धर्म संसद में पारित प्रस्ताव - जिसे लेकर गंगा भक्त संत सानंद ने आत्म बलिदान दिया |



27, 28 और 29 दिसंबर 2011 के दौरान इलाहाबाद में हुए संत समागम में, अविरल और निर्मल गंगा के लिए एक प्रारूप तैयार किया गया | विशेषज्ञों से चर्चा के पश्चात इसे पहली बार 5 नवंबर 2012 को सार्वजनिक किया गया | 21 नवंबर 2012को नई दिल्ली में अखिल भारतीय संत समिति के तत्वावधान में आयोजित ‘‘धर्म संसद’’ में उपस्थित संतो और धर्माचार्यो ने इसे स्वीकृत किया | इस प्रस्ताव के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं – गंगा जी एक सामान्य नदी या भौगोलिक इकाई भर नही हैं, वे तो भारतीय संस्कृति की जीवन-प्राण, भारत की शान का प्रतीक और भारत राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय पहचान हैं। सभी भारतीयों, भारतीय मूल के अप्रवासियों और भारतीय संस्कृति से जुड़े विदेशियों के मन में भी गंगा जी के प्रति विशेष लगाव और श्रद्धा है। अतः भारतीय संसद राष्ट्र ध्वज अधिनियम की तरह राष्ट्र नदी अधिनियम पारित करे ।

यद्यपि 20 फरवरी 2009 को इन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के अंतर्गत अधिसूचना संख्या 328 के द्वारा भारत सरकार ने गंगा जी को राष्ट्रीय नदी घोषित कर गंगा जी के प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय गंगा नदी बेसीन प्राधिकरण की स्थापना की, लेकिन बढ़ती जनसंख्या, आर्थिक, औद्योगिक, नगरीय तथा भौतिक विकास की लालसा के दबाव के कारण राष्ट्रीय गंगा नदी बेसीन प्राधिकरण, एक राष्ट्रीय प्रतीक, अद्वितीय अस्तित्व तथा सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर गंगा जी का सम्मान सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त सिद्ध नहीं हुआ।

इन दबावों से सक्षम तरीके से तभी निपटा जा सकता है जब भारतीय संसद द्वारा एक स्पष्ट और सुनिश्चित कानून पारित हो। इसका स्वरूप और इसके अंतर्गत दंडात्मक प्रावधान राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम की तरह हो।

इस संदर्भ में गंगा महासभा ने न्यायमूर्ति गिरिध्र मालवीय जी की अध्यक्षता में देश के शीर्षस्थ न्यायविदों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता से प्रस्तावित कानून का प्रारूप तैयार किया है। जिसे राष्ट्र नदी गंगा जी संरक्षण एवं प्रबंधन अधिनियम 2012 नाम दिया गया है। हमारा मानना है कि यह प्रस्तावित अधिनियम गंगाजी को भारत की राष्ट्र नदी और सांस्कृतिक विरासत के रूप में औपचारिक स्वरूप प्रदान करने, राष्ट्रीय प्रतीक के प्रति अपेक्षित सम्मान, आदर और संरक्षण सुनिश्चित करने और सरकार के प्रत्येक स्तर ;केन्द्रीय, राज्य और स्थानीयद्ध पर नीतियों, योजनाओं, निर्णयों और क्रियान्वयन में गंगा जी के संरक्षण और हित की प्राथमिकता सुनिश्चित करने में सक्षम सिद्ध होगा।

अधिनियम में गंगा जी का भौतिक स्वरूप भी परिभाषित किया गया है। गंगा जी में कौन-कौन सी गतिविधियाँ प्रतिबंध्ति होंगी और कौन-कौन सी गतिविधियाँ सीमित होंगी यह तय किया गया है। गंगा जी में प्रतिबंधित गतिविधियाँ अपराध मानी जाएंगी और उसके लिए दंड का प्रावधान होगा।

गंगा जी से संबंधित नीति निर्धारण के लिए केन्द्र स्तर पर ‘राष्ट्रीय नदी गंगा प्राधिकरण’ और राज्य स्तर पर ‘राज्य गंगा बोर्ड’ होंगे। क्रियान्वयन के लिए केन्द्र स्तर पर ‘केन्द्रीय निगरानी एवं क्रियान्वयन समिति’, गंगा जी की आठ जोनों के लिए ‘जोनल निगरानी एवं क्रियान्वयन समितियाँ’ और इनके अंतर्गत ‘सेक्शनल निगरानी एवं क्रियान्वयन समितियाँ’ होंगी। इन समितियों में मंत्रियों, अधिकारियों के साथ-साथ वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, समाजसेवकों और गंगा-भक्तों का समावेश होगा। 

संत हत्या का जघन्य पाप किस किसको क्या क्या सजा दिलवाएगा - यह समय के गर्भ में है |
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