कुरआन शरीफ भाग 1 (प्रस्तावना)



बचपन में ही अपने माता-पिता दोनों को खो चुके मोहम्मद साहब की परवरिश उनके चाचा ने की | ख़ास बात यह कि उन्होंने आजन्म इस्लाम कबूल नहीं किया, किन्तु इसके बाद भी मोहम्मद साहब ने सदा उनको इज्जत दी |

बचपन में बकरियां चराने वाले मोहम्मद साहब को आज पूरी दुनिया सिजदा करती है, तो कुछ तो ख़ास है उनमें | और गीता में भी कहा गया है, कि जहाँ भी श्रेष्ठता है, उसमें मेरा ही अंश है |

मोहम्मद साहब का जन्म अरब मुल्क में हुआ, जहाँ उस समय तक घोर पिछड़ापन था | अनैतिकता की पराकाष्ठा थी और महिलाओं की स्थिति तो अत्यंत ही दयनीय थी | यहाँ तक कि पिता के मरने के बाद बेटे संपत्ति के साथ पिता की पत्नियों को भी आपस में बाँट लेते थे |

तो क्रूरता, नृशंसता और स्वेच्छाचारिता के ऐसे दौर में क्रांतिकारी विचारों के मोहम्मद साहब का आगमन हुआ | उन्होंने इस पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई | 

उस समय वहां चार मतावलंबी लोग थे | ईसाई और यहूदी के अलावा मंजूशी (अग्नि पूजक) और मुश्रिफ (मूर्तिपूजक) | इन चारों से जूझकर मोहम्मद साहब ने इस्लाम को प्रतिस्थापित किया |

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारत में उस समय सम्राट हर्षवर्धन का साम्राज्य था अर्थात भारत का स्वर्ण युग | भारतीय संस्कृति सभ्यता और ऐश्वर्य चरम पर था | अर्थात भारत और अरब की कोई तुलना ही नहीं थी | भारत एक सुसभ्य मुल्क था, तो अरब एक बर्बर समाज |

खैर अरब निवासियों को राह दिखाने वाले मोहम्मद साहब के प्रारम्भिक चालीस वर्ष तो महज संघर्ष में ही बीते | उसके बाद उन्हें जिब्राइल (फ़रिश्ता) के दर्शन हुए और उसके बाद शुरू हुआ "पवित्र कुरआन" का अवतरण | अर्थात मोहम्मद साहब को कुरान की आयतों का ज्ञान प्राप्त होने लगा और उन्होंने उन आयतों को समाज के प्रमुख लोगों, धर्माचार्यों और जन सामान्य को सुनाना और समझाना प्रारम्भ कर दिया !

नतीजा यह हुआ कि अबूबकर (इस्लाम के पहले खलीफा), हजरत अली (मोहम्मद साहब के दामाद) तथा कई अन्य प्रभावशाली लोग उनके अनुयाई बन गए | उस समय के स्थापित सरदारों के लिए यह असहनीय स्थिति थी | मोहम्मद साहब की ह्त्या के प्रयत्न प्रारम्भ हुए | हालत इतने बिगड़े कि मोहम्मद साहब को मक्का छोड़कर मदीना की ओर प्रस्थान करना पड़ा | इस यात्रा को इस्लाम अनुयाई हिजरत कहा जाता है |

महज पच्चीस वर्ष के सक्रिय जीवन में दुनिया को प्रभावित कर देने वाले मोहम्मद साहब पेंसठ वर्ष की आयु में संसार से विदा ले गए |

हिन्दू हों या मुसलमान, हम भारतीयों को यह बात ठीक से समझ लेना चाहिए कि कुरआन की प्रत्येक आयत का सम्बन्ध तत्कालीन अरब मुल्क की परिस्थितियों और घटनाओं से है | बिना इस बात को ठीक से समझे, आयतों का अर्थ निकालने से भ्रम की स्थिति निर्मित होने की पूर्ण संभावना है | और वही लगातार हो भी रहा है |

आज जो कुरआन हमारे सम्मुख है, और जिसे मुलमान मोहम्मद साहब के माध्यम से अवतरित आसमानी पुस्तक कहते हैं, वस्तुतः उसका संकलन मोहम्मद साहब के बाद तत्कालीन खलीफा और अंसारों के माध्यम से हुआ | इसका अर्थ यह नहीं है कि आसमान से कोई पुस्तक जमीन पर आई हो | यह उन विचारों का संकलन है, जो ईश्वरीय प्रेरणा से मोहम्मद साहब के मानस पटल पर आये | 

(सबसे ख़ास बात कि कुरआन पाक में केवल ईसाई और यहूदियों का आलोचनात्मक वर्णन है, हिन्दुओं का कहीं नहीं | उदाहरण के लिए सूरे बकर की 220 वी आयत फरमाती है कि - 

ए पैगम्बर, ना तो यहूदी तुमसे रजामंद होंगे और ना ही ईसाई, जब तक कि तुम उनके ही मजहब की पैरवी न करो | ए पैगम्बर इन लोगों से कहो कि अल्लाह की हिदायत (इस्लाम) ही हिदायत है ! 

