पाकिस्तानी नजरिया - युद्ध की सीधी परिभाषा - अपने दुश्मन को खत्म करना। जबकि हम उड़ाते हैं शान्ति के कबूतर !



पुलबामा हमले के बाद देश आक्रोश में उबल रहा है | पूरा सोशल मीडिया जगत, तरह तरह के बयानों – सुझावों से भरा पड़ा है | आईये हम भी कुछ यथार्थपरक विश्लेषण करें | 

कहने को तो 2 नवंबर, 2011 को, पाकिस्तानी कैबिनेट ने औपचारिक रूप से भारत को 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' (MFN) का दर्जा दिया। लेकिन यह निर्णय कभी लागू ही नहीं हुआ । इसके विपरीत भारत ने बहुत पहले, अर्थात 1996 से ही पाकिस्तान को यह दर्जा दिया हुआ है । 

यह अच्छा है कि देर से ही सही, किन्तु पुलबामा हमले के बाद भारत ने अब पाकिस्तान को दी गई एमएफएन के दर्जे को समाप्त कर दिया है | जब भी भारत में कोई आतंकी घटना होती रही, यह मांग उठती रही, किन्तु इस बार स्थिति बदल गई, और अब पाकिस्तान से भारत को किये जाने वाले निर्यात पर सीमा शुल्क की छूट समाप्त हो गई है | पहले से डूबी हुई पाकिस्तानी अर्थ व्यवस्था को यह किसी तगड़े झटके से कम नहीं है । 

यह दोनों देशों के बीच दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) प्रक्रिया के तहत एक व्यापार व्यवस्था थी, जिसका लाभ केवल पाकिस्तान उठाता रहा, जबकि भारत को इससे धेले का भी लाभ नहीं था । 

आज भारत एक विशाल घरेलू बाजार के साथ तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। पाकिस्तान के साथ व्यापार न करने के निर्णय से भारत को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला - लेकिन पाकिस्तान को झटका लगना निश्चित है। 

मामला केवल द्विपक्षीय संबंध का ही नहीं हैं, बल्कि जरूरत इस प्रकार की कूटनीति की है, कि कोई भी देश पाकिस्तान के साथ व्यापार न करे। यह संदेश पूरी ताकत के साथ और स्पष्ट रूप से विदेशों को जाना चाहिए कि - या तो आप आतंक की शरणगाह पाकिस्तान के खिलाफ हैं या आप हमारे खिलाफ हैं। चीन भी इसका अपवाद नहीं होना चाहिए। 

संयुक्त राष्ट्र के पाकिस्तान-आधारित आतंकवादी समूह के प्रमुख को वैश्विक आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने की नई दिल्ली की अपील को रोककर चीन मौलाना मसूद अजहर और उसके आतंकवादी संगठन, जेईएम को बचा रहा है। समय आ गया है, जब बीजिंग को भी यह जता दिया जाए कि अगर वह अपनी नीति नहीं बदलता तो भारत के साथ उसके व्यापार सम्बन्ध भी प्रभावित होंगे । 

अगर ड्रैगन चीन पाकिस्तान में निवेश करना जारी रखता है तो हमें भी "मेड इन चाइना" व्यवसाय को रोकना चाहिए – क्योंकि उसका पाकिस्तान समर्थक रुख सामने है । 

दुनिया का सबसे विशाल बाजार “भारत” अपनी स्थिति का उपयोग कर सकता है और इसका प्रमाण है कि आज समूचा वैश्विक समुदाय, पाकिस्तान को अलग थलग कर भारत के साथ संबंध स्थापित करने को लालायित दिखाई देता है। 

भारत ने अब तक पहले कभी अपनी इस स्थिति का उपयोग नहीं किया, यह अपने आप में हैरत की बात है। पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ छद्म युद्ध चलाता रहा, और हम शान्ति के कबूतर उड़ाते रहे । 

पाकिस्तान के सत्ता सूत्र सदा से सेना के हाथों में ही रहे हैं, चुनाव बहां महज एक नौटंकी होती है, और चुने हुए नेता सेना के हाथ की कठपुतली | वर्तमान प्रधान मंत्री इमरान खान भी कोई अपवाद नहीं हैं | वे केवल इसलिए बैठाए गए हैं, ताकि दुनिया भर में भीख का कटोरा लेकर घूमते रहें, उन आतंकी मॉड्यूल्स के लिए फंड जुटाएं, जिनका अंतिम लक्ष्य केवल और केवल भारत का पूर्ण विनाश से कम कुछ नहीं हैं। 

युद्ध की सीधी परिभाषा है - अपने दुश्मन को खत्म करना। 

और पाकिस्तान के लिए भारत केवल एक शत्रु है और उसकी सारी रणनीति भारत को मिटाने की है । 

तो जनाब अब समय आ गया है – जैसे को तैसा बनने का | 

अगर बने तो पाकिस्तान का अंत निकट है । 

अन्यथा ??????
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