अलगाववादी कश्मीरी नेता गिलानी को एक राष्ट्रीय मुस्लिम नेता आरिफ मोहम्मद खान ने दिखाया आईना |



लेखक परिचय – 

उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित है बारह गाँवों से मिलकर बना एक इलाका, जिसे बाराबस्ती के नाम से जाना जाता है | 1951 में इसी बाराबस्ती में पैदा हुए एक अद्भुत शख्सियत “आरिफ मोहम्मद खान” | यूं तो आरिफ साहब का अध्ययन दिल्ली के जामिया मिलिया स्कूल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और शिया कॉलेज लखनऊ में हुआ, लेकिन उनकी पहचान एक सुधारवादी मुस्लिम नेता की रही है | आरिफ मोहम्मद खान ने अपने राजनैतिक जीवन का प्रारम्भ भारतीय क्रांतिदल से किया, उत्तरप्रदेश विधानसभा का पहला चुनाव हारे, फिर 1977 में दूसरा चुनाव लडे और विधायक बने | 1980 में कांग्रेस की सदस्यता लेकर कानपुर से सांसद बने व 1984 में बहराईच से सांसद बने | 1986 में आरिफ मोहम्मद खान तब सबसे ज्यादा चर्चित हुए, जब शाहबानो प्रकरण में कांग्रेस द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध लाये गए संविधान संशोधन विधेयक का विरोध करते हुए, उन्होंने कांग्रेस से स्तीफा दे दिया | 1989 में खान जनता दल के टिकिट पर पुनः सांसद व वीपीसिंह मंत्रिमंडल में नागरिक उड्डयन और ऊर्जा मंत्री बने | 1998 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ली व सांसद भी बने | 2004 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता लेकर किशनगंज से चुनाव लडे, पर चुनावी सफलता नहीं मिली | 2007 में स्वयं को उपेक्षा से आहत बताकर भाजपा से बाहर हो गए | कुछ दिन पूर्व कश्मीर मुद्दे पर आधारित एक परिचर्चा में उन्होंने जिस प्रकार अलगाववादी नेता गिलानी को तार्किक ढंग से आड़े हाथों लिया, वह वर्तमान परिस्थितियों में देशवासियों को सुनने और समझने योग्य है | 

गिलानी साहब के बाद मुझे बोलने का अवसर मिला है, तो मैं उनसे भिन्न अपना द्रष्टिकोण प्रस्तुत कर सकता हूँ | उनका संगठन है – हुर्रियत कांफ्रेंस, जिसका अर्थ ही होता है “आजादी” और उनका नारा भी यही है “आजादी”| जहाँ तक मुझे पता है कि गिलानी साहब कश्मीर विधान सभा के सदस्य भी रहे हैं, और उन्होंने उस रूप में संविधान की शपथ भी ली ही होगी | यहाँ तक कि अपना नोमिनेशन फ़ाइल करते समय भी, जैसा कि जरूरी होता है कि हर कैंडिडेट संविधान को मानने और पालन करने का लिखित शपथ पत्र दे, वह भी उन्होंने दिया ही होगा | लेकिन इस मुल्क की आजादी देखिये कि गिलानी साहब को ये भी अख्तियार है कि वे भारत के संविधान को ही नष्ट करने की वकालत करें | संविधान के खिलाफ बोलें | मैं जब दोनों चीजों पर गौर करता हूँ, तो मुझे लगता है कि – 

मैं तो इस सादगिये हुस्न के सदके, 
ना जफा आती है उसको, ना वफ़ा आती है | 

आप कोंस्टीट्यूशन की ओथ भी लेंगे, आप वफादारी का हलफ भी लेंगे, और उसके बाद निकलेंगे उस कोंस्टीट्यूशन को ख़तम करने के लिए, उसके बाद निकलेंगे इस मुल्क को तोड़ने के लिए, मैं तो दंग रह जाता हूँ | मौलाना आजाद ने 1946 में अपना इंटरव्यू एक कश्मीरी और “चट्टान” के एडीटर को दिया | मौलना से कहा गया कि मुसलमानों की बहुत ज्यादा सपोर्ट पाकिस्तान को है, इस पर उनका जबाब था - 

आज वो जिस मकाम पर खड़े हैं, उन्हें तजरबे के गुजरगाह से गुजरने के बाद वे मजबूर होंगे सोचने के लिए कि उन्होंने क्या किया | 

यूपी के मुसलमानों का एक समूह पाकिस्तान जाने से पूर्व मौलाना से मिलने पहुंचा, तो दुखी होकर उन्होंने कहा कि आपके इस तरह जाते रहने से पाकिस्तान में इस्लाम मजबूत नहीं होगा, हाँ मुसलमान कुछ और कमजोर हो जायेंगे | हिन्दू आपका मजहबी मुखालिफ हो सकता है, लेकिन आपका वतनी दुश्मन नहीं है | गौर कीजिए कि यह बात मौलाना 1950-51 में यह बात कह रहे हैं कि – 