अल्लाह ताला पैगम्बर को भी चेताते हैं कि अब तुम्हारे पास इल्म (अर्थात कुरआन) आ चुका है, अगर इसके बाद भी तुम उन की ख्वाहिशों पर चलते हो, तो तुमको खुदा के कोप से बचाने वाला कोई नहीं होगा, न कोई दोस्त और न कोई मददगार !

यह आयत अपने आपमें इस बात का प्रमाण है कि इसमें अरब परिस्थितियों का ही वर्णन है !)

- क्रमशः
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1 टिप्पणियाँ

  1. दोस्तों अस्पताल में देखे कुछ  दुखद लम्हो को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि सब सुखी रहें ,  किसी को भी  इस तरह का बुरा समय न देखना पड़े :-

    चंद दिनों पीछे की बात है 
    बड़े दुःख व अफ़सोस के साथ है 
    मेरा एक पड़ोसी बीमार था 
    लम्बे समय से चल रहा इलाज था 

    मैं भी बीमार को देखने जब
    पहुंचा दिल्ली के उस बड़े से अस्पताल 
    बिस्तर पर लेटा था बीमार 
    पूछा जब मैंने हाल - चाल 

    देखकर बीमार की हालत 
    सोचने लगा मन ही मन 
    कि , ऐसा किसी के साथ न हो 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो

    दुखी मन से पूछा मैंने 
    कैसे हो आप ?
    बीमार बोल न पाया कुछ 
    बस देखता रहा चुपचाप 

    असमर्थ बना दिया था 
    बीमारी ने  उस  बेचारे को 
    कमजोर शरीर ढून्ढ रहा था
    हरदम एक सहारे को 

    क्यों ऐसी बीमारी लगती है 
    जिसका कोई इलाज न हो 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो 

    बैठा मैं जैसे ही, बीमार के पास 
    एक नर्स वहां आयी 
    एक हाथ में ग्लूकोस 
    दूजे में खून की बोतल लायी 

    अब एक तरफ ग्लूकोस
    तो चढ़ रहा खून, दूसरी ओर 
    हैरान परेशान ,  खड़ा हुआ
    मैं  भी  बिस्तर के एक छोर 

    गर्मी और दुर्गन्ध के मारे 
    जैसे मेरी जान निकल आयी 
    ऐसा लगा अस्पताल नहीं 
    कोई नर्क नया, जिसे सुना न हो 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो 

    अस्पताल की वो सीढ़ियां 
    एक चक्कर में ही चक्कर आ जाये 
    पर बीमार के   ख़ातिर 
    चक्कर पे चक्कर लगते जाये 

    कभी पानी , कभी जूस कभी
    दवाई के लिए चक्कर लगता है 
    कितना सहता है वो, सब कुछ
    जो हरदम बीमार के साथ रहता है 

    लेकिन कोई उसको समझ न पाता 
    चाहे वो कितना भी, क्यों न थकता हो 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो 

    ये सृष्टि का चक्र भी 
    कितना गजब निराला है 
    जो आता है वह जाता है
    पर अफ़सोस तो उसका है
    जो पूरी उम्र नहीं जी पाता है 

    फिर आखिर एक दिन ऐसा ही
    एक दुखद संदेसा आया 
    मुक्त हुआ वो दुनिया के बंधन से 
    चल बसा त्याग कर सारी माया मोह 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो    

    जीवन और मरण पर, 
    कब इंसान का बस चलता है  
    लेकिन ये भी सच है कि
    मानव जीवन  तो मुश्किल से मिलता है 

    भरपूर जिए इसको सब
    ऐसी सबको आजादी हो 
    मदद करें बीमार की ऐसे 
    जिसमे अपना कोई स्वार्थ न हो 
    हे! ईश्वर तुझसे यही प्रार्थना 
    कोई ऐसे बीमार न हो    


      डी .एस.  नेगी 
    आई. पी. सी - गाजियाबाद I

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