आम आदमी को अच्छे दिनों का अहसास कराता बजट - डॉ नीलम महेंद्र



विपक्ष भले ही वर्तमान सरकार के इस आखरी बजट को चुनावी बजट कहे और कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को चुनावी भाषण की संज्ञा दे,लेकिन सच तो यह है कि इस आम बजट ने अपने नाम के अनुरूप देश के आम आदमी का दिल जीत लिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, यह सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी, सर्वोत्कर्ष को समर्पित एक ऐसा बजट है जो भारत के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने अवश्य जगाता है, कितने पूर्ण होंगे यह तो समय ही बताएगा। 

यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने चुनावी साल में बजट प्रस्तुत किया हो। लेकिन हाँ, यह पहली बार है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में जहाँ अब तक लगभग हर सरकार चुनावी साल के बजट में केवल आगामी लोकसभा चुनावों को ही ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत करती थीं, वहां इस सरकार ने आगामी दस सालों को ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत किया है। 

यही मोदी की शैली है। खुद उनके शब्दों में "जब मैं काम करता हूँ तो राजनीति नहीं करता।" किन्तु यही उनकी खासियत है कि उनके काम,  उनके विरोधियों को राजनीति करने लायक छोड़ते नहीं। अब देखिए ना चुनाव जीतते ही साढ़े चार साल उन्होंने सख्त प्रशासन और नोटबन्दी, जी एस टी जैसे कठोर फैसले लिए। और अब चुनाव से पहले जी एस टी में छूट, सवर्ण आरक्षण जैसे कदमों के बाद अब बजट में किसानों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों समेत मध्यम वर्ग के लिए सौगातों की बौछार लगा कर, अपनी धारदार राजनीति से विपक्ष के वोटबैंक को धराशाईभी कर दिया। जिस मध्यम वर्ग से उन्होंने अपनी सरकार के पहले बजट में कहा था कि उसे अपना ध्यान खुद ही रखना होगा, उस मध्यम वर्ग को चुनावी साल में एक झटके में साध लिया। साथ ही वित्तमंत्री ने यह कहकर कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है, ना सिर्फ गरीबों को साधा बल्कि कांग्रेस पर भी प्रहार किया, जिनकी सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है।

मोदी सरकार के इस बजट में समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ है, यहां तक कि विपक्ष के लिए भी। इस बजट से उन्होंने राहुल के कई चुनावी वादों का जवाब भी दे दिया है। जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के जरिए किसानों को हर साल 6 हज़ार रुपए तीन किश्तों में सीधे उनके खाते में डालने के प्रस्ताव से उन्होंने कांग्रेस की कर्ज़ माफी योजना पर वार किया है। इससे एक तरफ उन्होंने ना सिर्फ राहुल के मोदी पर किसानों के प्रति असंवेदनशील होने के आरोप को ध्वस्त कर दिया, बल्कि रकम सीधे किसानों के खातों में डलवा कर कांग्रेस की कर्जमाफी के लॉलीपॉप की हवा भी निकाल दी। क्योंकि जिस प्रकार एक महीने के भीतर ही मध्यप्रदेश और राजस्थान से करोड़ों के कर्जमाफी घोटाले सामने आ रहे हैं, खुद राहुल भी अब समझ चुके हैं कि लोकसभा चुनावों में वो कर्जमाफी का कार्ड नहीं चलने वाला। 

इसलिए तीन राज्यों में जीत के तुरंत बाद जो राहुल यह कह रहे थे कि 2019 में कर्जमाफी महत्वपूर्ण मुद्दा होगा और मैं नरेंद्र मोदी को तब तक नहीं सोने दूंगा जब तक वो पूरे देश में कर्जमाफी नहीं कर देते, आज वो राहुल कर्जमाफी की नहीं बल्कि " न्यूनतम आय" की बात कर रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इस बजट से राहुल की इस घोषणा की भी हवा निकाल दी। क्योंकि सरकार ने बजट में संभवतः विश्व की सबसे बड़ी पेंशन योजना का प्रस्ताव पेश किया है। प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के कर्मियों को 60 वर्ष की आयु के बाद हर माह तीन हज़ार रुपए पेंशन का प्रावधान है। इसके लिए उन्हें हर महीने मात्र 100 रुपये जमा करने होंगे। 

इसके अलावा इस बजट में पहली बार मत्स्य पालन और पशु पालन के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड का प्रावधान कर के इन व्यवसायों में रोजगार बढ़ाने की कोशिश की है।

देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर के सेना का मनोबल ऊंचा किया। इसके अलावा प्रदूषण कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वाहन, सौर ऊर्जा जैसे विषयों पर ध्यान निश्चित ही महत्वपूर्ण एवं सराहनीय कदम हैं।

लेकिन सबसे बड़ा और सराहनीय कदम है पांच लाख तक की आय पर इनकम टैक्स खत्म करना। विपक्ष भले ही इसे चुनावी साल का सियासी कदम कहे लेकिन हकीकत यह है कि यह देश की अर्थव्यवस्था को गति देने वाला एक ठोस कदम है। क्योंकि, एक तो इससे मध्यम वर्ग के हाथ में पैसा बचेगा, जिसेस उनका लिविंग स्टैंडर्ड बढेगा, साथ ही यह पैसा निश्चित ही देश की अर्थव्यवस्था को गति देगा। दूसरा इस प्रकार का कदम कालांतर में देश की अर्थव्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त करने की दिशा में बुनियादी कदम सिद्ध होगा।

खास बात यह है कि वित्तमंत्री ने इस बात को भी स्पष्ठ कर दिया है कि इतने खर्चों के बावजूद राजकोषीय घाटे को जी डी पी के मात्र 3.4% रखा गया है और यही इस बजट की विशेषता है। उन्होंने बताया कि सात साल पहले राजकोषीय घाटा छ प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। 2018-19 में हम इसे 3.4% पर लाने में कामयाब रहे हैं। पिछले वर्ष के कुल बजट का आकार 24,42,213 करोड़ रुपये से बढ़ाकर इस साल 27,84,200 करोड़ रुपए कर दिया गया है। और यह संभव हुआ क्योंकि इन चार सालों में देश को टैक्स से मिलने वाले राजस्व में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है क्योंकि नोटबन्दी और जी इस टी के बाद लगभग एक करोड़ नए कर दाता जुड़े।

विपक्ष जितना भी सवाल पूछे कि चार साल पहले क्यों ऐसा लोक लुभावन बजट नहीं पेश किया गया ? सच तो वो भी जानते हैं कि देश के बैंक एन पी ए से खाली थे और अर्थव्यवस्था घोटालों और भ्रष्टाचार से। लेकिन आज जब हमारा देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई छ्ठी अर्थव्यवस्था बन गया है तो न सिर्फ ऐसी घोषणाएं की जा सकती हैं बल्कि अमल में भी लायी जा सकती हैं। संक्षेप में कहें तो साढ़े चार साल मोदी सरकार ने पहले देश की तिजोरी भरी और फिर उसे फराख दिली से जरूरत मंदों के बीच वितरित कर दिया | अब उसे साधुवाद कहने में कंजूसी कौन करेगा ?
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