लेकिन मैं वह दिन दूर नहीं देख रहा हूँ कि जब पाकिस्तान में आपको कौमी और वतनी मुखालफतों का सामना करना पडेगा | उस वक्त चूंकि बंगलादेश भी पाकिस्तान में था, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में बंगाली, पंजाबी, बलूच, पठान और सिन्धी अपनी अपनी जुदागाना हैसियतों को लेकर उठ खड़े होंगे, उस वक्त आपकी हैसियत पाकिस्तान में बिन बुलाये मेहमान की हो जायेगी | 

यह मैंने केवल इसलिए कोट किया कि मोहतरम गीलानी साहब आपने और आपके साथियों ने तो मौलाना आजाद की उस उम्मीद को भी गलत साबित कर दिया, कि कमसेकम तजरबे से गुजरने के बाद तो हम कुछ सीखेंगे | इतना बड़ा तजरबा ? आज बासठ साल के बाद, उत्तर प्रदेश और बिहार से गया हुआ मुसलमान, महाजिर है | हिन्दुस्तान में भी शरणार्थी आये थे, पहले बीस साल हमने उन्हें शरणार्थी कहा, आज शरणार्थी लफ्ज से हमारी नई नस्ल नाबाकिफ है | जिन्हें हम साठ बासठ में शरणार्थी कहते थे, वे आज हमारी मैं स्ट्रीम को लीड कर रहे हैं | इस अहसास के साथ नहीं कि वे शरणार्थी हैं, इस अहसास के साथ कि वे हिन्दुस्तानी हैं | 

जितना पढ़िए मौलाना आजाद को तो लगता है कि जैसे कुदरत ने कोई चश्मा उनकी आँखों पर रख दिया हो, 1946 के इंटरव्यू में जब अभी पाकिस्तान नहीं बना है, मौलाना फरमाते हैं, हिंदुस्तान बंटेगा – तो पकिस्तान भी बंटेगा | बंगाल के जहन को न जिन्ना साहब समझते हैं, न लियाकत अली खान समझते हैं | ज्यूं ही पाकिस्तान के तहरीक की ताजगी ख़तम होगी, कोई भी छोटी मोटी चीज बंगाल को पाकिस्तान से अलहदा कर देगी और वो मगरबी पाकिस्तान के साथ नहीं रहेगा | अभी पाकिस्तान बना नहीं है, पाकिस्तान के सर पर पहले दिन से फ़ौजी हुक्मरानों का खतरा पाकिस्तान के सिर पर लटकेगा | 

जरा गौर तो कीजिए, ये बंगाली कौन थे गिलानी साहब ? ये बंगाली वो थे, जो पाकिस्तान की अक्सरियत थे | वे पाकिस्तान के बहुसंख्यक थे, वे अल्पसंख्यक नहीं थे | दुनिया की तारीख में शायद यह पहला मौक़ा था, जब किसी मुल्क में मेजोरिटी ने कहा कि माईनोरिटी हमें एक्स्प्लोईट कर रही है, हम उससे अलग होना चाहते हैं | और जरा आप अपनी तादाद पर तो गौर कीजिए, खुदानेखास्ता जिस आजादी की बात आप कर रहे हैं, गर वो हो गई, तो वो माईनोरिटी जिसने बंगाली मेजोरिटी को जीना मुश्किल कर दिया,  आपका क्या हाल करेगी ? जनाब क्या कहूं, जरा फिगर देख लीजिये कि 71 के पहले और दौरान कितने लोग वहां मारे गए | 

हम कहाँ हैं ? क्या तहरीक चला रहे हैं ? जहाँ तक मैं जानता हूँ, आपका ताल्लुक जमाते इस्लामी से रहा है, तो गौर कीजिए उन हालात पर जब जमाते इस्लामी के चीफ द्वारा पाकिस्तान में हिन्दी मुसलमानों के खिलाफ तहरीक चलाई गई, और डिमांड की गई कि इनको गैर मुस्लिम डिक्लेयर किया जाए | काहे के लिए डिक्लेयर किया जाए | ताकि वे हिन्दी जो बड़ी पोस्ट में हैं, ख़ास तौर पर जफरुल्ला खान साहब जो उस समय मिनिस्टर थे, उन्हें हटाया जाए | जस्टिस मुनीर कमीशन की वह रिपोर्ट पढ़िए, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यह डिमांड केवल इसलिए उठाई गई, ताकि जो हिन्दी पाकिस्तान में हाई पोजीशन पर हैं, वे सब हटाये जा सकें | 

