सुब्रमण्यम स्वामी के अनुसार प्रियंका गांधी को है एक बीमारी - जानिये क्या है यह रोग और क्या है उसका उपचार

बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रियंका गांधी को लेकर हैरान कर देने वाला खुलासा किया है। सुब्रमण्यम स्वामी के इस बयान पर एक बार सियासत गरमा गयी है | सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारा प्रियंका गांधी पर बीमारी को ले कर हमला कांग्रेस वालों के लिए भी एकदम नया विषय हो सकता है | इस बयान के बाद कांग्रेस के खेमे में भले ही खामोशी छाई है पर अंदर ही अंदर कईयो की तिलमिलाहट महसूस की जा सकती है | फिलहाल स्वामी अपने सदाबहार मूड में दिखाई दे रहे हैं और कांग्रेस पर लगातार हमलावर हैं | 

बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रियंका गांधी को लेकर खुलासा किया है कि प्रियंका को एक बीमारी है, जिसे बाइपोलरिटी कहते हैं। ये बीमारी सार्वजनिक जीवन में अनुकूल और उपयुक्त नहीं है। स्वामी ने कहा कि अभी तक वो निजी जीवन में थी तो मैंने बोला नहीं, लेकिन अब सार्वजनिक जीवन में है तो बोलना पड़ेगा, पब्लिक को उनके बारे में सब पता होना चाहिए। 

आइये जानते हैं कि क्या है यह बीमारी - बाइपोलरिटी अर्थात द्विध्रुवी विकार

बाईपोलर डिसऑर्डर का शिकार व्यक्ति का मूड जल्दी-जल्दी बदलता है। वह कभी खुद को एकदम से खुश महसूस करता है तो एकाएक से अवसाद की अवस्था में भी पहुंच जाता है। खुशी और दुख दोनों ही अवस्थाएं सामान्य नहीं होती है। खुशी की इस अवस्था को ‘मेनिक ’ कहा जाता है। बाईपोलर डिसऑर्डर को मुख्यत: तीन श्रेणियों में बांटा गया है- बाईपोलर1, बाईपोलर 2, साइक्लोथाइमिक डिसऑर्डर या बाईपोलर डिसऑर्डर। 

बाईपोलर डिसऑर्डर पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है। चूंकि यह दिमाग के फंक्शनों को प्रभावित करता है जिससे इसका असर लोगों के सोचने, व्यवहार और महसूस करने में देखा आता है। इसकी वजह से अन्य लोगों का उनकी स्थिति को समझ पाना मुश्किल हो जाता है।

सामान्यत: वयस्कों में ये स्थिति एक हफ्ते से लेकर, एक महीने तक रहती है। हालांकि यह इससे कम भी हो सकती है। मेनिक और डिप्रेशन की स्थिति अनियमित होती है और इसका पैटर्न भी समान नहीं होता। कहने का आशय ये है कि हमेशा इसके लक्षण समान नहीं होते। हर व्यक्ति के व्यक्त्वि के अनुसार ये अलग-अलग प्रकट होते हैं।

साइड इफेक्ट 

बाईपोलर डिसऑर्डर की वजह से कुछ लोगों को ड्रग्स और एल्कोहल की लत लग जाती हैं। बाईपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों के लिए शराब और ड्रग्स बेहद नुकसानदेह साबित होते हैं और वह व्यक्ति की स्थिति को ज्यादा खराब कर देते है जिससे डॉक्टर के लिए उसका उपचार करना अधिक मुश्किल भरा हो जाता है।

वैज्ञानिक पक्ष 

बाईपोलर मूड डिसऑर्डर का अब तक कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक हल सामने नहीं आया है। ज्यादातर वैज्ञानिक इसके लिए बायोकेमिकल, जेनेटिक और माहौल को जिम्मेदार मानते हैं। ऐसा दिमाग के रसायनों (न्यूरोट्रांसमीटर) में असंतुलन की वजह से होता है। न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन की वजह से मूड को नियंत्रित करने वाला सिस्टम गड़बड़ा जाता है। वहीं इसके लिए जीन भी प्रमुख कारक होते हैं। अगर किसी नजदीकी को बाईपोलर डिसऑर्डर है तो किसी व्यक्ति को इसके होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। इसका मतलब ये भी नहीं निकालना चाहिए कि अगर आपके नजदीकी को बाईपोलर डिसऑर्डर है तो आपको भी ये हो जाएगा।

वहीं माहौल को भी मनोवैज्ञानिक इस डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार मानते है। परिवार में किसी व्यक्ति की मौत, माता-पिता का तलाक और कई अन्य दर्दनाक हादसों की वजह से व्यक्ति इसका शिकार हो जाता है। ब्रेन की संरचना में डिफेक्ट की वजह से बाईपोलर डिसऑर्डर होता है। कुछ अध्ययनों में ये सामने आया है कि मेंडुला, प्रीफ्रंटल कार्टेक्स और हिप्पोकैंपस में गड़बड़ी की वजह से ऐसी समस्या होती है।

उपचार 

बाईपोलर मूड डिसऑर्डर को पहचान कर इसका उपचार किया जा सकता है। वयस्कों में इस डिसऑर्डर के लक्षण पता करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। बच्चों और टीनेजर्स में इसके लक्षण वयस्कों की तरह नहीं होते हैं, ऐसे में इनमें लक्षण पहचानने में दिक्कत आती है। उपचार करने से पहले टीएनजर्स की वर्तमान और भूतकाल के अनुभवों की पड़ताल की जाती है। इसके अलावा परिवार के सदस्य और दोस्तों से भी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानकारी ली जाती है।

