हनुमान जी को वनवासी बताने से क्यूं भड़के छद्म सेक्यूलर और ईसाई मिशनरियों के जर खरीद ?




आज मुझे हनुमान जी से सम्बंधित दो पंक्तियाँ हठात याद आ रही है ! पहली तो है, जिसमें बजरंग बली स्वयं के विषय में विभीषण को जानकारी दे रहे हैं –

प्रात लेई जो नाम हमारा, ते दिन ताहि न मिलहिं अहारा !

और दूसरी वह जिसमें माता जानकी उन्हीं हनुमान जी को आशीर्वाद दे रही हैं –

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस वर दीन्हि जानकी माता !

यह त्रेता युग के प्रसंग हैं, जब व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान होता था ! यह वह दौर था जब जघन्य पातक करने वाला पापी भी सोच बदलते ही, महापुरुष बन जाया करता था ! याद कीजिए कि विश्वामित्र जी ने क्रोधावेश में महर्षि वशिष्ठ के पुत्रों का वध कर दिया, उनके आवास को तहस नहस कर दिया, किन्तु उनके ह्रदय में ज्ञानदीप जलते ही, आत्मवोध होते ही, महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें गले लगाकर ब्रह्मर्षि कहकर सम्मानित किया ! वे पलक झपकते क्षत्रिय से ब्राह्मण के रूप में समाज मान्य हो गए !
हमारे यहाँ कहा गया है – जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
किसी व्यक्ति में जब तक अज्ञान है, तब तक ही उसकी पहचान उसकी जाति है | ज्ञानवान की जाति क्या है उसका कोई महत्व नहीं है | अतः जब देखता सुनाता हूँ कि हनुमान जी की जाति को लेकर विवाद हो रहा है, तो हैरत होती है । आखिर ज्ञान के महत्व को स्वीकारने वाला भारत निरर्थक विवादों का देश कैसे बन गया ? भारतीय लोकतंत्र ने संभवतः हमारे मूल चरित्र को ही बदल दिया है।
जिसने अपने मन मंदिर में परब्रह्म परमेश्वर को बसा लिया, उन बजरंग बली की जाति को लेकर विवाद ? सचमुच कमाल ही है | शायद इसीलिए कहा गया – जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ! गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है – दुनिया में जहाँ भी कोई दिव्यता है, वह मैं ही हूँ ! सो अधम लोगों की नजर में हनुमान जी की जाति मुख्य है, और आस्थावानों की नजर में उनकी दिव्यता | सुग्रीव से अधिक शक्तिशाली होने के बाद भी उनको राजा बना कर स्वयं उनका मार्गदर्शन करते रहे हनुमान... अपार पराक्रम कर लंकादहन के पश्चात सीता की सुधि लाने के बाद भी विनम्रता पूर्वक श्रेय से दूर रहने वाले हनुमान..... लोभ लालच से दूर, सीताजी द्वारा दिए गए पुरष्कार में भी प्रभू ढूँढने वाले और न पाकर उसे फेंक देने वाले हनुमान । सो इन हनुमान जी को आज भारत में सर्वाधिक पूज्य जागृत देवता मान लिया गया है, तो इसमें हैरानी की क्या बात है ?
वे ज्ञान से ब्राह्मण, पराक्रम से क्षत्रिय, लाभ हानि विवेक में वैश्य और विनम्रता में शूद्र के अद्भुत मानक कहे जा सकते हैं | तात्कालिक विश्व के सबसे शक्तिशाली शासक रावण के घर में अकेले घुस कर उसकी लंका जला देने वाले बजरंग बली से बड़ा योद्धा दूसरा कौन हुआ होगा इस सृष्टि में? वे रावण की नगरी में अकेले जाकर उसकी बगिया उजाड़ देते हैं, उसके बेटे को मारते हैं, वे अहिरावण-महिरावण के घर मे अकेले घुस कर उन्हें मार देते हैं। क्षत्रियत्व इसी निडरता का नाम है न? फिर उनसे बड़ा क्षत्रिय कौन होगा?
वे अपनी चतुरता के लिए भी जाने जाते हैं, सुरसा के मुख से निकलकर उन्होंने उसे निरुत्तर कर दिया, संजीवनी लाते समय छद्म तपस्वी को पहचान कर उसे नरक पथ पर भेजने वाले, सुग्रीव को हित अहित का ज्ञान समझाकर उसकी राम के साथ सन्धि कराने वाले हनुमान जी की वणिक बुद्धि से कौन प्रभावित नहीं होगा?
उनकी श्रीराम के प्रति भक्ति और सेवा भाव शूद्र शब्द की शाब्दिक परिभाषा से कहाँ भिन्न है ? जिसके अंदर सेवा-भावना है वह शूद्र है। जीवन भर स्वयं को प्रभु श्रीराम का दास कहने वाले हनुमान से अच्छा सेवक और कोई दिखता है क्या सम्पूर्ण जगत में?
