स्वतंत्रता संग्राम सेनानी > लोकतंत्र सेनानी > सज्जन वर्मा



कल टीवी पर मध्यप्रदेश सरकार के लोकनिर्माण मंत्री सज्जन वर्मा का बयान सुन रहा था, जिसमें उन्होंने कहा कि “मीसा में कई गुंडे, लुटेरे बदमाश बंद हुए थे, यदि उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का दर्जा दिया जाएगा, तो ऊपर बैठे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आत्मा भी ये सुनकर रोयेगी |

सज्जन वर्मा जी के महान विचार सुनकर मेरी आँखों के सामने दो द्रश्य घूम गए –

शिवपुरी में एक महानुभाव स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए हैं, जो 26 जनवरी और पंद्रह अगस्त को तो जिलाधीश के हाथों शाल श्रीफल प्राप्त कर सम्मानित होते, किन्तु शेष दिनों में साल में कई बार उनका बाज़ार से जुलूस निकलता - पुलिस के डंडे खाते हुए, हाथ में तख्ती लिए हुए, जिस पर लिखा होता – “सट्टा खेलना पाप है, पुलिस हमारी बाप है”|

दूसरा द्रश्य आपातकाल के दौरान शिवपुरी जेल का है, जहाँ तीन कैदियों के लिए बनी हुई कोठरी में अठारह मीसाबंदियों को ठूंसा गया था और महीनों वहीँ रहने को विवश किया गया था | हालत यह थी कि अगर एक को करबट बदलनी होती थी, तो वह बगल में सोये हुए दूसरे साथी को कहता था – भैय्या जरा करबट ले ले | 

इतना ही नहीं तो मेनुअल के अनुसार जो भोजन सामग्री मिलती थी, वह कितनी अपर्याप्त होती थी, इसका एक रोचक उदाहरण है | सबके हिस्से में चार रोटी और दाल आती थी | एक मीसाबंदी की खुराक कुछ अधिक जानकर सर्व श्री मुन्नालाल गुप्ता, गोपाल डंडोतिया व अशोक पांडे ने अपने हिस्से की एक एक रोटी उनको देना तय किया | कुछ समय पश्चात जब उक्त मीसाबंदी से पूछा कि भैया अब तो पेट भर जाता होगा न ? तो उन्होंने रूहांसे स्वर में जबाब दिया, भाई साहब इनसे क्या होता है, मैं तो इतनी ही और खा सकता हूँ |

मेरे कहने का आशय यह नहीं है कि मैं श्रीमान सज्जन वर्मा के समान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की शान में कोई गुस्ताखी कर रहा हूँ | उदाहरण देने का आशय मात्र यह है कि हर जगह अच्छे बुरे लोग होते हैं | एक के कारण पूरे समूह को गुंडा बदमाश कहना सरासर अनेक लोगों की मानहानि तो है ही, साथ ही इससे खुद की नासमझी भी प्रगट होती है | सर्वाधिक दुर्भाग्य पूर्ण यह है कि कांग्रेस के लोग आपातकाल को अपनी भूल मानने की बजाय केवल प्रतिहिंसक बदले की भावना से ग्रस्त हैं |

अंग्रेजों के अत्याचार झेलने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हों अथवा स्वतंत्र भारत में अपने ही लोगों की अकारण प्रताड़ना झेलने वाले निर्दोष मीसा बंदी, चूंकि उनके साथ सत्ता द्वारा अन्याय किया गया, अतः वे मुआवजे के पात्र हैं | यहाँ यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि जिन आरएसएस प्रचारकों की सर्वाधिक चर्चा की जा रही है, उनमें से अधिकाँश ने कोई मीसाबंदी सम्मान निधि ली ही नहीं है | भला जिनका घर परिवार ही नहीं, वे क्यों यह धन लेने लगे ?

हाँ कई गृहस्थ मीसाबंदी अवश्य इस सम्माननिधि पर आश्रित हैं | कल्पना कीजिए दतिया के श्री हरिहर श्रीवास्तव की, जो महज इस लिए गिरफ्तार कर लिए गए, क्योंकि वे आरएसएस के विभाग संघचालक जी के जूनियर वकील थे | जेल में रहने के दौरान ही उनके दो दुधमुंहे बच्चे उचित देखरेख के अभाव में अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए | क्योंकि परिवार के उदर पोषण के लिए वे अकेले ही कमाने वाले थे | इतना ही नहीं तो वे आज पक्षाघात से भी पीड़ित हैं |

शिवपुरी के श्री गुलाबचंद्र शर्मा ब्रेन हेमरेज हो जाने के बाद अब चलने फिरने से भी असमर्थ हैं | ऐसे उदाहरण हर जगह मिल जायेंगे | अनेक मीसाबंदी परम धाम भी जा चुके हैं, उनमें से कई की धर्मपत्नियां दी जा रही सम्मान निधि पर ही आश्रित हैं | क्या कांग्रेसियों में मानवता नाम की कोई चीज शेष नहीं बची है ? अरे भाई सम्मान निधि बंद करनी है तो कर दो, किन्तु गुंडा बदमाश तो मत बोलो | ये लोग जब जेल गए थे, तब किसी आर्थिक लाभ की प्रत्याशा में नहीं गए थे | शिवपुरी में चौदह लोगों ने तो चार जत्थों में प्रदर्शन व सत्याग्रह कर स्वयं को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत किया था | जब यह पता न हो कि गिरफ्तारी के बाद कब छूटेंगे, छूटेंगे भी या नहीं, क्या तब यह साहस दर्शाना प्रशंसनीय नहीं है ? आज अगर देश में प्रजातंत्र बचा है, तो इन लोकतंत्र सेनानियों के कारण ही, अन्यथा तो इंदिरा जी की तानाशाही देश पर थोपी ही जा चुकी थी |

श्रीमान सज्जन वर्मा जी, निश्चय ही अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष कर यातना सहन करने वाले स्वतंत्रता सेनानी सबसे बढकर सम्मान पाने के अधिकारी हैं, किन्तु देश के लोकतंत्र की रक्षा में अपना योगदान देने वाले लोकतंत्र सेनानी भी अपमान के पात्र तो कतई नहीं हैं और वे आप जैसे प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त - कुत्सित बुद्धि के बड़ेबोले नेता से तो कहीं अधिक श्रेष्ठ हैं !
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें