शरणागत कौन और शरण किसे ?- गोविन्द पुरोहित



उस पांच सितारा ऑडिटोरियम के बाहर प्रोफेसर साहब की आलीशान कार आकर रुकी , प्रोफेसर बैठने को हुए ही थे कि एक सभ्य सा युगल याचक दृष्टि से उन्हें देखता हुआ पास आया और बोला ," साहब , यहां से मुख्य सड़क तक कोई साधन उपलब्ध नही है , मेहरबानी करके वहां तक लिफ्ट दे दीजिए आगे हम बस पकड़ लेंगे । "

रात के साढ़े ग्यारह बजे प्रोफेसर साहब ने गोद मे बच्चा उठाये इस युगल को देख अपने "तात्कालिक कालजयी" भाषण के प्रभाव में उन्हें अपनी कार में बिठा लिया । ड्राइवर कार दौड़ाने लगा ।

याचक जैसा वह कपल अब कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट से एक दूसरे की आंखों में देख अपना प्लान एक्सीक्यूट करने लगा । पुरुष ने सीट के पॉकेट मे रखे मूंगफली के पाउच निकालकर खाना शुरू कर दिया बिना प्रोफेसर से पूछे /मांगे ।

लड़की भी बच्चे को छोड़ कार की तलाशी लेने लगी ।एक शानदार ड्रेस दिखी तो उसने झट से उठा ली और अपने पर लगा कर देखने लगी ।

प्रोफेसर साहब अब सहन नही कर सकते थे ड्राइवर से बोले गाड़ी रोको ,लेकिन ड्राइवर ने गाड़ी नही रोकी बस एक बार पीछे पलटकर देखा , प्रोफेसर को झटका लगा ,अरे ये कौन है उनके ड्राइवर के वेश में ?? वे तीनों वहशियाना तरीके से हंसने लगे , प्रोफेसर साहब को अपने इष्टदेव याद आने लगे ,थोड़ा साहस एकत्रित करके प्रोफेसर साहब ने शक्ति प्रयोग का "अभ्यासहीन " प्रयास करने का विचार किया लेकिन तब तक वह पुरुष अपनी जेब से एक लाइटर जैसा पदार्थ निकाल चुका था और उसका एक बटन दबाते ही 4 इंच का धारदार चाकू बाहर आ चुका था प्रोफेसर साहब की क्रांति अकाल मृत्यु को प्राप्त हुई ।

प्रोफेसर साहब समझ चुके थे कि आज कोई बड़ी अनहोनी निश्चित है उन्होंने खुद ही अपना पर्स निकालकर सारे पैसे उस व्यक्ति के हाथ में थमा दिये लेकिन वह व्यक्ति अब उनके आभूषणों की तरफ देखने लगा, दुखी मन से प्रोफेसर साहब ने अपनी अंगूठियां ,ब्रेसलेट और सोने के चेन उतार के उसके हाथ में धर दिए , अब वह व्यक्ति उनके गले में एक और लॉकेट युक्त चैन की तरफ हाथ बढ़ाने लगा । प्रोफेसर साहब याचना पूर्वक बोले - इसे छोड़ दो प्लीज यह मेरे "पुरुखों की निशानी " है जो कुल परंपरा से मुझ तक आई है , इसकी मेरे लिए अत्यंत भावनात्मक महत्ता है । लेकिन वह लुटेरा कहां मानने वाला था उसने आखिर वह निशानी भी उतार ही ली ।

बिना प्रोफ़ेसर साहब के पता बताएं वे लोग उनके आलीशान बंगले के बाहर तक पहुंच गए थे । युवक बोला ," लो आ गया घर , ऐसे ढेर सूखे मेवे , कपड़े , पैसा और प्रोफेसर साहब की ल.......

उसकी आँखों मे आई धूर्ततापूर्ण बेशर्म चमक ने शब्द के अधूरेपन को पूर्णता दे दी ।

प्रोफेसर साहब अब पूरे परिवार की सुरक्षा एवं घर पर पड़े अथाह धन-धान्य को लेकर भी चिंतित हो गये उनका रक्तचाप उछाले मारने लगा लेकिन करें भी तो क्या ??
लगे गिड़गिड़ाने ," भैया मैंने आपको आपत्ती में देखकर शरण दी और आप मेरा ही इस तरह शोषण कर रहे हैं यह अनुचित है । ईश्वर का भय मानिए यह निर्दयता की पराकाष्ठा है ।अब तो छोड़ दीजिए मुझे भगवान के लिए । 
प्रोफेसर फूट फूट कर रोने लगे ।।

वे पति पत्नी अपना बच्चा लेकर कार से उतर गये और वह ड्राइवर भी , उनके द्वारा लिया गया सारा सामान उन्होंने वापस प्रोफेसर साहब के हाथ में पकड़ाया और बोले

" क्षमा कीजिएगा सर ! रोहिंग्या मुसलमानों के विषय मे शरणागत वत्सलता पर आज आपके द्वारा उस ऑडिटोरियम मे दिए गए "अति भावुक व्याख्यान" का सही मर्म समझाने के लिए हमें यह स्वांग रचना पड़ा ।
"आप जरा खुद को भारतवर्ष और हमें रोहिंग्या समझ कर इस पूरी घटना पर विचार कीजिए और सोचिये की आपको अब क्या करना चाहिए इस विषय पर । "

