद से छपने वाले स्वराज्य अखबार के 9 संपादकों को सश्रम कारावास की सजा हुई | अखबार ने एक विज्ञापन दिया – सम्पादक की आवश्यकता है | पारिश्रमिक दो सूखी रोटी, एक गिलास पानी | प्रत्येक सम्पादकीय के लिए 10 वर्ष कारावास का पुरस्कार | और अचम्भा देखिये कि सम्पादक बनने के लिए कतार लग गई | इन्हीं अखबारों ने साम्राज्यवाद को चुनौती दी | यही है भारतीय पत्रकारिता की उज्वल विरासत |

येन केन प्रकारेण पूंजी इकट्ठा कर समाचार पत्र निकालने वालों से सामाजिक चेतना की अपेक्षा नहीं की जा सकती | एक समाचार पत्र ने 250 कंपनियों से समझौता किया है | उसके 7 से 10 प्रतिशत शेयर इन कंपनियों ने लिए हैं, ताकि उन कंपनियों के काले कारनामे अखबार में न छपें | प. मदन मोहन मालवीय जी के लीडर और अभ्युदय, लोकमान्य तिलक के केसरी, गांधी जी के हरिजन तथा नेहरू जी के नेशनल हेराल्ड ने जिन सामाजिक सरोकारों को लेकर समाचार पत्र निकाले, उनकी तुलना में आज के समाचार पत्र कहाँ टिकते हैं ? आज अखबारों में सम्पादक नहीं, मालिक के लिये रेलवे टिकिट से लेकर राज्यसभा टिकिट तक की व्यवस्था करने वाले नियुक्त होते हैं | 

आज अखबार के मुखप्रष्ठ पर छपता है, निर्भीक व स्वतंत्र समाचार पत्र | यह ऐसा ही है जैसे किसी दूकान के साईन बोर्ड पर लिखा हो कि शुद्ध घी की दूकान | अन्दर भले ही नाम मात्र को शुद्धता न हो | बापूराव पराड़कर को कभी नहीं लिखना पडा | अखबार पढ़कर ही समझ में आ जाता था कि यह कैसा है और क्यों है ? यह सौभाग्य है कि आम आदमी यह सब समझता है, जानता है | 

नरेंद्र मोदी से असहमति हो सकती है, प्रजातंत्र में होना भी चाहिए | किन्तु विदेशी “टाईम्स” और “इकोनोमिस्ट” जैसे समाचार पत्र उन्हें वोट ना देने का आव्हान करें, यह तो सीधे सीधे भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप है | इससे भी अधिक आपत्तिजनक यह है कि जनसत्ता और टाईम्स ऑफ़ इंडिया जैसे समाचार पत्र विदेशी अखबारों को कोट करें | जनसत्ता के सम्पादक से इस विषय में पूछताछ की तो उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ हम किसी से भी हाथ मिला सकते हैं | ऐसी परिस्थिति में आवश्यक है कि मीडिया तंत्र में एफ़.डी.आई. का प्रवेश ना हो | विचार शुद्ध रहें |

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि विगत 100-150 वर्षों में जो दूषित इतिहास लिखा गया उसके कारण अनेक विकृतियाँ पैदा हुई हैं | उन्हीं में से एक है नारद जैसे महान व्यक्तित्व को विदूषक के रूप में प्रस्तुत किया जाना | आज के बाजार आधारित समाज में संवाद भी व्यापार बन गया है | नारद व्यक्ति नहीं संस्था थे जिसका कार्य समाज को संचालित करने वाले वर्गों से संवाद रखना था | उन्होंने किसी कारपोरेट घराने का प्रतिनिधित्व नहीं किया | स्वार्थ, दीनता, व्यक्तिगत लाभ से परे उनका कार्य आज की पत्रकारिता की द्रष्टि से महत्वपूर्ण है | नारद भक्ति सूत्र में उन्होंने बार बार कहा है कि इसकी अभिव्यक्ति नहीं हो सकती | निश्चय ही अभिव्यक्ति की सीमा होती है | किसी मूक से पूछा जाए कि स्वाद कैसा है, पति की ह्त्या के बाद पत्नी से पूछें कि कैसा लग रहा है, कितना बेमानी है इस प्रकार के सवाल ?
महाभारत में युधिष्ठिर के साथ संवाद करते हुए उन्होंने जो 125 प्रश्न पूछे हैं, वे सुशासन के सूत्र हैं | नारद के संवाद को आदर्श मानकर मीडिया चले तो समरस समाज की दिशा में सही कदम होगा |