कई बार टीनेजर्स में इसे पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर जैसा समझ लिया जाता है, जिससे इसके ईलाज में मुश्किलें आती हैं। उपचार मुख्यत: व्यवहारिक लक्षणों और संकेतों के आधार पर किया जाता है। बाद में टेस्ट किए जाते हैं। जैसे सीटी स्कैन ब्रेन बेंट्रीसिल्स (जहां सेरेब्रोस्पाइनल द्रव्य एकत्रित होता है) का बड़ा रूप दिखाता है। वही ब्राइट स्पॉट को दिमाग के एमआरआई द्वारा देखा जा सकता है

मिशीगन विश्वविद्यालय में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि बाईपोलर मूड डिसऑर्डर वाले लोगों में रसायन का स्नव करने वाली दिमागी कोशिकाओं की संख्या आम लोगों की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा होती है। इसके अलावा उनके दिमाग में कैल्शियम या कॉर्टीसोल (एड्रीनल ग्रंथि द्वारा स्नवित स्ट्रेस हार्मोन) की अधिकता होती है। साथ ही दिमाग के सेल रिसेप्टर में असामान्यता देखने में आती है।

मल्टीपल पर्सनॉलिटी डिसऑर्डर 

मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर मुख्यत: किसी सदमे या बचपन में हुई किसी दुर्घटना की वजह से होता है। जब लोग लंबे समय से सदमे से उबर नहीं पाते हैं, तो यह इस बीमारी की वजह बनता है। अकसर लोग इस बीमारी को सिजोफ्रेनिया से जोड़कर देखते हैं। ध्यान रखने वाली बात है कि यह दोनों बीमारियां पूरी तरह अलग है। फिल्म और कहानियों में मल्टीपल पर्सनॉलिटी डिसऑर्डर के मरीजो को खूंखार किस्म का दिखाया जाता है, जबकि वास्तविकता इससे पूरी तरह अलग होती है।

लक्षण : मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर में लोगों को समय का ज्ञान नहीं होता है, उन्हें ये एहसास तक नहीं होता है कि समय बीत चुका है। इसके अलावा इस बीमारी के प्रमुख लक्षण डिप्रेशन, फोबिया, संशय में पड़ना, बैचेनी, आत्महत्या करने, नशे के लती बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त मल्टीपल पर्सनॉलिटी डिसऑर्डर के शिकार लोग अपनी त्वचा काट लेते हैं। उन्हें शरीर में तेज दर्द की शिकायत होती है, साथ ही इटिंग डिसऑर्डर और सिरदर्द की दिक्कतें रहती हैं। 

इलाज 

मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर के इलाज की प्राथमिक चिकित्सा थेरेपी है। इसके ट्रीटमेंट के लिए प्ले थेरेपी, टॉक थेरपी, हिप्नोसिस थेरेपी का प्रयोग होता है। सामान्यत: मनोचिकित्सक इस रोग के इलाज के लिए मेडिकेशन को तरजीह नहीं देते है। इलाज के दौरान ये कोशिश की जाती है, कि व्यक्ति वास्तविक जीवन को सदमे से जोड़कर न देखें। थेरेपी एक लंबी प्रक्रिया है, ऐसे में इस बीमारी के इलाज में लंबा समय लग जाता है। क्लिनिकल रिसर्च से जुड़े लोग भी ये ताकीद करते हैं कि अगर लगातार थेरपी कराई जाए, तो इस बीमारी को सही किया जा सकता है।

ऐसे होता है इलाज 

इसके प्रमुख लक्षण मूड में आ रहे उतार चढ़ाव को स्थिर करने के लिए मूड स्टेबेलाइज़र तकनीक का प्रयोग किया जाता है। मूड स्टेबलाइजर का चयन करते वक्त व्यक्ति की उम्र, उसका वजन, डेमोग्राफिक प्रोफाइल, पारिवारिक हिस्ट्री, दवाई का प्रभाव और मेटाबोलिक, एंडोक्राइन और कार्डियोवॉस्कुलर प्रोफाइल देखा जाता है। खुराक की मात्र निश्चित करने से पहले व्यक्ति का मेडिकल प्रोफाइल जांचा जाता है।

दवाई का प्रभाव जांचने के लिए व्यक्ति का ईसीजी, शुगर और थॉयरायड टेस्ट कराया जाता है। मूड को स्थिर रखने के लिए दो से तीन साल तक दवाई की जाती है। तकरीबन आधा आराम शुरुआती छह महीनों में मिल जाता है। बाईपोलर डिसऑर्डर और थॉयरायड आपस में जुड़े होते हैं। वहीं अनियमित जीवनशैली भी इसके प्रभावों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बन सकती है। ज्यादातर स्थितियों में इसके लक्षणों को पहचाना नहीं जाता है। नौकरी की व्यस्तता, कुंठाओं, वैवाहिक समस्याओं, हताशा, प्रॉपर्टी के झगड़ों और बच्चों से विवाद जैसी परेशानियों की वजह से बाईपोलर डिसऑर्डर की समस्या पैदा हो सकती है। ध्यान रखें कि जीवन के प्रति नकारात्मक विचार भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

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