वो मूंगफली नही इस देश का अथाह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी रक्षार्थ यंहा के सैनिक अपना उष्ण लाल लहू बहाकर करते है सर , मुफ्त नही है यह ।

वो आपकी बेटी/बेटे की ड्रेस मात्र कपड़ा नही है इस देश के नागरिकों के स्वप्न है भविष्य के जिसके लिए यंहा के युवा परिश्रम का पुरुषार्थ करते है ,मुफ्त नही है यह ।

आपकी बेटी / पत्नी मात्र नारी नही है देश की अस्मिता है सर जिसे हमारे पुरुखों ने खून के सागर बहा के सुरक्षित रखा है , खैरात में बांटने के लिए नही है यह ।

आपका ये पर्स अर्थव्यवस्था है सर इस देश की जिसे करोड़ो लोग अपने पसीने से सींचते है , मुफ्त नही है यह ।

और आपके पुरुखों की निशानी यह चैन मात्र सोने का टुकड़ा नही है सर , अस्तित्व है हमारा , इतिहास है इस महान राष्ट्र का जिसे असंख्य योद्धाओ ने मृत्यु की बलिवेदी पर ढेर लगाकर जीवित रखा है , मुफ्त तो छोड़िए इसे किसी ग्रह पर कोई वैज्ञानिक भी उत्पन्न नही कर सकते ।

कुछ विचार कीजिये सर ! कौन है जो खून चूसने वाली जोंक को अपने शरीर पर रहने की अनुमति देता है , एक बुद्धिहीन चौपाया भी तत्काल उसे पेड़ के तने से रगड़ कर उससे मुक्ति पा लेता है ।

उस युवक ने वह लाइटर जैसा रामपुरी चाकू प्रोफेसर साहब के हाथ में देते हुए कहा यह मेरी प्यारी बहन जो आपकी पुत्री है उसे दे दीजिएगा सर क्योंकि अगर आप जैसे लोग रोहिंग्या को सपोर्ट देकर इस देश में बसाते रहे तो किसी न किसी दिन ऐसी ही किसी कार में आपकी बेटी को इसकी आवश्यकता जरूर पड़ेगी।

सर ज्ञान के विषय मे तो हम आपको क्या समझा सकते हैं लेकिन एक कहानी जरूर सुनिए ,

" लाक्षाग्रह के बाद बच निकले पांडव एकचक्रा नगरी में गए थे तब वहा कोई सराय वगैरह तो थी नहीं तो वे लोग एक ब्राह्मणि के घर पहुंचे और उन्हें शरण देने के लिए याचना की ।

शरणागत धर्म के चलते हैं उस ब्राह्मणि ने उन्हें शरण दी ,शीघ्र ही उन्हें (पांडवो) को पता चला कि यहां एक बकासुर नामक राक्षस प्रत्येक पक्षांत पर एक व्यक्ति को बैलगाड़ी भरकर भोजन के साथ खा जाता है और इस बार उसी ब्राह्मणी के इकलौते पुत्र की बारी थी , उस ब्राह्मणि के शरणागत धर्म के निष्काम पालन से प्रसन्न पांडवों ने धर्म की रक्षा के लिए , निर्बलों की सहायता के लिए और अपने शरण प्रदाता के ऋण से हल्के होने के लिए स्वयं भीम को उस ब्राह्मण के स्थान पर भेजा ।

आगे सभी को पता ही है की भीम ने उस राक्षस कोे किस तरह पटक-पटक कर धोया था लेकिन यह कहानी हमें सिखाती है की शरण किसे दी जाती है ??

"जो आपके आपत्तिकाल मे आपके बेटे के बदले अपने बेटे को मृत्यु के सम्मुख प्रस्तुत कर सके वही शरण का सच्चा अधिकारी है । "


उसी के लिए आप अपने संसाधन अपना हित अपना सर्वस्व त्याग करके उसे अपने भाई के समान शरण देते हैं और ऐसे कई उदाहरण इतिहास में उपलब्ध है ।


प्रोफेसर साहब ! ज्ञान वह नहीं है जो किताबें पढ़कर आता है , सद्ज्ञान वह है जो ऐतिहासिक घटनाएं सबक के रूप में हमें सीखाती हैं और वही वरेण्य है ।

वरना कई पढ़े-लिखे महामूर्धन्य लोगों के मूर्खतापूर्ण निर्णयो का फल यह पुण्यभूमि आज भी भुगत ही रही है। आशा है आप हमारी इस धृष्टता को क्षमा करके हमारे संदेश को समझ सकेंगे ।

प्रोफेसर साहब एक दीर्घनिश्वास के साथ उन्हें जाते हुए देख रहे थे । आज वे ज्ञान का एक विशिष्ट प्रकाश अपने अंदर स्पष्ट देख पा रहे थे ।

जय हिंद ।।

।।नीतिवान लभते सुखं ।।
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