अध्यक्षीय भाषण में श्री अभिलाष खांडेकर ने कहा कि आज भी समाज में पत्रकारिता से आशा जीवित है | स्थिति उतनी बुरी नहीं है, जितनी मान ली गई है | चुनौतियों के बाद भी संपादक नाम की संस्था जीवित है व सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग है | श्री खांडेकर ने कहा कि सोशल मीडिया ने प्रिंट मीडिया के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है | 

3 मई 2015 

आजादी के इतने वर्ष बाद भी आज अंग्रेजी मीडिया हाबी है जो स्त्री अधिकार के साथ साथ मानव अधिकारों को भी नजर अंदाज करता है | महिला उत्पीडन के समाचार सनसनी के तौर पर तो प्रकाशित होते हैं, किन्तु उनकी वास्तविक तकलीफ को भी मीडिया समझे | आज विश्व संवाद केंद्र भोपाल द्वारा आयोजित “नारद जयन्ती समारोह” में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रख्यात लेखिका व “मानुषी” की सम्पादक सुश्री मधु किश्वर ने उक्त विचार व्यक्त किये | 

मधु जी ने आगे कहा कि मीडिया पर फोरहन फंडेड NGO का अत्यधिक प्रभाव है | कांग्रेस सरकार में इन्हें खुली छूट मिल गई थी | इस फंडिंग का प्रभाव विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थाओं पर भी स्पष्ट दिखाई देता है | ये लोग समस्याओं को सनसनीखेज बनाकर परोसते हैं, किन्तु समस्या के समाधान के चिंतन में इनकी कोई रूचि नहीं होती | मलेरिया के मरीज को बीमार है बीमार है चिल्ला चिल्ला कर अगर निमोनिया की दवा दी जायेगी, तो उसका जो हाल होगा, वही मीडिया प्रभावित समाज का हो रहा है | 

कहा जाता है कि परंपरागत रूप से भारत पुरुष प्रधान है, पुरातन पंथी और पिछड़ा हुआ है | इसीलिए महिला उत्पीडन की समस्या है | जबकि सचाई यह है कि पुराने जमाने में दहेज़ जैसी कोई समस्या थी ही नहीं | पिता के घर से महिला को जो मिलाता था उसे दहेज़ नहीं स्त्रीधन कहा जाता था | उस पर सर्वाधिकार महिला का ही होता था, पति भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था | भेंट स्वरुप जो कुछ मिलाता था, वह सोना, चांदी, जमीन की शक्ल में मिलता था जो स्थाई संपत्ति होता था | जबकि आज सोफा सेट, क्राकरी, फ्रिज जैसी बस्तुएं दी जाती है, जो एक प्रकार से पारिवारिक विभाजन की शुरूआत होती हैं | मेरी गृहस्थी अलग की भावना को बढ़ावा देती हैं | अतः यह पुरानी नहीं आधुनिक समस्या है | 