हनुमान जी तो सहज बन में रहने वाले थे, तो क्या उन्हें वनवासी नहीं कहा जा सकता? वे वन में ही पैदा हुए, उनकी परवरिश वन में ही हुई, तो स्वाभाविक ही हनुमान जी बनवासी ही तो थे।
सीधी सी बात है कि हनुमान जी सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं | भारत में निवास करने वाले हर वर्ग का प्राणी, उन्हें अपना कह सकता है | यहाँ तक कि इंसान भी तो पशु भी ! राजा भी और रंक भी ! भारत के जितने भी सामाजिक वर्ग हैं, सबके मूल संस्कार हनुमान जी में मिल जाएंगे आपको। शायद इसीलिए भारत तोड़ो ब्रिगेड सबसे ज्यादा हनुमान जी से घबराती है | इसीलिए जब कोई हनुमान जी को वनवासी निरूपित कर वनवासी समाज का स्वाभाविक देवता बताता है, तो उन्हें मिरची लगती है, जैसा कि पिछले दिनों देखने में आया । भारत विरोधी शक्तियां के मंसूबे हैं समाज को तोड़ना, जबकि हनुमान जी हैं समाज को जोड़ने वाले, सर्वगुणसंपन्न देवता !
बनवासियों का धर्मपरिवर्तन कराने वाले ईसाई मिशनरियों की राह सबसे बड़ा रोड़ा हैं हनुमान जी । पिछले सौ वर्षों से बनवासियों को फुसलाने का उनका धंधा इसी आधार पर तो चल रहा है कि हिंदुओं के सारे देवता सवर्णों में से हैं। जबकि हनुमान जी ठहरे विशुद्ध वनवासी | इसीलिए जब नाथपन्थ के एक सन्यासी ने कलियुग में सबसे पूज्य देवता हनुमान जी को बनवासी स्वाभिमान का प्रतीक बता दिया, तो ईसाई मिशनरियां और उनके वित्तपोषित मीडियाकर्मियों का बिदकना स्वाभाविक ही है।
कितनी हैरत की बात है कि कोई राम को क्षत्रिय कहे या कृष्ण को यादव, किसी को कोई आपत्ति नहीं, लेकिन हनुमान को बनवासी कहने भर से इतना विवाद क्यों हो रहा है, यह सोचने समझने की बात है | इन लोगों को तो महापुरुषों को भी जाति के चश्मे से देखने की आदत पड़ चुकी है, यहाँ तक कि भगवान विश्वकर्मा और महर्षि वाल्मीकि भी एक-एक जातियों के प्रतीक बन चुके हैं। तो ऐसे में हनुमान जी को बनवासी स्वाभिमान से जोड़ना उन सभी धार्मिक आक्रमणकारियों को बुरा लगा है, अतः वे तो विवाद खड़ा करने का हर संभव प्रयास करेंगे ही।
एक विशेष जानकारी पाठकों से साझा कर रहा हूँ ! जिन्हें उत्तर भारतीय भगवान कार्तिकेय के नाम से जानते हैं, उन्हें केरल और तमिलनाडु में शिवपुत्र मुरुगन के नाम से पूजा जाता है | पिछले अनेक वर्षों से ईसाई मिशनरियों ने मुरुगन को क्राइस्ट बताने का अभियान चलाया हुआ है ! केरल के भोले भाले पिछड़े वर्ग के हिंदुओं को समझाया जाता है कि मुरुगन भगवान शिव के पुत्र नहीं, यीशु थे। और इसी क्रम में दक्षिण के कई मंदिरों को हड़पने का कुचक्र ईसाई मिशनरियां चला रही हैं | मुरुगन को यीशु बताकर, उनके मंदिरों में क्रोस पर लटके ईशू की मूर्ति टांगने का प्रयास लगातार जारी है | हजारों की संख्या में ईसाई कई मंदिरों पर ऐसे प्रयास कर चुके हैं !
कुछ वर्ष पूर्व विश्वहिन्दू परिषद ने संभवतः इसीलिए वंचित और वनवासी समाज के बीच हनुमान जी के चित्र घर घर पहुंचाने का कार्य हाथ में लिया था | पिछले दिनों नाथ पंथ के एक सन्यासी योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को वनवासी कहकर छद्म सेक्यूलरों, मिशनरियों और उनके क्रीत दास मीडिया के एक धड़े को एक साथ ललकार दिया है | जागृत हिन्दू समाज को इसका स्वागत करना चाहिए | जो लोग आज इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि योगी ने हनुमान जी को बंचित, दलित, वनवासी कहकर उनका अपमान किया है, दरअसल उनकी मंशा केवल भड़काने की है, वे हिन्दू समाज के शुभचिन्तक तो कतई नहीं हैं | इसे ठीक से समझना होगा !
जागते रहो, जगाते रहो !

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