मुनीर कमीशन ने लिखा कि अगर आप यह कहते हो कि किसी को गैर मुस्लिम घोषित किया जाए, तो हमें यह तो पता होना चाहिए कि मुसलमान कौन है ? यह मैं नहीं कह रहा हूँ, यह पाकिस्तान का जस्टिस मुनीर कमीशन कह रहा है कि जितनी जमातें और उनके लीडर हमारे सामने आये, बदकिस्मती से उनमें से कोई भी दो ऐसे उलेमा नहीं थे, जिनकी डेफीनेशन एक जैसी हो कि मुसलमान कौन है | यानी मुसलमान की डेफीनेशन पर ही वो एग्री नहीं करते | लेकिन एक बात पर सब एग्री करते हैं कि इनको गैर मुस्लिम डिक्लेयर कर दीजिये | और फिर जमाते इस्लामी के चीफ मौलाना मौदूदी, उनसे जस्टिस मुनीर पूछते हैं, क्या आपको यह अहसास है कि अगर पाकिस्तान को जिस प्रकार की इस्लामी हुकूमत आप कह रहे हैं, इसका नतीजा क्या होगा, हमारे पडौसी मुल्कों पर जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, उन पर क्या प्रभाव पडेगा ? उन्होंने कहा – जीहाँ मैं रियलाईज करता हूँ, और उसके बाद उनके सवाल जबाब सुनिए – 

सवाल - आप जिस प्रकार की इस्लामी हुकूमत चाह रहे हैं, तो क्या हिन्दुओं को भी परमिट करेंगे अपने धर्म के मुताबिक़ चलने की ? 

मौलाना मौदूदी का जबाब – निश्चित रूप से, मुझे कोई आपत्ति नहीं है कि भारत के मुसलमानों के साथ भी वे शासन सत्ता में मनुस्मृति के समान शूद्र या म्लेच्छ मानकर व्यवहार करें | मौलाना मौदीदी कहते हैं कि अगर भारत के मुसलमानों को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाए तो मैं उसका स्वागत करूंगा, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी | 

मुझे नहीं मालूम कि सन 47 का यह अधूरा एजेंडा है या मौदूदी साहब का अधूरा एजेंडा है, जिसे आप लागू करवाना चाहते हैं गिलानी साहब | 1947 में जब खून और आग के दरिया बह रहे थे, कश्मीर तो उस वक्त भी पुर अमन था | कश्मीर में कोई समस्या नहीं थी | 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान से आये हुए लोग, चाहे हम उन्हें आक्रमणकारी जिहादी कहें, या कबायली कहें, बारामूला में घुसे हैं | 14 हजार का कस्बा, 11 हजार को मार दिया, सब मुसलमान थे | 27 तारीख को जब हिन्दुस्तानी फौजें वहां उतरी हैं, उन पांच दिन में कश्मीर में, पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से कौन लड़ रहा था ? निहत्थे कश्मीरी ! ये वो कश्मीरी थे, जिनकी रिवायतें जमायते इस्लामी की रिवायतें नहीं हैं, जिनकी रिवायतें ऋषि तहरीक की रिवायतें हैं, उनकी विरासत नुन्द ऋषि से आती है, उनकी विरासत लल्लेश्वरी से आती है | आज जो माहौल आपकी तहरीक के नतीजे में बन गया है, किस इस्लाम की बात करते हो आप ? कुराने हकीम में अगर किसी एक मामले में इजाजत है आर्म्ड फाईट की, तो वह है – अगर किन्हीं लोगों को उनके घरों से उनके धार्मिक आस्थाओं के कारण बेदखल किया जा रहा हो तो | केवल और केवल यह एकमात्र बजह है, जब हथियार उठाये जा सकते हैं | ये केवल मुसलमानों को उनके घरों से बेदखल करने पर नहीं है | डेढ़ लाख-दो लाख- तीन लाख कश्मीरी पंडित आपकी तहरीक के नतीजे में, निकला हुआ बाहर बैठा हुआ है, और आपके दिल में दर्द नहीं है | 

मजहब का मकसद ही एक है – दर्दे दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को, वर्ना ताह्द के लिए कम न थे कर्रो बयां | 

आप कोई दर्द महसूस नहीं करते ? आपको अल्लाहे इकबाल में बहुत अकीदत है, तो उन लोगों के बारे में सोचिये, जिन्हें आपकी तहरीक ने बेघर बना दिया, उन नौजवानों के बारे में सोचिये, जिन नौजवानों की जानें गई हैं | उन बच्चियों के बारे में सोचिये, जो बेबा हुई हैं, जिनके बच्चे मारे गए हैं, और आपसे सिर्फ एक बात कहता हूँ कि ऐसी लीडरशिप और ऐसी तहरीक, जो अपने लोगों को ही खून के आंसू रोने पर मजबूर करे, ऐसी तहरीक पर फिर गौर कीजिए – 

जब तक कि गमें इंसा से इंसान का दिल मामूर नहीं, 

जन्नत ही सही दुनिया लेकिन जन्नत से जहन्नुम दूर नहीं |
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