इलाज के रूप में क़ानून बदलने व समाज सुधार की बात होती है | सर दर्द है तो क़ानून बना दो, छींक आई तो क़ानून बना दो, इस प्रकार की हिस्टीरियाई सोच मीडिया बना देता है | लेकिन इस प्रकार दबाब में बनाए गए कानूनों का हश्र क्या ? सुश्री किश्वर ने निशा शर्मा प्रकरण का उदाहरण दिया जो पूर्व में बड़ी मीडिया सुर्खी बना था | निशा ने दहेज़ माँगने का आरोप लगाकर अपने होने वाले पति मुनीश दलाल को ही नहीं, उसकी शिक्षिका मा व मौसी को भी जेल पहुँचवा दिया था | दस वर्ष जेल में रहने के बाद वे लोग न्यायालय द्वारा निरपराध प्रमाणित हुए | उस समय यह बात सामने आई कि वस्तुतः यह प्रकरण दहेज़ का था ही नहीं | निशा किसी और से शादी करना चाहती थी, इसलिए उसने यह नौटंकी रची थी, और मीडिया आँख मूंचकर उस नौटंकी में सहयोगी हो गई थी | लेकिन उस दौरान न केवल निर्दोष मुनीश का कैरियर तबाह हो गया, वरन उसकी शिक्षिका माँ को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा, वे अपनी पेंशन आदि सुविधाओं से भी वंचित हुईं | जबकि गलत आरोप लगाने वाली निशा शर्मा पर कोई कार्यवाही नहीं हुई | 

मीडिया के मित्रो, कलम में सरस्वती का वास होता है, यह हाय तौबा की परंपरा रोको | हर बात के लिए सरकार या पुलिस पर आश्रित होना मृतक समाज का लक्षण है | पहले जर्नलिज्म का ठेका लो, उसके बाद समाज सुधार का | 

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि जम्मू से पधारी प्रख्यात साहित्यकार श्रीमती क्षमा कौल ने पाश्चात्य संस्कृति में नारी व भारतीय चिंतन में नारी के अंतर को स्पष्ट किया | श्रीमती क्षमा कौल ने कहा कि भारतीय पद्धति में क्षरण इस्लाम के आगमन के बाद तथा सांस्कृतिक संहार अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ | इसके कारण हम हीनभावना से ग्रसित हो गए | इस दुश्चक्र से बाहर निकलना होगा | भारत की मीडिया कहने को भारतीय है, किन्तु इसने पश्चिमी संस्कृति के कुप्रभाव में आकर पैसा कमाने की होड़ में अपनी आत्मा की बोली लगा दी है | मीडिया और विज्ञापनों में महिला की प्रस्तुति उद्दीपक और ग्लोबल सेल्स गर्ल के रूप में की जा रही है | जबकि भारतीय ज्ञान में महिला का स्थान सर्वोच्च रहा है | 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश शर्मा ने क्षमा जी द्वारा प्रस्तुत विषय को और अधिक स्पष्टता देते हुए तथा प्राचीन भारतीय परंपरा और ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय चिंतन में नारी को शक्ति, भक्ति व स्फूर्ति स्वरूपा मान कर प्रधानता दी गई है | वैदिक रिचाओं की रचनाकार भी 26 रिशिकाएं रही हैं | भारत में सदैव नारी को पूज्य माना गया कि न्तु पश्चिम में स्त्री को दोयम दर्जे का तथा भोग्या माना गया | 

22 मई 2016 

मैं मीडिया को प्रजातंत्र का चौथा स्तम्भ नहीं मानता ! वस्तुतः मीडिया प्रजातंत्र के तीनों स्तंभ, न्याय पालिका, कार्य पालिका व विधायिका की आत्मा है ! 

उक्त विचार व्यक्त किये सामना के पूर्व सम्पादक श्री प्रेम शुक्ला ने जो आज भोपाल विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित नारद जयन्ती कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में “वर्तमान परिद्रश्य में मीडिया की भूमिका” विषय पर बोल रहे थे !

श्री प्रेम शुक्ला ने कहा कि जिस प्रकार लोक कल्याण के प्रतीक नारद को कलह प्रिय घोषित कर दिया गया, कुछ कुछ उसी प्रकार का काम आजका अंग्रजीदां मीडिया करता दिखाई दे रहा है ! 

आजादी के पूर्व लोकमान्य तिलक जी ने केसरी का प्रकाशन तीन भाषाओं में किया, मराठी, हिन्दी तथा अंग्रेजी ! 1910 में इसके प्रकाशन के मूल में राष्ट्रवाद की परिकल्पना थी ! उस समय बाबा साहब अम्बेडकर ने अपना एक आलेख कांग्रेस के मुखपत्र में प्रकाशित करने का आग्रह किया, तो उन्हें जबाब मिला कि इसे विज्ञापन के रूप में सशुल्क प्रकाशित किया जा सकता है, किन्तु बाद में उसे सशुल्क प्रकाशित करने से भी मना कर दिया गया ! बाद में 1920 में उन्होंने मूक नायक मासिक का प्रकाशन किया, इस प्रकार सामाजिक न्याय का आन्दोलन भी मीडिया के माध्यम से चला ! 

1933 में गांधी जी ने हरिजन का तथा बाद में नेहरू जी ने नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन किया ! अतः कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता आन्दोलन हो चाहे सामाजिक न्याय का आन्दोलन, मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही ! आज जो राष्ट्र सशक्त दिखाई दे रहे हैं, उन्हें सशक्त बनाने में उस देश की मीडिया ने प्रमुख भूमिका अदा की है ! कहा जाता था कि किसी जमाने में युनियन जैक कभी सूर्यास्त का सामना नहीं करता था ! पूरे विश्वमें उसके इतने उपनिवेश थे ! इंग्लेंड की इस शक्ति में बीबीसी की भी भूमिका थी ! 31 अक्टूबर 1984 को जब हमारी सशक्त प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ह्त्या हुई, तब इस समाचार पर लोगों ने तब तक विश्वास नहीं किया, जब तक कि बीबीसी द्वारा पुष्टि नहीं कर दी गई ! 

सीएनएन सदैव अमेरिकन हितों का ध्यान रखता है ! इसी प्रकार अलजजीरा गल्फ देशों का, बीबीसी इंग्लेंड का, प्रावदा रूस के हितों को ध्यान में रखता है ! किन्तु भारत में अभी तक भारत के हित देखने वाली, भारत के द्रष्टिकोण से देखने वाली मीडिया का अभाव है ! 

9 – 11 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को जहाज टकराकर क्षति ग्रस्त कर दिया गया, अमेरिकी मीडिया ने आलोचना की तो यह की कि अरब देशों का हाथ होने के बाबजूद सऊदी अरब को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया ! सोचिये भारत में ऐसा कुछ हुआ होता तो क्या होता ? रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई, बरखा दत्त सबके सब शोर मचाकर इसे दुर्घटना प्रमाणित करने में जुट जाते ! जेएनयू टोली का एक ही मकसद है कि भारत कैसे खोखला हो ! 

भगवान विष्णु को सुरेन्द्र कहा जाता है, अर्थात देवताओं के स्वामी ! उन विष्णु के भक्त नारद पर असुर भी भरोसा करते थे, उनके दिए समाचार को सत्य मानते थे ! यही प्रामाणिकता हमारी होना चाहिए तथा बाममार्गियों और दाममार्गियों को बेनकाब करना हमारा धर्म हो ! 

बालासाहब ठाकरे के ड्राईंगरूम में डेविड लौ का एक कार्टून रहा करता था ! एक बार कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि जर्मनी को मित्र राष्ट्रों की पूरी सेना मिलकर भी पराजित नहीं कर सकती थी ! जो काम सेना नहीं कर सकती थी, वह काम किया डेविड लौ ने, उसके कार्टूनों ने ! जर्मन कहा करते थे, बिन्सटन चर्चिल को बाद में मारेंगे, पहले इस डेविड लौ को मारना है ! उस डेविड लौ से प्रेरणा लेते थे बाला साहब !
आज के कई अंग्रेजी दां पत्रकार विचार नहीं कर रहे हैं, वैचारिक मल त्याग कर रहे हैं ! अमेरिका में जब मीडिया अनियंत्रित हो गई, तब एक आयोग बना – हचिल्स आयोग ! उसने कहा कि मीडिया का उद्देश्य, व्यक्ति के कल्याण से अधिक समाज व राष्ट्र का कल्याण होना चाहिए ! सत्य को छल से बचाना जरूरी है, इसलिए सत्य को कहने में संकोच नहीं होना चाहिए ! सत्य के साथ आम जनता के खड़े होते ही मीडिया के भूत, प्रेत पिशाच सब भाग जायेंगे ! 

वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश शर्मा ने अपने प्रस्तावना भाषण में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की ही एक धारा भारत को, भारतीय ज्ञान परंपरा को, उसके चिंतन व गुरुत्व को नकारती रही है ! जबकि पाश्चात्य विचारक मेक्समूलर ने भी अपनी पुस्तक “विश्व को भारत की देन” में जो उल्लेख किया है, वह ध्यान देने योग्य है ! मेक्समूलर लिखता है “बहुत संभव है कि पश्चिम में सभ्यता बेबीलोनिया व ईरान से होकर भारत से गई हो” ! नारद ने सदैव सत्वगुण को प्रोत्साहन दिया तथा तमोगुण को हतोत्साहित किया ! जबकि आज सकारात्मक समाचारों का अभाव है ! लोक कल्याण की नारद परंपरा को आगे बढाने की जरूरत है ! नकारात्मकता के माहौल को बदलने की आवश्यकता है ! 

विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित आईबीएन7 के प्रख्यात एंकर श्री आकाश सोनी ने कहा कि पत्रकारिता के अपने प्रारम्भिक दौर में एक बार मैं जीन्यूज़ के लिए एक एक्सीडेंट की रिपोर्टिंग के लिए गया तो देखा कि वहां संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचकर सेवा कार्य में जुटे हुए हैं ! किन्तु मुझे हैरानी तब हुई, जब वह समाचार प्रसारित करने से स्थानीय सम्पादक ने मना कर दिया ! बाद में अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा के बाद ही वह समाचार प्रसारित हुआ ! इसी प्रकार जब मैं लन्दन में बीबीसी के लिए काम कर रहा था, मेरे साथ एक आस्ट्रेलिया की महिला भी थी, उसने एक बार हैरानी जताई कि आपके भारत में आरएसएस को लेकर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों है, हमारे आस्ट्रेलिया में तो वे लोग एचएसएस के नाम से अच्छा काम कर रहे हैं ! उनके माध्यम से ही मुझे भारतीय संस्कृति की जानकारी मिली है !

श्री सोनी ने कहा कि 2000 साल पहले हमारे एक महान सम्राट अशोक ने बलूचिस्तान तक शिला लेख लिखवाकर पहुंचाए कि भगवान् तक पहुँचने के अनेक मार्ग हैं, किसी भी मार्ग से चलकर ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है ! आकाश जी ने एक बच्चे की कहानी सुनाई, जिससे एक महात्मा ने कहा था कि जब पहाडी पर अंकित चेहरे वाला व्यक्ति तुम्हारे गाँव में आयेगा, तब गाँव में बदलाव आयेगा ! वह लड़का प्रतिदिन पहाडी के पास जाता, उस चहरे को देखता और फिर उस जैसे चहरे की खोज करता ! अनेक वर्ष बीत गए ! लड़का बड़ा हो गया ! एक दिन उसके एक साथी ने उसे बताया कि अरे तेरा चेहरा तो बिलकुल उस पहाडी पर अंकित चहरे जैसा ही है ! लडके को तब समझ में आया कि सन्यासी के कहने का अर्थ क्या था ! बदलाव अगर कोई लाएगा तो हम ही लायेंगे ! श्री आकाश सोनी ने उपस्थित पत्रकारों से आग्रह किया कि हमारी पत्रकारिता का घोष वाक्य “सत्यमेव जयते” होना चाहिए ! 

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